क्षितिज भाग २ Chapter 5 सूर्यकांत त्रिपाठी निराला - उत्साह
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    NCERT Solution For Class 10 Hindi क्षितिज भाग २

    सूर्यकांत त्रिपाठी निराला - उत्साह Here is the CBSE Hindi Chapter 5 for Class 10 students. Summary and detailed explanation of the lesson, including the definitions of difficult words. All of the exercises and questions and answers from the lesson's back end have been completed. NCERT Solutions for Class 10 Hindi सूर्यकांत त्रिपाठी निराला - उत्साह Chapter 5 NCERT Solutions for Class 10 Hindi सूर्यकांत त्रिपाठी निराला - उत्साह Chapter 5 The following is a summary in Hindi and English for the academic year 2021-2022. You can save these solutions to your computer or use the Class 10 Hindi.

    Question 1
    CBSEENHN10001672

    कवि बादल से फुहार, रिमझिम या बरसने के स्थान पर 'गरजने' के लिए कहता है, क्यों?

    Solution
    निराला विद्रोही कवि हैं। वे समाज में क्रांति के माध्यम से परिवर्तन लाना चाहते थे। वे क्रांति चेतना का आश्वान करने में विश्वास रखते थे जो ओज और जोश पर निर्भर करती है। ओज और जोश के लिए ही कवि बादलों को गरजने के लिए कहता है।
    Question 2
    CBSEENHN10001673

    कविता का शीर्षक उत्साह क्यों रखा गया है?

    Solution
    यह एक आह्वान गीत है जिसमें कवि ने उत्साहपूर्ण ढंग से अपने प्रगतिवादी स्वर को प्रकट किया है। वह बादलों से गरज-गरज कर सारे संसार को नया जीवन प्रदान करने की प्रेरणा देता है जिनके भीतर वज्रपात की शक्ति छिपी हुई है। वह संसार को नई प्रेरणा और जीवन प्रदान करने की क्षमता रखता है इसलिए कवि ने बादलों के विशेष गुण के आधार पर इस कविता का शीर्षक उत्साह रखा है।
    Question 3
    CBSEENHN10001674

    कविता में बादल किन-किन अर्थो की ओर संकेत करता है?

    Solution
    कविता में बादल ललित कल्पना और क्रांति चेतना की ओर संकेत करता है। यह एक तरफ पीड़ित-प्यासे लोगों की आशाओं और आकांक्षाओं को पूरा करने वाला है तो दूसरी तरफ वह नई कल्पना और नए अंकुर के लिए विध्वंस, विप्लव और क्रांति चेतना की ओर संकेत करता है।
    Question 4
    CBSEENHN10001675

    शब्दों का ऐसा प्रयोग जिससे कविता में किसी खास भाव या दृश्य में ध्वन्यात्मक प्रभाव पैदा हो, नाद-सौंदर्य कहलाता है। उत्साह कविता में ऐसे कौन-से शब्द हैं जिनमें नाद-सौंदर्य मौजूद है, छाँटकर लिखें।

    Solution

    (i) घेर घेर घोर गगन, धाराधार ओ !
    (ii) ललित ललित, काले घुँघराले।
    (iii) विद्‌युत् - छबि उर में, कवि नवजीवन वाले।
    (iv) विकल विकल, उन्मन थे उन्मन।

    Question 5
    CBSEENHN10001676

    जैसे बादल उमड़-घुमड़कर बारिश करते हैं वैसे ही कवि के अंतर्मन में भी भावों के बादल उमड़-घुमड़कर कविता के रूप में अभिव्यक्त होते हैं। ऐसे ही कभी किसी प्राकृतिक सौंदर्य को देख कर अपने उमड़ते भावों को कविता में उतारिए।

