हमारे अतीत Iii भाग 1 Chapter 3 ग्रामीण क्षेत्र पर शासन चलाना
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    NCERT Solution For Class 8 सामाजिक विज्ञान हमारे अतीत Iii भाग 1

    ग्रामीण क्षेत्र पर शासन चलाना Here is the CBSE सामाजिक विज्ञान Chapter 3 for Class 8 students. Summary and detailed explanation of the lesson, including the definitions of difficult words. All of the exercises and questions and answers from the lesson's back end have been completed. NCERT Solutions for Class 8 सामाजिक विज्ञान ग्रामीण क्षेत्र पर शासन चलाना Chapter 3 NCERT Solutions for Class 8 सामाजिक विज्ञान ग्रामीण क्षेत्र पर शासन चलाना Chapter 3 The following is a summary in Hindi and English for the academic year 2021-2022. You can save these solutions to your computer or use the Class 8 सामाजिक विज्ञान.

    Question 1
    CBSEHHISSH8008150

    निम्नलिखित के जोड़े बनाएँ 

    A. रैयत      (i) ग्राम-समूह   
    B. महाल  (ii) किसान 
    C. निज  (iii) रैयतों की ज़मीन पर खेती   
    D. रैयती   (iv) बाग़ान मालिकों की अपनी ज़मीन पर खेती

    Solution

    A.

    रैयत     

    (i)

    किसान 

    B.

    महाल 

    (ii)

    ग्राम-समूह   

    C.

    निज 

    (iii)

    बाग़ान मालिकों की अपनी ज़मीन पर खेती

    D.

    रैयती  

    (iv)

    रैयतों की ज़मीन पर खेती   

    Question 5
    CBSEHHISSH8008154

    चंपारण आंदोलन ..............के खिलाफ़ था।

    Solution

    नील बाग़ान मालिकों 

    Question 6
    CBSEHHISSH8008155

    स्थायी बंदोबस्त के मुख्य पहलुओं का वर्णन कीजिए।

    Solution

    (i) स्थायी बंदोबस्त के मुख्य पहलुओं का वर्णन कीजिए। 
     
    (ii) राजा एवं तालूकदारों को ज़मींदार मान लिया गया। 
    (iii) उनका काम था की वे किसानों से राजस्व संग्रह कर कंपनी के पास जमा करवाएँ। 
    (iv) ज़मीनों की राजस्व माँग स्थायी रूप से सुनिचित कर दी गई थी। 

    Question 7
    CBSEHHISSH8008156

    महालवारी व्यवस्था स्थायी बंदोबस्त के मुकाबले कैसे अलग थी?

    Solution

    एक तरफ जहाँ स्थायी व्यवस्था बंदोबस्त में व्यक्ति विशेष की ज़मीन की मात्रा एवं गुणवत्ता के आधार पर राजस्व का निर्धारण किया जाता था, वहीं दूसरी तरफ महालवारी व्यवस्था में राजस्व का भुगतान पुरे गाँव, जिससे महाल कहा जाता था, के द्वारा किया जाना था। 
    स्थायी बंदोबस्त में भू - राजस्व निश्चित कर दिया गया था जिसकी भविष्य में भी वृद्धि के कोई प्रावधान नहीं था, जबकि महालवारी व्यवस्था में एक खास अन्तराल के बाद भू- राजस्व के पुनःमूल्यांकन किया जाना था। 

    Question 8
    CBSEHHISSH8008157

    राजस्व निर्धारण की नयी मुनरो व्यवस्था के कारण पैदा हुई दो समस्याएँ बताइए। 

    Solution

    (i) राजस्व अधिकारियों ने भू-राजस्व की दर काफी ऊँची राखी थी। रैयत इतना अधिक भू - राजस्व देने की स्थिति में नहीं थे।  
    (ii) रैयत ग्रामीण इलाकों से भाग गए और गांव कई क्षेत्रों में निर्जन हो गए।

    Question 9
    CBSEHHISSH8008158

    रैयत नील की खेती से क्यों कतरा रहे थे?

    Solution

    निम्नलिखित कारणों से रैयत नील की खेती से करने से कतरा रहे थे -
    1. उन्हें नील की खेती का लिए अग्रिम रीन दिया जाता था किन्तु, फसल कटने पर बहुत काम कीमत पर अपनी फसल बेचने के लिए मजबूर कर दिया जाता था।  
    2. अनुबंध पर हस्ताक्षर करने वाले को प्लांटर्स से कम ब्याज दर पर इंडिगो का उत्पादन करने के लिए नकद राशि मिली। लेकिन उन्हें ऋण के हिस्से के तहत क्षेत्र के कम से कम 25 प्रतिशत पर इंडिगो को खेती करने के लिए अनुमति थी। 
    3.प्लांटर ने बीज और ड्रिल मशीन प्रदान की, जबकि किसानों ने मिट्टी तैयार की, बीज बोया और फसल के ध्यान रखा। जब फसल की कटाई के बाद उससे प्लांटर को दिया गया , तो एक नया ऋण रैयत को दिया गया था, और यह चक्र शुरू हुआ एक बार फिर।
    4. जो किसानों ने शुरू में ऋणों के द्वारा परीक्षा दी थी, उन्हें जल्द ही एहसास हुआ कि यह व्यवस्था कितनी कठोर थी। वे जिन इंडिगो का उत्पादन करते थे, उनके लिए कीमत बहुत कम थी और ऋण का चक्र कभी समाप्त नहीं हुआ था।
    5. नील की खेती के लिए अतिरिक्त मेहनत तथा समय की आवश्यकता होती थी। फलतः: दूसरी अन्य फसलों के लिए उनके पास श्रम और समय की कमी पड़ जाती थी।

    Question 10
    CBSEHHISSH8008159

    किन परिस्थितियों में बंगाल में नील का उत्पादन धराशायी हो गया? 

    Solution

    1. बंगाल में नील उत्पादकों किसानों को ऋण दिया गया था किन्तु उन्हें अपनी कुल ज़मीन के कम से कम प्रतिशत भाग पर नील की खेती करनी थी।
    2. रैयतों को उनकी फसल की जो कीमत मिलती थी वह बहुत काम होती थी।
    3. बाग़ान मालिक केवल हल एवं बीज उपलब्ध कराते थे। फसल की कटाई तक के बाकी सभी काम रैयतों को करना पड़ता था। 
    4. बाग़ान मालिकों का हमेशा दवाब रहता था कि नील की खेती सर्वाधिक उर्वर भूमि भर की जाए।
    5. नील की फसल ज़मीन की उर्वरता को कम कर देती थी। नील की फसल जिस खेत में उगाई जाती थी उसमें धान की खेती कर पाना संभव नहीं होता था।
    इन परिस्थितियों के कारण ही बंगाल में किसान नील की खेती से कतराने लगे तथा नील के उत्पादन धराशायी हो गया।

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