Question
निम्नलिखित पद्यांश को पढ़कर पूछे गये प्रश्नों के उत्तर दीजिये:
नाथ संभुधनु भंजनिहारा। होइहि केउ एक दास तुम्हारा।।
आयेसु काह कहिअ किन मोही। सुनि रिसाइ बोले मुनि कोही।।
सेवकु सो जो करै सेवकाई। अरिकरनी करि करिअ लराई।।
सुनहु राम जेहि सिवधनु तोरा। सहसबाहु सम सो रिपु मोरा।।
सो बिलगाउ बिहाइ समाजा। न त मारे जैहहिं सब राजा।
सुनि मुनिबचन लखन मुसुकाने। बोले परसुधरहि अवमाने।।
बहु धनुही तोरी लरिकाई। कबहुँ न असि रिस कीन्हि गोसाईं।।
येहि धनु पर ममता केहि हेतू। सुनि रिसाइ कह भृगुकुलकेतू।।
रे नृपबालक कालबस बोलत तोहि न सँभार।।
धनुही सम त्रिपुरारिधनु बिदित सकल संसार।।
पद में निहित भाव से स्पष्ट कीजिए।
Solution
रामचरितमानस के बालकांड से लिए गए इस पद में राम ने सीता स्वयंवर के समय शिव के धनुष को तोड़ दिया था जिस कारण परशुराम क्रोध से भर उठे थे। राम ने उन्हें अपने मीठे शब्दों से शांत करना चाहा था लेकिन लक्ष्मण ने व्यंग्य भरे अपने शब्दों से उनके क्रोध को भड़का दिया था और उससे जानना चाहा था कि क्या भगवान शिव का धनुष उसे धनुही के समान प्रतीत होता था।