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गजानन माधव मुक्तिबोध

Question
CBSEENHN12026191

तुम्हें भूल जाने की

दक्षिण ध्रुवि अंधकार-अमावस्या

शरीर पर, चेहरे पर, अंतर में पा लूँ मैं

झेलूँ मैं, उसी में नहा लूँ मैं

इसलिए कि तुमसे ही परिवेष्टित आच्छादित

रहने का रमणीय उजेला अब

सहा नहीं जाता है

A.

यहाँ अधंकार-अमावस्या के लिए क्या विशेषण इस्तेमाल किया गया है और उससे विशेष्य में क्या अर्थ जुड़ता है?

B.

कवि ने व्यक्तिगत सदंर्भ में किस स्थिति को अमावस्या कहा?

C.

इस स्थिति से ठीक विपरीत ठहरने वाली कौन-सी स्थिति कविता में व्यक्त हुई है ? इस वैपरीत्य को व्यक्त करने वाले शब्द का व्याख्यापूर्वक उल्लेख करें।

D.

कवि अपने संबोध्य (‘जिसे कविता संबोधित है। कविता का ‘तुम’) को पूरी तरह भूल जाना चाहता है इस बात को प्रभावी तरीके से व्यक्त करने के लिए क्या युक्ति अपनाई है? रेखांकित अंशों को ध्यान में रखकर उत्तर दें।

Solution

A.

यहाँ अंधकार-अमावस्या के लिए ‘दक्षिण ध्रुवी’ विशेषण का इस्तेमाल किया गया है। इससे विशेष्य (अंधकार-अमावस्या) का कालापन और भी गहरा जाता है।

B.

कवि ने व्यक्तिगत संदर्भ में अंधकार को शरीर पर बाहरी रूप से तथा आंतरिक रूप समा लेना चाहता है। यही स्थिति अमावस्या के समान है।

C.

इस स्थिति से ठीक विपरीत ठहरने वाली स्थिति कविता में यह है-वह रमणीय उजेला (उजियाला) को झेले और उसी में नहा ले।

D.

कवि ने अपनी बात को प्रभावी तरीके से व्यक्त करने के लिए प्रिय को भूल जाने, उसके प्रभाव को शरीर और हृदय में उतार लेने, झेलने और नहा लेने (पूरी तरह डूब जाने) की युक्ति अपनाई है।

Some More Questions From गजानन माधव मुक्तिबोध Chapter

प्रस्तुत पक्तियों की सप्रंसग व्याख्या करें

जिंदगी में जो कुछ है, जो भी है

सहर्ष स्वीकारा है,

इसलिए कि जो कुछ भी मेरा है

वह तुम्हें प्यारा है।

अर्थग्रहण संबंधी प्रश्न

कवि ने सहर्ष क्या स्वीकार किया है?

कवि ने इसे क्यों स्वीकार कर लिया है?

यह कविता क्या प्रेरणा देती है?

प्रस्तुत पक्तियों की सप्रंसग व्याख्या करें

गरबीली गरीबी यह, ये गंभीर अनुभव सब

यह विचार-वैभव सब

दृढ़ता यह, भीतर की सरिता यह अभिनय सब

मौलिक है, मौलिक है,

इसलिए कि पल-पल में

जो कुछ भी जागृत है, अपलक है-

संवेदन तुम्हारा है!!

कवि किस-किसको मौलिक मानता है और क्यों?

इन पर किसकी संवेदना का प्रभाव है?

इस कविता पर किस बाद का प्रभाव झलकता है?

प्रस्तुत पक्तियों की सप्रंसग व्याख्या करें

जाने क्या रिश्ता है, जाने क्या नाता है

जितना भी उँडेलता हूँ, भर-भर फिर आता है

दिल में क्या झरना है?

मीठे पानी का सोता है

भीतर वह, ऊपर तुम

मुस्काता चाँद ज्यों धरती पर रात-भर

मुझ पर त्यों तुम्हारा ही खिलता वह चेहरा है।