    Solution

    झूम उठे तरुवर उपवन में
    छाई हरियाली कानन में
    लता पल्लवित पाणि-युगल में
    लिए खड़ी उपहार-सुमन।
    किसी की स्मृति से हर्षित मन?
    फूल खिले फूले न समाते
    मोद-भरे मधु गंध उड़ाते
    सौरभ-निधि का भार उठाए
    बह चला मंद-मंद पवन।
    किसकी स्मृति से हर्षित मन?
    मधुपावली सुवाद्‌य बजाती
    कोकिल कूहू तान सुनाती
    विहग मंडली हर्ष जनाती
    हो गए जन-मन रत नर्तन।
    किसकी स्मृति से हर्षित मन?
    हर्ष-तरंग उठी मानस में
    नव संचार हुआ साहस में
    झंकृति से मानस--वीणा की
    सकल हुआ रोमांचित तन।
    किसकी स्मृति से हर्षित मन? -डॉ० रत्न चंद्र शर्मा से आभार सहित।

    Question 6
    CBSEENHN10001677

    छायावाद की एक खास विशेषता है- अंतर्मन के भावों का बाहर की दुनिया से सामंजस्य बिठाना। कविता की किन पंक्तियों को पढ़कर यह धारणा पुष्ट होती है? लिखिए।

    Solution

    पत्तों से लदी डाल
    कहीं हरी, कहीं लाल
    कहीं पड़ी है उर में
    मंद-गंध-पुष्प-माल,
    पाट-पाट शोभा-श्री
    पट नहीं रही है।
    कवि को हरे पत्तों और लाल कोयलों से भरी डालियों के बीच खिले सुगंधित फूलों की शोभा बिखरी है। ऐसा प्रतीत होता है कि उनके कंठों में सुगंधित फूलों की मालाएँ पड़ी हुई हैं। कवि की अज्ञात सत्ता रूपी प्रियतम वन की शोभा के वैभव को कूट-कूट कर भर रहे हैं पर अपनी पुष्पलता के कारण उसमें समा न सकने के कारण चारों ओर बिखर रही है। कवि ने अपने मन के भावों को प्रकृति के माध्यम से व्यक्त किया है।

    Question 7
    CBSEENHN10001678

    कवि की आँख फागुन की सुंदरता से क्यों नहीं हट रही है?

    Solution
    अज्ञात सत्ता रूपी कवि के प्रियतम प्रभु फागुन की सुंदरता के कण-कण में व्याप्त है। उनकी श्वास के द्वारा प्रकृति का कोना-कोना सुगंध से आपूरित था। वही कवि के मन में तरह-तरह की कल्पनाएँ भरते थे। उनमें विशेष आकर्षण था जिससे कवि अपनी आँख नहीं हटाना चाहता। उसकी दृष्टि हट ही नहीं रही है।
    Question 8
    CBSEENHN10001679

    प्रस्तुत कविता में कवि ने प्रकृति की व्यापकता का वर्णन किन रूपों में किया है?

    Solution
    कवि ने प्रकृति की व्यापकता को फागुन की सुंदरता के रूप से प्रकट किया है। प्रकृति की सुंदरता और व्यापकता फागुन में समा ही नहीं पाती इसलिए वह सब तरफ फूटी पड़ती दिखाई देती है। प्रकृति के माध्यम से परमात्मा की सर्वव्यापकता को कवि ने प्रकट किया है। वह परम सत्ता अपनी श्वासों से प्रकृति के कोने-कोने में सुगंध के रूप में व्याप्त है। प्रकृति ही कवि को कल्पना की ऊंची उड़ान भरने के लिए प्रेरित करती है और उसकी रचनाओं में सर्वत्र दिखाई देती है। प्रकृति की व्यापकता ही मन में तरह-तरह की कल्पनाओं को जन्म देती है। वन का प्रत्येक पेड-पौधा इसी सुंदरता से भर कर शोभा देता है। प्रकृति की व्यापकता नैसर्गिक सौंदर्य की मूल आधार है।
    Question 9
    CBSEENHN10001680

    फागुन में ऐसा क्या होता है जो बाकी ऋतुओं से भिन्न होता है?

