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दीवानों की हस्ती
कवि के अनुसार वीर पुरुषों के मन में केवल आजादी या आजादी हेतु बलिदान की भावना ही जागृत होती है। सांसारिक सुख-दुख के भावों से उन्हें कोई वास्ता नहीं होता वे सुख-दुख दोनों को समान महत्व देते हैं।
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एक पंक्ति में कवि ने यह कहकर अपने अस्तित्व को नकारा है कि “हम दीवानों की क्या हस्ती, हैं आज यहाँ, कल वहाँ चले।” दूसरी पंक्ति में उसने यह कहकर अपने अस्तित्व को महत्व दिया है कि “मस्ती का आलम साथ चला, हम धूल उड़ाते जहाँ चले।” यह फाकामस्ती का उदाहरण है। अभाव में भी खुश रहना फाकामस्ती कही जाती है।
कविता में इस प्रकार की अन्य पंक्तियाँ भी हैं उन्हें ध्यानपूर्वक पढ़िए और अनुमान लगाइए कि कविता में परस्पर विरोधी बातें क्यों की गई हैं?
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