तुलसीदास - राम-लक्ष्मण-परशुराम संवाद

Question
CBSEENHN10002074

निम्नलिखित पद्यांश को पढ़कर उसकी सप्रसंग व्याख्या कीजिये:
बिहसि लखनु बोले मृदु बानी। अहो मुनीसु महाभट मानी।।
पुनि पुनि मोहि देखाव कुठारु। चहत उड़ावन फूँकि पंहारू।।
इहाँ कुम्हड़बतिया कोउ नाहीं। जे तरजनी देखि मीर जाहीं।।
देखि कुठारु सरासन बाना। मैं कछु कहा सहित अभिमाना।।
भृगुसुत समुझि जनेउ बिलोकी। जो कछु कहहु सहौं रिस रोकी।।
सुर महिसुर हरिजन अरु गाई। हमरे कुल इन्ह पर न सुराई।।
बधें पापु अपकीरति हारें। मारतहू पा परिअ तुम्हारें।।
कोटि कुलिस सम बचनु तुम्हारा। व्यर्थ धरहु धनु बान कुठारा।।

     जो बिलोकि अनुचित कहेउँ छमहु महामुनि धीर। 
     सुनि सरोष भृगुबंसमीन बोले गिरा गंभीर।।

Solution

प्रसंग- प्रस्तुत पद तुलसीदास जी के द्वारा रचित महाकाव्य ‘रामचरित मानस’ के बाल कांड से लिया गया है। सीता स्वयंवर के समय श्री राम ने शिवजी के धनुष को तोड़ दिया था जिस कारण परशुराम ने बहुत गुस्सा किया था। लक्ष्मण ने उन पर व्यंग्य किया था जिससे परशुराम का गुस्सा भड़क उठा था।

व्याख्या- लक्ष्मण ने हँस कर कोमल वाणी में कहा- अहो, मुनीश्वर तो अपने आप को बड़ा भारी योद्धा समझते हैं। ये मुझे देख कर बार-बार अपनी कुल्हाड़ी दिखाते हैं। ये तो फूंक से पहाड़ उड़ा देना चाहते हैं। यहाँ कोई काशीफल या कुम्हड़े का बहुत छोटा-सा फल नहीं है जो आप की अँगूठे के साथ वाली उंगली को देखते ही मर जाती है। मैंने तो जो कुछ कहा है वह आप के कुल्हाड़े और धनुष-बाण को देखकर ही अभिमान सहित कहा है। भृगु वंशी समझकर और आप का यज्ञोपवीत देख कर आप जो कुछ कहते हैं, उसे मैं अपना गुस्सा रोक कर सह लेता हूँ। देवता, ब्राहमण, भगवान् के भक्त और गौ-इन पर हमारे कुल में अपनी वीरता का प्रदर्शन नहीं किया जाता है क्योंकि इन्हें मारने से पाप लगता है और इन से हार जाने पर अपकीर्ति होती है। इसलिए यदि आप मारें तो भी आप के पैर ही पड़ना चाहिए। आप का एक-एक वचन ही करोड़ों वज्रों के समान है। धनुष-बाण और कुल्हाड़ा तो आप व्यर्थ ही धारण करते हैं। आप के इस धनुष-बाण और कुल्हाड़े को देखकर मैंने कुछ अनुचित कहा हो तो हे धीर महामुनि! आप क्षमा कीजिए। यह सुन कर भृगु वंशमणि परशुराम क्रोध के साथ गंभीर वाणी में बोले।

 

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लक्ष्मण ने वीर योद्धा की क्या-क्या विशेषताएँ बताई?

साहस और शक्ति के साथ विनम्रता हो तो बेहतर है। इस कथन पर अपने विचार लिखें।

भाव स्पष्ट कीजिये- 
बिहसि लखनु बोले मृदु बानी। अहो मुनीसु महाभट मानी।।
पुनि पुनि मोहि देखाव कुठारु। चहत उड़ावन फूँकि पहारू।।

भाव स्पष्ट कीजिये- 
इहाँ कुम्हड़बतिआ कोउ नाहीं। जे तरजनी देखि मरि जाहीं।।
देखि कुठारु सरासन बाना। मैं कछु कहा सहित अभिमाना।।

भाव स्पष्ट कीजिये-
गाधिसू नु कह ह्रदय हसि मुनिहि हरियरे सूझ   
अयमय खाँड़ न ऊखमय अजहुँ न बूझ अबूझ ।

पाठ के आधार पर तुलसी के भाषा सौंदर्य पर दस पंक्तियाँ लिखिए।

इस पूरे प्रसंग में व्यंग्य का अनूठा सौंदर्य है। उदाहरण के साथ स्पष्ट कीजिए।

निम्नलिखित पंक्तियों में प्रयुक्त अलंकार पहचान कर लिखिए-
बालकु बोलि बधौं नहि तोही।

निम्नलिखित पंक्तियों में प्रयुक्त अलंकार पहचान कर लिखिए-
कोटि कुलिस सम बचनु तुम्हारा।

निम्नलिखित पंक्तियों में प्रयुक्त अलंकार पहचान कर लिखिए-
तुम्ह तौ कालु हाँक जनु लावा।
बार-बार मोहि लागि बोलावा।