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तुलसीदास - राम-लक्ष्मण-परशुराम संवाद
लक्ष्मण ने परशुराम से व्यंग्यशैली में बात करते हुए कहा था कि वे अपने माता-पिता के ऋण से मुक्त हो ही चुके थे अब गुरु ऋण का जो हिसाब-किताब उनके मत्थे डाला गया है उसे भी चुका दें। व्यर्थ में अपने सिर पर बोझ क्यों लादे हुए थे। आज तक उन्हें शक्तिशालीं रणवीर मिले ही नहीं थे और इसीलिए वे स्वयं को बहादुर मान रहे थे। राजसभा में उपस्थित राजाओं को लक्ष्मण के ये शब्द उचित नहीं लगे। राम के संकेत को समझकर लक्ष्मण चुप हो गए।
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परशुराम ने अपने विषय में सभा में क्या-क्या कहा, निम्न पद्यांश के आधार पर लिखिए-
बाल ब्रह्मचारी अति कोही। बिस्वबिदित क्षत्रियकुल द्रोही।।
भुजबल भूमि भूप बिनु कीन्ही। बिपुल बार महिदेवन्ह दीन्ही।।
सहसबाहुभुज छेदनिहारा। परसु बिलोकु महीपकुमारा।।
मातु पितहि जनि सोचबस करसि महीसकिसोर।
गर्भन्ह के अर्भक दलन परसु मोर अति घोर।।
लक्ष्मण ने वीर योद्धा की क्या-क्या विशेषताएँ बताई?
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