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सूर्यकांत त्रिपाठी निराला - उत्साह

Question
CBSEENHN10001727

निम्नलिखित पद्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिये:
अट नहीं रही है
आभा फागुन की तन
सट नहीं रही है।

कहीं साँस लेते हो,
घर-घर भर देते हो,
उड़ने को नभ में तुम
पर-पर कर देते हो,
आँख हटाता हूँ तो
हट नहीं रही है।
पत्तों से लदी डाल
कहीं हरी, कहीं लाल,
कहीं पड़ी है उर में
मंद-गंध-पुष्प-माल,
पाट-पाट शोभा-श्री
पट नहीं रही है।

चारों ओर किसका सौंदर्य व्याप्त है?


Solution
चारों ओर प्रकृति का सौंदर्य व्याप्त है।

Some More Questions From सूर्यकांत त्रिपाठी निराला - उत्साह Chapter

प्रस्तुत कविता में कवि ने प्रकृति की व्यापकता का वर्णन किन रूपों में किया है?

फागुन में ऐसा क्या होता है जो बाकी ऋतुओं से भिन्न होता है?

इन कविताओं के आधार पर निराला के काव्य -शिल्प की विशेषताएँ लिखिए।

होली के आसपास प्रकृति में जो परिवर्तन दिखाई देते हैं, उन्हें लिखिए।

फागुन में गाए जाने वाले गीत जैसे होरी, फाग आदि गीतों को जानिए।

‘अट नहीं रही’ के आधार पर बसंत ऋतु की शोभा का उल्लेख कीजिए।

‘अट नहीं रही’ में विद्यमान रहस्यवादिता को स्पष्ट कीजिए।

पाठ में संकलित निराला की कविताओं के आधार पर विद्रोह के स्वर को स्पष्ट कीजिए।

निम्नलिखित पद्यांश को पढ़कर उसकी सप्रसंग व्याख्या कीजिये:
बादल, गरजो! -
घेर घेर घोर गगन, धाराधर ओ!
ललित ललित, काले घुँघराले,
बाल कल्पना के-से पाले,
विद्युत्-छबि उर में, कवि, नवजीवन वाले!
वज्र छिपा,   नूतन कविता
     फिर भर दो - 
     बाद, गरजो!
विकल विकल, उन्मन थे उन्मन
विश्व के निदाघ के सकल जन,
आए अज्ञात दिशा से अनंत के धन!
तप्त धरा, जल से फिर
   शीतल कर दो -
   बादल, गरजो !



निम्नलिखित पद्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिये:
बादल, गरजो! -
घेर घेर घोर गगन, धाराधर ओ!
ललित ललित, काले घुँघराले,
बाल कल्पना के-से पाले,
विद्युत्-छबि उर में, कवि, नवजीवन वाले!
वज्र छिपा,   नूतन कविता
     फिर भर दो - 
     बाद, गरजो!
विकल विकल, उन्मन थे उन्मन
विश्व के निदाघ के सकल जन,
आए अज्ञात दिशा से अनंत के धन!
तप्त धरा, जल से फिर
   शीतल कर दो -
   बादल, गरजो !

कविता में निहित भावार्थ स्पष्ट कीजिए?