पहाड़िया लोगों की आजीविका संथालों की आजीविका से किस रूप में भिन्न थी?
पहाड़िया लोगों की आजीविका तथा संथालों की आजीविका में अंतर विभिन्न उदाहरणों द्वारा स्पष्ट किया जा सकता हैं:
- पहाड़िया लोगों की खेती कुदाल पर आधारित थी। ये राजमहल की पहाड़ियों के इर्द-गिर्द रहते थे। वे हल को हाथ लगाना पापा समझते थे। वही दूसरी ओर, संथाल हल की खेती यानी स्थाई कृषि सीख रहे थे। ये गुंजारिया पहाड़ियों की तलहटी में रहने वाले लोग थे।
- पहाड़िया लोग झूम खेती करते थे और जंगल के उत्पादों से अपना जीविकोपार्जन करते थे। जंगल के छोटे से भाग में झाड़ियों को काटकर तथा घास-फूस को जलाकर वे जमीन साफ़ कर लेते थे। राख की पोटाश से जमीन पर्याप्त उपजाऊ बन जाती थी। पहाड़िया लोग उस ज़मीन पर अपने खाने के लिए विभिन्न प्रकार की दालें और चार बाजरा उगाते थे। इस प्रकार वे अपनी आजीविका के लिए जंगलों और चरागाहों पर निर्भर थे। किन्तु संथाल अपेक्षाकृत स्थायी खेती करते थे। ये परिश्रमी थे और इन्हें खेती की समझ थी। इसलिए जमींदार लोग इन्हें नई भूमि निकालने तथा खेती करने के लिए मज़दूरी पर रखते थे।
- कृषि के अतिरिक्त शिकार व जंगल के उत्पाद पहाड़ियां लोगों की आजीविका के साधन थे। वे काठ कोयला बनाने के लिए जंगल से लकड़ियाँ एकत्रित करते थे। खाने के लिए महुआ नामक पौधें के फूल एकत्र करते थे। जंगल से रेशम के कीड़ें के कोया (Silkcocoons) एवं राल (Resin) एकत्रित करके बेचते थे। वही दूसरी ओर खानाबदोश जीवन को छोड़कर एक स्थान पर बस जाने के कारण संथाल स्थायी खेती करने लगे थे, वे बढ़िया तम्बाकू और सरसों जैसी वाणिज्यिक फसलों को उगाने लगे थे। परिणामस्वरूप, उनकी आर्थिक स्थिति उन्नत होने लगी और वे व्यापारियों एवं साहूकारों के साथ लेन-देन भी करने लगे।
- पहाड़िया लोग उन मैदानी भागों पर बार-बार आक्रमण करते रहते थे, जहाँ किसानों द्वारा एक स्थान पर बसकर स्थायी खेती की जाती थी। इस प्रकार मैदानों में रहने वाले लोग प्रायः पहाड़िया लोगों के आक्रमणों से भयभीत रहते थे। किंतु संथाल लोगों के जमींदारों और व्यापारियों के साथ संबंध प्रायः मैत्रीपूर्ण होते थे। वे व्यापारियों एवं साहूकारों के साथ लेन-देन भी करते थे।