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निम्नलिखित में से किन्हीं चार प्रश्नों के उत्तर संक्षेप लिखिए [2 × 4 = 8]
(क) संगतकार की मनुष्यता किसे कहा गया है। वह मनुष्यता कैसे बनाए रखता है?
(ख) ‘अट नहीं रही है’ कविता के आधार पर वसंत ऋतु की शोभा का वर्णन कीजिए।
(ग) परशुराम ने अपनी किन विशेषताओं के उल्लेख के द्वारा लक्ष्मण को डराने का प्रयास किया?
(घ) आपकी दृष्टि में कन्या के साथ दान की बात करना कहाँ तक उचित है? तर्क दीजिए।
(ङ) कवि ने शिशु की मुस्कान को दंतुरित मुस्कान क्यों कहा है? कवि के मन पर उस मुस्कान का क्या प्रभाव पड़ा?
(क) संगतकार की मनुष्यता अपने स्वर को अधिक न उठाने की कोशिश करना ही मनुष्यता’ है। अपने स्वर को अधिक ऊँचा न उठाना उसकी इंसानियत है। वह अपनी मनुष्यता बनाए रखने के लिए कभी भी मुख्य गायक को अकेलेपन का अहसास नहीं होने देता। वह अपने राग के माध्यम से मुख्य गायक को यह भी बता देता है कि पहले गाया गया राग फिर से भी गाया जा सकता है। वह गाते समय यह कोशिश करता है कि उसका स्वर मुख्य गायक के स्वर से किसी भी हालत में ऊँचा न उठ जाय।
(ख) वसंत ऋतु ऋतुओं का राजा है। इस ऋतु में प्रकृति ही निराला सौन्दर्य है। इस ऋतु में उद्यान में रंग-बिरंगे पुष्प दिखाई देते हैं। इस समय खेतों में गेहूँ, सरसों की फसलें कटने को तैयार हो जाती है। पीली सरसों की शोभा देखते ही बनती है, इस ऋतु को होली का संदेशवाहक भी कहा जाता है क्योंकि बसंत ऋतु में ही रंगों का त्योहार होली मनायी जाती है। राग और रंग इसके प्रमुख अंग हैं। यह त्योहार वसंत पंचमी को आरम्भ हो जाता है। चारों ओर सौन्दर्य राशि बिखरी हुई प्रतीत होती है।
(ग) परशुराम ने लक्ष्मण को डराते हुए सभा में बताया कि मैं बाल ब्रह्मचारी हूँ और अत्यंत क्रोधी स्वभाव का हूँ। मैं क्षत्रियों के कुल का संहारक हूँ। यह बात इस विश्व में सभी जानते थे कि मैंने अनेक बार सम्पूर्ण पृथ्वी को राजाओं से विहीन कर दिया है तथा पृथ्वी ब्राह्मणों को दान में दे दी है। मेरा फरसो बहुत भयानक है। इसी से मैंने सहस्रबाहु की भुजाओं को काटकर शरीर से अलग कर दिया था। इस फरसे की भयंकरता को देखकर गर्भवती स्त्रियों के बच्चे गर्भ में ही मर जाते हैं।
(घ) जब कोई वस्तु दान कर दी जाती है, तो वह अपनी नहीं रहती। इस सन्दर्भ में वस्तुएँ दान की जाती हैं। और कन्या कोई वस्तु नहीं है। परन्तु यदि उसका दान कर भी दिया जाता है, तो उससे सम्बन्धविच्छेद नहीं होता वह फिर भी अपने माता-पिता की लाड़ली रहती है तथा समय-समय पर अपने मायके’ आती जाती रहती है। आज समाज में लड़का व लड़की को समान अधिकार प्राप्त है। इस प्रकार हमारी दृष्टि में कन्या के साथ दान शब्द का कोई औचित्य नहीं है। हर माता-पिता कन्या के सुंदर भविष्य की कामना करते हैं, इसलिए वे इसे इस काबिल बना देते हैं कि उसका अपना अस्तित्व हो ।
