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निम्नलिखित के जोड़े बनाएँ
A. रैयत | (i) ग्राम-समूह |
B. महाल | (ii) किसान |
C. निज | (iii) रैयतों की ज़मीन पर खेती |
D. रैयती | (iv) बाग़ान मालिकों की अपनी ज़मीन पर खेती |
A. रैयत | (i) किसान |
B. महाल | (ii) ग्राम-समूह |
C. निज | (iii) बाग़ान मालिकों की अपनी ज़मीन पर खेती |
D. रैयती | (iv) रैयतों की ज़मीन पर खेती |
स्थायी बंदोबस्त के मुख्य पहलुओं का वर्णन कीजिए।
(i) स्थायी बंदोबस्त के मुख्य पहलुओं का वर्णन कीजिए।
(ii) राजा एवं तालूकदारों को ज़मींदार मान लिया गया।
(iii) उनका काम था की वे किसानों से राजस्व संग्रह कर कंपनी के पास जमा करवाएँ।
(iv) ज़मीनों की राजस्व माँग स्थायी रूप से सुनिचित कर दी गई थी।
महालवारी व्यवस्था स्थायी बंदोबस्त के मुकाबले कैसे अलग थी?
एक तरफ जहाँ स्थायी व्यवस्था बंदोबस्त में व्यक्ति विशेष की ज़मीन की मात्रा एवं गुणवत्ता के आधार पर राजस्व का निर्धारण किया जाता था, वहीं दूसरी तरफ महालवारी व्यवस्था में राजस्व का भुगतान पुरे गाँव, जिससे महाल कहा जाता था, के द्वारा किया जाना था।
स्थायी बंदोबस्त में भू - राजस्व निश्चित कर दिया गया था जिसकी भविष्य में भी वृद्धि के कोई प्रावधान नहीं था, जबकि महालवारी व्यवस्था में एक खास अन्तराल के बाद भू- राजस्व के पुनःमूल्यांकन किया जाना था।
राजस्व निर्धारण की नयी मुनरो व्यवस्था के कारण पैदा हुई दो समस्याएँ बताइए।
(i) राजस्व अधिकारियों ने भू-राजस्व की दर काफी ऊँची राखी थी। रैयत इतना अधिक भू - राजस्व देने की स्थिति में नहीं थे।
(ii) रैयत ग्रामीण इलाकों से भाग गए और गांव कई क्षेत्रों में निर्जन हो गए।
रैयत नील की खेती से क्यों कतरा रहे थे?
निम्नलिखित कारणों से रैयत नील की खेती से करने से कतरा रहे थे -
1. उन्हें नील की खेती का लिए अग्रिम रीन दिया जाता था किन्तु, फसल कटने पर बहुत काम कीमत पर अपनी फसल बेचने के लिए मजबूर कर दिया जाता था।
2. अनुबंध पर हस्ताक्षर करने वाले को प्लांटर्स से कम ब्याज दर पर इंडिगो का उत्पादन करने के लिए नकद राशि मिली। लेकिन उन्हें ऋण के हिस्से के तहत क्षेत्र के कम से कम 25 प्रतिशत पर इंडिगो को खेती करने के लिए अनुमति थी।
3.प्लांटर ने बीज और ड्रिल मशीन प्रदान की, जबकि किसानों ने मिट्टी तैयार की, बीज बोया और फसल के ध्यान रखा। जब फसल की कटाई के बाद उससे प्लांटर को दिया गया , तो एक नया ऋण रैयत को दिया गया था, और यह चक्र शुरू हुआ एक बार फिर।
4. जो किसानों ने शुरू में ऋणों के द्वारा परीक्षा दी थी, उन्हें जल्द ही एहसास हुआ कि यह व्यवस्था कितनी कठोर थी। वे जिन इंडिगो का उत्पादन करते थे, उनके लिए कीमत बहुत कम थी और ऋण का चक्र कभी समाप्त नहीं हुआ था।
5. नील की खेती के लिए अतिरिक्त मेहनत तथा समय की आवश्यकता होती थी। फलतः: दूसरी अन्य फसलों के लिए उनके पास श्रम और समय की कमी पड़ जाती थी।
किन परिस्थितियों में बंगाल में नील का उत्पादन धराशायी हो गया?
1. बंगाल में नील उत्पादकों किसानों को ऋण दिया गया था किन्तु उन्हें अपनी कुल ज़मीन के कम से कम प्रतिशत भाग पर नील की खेती करनी थी।
2. रैयतों को उनकी फसल की जो कीमत मिलती थी वह बहुत काम होती थी।
3. बाग़ान मालिक केवल हल एवं बीज उपलब्ध कराते थे। फसल की कटाई तक के बाकी सभी काम रैयतों को करना पड़ता था।
4. बाग़ान मालिकों का हमेशा दवाब रहता था कि नील की खेती सर्वाधिक उर्वर भूमि भर की जाए।
5. नील की फसल ज़मीन की उर्वरता को कम कर देती थी। नील की फसल जिस खेत में उगाई जाती थी उसमें धान की खेती कर पाना संभव नहीं होता था।
इन परिस्थितियों के कारण ही बंगाल में किसान नील की खेती से कतराने लगे तथा नील के उत्पादन धराशायी हो गया।
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