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उपनिवेशवाद और देहात

Question
CBSEHHIHSH12028337

किसानों का इतिहास लिखने में सरकारी स्रोतों के उपयोग के बारे में क्या समस्याएँ आती हैं?

Solution

यह सत्य है कि इतिहास के पुनर्निर्माण में सरकारी स्रोतों; जैसे-राजस्व अभिलेखों, सरकार द्वारा नियुक्त सर्वेक्षणकर्ताओं की रिपोर्टों और पत्रिकाओं आदि का महत्त्वपूर्ण स्थान है। किंतु किसानों का इतिहास लिखने में सरकारी स्रोतों का उपयोग करते समय लेखक को निम्नलिखित समस्याओं का सामना करना पड़ता है:

  1. सरकारी स्रोत वास्तविक स्थिति का निष्पक्ष वर्णन नहीं करते। अतः उनके द्वारा प्रस्तुत विवरणों पर पूरी तरह विश्वास नहीं किया जा सकता हैं।
  2. इन सरकारी स्रोतों के आधार पर किसान संबंधी इतिहास लिखने में सबसे बड़ी समस्या होती है उन स्रोतों के 'उद्देश्य एवं दृष्टिकोण' की खोज-बिन करना। क्योंकि ये किसी-न-किसी रूप में सरकारी दृष्टिकोण एवं अभिप्रायों के पक्षधर होते हैं। वे विभिन्न घटनाओं का विवरण सरकारी दृष्टिकोण से ही प्रस्तुत करते हैं।
  3. सरकारी स्रोतों में दी गई जानकारी सरकारी दृष्टिकोण तथा सरकार के हित से प्रेरित होती है। इनमें किसी घटना के लिए सरकार को दोषी ठहराने की बजाए विरोधी पक्ष को दोषी सिद्ध करने का प्रयास होता है। उदाहरण के लिए, दक्कन दंगा आयोग की नियुक्ति विशेष रूप से यह पता लगाने के लिए की गई थी कि सरकारी राजस्व की माँग का विद्रोह के प्रारंभ में क्या योगदान था अथवा क्या किसान राजस्व की ऊँची दर के कारण विद्रोह के लिए उतारू हो गए थे। आयोग ने संपूर्ण जाँच-पड़ताल करने के बाद जो रिपोर्ट प्रस्तुत की उसमें विद्रोह का प्रमुख कारण ऋणदाताओं अथवा साहूकारों को बताया गया। रिपोर्ट में स्पष्ट रूप से यह कहा गया कि सरकारी माँग किसानों की उत्तेजना अथवा क्रोध का कारण कदापि नहीं थी।
    किन्तु आयोग इस प्रकार की टिप्पणी करते हुए यह भूल गया कि आखिर किसान साहूकारों की शरण में जाते क्यों थे। वास्तव में, सरकार द्वारा निर्धारित भू-राजस्व की दर इतनी अधिक थी और वसूली के तरीके इतने कठोर थे कि किसान को विवशतापूर्वक साहूकार की शरण में जाना ही पड़ता था। इसका स्पष्ट अभिप्राय यह था कि औपनिवेशिक सरकार जनता में व्याप्त असंतोष अथवा रोष के लिए स्वयं को उत्तरदायी मानने के लिए तैयार नहीं थी। 
    इस प्रकार, सरकारी रिपोर्टें इतिहास के पुनर्निर्माण के लिए बहुमूल्य स्रोत सिद्ध होती हैं। लेकिन उन्हें हमेशा सावधानीपूर्वक पड़ा जाना चाहिए और समाचारपत्रों, गैर-सरकारी वृतांतों, वैधिक अभिलेखों और यथासंभव मौखिक स्रोतों से संकलित साक्ष्य के साथ उनका मिलान करके उनकी विश्वसनीयता की जाँच की जानी चाहिए।

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