तुम कब आओगे अतिथि - शरद जोशी
अतिथि यदि एक दो दिन के लिए ठहरे तो उसका आदर सत्कार होता है। परन्तु जब अधिक दिन ठहरे तो सहनशीलता की सीमा टूट जाती है। उससे अधिक उस अतिथि को झेलने की क्षमता उसमें समाप्त हो जाती है। उसे ‘गेट आउट’ कहने का मन करता है। आतिथ्य-सत्कार में भी अंतर आ जाता है। अतिथि अपने देवत्व को खोकर राक्षसत्व का बोध कराता है।
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