    Solution
    फागुन का महीना मस्ती से भरा होता है जो सारी प्रकृति को नया रंग प्रदान कर देता है। पेड़-पौधों की शाखाएँ हरे--हरे पत्तों से लद जाती हैं। लाल-लाल कोंपलें अपार सुंदर लगती हैं। रंग-बिरंगे फूलों की बहार-सी छा जाती है। इससे वन की शोभा का वैभव पूरी तरह से प्रकट हो जाता है। प्रकृति ईश्वरीय शोभा को ले कर प्रकट हो जाती है जो बाकी ऋतुओं से भिन्न होता है। इस ऋतु में न गर्मी का प्रकोप होता है और न ही सर्दी की ठिठुरन। इसमें न तो हर समय की वर्षा होती है और न ही पतझड़ से ठुंठ बने वृक्ष। यह महीना तो अपार सुखदायी बन कर सबके मन को मोह लेता है।
    Question 10
    CBSEENHN10001681

    इन कविताओं के आधार पर निराला के काव्य -शिल्प की विशेषताएँ लिखिए।

    Solution

    निराला विद्रोही कवि थे इसलिए उनके काव्य-शिल्प में भी विद्रोह की छाप स्पष्ट रूप से दिखाई देती है। उन्होंने कला के क्षेत्र में रूढ़ियों और परंपराओं को स्वीकार नहीं किया था। उन्होंने भाषा, छंद, शैली-प्रत्येक क्षेत्र में मौलिकता और नवीनता का समावेश करने का प्रयत्न किया था। वे छायावादी कवि थे इसलिए शिल्प की कोमलता उनकी कविता में कहीं-न-कहीं अवश्य बनी रही थी। उनकी कविताओं के शिल्प में विद्यमान प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित हैं:
    (i) भाषागत कोमलता- उनकी भाषा में एकरसता की कमी है। उन्होंने सरल, व्यावहारिक, सुबोध, सौष्ठव प्रधान और अलंकृत भाषा का प्रयोग किया है। उनकी भाषा पर संस्कृत का विशेष प्रभाव है-
    विकल विकल, उन्मन थे उन्मन
    विश्व के निदाघ के सकल जन,
    आए अज्ञात दिशा से अनंत के घन !
    तप्त धरा, जल से फिर
    शीतल कर दो।

    (ii) कोमलता- निराला की कविताओं में कोमलता है। उन्होंने विशिष्ट शब्दों के प्रयोग से कोमलता को उत्पन्न करने में सफलता प्राप्त की है-
    घेर घेर घोर गगन, धाराधर ओ!
    ललित ललित, काले घुँघराले
    बाल कल्पना के-से पाले,
    विद्‌युत्-छवि उर में, कवि नवजीवन वाले।

    (iii) शब्दों की मधुर योजना- निराला जी ने अन्य छायावादी कवियों की तरह भाषा को भाषानुसारिणी बनाने के लिए शब्दों की मधुर योजना की है यथा-
    शिशु पाते हैं माताओं के
    वक्ष-स्थल पर भूला गान
    माताएँ भी पातीं शिशु के
    अधरों पर अपनी मुस्कान।

    (iv) लाक्षणिक प्रयोग-निराला की भाषा में लाक्षणिक प्रयोग भरे पड़े हैं। उन्होंने परंपरा के प्रति अपने विरोध- भाव को प्रकट करते समय भी लाक्षणिकता का प्रयोग ही किया था-
    कठिन शृंखला बज-बजा कर
    गाता हूँ अतीत के गान
    मुझ भूले पर उस अतीत का
    क्या ऐसा ही होगा ध्यान?

