‘अट्टालिका नहीं है, आतंक भवन’ में निहित व्यंग्य को स्पष्ट कीजिए।
इस पंक्ति में यह व्यंग्य निहित है कि पूँजीपतियों के विशाल आवास कहने को तो अट्टालिकाएँ हैं, पर वास्तव में आतंक फैलाने के केंद्र बनकर रह गए हैं। इन गगनचुंबी अट्टालिकाओं में रहने वाले पूँजीपति निर्धन वर्ग को सताते एवं आतंकित करते रहते हैं। इस प्रकार ये गगनचुंबी अट्टालिकाएँ आतंकवाद के अड्डे बन गए हैं। इनमें रहने वाले शोषक भी क्रांति के भय से सदा आतंकित रहते हैं। अत: इन भवनों को अट्टालिका न कहकर ‘आतंक-भवन’ कहना अधिक उपयुक्त है। क्रांति होने पर ये भवन धराशायी हो जाएँगे।