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दीवानों की हस्ती
वे अपने मन में ठान लेते हैं कि उनका जीवन केवल देश हेतु है। कब, कहाँ और कैसे मृत्यु का आलिंगन करना पड़े इस हेतु उन्हें कोई डर या पछतावा नहीं। वे तो केवल अपने लक्ष्य ‘देश को स्वाधीन करवाना है’ में कामयाब होना चाहते हैं इसलिए मस्त होकर इसके लिए निरंतर कार्यरत रहते हैं।
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एक पंक्ति में कवि ने यह कहकर अपने अस्तित्व को नकारा है कि “हम दीवानों की क्या हस्ती, हैं आज यहाँ, कल वहाँ चले।” दूसरी पंक्ति में उसने यह कहकर अपने अस्तित्व को महत्व दिया है कि “मस्ती का आलम साथ चला, हम धूल उड़ाते जहाँ चले।” यह फाकामस्ती का उदाहरण है। अभाव में भी खुश रहना फाकामस्ती कही जाती है।
कविता में इस प्रकार की अन्य पंक्तियाँ भी हैं उन्हें ध्यानपूर्वक पढ़िए और अनुमान लगाइए कि कविता में परस्पर विरोधी बातें क्यों की गई हैं?
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