    (v) संगीतात्मकता- छायावादी कवियों की तरह निराला ने भी तुक के संगीत का प्रयोग प्राय: नहीं किया था और उसके स्थान पर लय-संगीत को अपनाया था। उन्हें संगीत का अच्छा ज्ञान था। उनकी यह विशेषता कविता में स्थान- स्थान पर दिखाई देती है-
    कहीं पड़ी है उर में
    मंद-मंद पुष्प-माला
    पाट-पाटा शोभा-श्री
    पट नहीं रही है।

    (vi) चित्रात्मकता- निराला जी ने शब्दों के बल पर भाव चित्र प्रस्तुत किए हैं। उन्होंने बादलों का शब्द चित्र ऐसा खींचा है कि वे काले घुंघराले बालों के समान आँखों के सामने झूमते-गरजते-चमकते से प्रतीत होने लगते हैं।

    (vii) लोकगीतों जैसी भाषा- निराला ने अनेक गीतों की भाषा लोकगीतों के समान प्रयुक्त की हैं। कहीं-कहीं उन्होंने कजली और गजल भी लिखी हैं। इसमें कवि ने देशज शब्दों का खुल कर प्रयोग किया है-

    अट नहीं रही है
    आभा फागुन की तन
    सट नहीं रही है।

    (viii) मुक्त छंद- निराला ने मुख्य रूप से अपनी भावनाओं को मुक्त छंद में प्रकट किया है। उन्होंने छंद से मुक्त रह कर अपने काव्य की रचना की है। इनके मुक्त छंद को अनेक लोगों ने खंड छंद, केंचुआ छंद, रबड़ छंद, कंगारू छंद आदि नाम दिए हैं।

    (ix) अलंकार योजना- कवि ने समान रूप से शब्दालंकारों और अर्थालंकारों का प्रयोग किया है। इससे इनके काव्य में सुंदरता की वृद्धि हुई है।

    (i) पुनरुक्ति प्रकाश-
    घेर घेर घोर गगन, धाराधर ओ!
    ललित ललित, काले घुँघराले।

    (ii) उपमा-बाल कल्पना के-से पाले।
    (iii) वीप्सा-विकल विकल, उन्मन थे उन्मन
    (iv) प्रश्न-क्या ऐसा ही होगा ध्यान?

    (v) अनुप्रास- कहीं हरी, कहीं लाल

    (vi) यमक-पर-पर कर देते हो।

    वास्तव में निराला ने मौलिक शिल्प योजना को महत्व दिया है जिस कारण साहित्य में उनकी अपनी ही पहचान है।

    Question 11
    CBSEENHN10001682

    होली के आसपास प्रकृति में जो परिवर्तन दिखाई देते हैं, उन्हें लिखिए।

    Solution
    होली के आस-पास मौसम में एकदम परिवर्तन आता है। सर्दी समाप्त होने लगती है और सूर्य की तपन बढ़ने लगती है। सर्दियों में जिस गर्म धूप की इच्छा होती है वह कम हो जाती है। पेड़-पौधों पर हरियाली छाने लगती है। वनस्पतियों पर नई-नई कोंपलें दिखाई देने लगती हैं। घास पर सुबह-सुबह दिखाई देने वाली ओस की बूँदें गायब हो जाती हैं पक्षियों के जो झुंड सर्दियों में न जाने कहाँ चले जाते हैं वे वापिस पेड़ों पर लौट कर चहचहाने लगते हैं। प्रकृति की शोभा होली के आसपास नया-सा रूप प्राप्त कर लेती है।
    Question 12
    CBSEENHN10001683

    फागुन में गाए जाने वाले गीत जैसे होरी, फाग आदि गीतों को जानिए।

    Solution

    अपने अध्यापक/अध्यापिका की सहायता से कीजिए।
    • इस कविता में भी निराला फागुन के सौंदर्य में डूब गए हैं। उनमें फागुन की आभा रच गई, ऐसी आभा जिस ने- शब्दों से अलग किया जा सकता है, न फागुन से।
    फूटेहैं आमों में बौर
    भौर वन-वन टूटे हैं।
    होली मची ठौर-ठौर,
    सभी बंधन छूटे हैं।
    फागुन के रंग राग,
    बाग-वग फाग मचा है,
    भर गये मोती के झाग,
    जनों के मन लूटे हैं।
    माथे अबीर से लाल,
    गाल सेंदुर से देखे,
    आँखें हुए हैं गुलाल,
    गेरू के ढेले कूटे हैं।

