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सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’

Question
CBSEENHN12026298

‘अट्टालिका नहीं है, आतंक भवन’ में निहित व्यंग्य को स्पष्ट कीजिए।

Solution

इस पंक्ति में यह व्यंग्य निहित है कि पूँजीपतियों के विशाल आवास कहने को तो अट्टालिकाएँ हैं, पर वास्तव में आतंक फैलाने के केंद्र बनकर रह गए हैं। इन गगनचुंबी अट्टालिकाओं में रहने वाले पूँजीपति निर्धन वर्ग को सताते एवं आतंकित करते रहते हैं। इस प्रकार ये गगनचुंबी अट्टालिकाएँ आतंकवाद के अड्डे बन गए हैं। इनमें रहने वाले शोषक भी क्रांति के भय से सदा आतंकित रहते हैं। अत: इन भवनों को अट्टालिका न कहकर ‘आतंक-भवन’ कहना अधिक उपयुक्त है। क्रांति होने पर ये भवन धराशायी हो जाएँगे।

Some More Questions From सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’ Chapter

बादलों की गर्जना का संसार पर क्या प्रभाव पड़ता है?

कवि ने बादलों की क्या-क्या विशेषताएँ बताई हैं?

‘गगन स्पर्शी, स्पर्धावीर’ का आशय स्पष्ट करो।

दिये गये काव्यांशों की सप्रसंग व्याख्या करें

हँसते हैं छोटे पौधे लधु भार-

शस्य अपार,

हिल-हिल,

खिल-खिल

हाथ हिलाते,

तुझे बुलाते,

तुझे बुलाते,

विप्लव-रव से छोटे ही हैं शोभा पाते।.




 

क्रांति की गर्जना पर कौन हंसते हैं?

छोटे पौधे किनके प्रतीक हैं?

वे किस, किस प्रकार बुलाते हैं?

‘विप्लव रव’ किससे शोभा पाते है और क्यों?

दिये गये काव्यांशों की सप्रसंग व्याख्या करें

अट्टालिका का नहीं है रे
आतंक-भवन

सदा पंक पर ही होता जल-विप्लव-प्लावन,

क्षुद्र फुल्ल जलज से सदा छलकता नीर,

रोग-शोक में भी हँसता है

शैशव का सुकुमार शरीर।

कवि किन्हें आतंक भवन कहता है और क्यों?