Sponsor Area
विधाता प्रदत्त जीवन के दो पहलू हैं जीवन और मरण। जीवन खुशी का अनुभव कराता है तो मृत्यु दुख का। गिल्लू के जीवन का मार्मिक अंत हो गया। सुबह का उजाला पुन: फैलाने के लिए वह मृत्यु की गोद में समा गया था। मृत्यु का आभास वेदनापूर्ण था पारिवारिक माहौल को उसने अवसाद से भर दिया।
जिन्हें परिवार के सदस्य की भाँति पाला पोसा गया हो और जब वही छोड्कर चले जाते हैं तो जीवन को अनुभूति दुखद हो जाती है। गिल्लू भी महादेवी के लिए पारिवारिक सदस्य की भाँति था। उसके साथ उनका साहचर्यजनित लगाव था। परंतु अधूरेपन व अल्पावधि का अनुभव कराकर गिल्लू का प्रभात की प्रथम किरण के रूप में मौत की गोद में सो जाना लेखिका को हिलाकर रख गया। मृत्यु पर किसी का वश नही चलता इसी कारण सभी हाथ पर हाथ रखकर बैठने के सिवा कुछ नहीं कर सकते।
सोनजूही की पीली कली की लता पुन: खिली थी अर्थात् मृत्यु के बाद पुनर्जन्म की कामना मन को संतुष्ट कर रही थी। गिल्लू को सोनजूही से लगाव था। वह उसकी सघन छाया में छिपकर बैठ जाता था। उसकी हरियाली उसके मन की भाँति थी। सोनजूही का खिलना उस लघुगात के पुन: लौटने की आशा को जाग्रत करता है। इसी कारण शायद उसकी समाधि सोनजूही की गोद में बनाई गई है।
पौधों के पुर्नप्रस्फूटन की प्रथा तो देखी गई है परंतु जीव का लौटना असंभव है फिर भी एक अपूर्ण सी कामना की झलक मन को आशा से परिपूर्ण करती है। महादेवी जी भी इसी मनोकामना से आश्वस्त दिखाई देती है।
Sponsor Area
Sponsor Area