    Question 13
    CBSEENHN10001684

    ‘अट नहीं रही’ के आधार पर बसंत ऋतु की शोभा का उल्लेख कीजिए।

    Solution
    कवि ने बसंत में प्रकृति की शोभा का सुंदर उल्लेख किया है। ऐसा लगता है जैसे इस ऋतु में सुंदरता प्रकृति के कण-कण में समा-सी जाती है। प्रकृति के कोने-कोने से अनूठी-सी सुगंध भर जाती है जिससे कवियों की कल्पना ऊँची उड़ान लेने लगती है। चाह कर भी प्रकृति की सुंदरता से आँखें हटाने की इच्छा नहीं होती। नैसर्गिक सुंदरता के प्रति मन बंध कर रह जाता है। जगह-जगह रंग-बिरंगे और सुगंधित फूलों की शोभा दिखाई देने लगती है।
    Question 14
    CBSEENHN10001685

    ‘अट नहीं रही’ में विद्यमान रहस्यवादिता को स्पष्ट कीजिए।

    Solution

    निराला जी को प्रकृति के कण-कण में परमात्मा की अज्ञात सत्ता दिखाई देती है। वह उसका रहस्य जानना चाहता है पर जान नहीं पाता। उसे यह तो प्रतीत होता है कि प्रकृति के परिवर्तन के पीछे कुछ-न-कुछ तो अवश्य है। वह ईश्वर ही हो सकता है जो परिवर्तन का कारण बनता है।
    कहीं साँस लेते हो,
    घर-घर भर देते हो,
    उड़ने को नभ में तुम
    पर-पर कर देते हो।
    आँख हटाता हूँ तो
    हट नहीं रही है।

    कवि निराला को प्रकृति के कण-कण में ईश्वरीय सत्ता की छवि के दर्शन होते हैं। उन्हें प्रकृति के चल में छिपे उसी का रूप दिखाई देता है।

     
    Question 15
    CBSEENHN10001686

    पाठ में संकलित निराला की कविताओं के आधार पर विद्रोह के स्वर को स्पष्ट कीजिए।

    Solution

    निराला की कविता में विद्रोह का स्वर प्रधान है। कवि ने परंपराओं का विरोध करते हुए मुक्त छंद का प्रयोग हिंदी काव्य को प्रदान किया था। उसे लगा था कि ऐसा करना आवश्यक था क्योंकि नई काव्य परंपराएँ साहित्य का विस्तार करती हैं-
    शिशु पाते हैं माताओं के
    वक्षःस्थल पर भूला गान
    माताएँ भी पाती शिशु के
    अधरों पर अपनी मुसकान।
    कवि ने बादलों के माध्यम से विद्रोह के स्वर को ऊँचा उठाया है। वह समझते थे इसी रास्ते पर चल कर समाज का कल्याण किया जा सकता है-
    विकल विकल, उन्मन थे उन्मन
    विश्व के निदाघ के सकल जन,
    आए अज्ञात दिशा से अनंत के घन।
    तप्त धरा, जल से फिर,
    शीतल कर दो।
    वास्तव में निराला जीवन पर्यत विद्रोह और संघर्ष के स्वर को कविता के माध्यम से प्रकट करते रहे थे।

    Question 16
    CBSEENHN10001687

    निम्नलिखित पद्यांश को पढ़कर उसकी सप्रसंग व्याख्या कीजिये:
    बादल, गरजो! -
    घेर घेर घोर गगन, धाराधर ओ!
    ललित ललित, काले घुँघराले,
    बाल कल्पना के-से पाले,
    विद्युत्-छबि उर में, कवि, नवजीवन वाले!
    वज्र छिपा,   नूतन कविता
         फिर भर दो - 
         बाद, गरजो!
    विकल विकल, उन्मन थे उन्मन
    विश्व के निदाघ के सकल जन,
    आए अज्ञात दिशा से अनंत के धन!
    तप्त धरा, जल से फिर
       शीतल कर दो -
       बादल, गरजो !



