अपने सामने विचित्र-सा खाना देखकर लेखिका की अप्रसन्नता को भक्तिन ने क्या तर्क देकर दूर किया?
जब भक्तिन ने विचित्र-मा भोजन परोसा और लेखिका ने अपनी अप्रसन्नता प्रकट की तब भक्तिन ने तर्क दिए- रोटियाँ अच्छी सेंकने के प्रयास में कुछ अधिक खरी हो गई हैं; पर अच्छी हैं। तरकारियाँ थीं पर जब दाल बनी है तब उनका क्या काम-शाम को दाल न बनाकर तरकारी बना दी जाएगी। दूध-घी लेखिका को अच्छा नहीं लगता, नहीं तो सब ठीक हो जाता। अब न हो तो अमचूर और लाल मिर्च की चटनी पीस ली जावे। उससे भी काम न चले तो वह गाँव से लाई हुई गठरी में से थोड़ा-सा गुड दे देगी और शहर के लोग क्या कलाबत्तू खाते हैं? फिर वह कुछ अनाडिन या फूहड़ नहीं। उसके ससुर, पितिया समूर, अजिया सास आदि ने उसकी पाक-कुशलता के लिए न जाने कितने मौखिक प्रमाण-पत्र दे डाले हैं।