तुम कब आओगे अतिथि - शरद जोशी
(क) पाठ-तुम कब जाओगे, अतिथि, लेखक-शरद जोशी।
(ख) लेखक खर्राटों का प्रसंग उठाकर यह कहना चाहता है कि उसके घर आया हुआ मेहमान बड़े आराम से मजे लूट रहा है। उसे घर जाने की चिन्ता नहीं है। वह मानो उसे अपना घर मानकर वही बस गया है।
(ग) लेखक अतिथि से अपेक्षा करता है। कि वह शीघ्र ही उसका घर छोड़कर चला जाए। उसे रहते हुए चार दिन हो चुके हैं। पाँचवे दिन की सुबह होते ही उसे अपने घर चले जाना चाहिए।
(घ) देवता थोड़े समय के लिए दर्शन देकर चले जाते है। मनुष्य उनका सम्मान करते है। मनुष्य अधिक देर तक देवता को झेल नहीं पाता। इसी प्रकार अतिथि भी थोड़े समय के लिए ही तो अच्छा लगता है। अधिक समय तक वह उसे झेल नहीं पाता।
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