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तुलसीदास - राम-लक्ष्मण-परशुराम संवाद
पहली घटना- मैं पिछले वर्ष से अपने स्कूल की हॉकी टीम में खेल रहा था। परसों जब शाम को मैं अभ्यास के लिए खेल के मैदान में पहुँचा तो खेल-कूद के इंचार्ज श्री गुप्ता के निकट एक अनजान लड़का हाँकी लिए हुए खड़ा था। मुझे देखते ही श्री गुप्ता ने कहा कि तुम्हारी जगह टीम में आज से यह लड़का खेलेगा। यह मेरा भतीजा है और इस स्कूल में इसने आज ही दाखिला लिया है। मैंने उनसे कहा कि पिछले वर्ष से मैं इस टीम का नियमित सदस्य हूँ और मेरा खेल भी अच्छा था। उन्होंने मुझे गुस्से से देखा और फिर कह दिया कि निर्णय का अधिकार उनका था कि कौन खेलेगा और कौन जाएगा। मैं चुपके से वहाँ से चला आया। मैं स्कूल के प्राचार्य के घर गया और उनसे बात की। उन्होंने मुझे समझाया और कहा कि वे स्कूल में श्री गुप्ता से बात कर मुझे बताएंगे। मैं नहीं जानता कि प्राचार्य महोदय की गुप्ता सर से क्या बात हुई पर सातवें पीरियड में स्कूल का चपड़ासी एक नोटिस लाया कि शाम को मुझे खेलने के लिए पहले की तरह ही पहुँचना था।
दूसरी घटना- मेरे घर के बाहर कुछ कच्चे क्रिकेट खेल रहे थे। मैं उन्हें खेलता हुआ देख रहा था। जैसे ही एक लड़के ने बॉल को हिट किया वह उछल कर खिड़की के शीशे से टकराई और शीशा टूट गया। बच्चों ने शीशा टूटता देखा और वहाँ से भागे। एक छोटा लड़का वहाँ खड़ा था। वह खेल नहीं रहा था, बस खेल देख रहा था। मेरा बड़ा भाई साइकिल पर कहीं बाहर से आ रहा था। उसने लड़कों को भागते और खिड़की के टूटे शीशे को देखा। उसने झपट कर उस छोटे लड़के को पकड़ लिया। इससे पहले कि वह उस पर हाथ उठा पाता, मैंने उसे ऐसा करने से रोका क्योंकि शीशा तोड़ने में लड़के का कोई हाथ नहीं था।
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