(ङ) कवि ने शिशु की मुस्कान को दंतुरित मुस्कान इसलिए कहा है क्योंकि छोटे बच्चे के नए-नए दाँतों से झलकती लुभावनी मुस्कान मन मोह लेती है। बच्चे की दंतुरित मुस्कान का कवि के मन पर गहरा प्रभाव पड़ता है। बच्चे की मोहक मुस्कान कवि के हृदय को प्रसन्नता से भर देती है। उसे लगता है कि जैसे कमल तालाब को छोड़कर उसकी झोंपड़ी में आकर खिल गया हो। कवि का हृदय बच्चे की मुस्कान को देखकर आह्लादित हो जाता है।
भाव स्पष्ट कीजिए:
और उसकी आवाज़ में जो एक हिचक साफ़ सुनाई देती है
या अपने स्वर को ऊँचा न उठाने की जो कोशिश है
उसे विफलता नहीं
उसकी मनुष्यता समझा जाना चाहिए।
कल्पना कीजिए कि आपको किसी संगीत या नृत्य समारोह का कार्यक्रम प्रस्तुत करना है लेकिन आपके सहयोगी कलाकार किसी कारणवश नहीं पहुँच पाए-
(क) ऐसे में अपनी स्थिति का वर्णन कीजिए।
(ख) ऐसी परिस्थिति का आप कैसे सामना करेंगे?
(क) ऐसी स्थिति में मन में घबराहट उत्पन्न होगी। संगीत या नृत्य समारोह सहयोगी कलाकारों के बिना लगभग असंभव-सा है। वाद्य यंत्रों के बिना संगीत या नृत्य निथ्या है।
(ख) ऐसी परिस्थिति में सहयोगी कलाकारों से शीघ्र संपर्क करके? उन्हें बुलाऊँगा। उनके न पहुँच पाने की स्थिति में नए सहयोगी कलाकारों को बुलाने का प्रयत्न करूंगा लेकिन नए सहयोगी कलाकारों को बुलाने पर भी कार्यक्रम पूरी तरह से सफल नहीं होगा क्योंकि उनके साथ पूर्व अभ्यास न होने के कारण संगीत और संगति में तालमेल बैठाना बहुत कठिन होगा। यह संभव है कि उस कार्यक्रम को स्थगित ही करना पड़े।
प्रसंग- प्रस्तुत पंक्तियां हमारी पाठ्य-पुस्तक क्षितिज भाग-2 में संकलित कविता ‘संगतकार’ से ली गई हैं जिसके रचयिता श्री मंगलेश डबराल हैं। कवि ने मुख्य गायक के साथ गाने वाले संगतकार की विशिष्टता का वर्णन करते हुए उसके महत्त्व को प्रतिपादित किया है।
व्याख्या- कवि कहता है कि मुख्य गायक के चट्टान जैसे भारी-भरकम गाने के स्वर के साथ संगतकार की काँपती हुई-सी सुंदर और कमजोर आवाज मिल गई थी। शायद वह संगतकार गायक का छोटा भाई है या उसका कोई चेला है। हो सकता है कि वह कहीं दूर से पैदल चल कर संगीत की शिक्षा प्राप्त करने वाला गायक का अभावग्रस्त रिश्तेदार ही हो। वह संगतकार मुख्य गायक की ऊंची गंभीर आवाज में अपनी गूंज युगों से ही मिलाता आया है। अभावग्रस्त, जरूरतमंद और कमजोर सदा से ही निपुण और संपन्न की ऊँची आवाज में अपनी आवाज मिलाता ही आया है। मुख्य गायक जब स्वर को लंबा खींच कर अंतरे की जटिल तानों के जंगल में खो जाता है; संगीत के रस में डूब जाता है या संगीत के सुरों की अपनी सरगम की सीमा को पार कर ईश्वरीय आनंद की प्राप्ति में डूब जाता है और उसे अनहद का आनंददायक स्वर आलौकिक आनंद देने लगता है तब संगतकार ही गीत के स्थायी को संभाल कर अपने साथ रखता है। गीत को बिखरने से वही रोकता है। ऐसा लगता है जैसे वही मुख्य गायक के पीछे छूट गए सामान को इकट्ठा करता है। संगतकार ही उस मुख्य गायक को उसका बचपन याद दिलाता है, जब उसने संगीत को अभी नया-नया ही सीखना आरंभ किया था और उसने संगीत में निपुणता प्राप्त नहीं की थी।
