Question
निम्नलिखित पद्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिये:
कहेउ लखन मुनि सीलु तुम्हारा। को नहि जान बिदित संसारा।।
माता पितहि उरिन भय नीकें। गुर रिनु रहा सोचु बड़ जी कें।।
सो जनु हमरेहि माथे काढ़ा। दिन चलि गये ब्याज बड़ बाढां।।
अब आनिअ ब्यवहरिआ बोली। तुरत देऊँ मैं थैली खोली।।
सुनि कटु बचन कुठार सुधारा। हाय हाय सब सभा पुकारा।।
भृगुबर परसु देखाबहु मोही। बिप्र विचारि बचौं नृपद्रोही।।
मिले ने कबहूँ सुभट रन गाढ़े। द्विजदेवता घरहि के बाढ़े।।
अनुचित कहि सबु लोगु पुकारे। रघुपति सयनहि लखनु नेवारे।।
लखन उतर आहुति सरिस भृगुबरकोप कृसानु।
बढ़त देखि जल सम बचन बोले रघुकुलभानु।।
पद में निहित भाव स्पष्ट कीजिए।
Solution
लक्ष्मण ने परशुराम से व्यंग्यशैली में बात करते हुए कहा था कि वे अपने माता-पिता के ऋण से मुक्त हो ही चुके थे अब गुरु ऋण का जो हिसाब-किताब उनके मत्थे डाला गया है उसे भी चुका दें। व्यर्थ में अपने सिर पर बोझ क्यों लादे हुए थे। आज तक उन्हें शक्तिशालीं रणवीर मिले ही नहीं थे और इसीलिए वे स्वयं को बहादुर मान रहे थे। राजसभा में उपस्थित राजाओं को लक्ष्मण के ये शब्द उचित नहीं लगे। राम के संकेत को समझकर लक्ष्मण चुप हो गए।