कवि ने प्रकृति का मानवीकरण कहाँ-कहाँ किया है?
कविता की कुछ पंक्तियों में कवि ने प्रकृति का मानवीकरण किया है; जैसे-
(1) यह हरा ठिगना चना, बाँधे मुरैठा शीश पर
छोटे गुलाबी फूल का, सज कर खड़ा है।
(2) पास ही मिल कर उगी है, बीच में अलसी हठीली।
देह की पतली, कमर की है लचीली,
नील फूले फूल को सिर पर चढ़ाकर
कह रही है, जो छुए यह दूँ हृदय का दान उसको।
(3) और सरसों की न पूछो-हो गई सबसे सयानी, हाथ पीले कर लिए हैं,
ब्याह-मंडप में पधारी।
(4) हैं कई पत्थर किनारे, पी रहे चुपचाप पानी।