    Solution

    प्रसंग- प्रस्तुत कविता ‘उत्साह’ हमारी पाठ्‌य-पुस्तक क्षितिज (भाग- 2) में संकलित की गई है जिसके रचयिता सुप्रसिद्ध छायावादी कवि श्री सूर्यकांत त्रिपाठी निराला हैं। कवि ने अपनी कविता में बादलों का आह्वान किया है कि पीड़ित-प्यासे लोगों की आकांक्षाओं को पूरा करें। उन्होंने बादलों को नए अंकुर के लिए विध्वंस और क्रांति चेतना को संभव करने वाला भी माना है।

    व्याख्या- कवि बादलों से गरज-बरस कर सारे संसार को नया जीवन देने की प्रेरणा देते हुए कहता है कि ओ बादलो, तुम गरजो। तुम सारे आकाश को घेर कर मूसलाधार वर्षा करो; घनघोर बरसो। हे बादलो, तुम अत्यंत सुंदर हो। तुम्हारा स्वरूप सुंदर काले घुंघराले वालों के समान है तथा तुम अबोध बालकों की मधुर कल्पना के समान पाले गए हो। तुम हृदय में बिजली की शोभा धारण करते हो। तुम नवीन सृष्टि करने वाले हो। तुम जल रूपी नया जीवन देने वाले हो और तुम्हारे भीतर वज्रपात करने की अपार शक्ति छिपी हुई है। तुम इस संसार को नवीन प्रेरणा और जीवन प्रदान कर दो। बादलो तुम गरजो और सब में नया जीवन भर दो। गर्मी के तेज ताप के कारण सारी धरती के सारे लोग बहुत व्याकुल और बेचैन हैं, वे उदास हो रहे हैं। अरे बादलो, तुम सीमा हीन आकाश में पता नहीं किस ओर से आकर सब तरफ फैल गए हो। तुम बरस कर इस गर्मी के ताप से तपी हुई धरती को शीतलता प्रदान करो। हे बादलो, तुम गरज-गरज कर बरसो और फिर धरती को शीतल करो।

    Question 17
    CBSEENHN10001688

    निम्नलिखित पद्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिये:
    बादल, गरजो! -
    घेर घेर घोर गगन, धाराधर ओ!
    ललित ललित, काले घुँघराले,
    बाल कल्पना के-से पाले,
    विद्युत्-छबि उर में, कवि, नवजीवन वाले!
    वज्र छिपा,   नूतन कविता
         फिर भर दो - 
         बाद, गरजो!
    विकल विकल, उन्मन थे उन्मन
    विश्व के निदाघ के सकल जन,
    आए अज्ञात दिशा से अनंत के धन!
    तप्त धरा, जल से फिर
       शीतल कर दो -
       बादल, गरजो !

    कविता में निहित भावार्थ स्पष्ट कीजिए?



