एक फूल की चाह - सियारामशरण गुप्त
भाव पक्ष - पिता कहता है कि मैं अपनी बेटी सुखिया को बाहर जाकर खेलने से मना करता मैं बार-बार कहता था-, बाहर खेलने मत जा। परन्तु बार-बार मना करने के पश्चात भी उसका खेलना रूकता नहीं था। वह पल भर के लिए भी घर में नहीं रूकती थी। में उसकी इस चंचलता को देखकर भयभीत हो उठता था। मेरा दिल काँप उठता था मैं मन में हमेशा यही कामना करता था कि किसी तरह अपनी बेटी सुखिया को महामारी की चपेट में आने से बचा लूँ।
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