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पर्वतीय प्रदेश में जब मूसलाधार वर्षा होने लगती है तब पर्वतों पर उगनेवाले शाल के वृक्ष दिखाई देने बंद हो जाते हैं। तब ऐसा लगता है जैसे वे घबराकर धरा में छुप गए हैं मानवीकरण अलंकार का अद्धभुत प्रयोग इस पंक्ति में दिखाई देता है।पावस ऋतु में आकाश में बादल छा जाते है। कभी वर्षा होने लगती है तो कभी आसमान में बादल अदृशय हो जाते हैं।बादल अटखेलियां करते दिखाई देते हैं। वर्षा के कारण पर्वतीय प्रदेशों के झरने झर-झर बहने लगते हैं तथा वातावरण में संगीत उत्पन्न करते हैं। समतल भूमि पर जल एकत्रित हो जाता हैं। हवा के चलने के कारण वृक्ष भी झूमने लगते हैं। पूरी प्रकृति नृत्य करती सी प्रतीत होती हैं।
'मेखला' का अर्थ तगड़ी होता है जिसे स्त्रियाँ कमर में पहनती हैं इस प्रकार मेखलाकार का अर्थ तगड़ी का गोल आकार हुआ पर्वत भी मेखला की तरह गोल दिखाई दे रहे हैं जो धरती की कटि को घेरे हुए हैं प्रकृति के सौंदर्य को उभरने के लिए कवि ने इसका प्रयोग किया है
वर्षा ऋतु में पर्वतों पर असंख्य सुन्दर फूल खिल जाते हैं । कवि इनकी तुलना पर्वत के नेत्रों से कर रहा है ।ऐसा लगता है मानों पर्वत अपने इन सुन्दर नेत्रों से प्रकृति की छटा को निहार रहा है। कवि ने इस पद का प्रयोग प्रकृति को सजीव चित्रण करने के लिए किया है पर्वतों को मानव का रूपक दे दिया गया है ।
पर्वत के ह्रदय से उठकर ऊँचे-ऊँचे वृक्ष आसमान की ओर अपनी ऊंच्चाकंशाओ के कारण देख रहे थे। वे आसमान जितना ऊँचा उठना चाहते हैं। वे शांत भाव से एकटक आसमान को निहारते हैं। जो इस बात की ओर संकेत करता है कि अपनी आकांशाओं को पाने के लिए शांत तथा एकाग्रता आवश्यक है।
इसका भाव है कि वृक्ष भी पर्वत के हृदय से उठ-उठकर ऊँची आकांक्षाओं के समान शांत आकाश की ओर देख रहे हैं। वे आकाश की ओर स्थिर दृष्टि से देखते हुए यह प्रतिबिंबित करते हैं कि वे आकाश कि ऊँचाइयों को छूना चाहते हैं। इसमें उनकी मानवीय भावनाओं को स्पष्ट किया गया है कि उद्धेश्य को पाने के लिए अपनी दृष्टि स्थिर करनी चाहिए और बिना किसी संदेह के चुपचाप मौन रहकर अपने लक्ष्य की ओर अग्रसर होना चाहिए। आकांक्षाओं को पाने के लिए शांत मन तथा एकाग्रता आवश्यक है। वे कुछ चिंतित भी दिखाई पड़ते हैं।
इस कविता में मानवीकरण अलंकार का प्रयोग किस प्रकार किया गया है? स्पष्ट कीजिए।
प्रस्तुत कविता में जगह-जगह पर मानवीकरण अलंकार का प्रयोग करके प्रकृति में जान डाल दी गई है जिससे प्रकृति सजीव प्रतीत हो रही है; जैसे − पर्वत पर उगे फूल को आँखों के द्वारा मानवकृत कर उसे सजीव प्राणी की तरह प्रस्तुत किया गया है।
'उच्चाकांक्षाओं से तरूवर
हैं झाँक रहे नीरव नभ पर'
इन पंक्तियों में तरूवर के झाँकने में मानवीकरण अलंकार है, मानो कोई व्यक्ति झाँक रहा हो।
आपकी दृष्टि में इस कविता का सौंदर्य इनमें से किस पर निर्भर करता है −
(क) अनेकशब्दों की आवृति पर
(ख) शब्दों की चित्रमयी भाषा पर
(ग) कविता की संगीतात्मकता पर
(ख) शब्दों की चित्रमयी भाषा पर
इस कविता का सौंदर्य शब्दों की चित्रमयी भाषा पर निर्भर करता है। कवि ने कविता में चित्रात्मक शैली का प्रयोग करते हुए प्रकृति का सुन्दर रुप प्रस्तुत किया गया है।
कवि ने चित्रात्मक शैली का प्रयोग करते हुए पावस ऋतु का सजीव चित्र अंकित किया है। ऐसे स्थलों को छाँटकर लिखिए।
कवि ने चित्रात्मक शैली का प्रयोग करते हुए पावस ऋतु का सजीव चित्र अंकित किया है। कविता में इन स्थलों पर चित्रात्मक शैली की छटा बिखरी हुई है-
1. मेखलाकार पर्वत अपार
अपने सहस्र दृग-सुमन फाड़,
अवलोक रहा है बार-बार
नीचे जल में निज महाकार
जिसके चरणों में पला ताल
दर्पण फैला है विशाल!
2. गिरिवर के उर से उठ-उठ कर
उच्चाकांक्षाओं से तरुवर
हैं झाँक रहे नीरव नभ पर
अनिमेष, अटल, कुछ चिंतापर।
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