    Solution
    कवि ने बादलों को पास और पीड़ित लोगों के कष्टों को दूर कर उनकी इच्छाओं-आकांक्षाओं को पूरा करने का आग्रह भरा आह्वान किया है और साथ ही साथ बादलों को नई कल्पना और नए अंकुर के लिए विध्वंस, विप्लव और क्रांति चेतना को संभव करने वाला माना है। बादल ही धरती को हरा-भरा बनाते हैं और कवि को कविता करने की प्रेरणा प्रदान करते हैं।

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    Question 25
    CBSEENHN10001696

    निम्नलिखित पद्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिये:
    बादल, गरजो! -
    घेर घेर घोर गगन, धाराधर ओ!
    ललित ललित, काले घुँघराले,
    बाल कल्पना के-से पाले,
    विद्युत्-छबि उर में, कवि, नवजीवन वाले!
    वज्र छिपा,   नूतन कविता
         फिर भर दो - 
         बाद, गरजो!
    विकल विकल, उन्मन थे उन्मन
    विश्व के निदाघ के सकल जन,
    आए अज्ञात दिशा से अनंत के धन!
    तप्त धरा, जल से फिर
       शीतल कर दो -
       बादल, गरजो!

    अवतरण का भाव स्पष्ट कीजिए।

    Solution
    कवि ने बादलों को मानव जीवन को हरा-भरा बनाने वाले माना है। इसी से सारे प्राणी जीवन में सुख प्राप्त करते हैं। बादल एक तरफ पीड़ित-प्यासे लोगों की उम्मीदों को पूरा करते हैं तो दूसरी तरफ नई कल्पना और नए अंकुर के लिए विध्वंस, विप्लव और क्रांति-चेतना को संभव करते हैं।
    Question 37
    CBSEENHN10001708

    निम्नलिखित पद्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिये:
    बादल, गरजो! -
    घेर घेर घोर गगन, धाराधर ओ!
    ललित ललित, काले घुँघराले,
    बाल कल्पना के-से पाले,
    विद्युत्-छबि उर में, कवि, नवजीवन वाले!
    वज्र छिपा,   नूतन कविता
         फिर भर दो - 
         बाद, गरजो!
    विकल विकल, उन्मन थे उन्मन
    विश्व के निदाघ के सकल जन,
    आए अज्ञात दिशा से अनंत के धन!
    तप्त धरा, जल से फिर
       शीतल कर दो -
       बादल, गरजो!

    अलंकारों का निरुपण कीजिए।


    Solution

    अनुप्रास-
    • ‘घेर घेर घोर गगन’ में।
    • ‘ललित ललित, काले घुँघराले’,
       ‘बाल कल्पना के-से पाले’।
    • ‘कवि, नवजीवन वाले’।
    • ‘फिर भर दो’।

    मानवीकरण:
    बादल गरजो!
    घेर घेर घोर गगन, धाराधर ओ!
    पुनरुक्ति प्रकाश- घेर-घेर, ललित ललित, विकल-विकला।
    उपमा - बाल कल्पना के-से पाले।

    Question 38
    CBSEENHN10001709

    निम्नलिखित पद्यांश को पढ़कर उसकी सप्रसंग व्याख्या कीजिये:
    अट नहीं रही है
    आभा फागुन की तन
    सट नहीं रही है।

    कहीं साँस लेते हो,
    घर-घर भर देते हो,
    उड़ने को नभ में तुम
    पर-पर कर देते हो,
    आँख हटाता हूँ तो
    हट नहीं रही है।
    पत्तों से लदी डाल
    कहीं हरी, कहीं लाल,
    कहीं पड़ी है उर में
    मंद-गंध-पुष्प-माल,
    पाट-पाट शोभा-श्री
    पट नहीं रही है।

    Solution

    प्रसंग- प्रस्तुत कविता हमारी पार-पुस्तक क्षितिज भाग- 2 में संकलित की गई है जिसके रचयिता छायावादी काव्य धारा के प्रमुख कवि श्री सूर्यकांत त्रिपाठी निराला हैं। इसे मूल रूप से उनकी काव्य-रचना ‘राग-विराग’ में संकलित किया गया था। कवि ने इसमें फागुन की मादकता को प्रकट किया है जिसकी सुंदरता और उल्लास सभी दिशाओं में फैला हुआ है।