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अनुप्रास-कमजोर काँपती, दूर का कोई रिश्तेदार,
गायक की गरज में, संमेटता हो.......... हुआ सामान।
• उपमा - चट्टान जैसे भारी।
• रूपक - जटिल तानों के जंगल।
• उत्प्रेक्षा - जैसे समेटता हो.. हुआ सामान।
- जैसे उसे याद बचपन।
प्रसंग - प्रस्तुत अवतरण हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘क्षितिज भाग-2’ में संकलित कविता ‘संगतकार’ से अवतरित किया गया है जिसके रचयिता श्री मंगलेश डबराल हैं। कवि ने संगतकार के महत्त्व को प्रस्तुत किया है और माना है कि वह मुख्य गायक के गायन में सहायता ही नहीं देता बल्कि अपनी इंसानियत को भी प्रकट करता है।
व्याख्या- कवि कहता है कि मुख्य गायक ऊँचे स्वर में गाता है और उसकी आवाज मध्य सप्तक से ऊपर उठकर तार सप्तक पर पहुँचती है तो ध्वनि की उच्चता के कारण उसका गला बैठने लगता है। उसकी प्रेरणा उसका साथ छोड़ने लगती है और उसका उत्साह मंद पड़ने लगता है। उसका स्वर बुझने-सा लगता है और उसे प्रतीत होने लगता है कि वह गायन ठीक प्रकार से नहीं कर पाएगा। वह हतोत्साहित-सा हो जाता है। उसमें जब निराशा का भाव भरने लगने लगता है तब संगतकार उसे सांत्वना देता है, उसका हौसला बढ़ाता है। इससे मुख्य गायक का स्वर स्वयं ही कहीं से आ जाता है। वह फिर से उद्य स्वर में गाने लगता है। उसकी निराशा समाप्त हो जाती है। कभी-कभी संगतकार वैसे ही मुख्य गायक का साथ दे देता है। वह मुख्य गायक को यह अहसास कराना चाहता है कि वह अकेला नहीं है। वह उसका साथ देने के लिए उसके साथ है। वह उसे गाकर यह भी बता देता है कि जिस राग को पहले गाया जा चुका है उसे फिर से गाया जा सकता है। पर उसकी आवाज में हिचक का भाव अवश्य छिपा रहता है। उसे यह अवश्य लगता है कि उस मुख्य गायक से संकेत मिले बिना नहीं गाना चाहिए था। ऐसा भी हो सकता है कि वह अपने स्वर को मुख्य गायक के स्वर से ऊँचा उठाने की कोशिश नहीं करना चाहता था। संगतकार के द्वारा अपने स्वर को ऊंचा न उठाने की कोशिश उसकी असफलता नहीं मानी जानी चाहिए, बल्कि इसे तो उसकी इंसानियत समझना चाहिए। वह मनुष्यता के भावों को सामने रखकर और सोच विचार कर अपने संगीत-गुरु की आवाज से अपनी आवाज को ऊंचा नहीं उठाना चाहता। उसमें श्रद्धा का भाव है, जो सराहनीय है।
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• उपमा - आवाज से राख जैसा कुछ
• पुनरुक्ति प्रकाश - कभी--कभी
• संदेह - या अपने स्वर को ऊँचा न उठाये।
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