अट्टालिका नहीं है रे
आतंक-भवन
सदा पंक पर ही होता
जल-विप्लव-प्लावन।
कवि शोषक वर्ग (पूँजीपतियों) पर व्यंग्य करते हुए कहता है कि इनके ऊँचे-ऊँचे महल न होकर आतंक- भवन हैं। ये लोग यहीं से निम्नवर्ग को आतंकित करते हैं। वर्षा का प्रभाव तो कीचड़ पर ही होता है अर्थात् क्रांति का प्रभाव धनिक-पूँजीपतियों पर ही होता है। क्रांति का तेज बहाव पूँजीपतियों को बहा ले जाता है।
हाँ, क्रांति का सुफल शोषित वर्ग को प्राप्त होता है।