    व्याख्या- कवि कहता है कि शरीर में फागुन की यह सुंदरता किसी भी प्रकार समा नहीं पा रही है। वह महमि के कण- कण से फूट रही है। अपने रहस्यवादी भावों को प्रकट करते हुए कवि कहता है कि हे प्रिय, पता नहीं आप कहा बैठ कर अपनी सांस के द्वारा प्रकृति के कोने-कोने को सुगंध से भर रहे हैं। आप ऊंची कल्पना के आकाश में उड़ने के लिए मन को पंख प्रदान कर देते हो। आप ही मन में तरह-तरह की कल्पनाओं को जन्म देते हैं। आप की सुंदरता ही सब तरफ व्याप्त है। वह अत्यधिक आकर्षक और सुंदर है। कवि कहता है कि मैं उसकी ओर से अपनी आँख हटाना चाहता हूँ पर वह वहाँ से दूर हट नहीं पा रही। इस सुंदरता में मन बंध कर रह गया है। पेड़ों की सभी डांलियां पत्तों से पूरी तरह लद गई हैं। कहीं तो पत्ते हरे हैं और कहीं कोंपलों में लाली छाई हैं। उनके बीच सुंदर-सुगंधित फूल खिल रहे हैं। ऐसा लगता है कि उनके कंठों में सुगंध से भरे फूलों की मालाएँ पड़ी हुई हैं। हे प्रिय, आप जगह-जगह शोभा के वैभव को छूट-कूट कर भर रहे हैं पर वह अपनी पुष्पलता के कारण उसमें समा नहीं पा रही और चारों ओर बिखरी पड़ी है।

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    Question 49
    CBSEENHN10001720

    निम्नलिखित पद्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिये:
    अट नहीं रही है
    आभा फागुन की तन
    सट नहीं रही है।

    कहीं साँस लेते हो,
    घर-घर भर देते हो,
    उड़ने को नभ में तुम
    पर-पर कर देते हो,
    आँख हटाता हूँ तो
    हट नहीं रही है।
    पत्तों से लदी डाल
    कहीं हरी, कहीं लाल,
    कहीं पड़ी है उर में
    मंद-गंध-पुष्प-माल,
    पाट-पाट शोभा-श्री
    पट नहीं रही है।

    कविता के शिल्प-सौंदर्य को स्पष्ट कीजिए?


    Solution
    खड़ी बोली में रचित इस कविता में तत्सम और तद्‌भव शब्दावली का अधिकता से प्रयोग किया गया है। प्रसाद गुण का प्रयोग है। अतुकांत छंद है। विशेषोक्ति, असंगति, पुनरुक्ति प्रकाश, रूपक, पदमैत्री और स्वाभावोक्ति अलंकारों का सहज प्रयोग सराहनीय है।
    Question 69
    CBSEENHN10001740

    निम्नलिखित पद्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिये:
    अट नहीं रही है
    आभा फागुन की तन
    सट नहीं रही है।

    कहीं साँस लेते हो,
    घर-घर भर देते हो,
    उड़ने को नभ में तुम
    पर-पर कर देते हो,
    आँख हटाता हूँ तो
    हट नहीं रही है।
    पत्तों से लदी डाल
    कहीं हरी, कहीं लाल,
    कहीं पड़ी है उर में
    मंद-गंध-पुष्प-माल,
    पाट-पाट शोभा-श्री
    पट नहीं रही है।

    अलंकारों का उल्लेख कीजिए।




    Solution

    अनुप्रास-
    • ‘नहीं रही है’।
    • ‘घर-घर भर’, ‘पर-पर कर’।
    • ‘शोभा-श्री’।
    विशेषोक्ति- आँख हटाता हूँ तो
    हट नहीं रही है।
    पुनरुक्ति प्रकाश - घर-घर, पर-पर, पाट-पाट।
    मानवीकरण - कहीं साँस लेते हो
    घर-घर भर देते हो
    उड़ने को नभ में तुम
    पर-पर कर देते हो।

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