तुम कब आओगे अतिथि - शरद जोशी
मेहमानों को बिना बुलाए घर चले आने का आघात अप्रत्याशित था तथा उनके घर में रहकर नई-नई फरमाइशें करना उससे भी अधिक मार्मिक चोट थी। अचानक कह देना कि वह धोबी को कपड़े धोने के लिए देना चाहते है; लेखक की समीपता की बेल को रबर की भांति खींच देता है। तब उन्हें लगता है। अतिथि सदैव देवता नहीं होते। अच्छा अतिथि वही होता है जो सूचना देकर आए और निर्धारित लौट जाए। जैसा आदर-सत्कार हो उसे स्वीकार करे तथा मेजबान को यह सोचने पर विवश न करे कि! तुम कब जाओगे।
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