लेखक ‘समता’ पर विचार करते समय क्या बात समझाता है?
लेखक ‘समता’ पर विचार करते समय समझाता है-‘समता’ पर किसी को आपत्ति नही हो सकती है। फ्रांसीसी क्रांति के नारे में ‘समता’ शब्द ही विवाद का विषय रहा है। ‘समता’ के आलोचक यह कह सकते हैं कि सभी मनुष्य बराबर नहीं होते और उनका यह तर्क वजन भी रखता है। लेकिन तथ्य होते हुए भी यह विशेष महत्त्व नहीं रखता क्योंकि शाब्दिक अर्थ में ‘समता’ असंभव होते हुए भी यह नियामक सिद्धांत है। मनुष्यों की समता तीन बातों पर निर्भर रहती है-(1) शारीरिक वंश परंपरा, (2) सामाजिक उत्तराधिकार अर्थात् सामाजिक परंपरा के रूप में माता-पिता की कल्याण कामना, शिक्षा तथा वैज्ञानिक ज्ञानार्जन आदि, सभी उपलब्धियाँ जिनके कारण सभ्य समाज, जंगली लोगों की अपेक्षा विशिष्टता प्राप्त करता है और अंत में (3) मनुष्य के अपने प्रयत्न। इन तीनों दृष्टियों से निसंदेह मनुष्य समान नहीं होते। तो क्या इन विशेषताओं के कारण समाज को भी उनके साथ असमान व्यवहार करना चाहिए? समता विरोध करने वालों के पास इसका जवाब नही है।