इस बारे में चर्चा कीजिए कि औपनिवेशिक सरकार ने निम्नलिखित कानून क्यों बनाए? यह भी बताइए कि इन कानूनों से चरवाहों के जीवन पर क्या असर पड़ा?
परती भूमि नियमावली
वन अधिनियम
अपराधी जनजाति अधिनियम
चराई कर
परती भूमि नियम: इस नियम के तहत सरकार गैर-खेतिहर ज़मीन को अपने कब्जे में लेकर कुछ खास लोगों को सौंपने लगी। इन लोगों को कई तरह की रियायतें दी गईं और इस जमीन को खेती लायक बनाने और खेती करने को बढ़ावा दिया गया। ज्यादातर जमीन चरगाहों की थी जिनका चरवाहे नियमित रुप से इस्तेमाल करते थे। खेती के फैलाव से चरागाह सिमटने लगे और चरवाहों के लिए समस्या पैदा हो गई।
वन अधिनियम: इस अधिनियम के द्वारा सरकार ने ऐसे जंगलों को 'आरक्षित' वन घोषित कर दिया जहाँ देवदार या साल जैसी कीमती लकड़ी पैदा होती थी। इन जंगलों में चरवाहों के घुसने पर पाबंदी लगा दी गई। कई जंगलों को 'संरक्षित' घोषित कर दिया गया। इन जंगलों में चरवाहों को चरवाही के कुछ परंपरागत अधिकार तो दिए गए लेकिन उनकी आवाजाही पर बंदिशें लगी रहीं।
अपराधी जनजाति अधिनियम: इस कानून के तहत दस्तकारों, व्यापारियों और चरवाहों के बहुत सारे समुदायों को अपराधी की सूची में रख दिया गया। उन पर बिना परमिट आवाजाही पर रोक लगा दी गई। ग्राम्य पुलिस उन पर सदा नजर रखने लगी।
चराई कर: उन्नीसवीं सदी के मध्य से ही देश के ज्यादातर चरवाही इलाकों में चरवाही टैक्स लागू कर दिया गया था। हरेक चरवाहे को एक पास दिया गया। चरागाह में दाखिल होने के लिए चरवाहों को पास दिखाकर पहले टैक्स अदा करना होता था।



