क्षितिज भाग २ Chapter 4 जयशंकर प्रसाद - आत्मकथ्य
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    NCERT Solution For Class 10 Hindi क्षितिज भाग २

    जयशंकर प्रसाद - आत्मकथ्य Here is the CBSE Hindi Chapter 4 for Class 10 students. Summary and detailed explanation of the lesson, including the definitions of difficult words. All of the exercises and questions and answers from the lesson's back end have been completed. NCERT Solutions for Class 10 Hindi जयशंकर प्रसाद - आत्मकथ्य Chapter 4 NCERT Solutions for Class 10 Hindi जयशंकर प्रसाद - आत्मकथ्य Chapter 4 The following is a summary in Hindi and English for the academic year 2021-2022. You can save these solutions to your computer or use the Class 10 Hindi.

    Question 1
    CBSEENHN10001575

    कवि आत्मकथा लिखने से क्यों बचना चाहता है?

    Solution
    कवि आत्मकथा लिखने से बचना चाहता था क्योंकि उसे लगता था कि उसका जीवन साधारण-सा है। उसमें कुछ भी ऐसा नहीं जिससे लोगों को किसी प्रकार की प्रसन्नता प्राप्त हो सके। उसका जीवन अभावों से भरा हुआ था जिन्हें वह औरों के साथ बांटना नहीं चाहता था। उसके जीवन में किसी के प्रति कोमल भाव अवश्य था जिसे वह किसी को बताना नहीं चाहता था।
    Question 2
    CBSEENHN10001576

    आत्मकथा सुनाने के संदर्भ में ‘अभी समय भी नहीं’ ऐसा क्यों कहता है?

    Solution
    कवि को ऐसा लगता है कि अभी उसके जीवन में कोई बड़ी-बडी उपलब्धियाँ नहीं हैं जिन्हें दूसरों के सामने प्रकट किया जा सके। वह अपने अभावग्रस्त जीवन के कष्टों को अपने हृदय में छिपाकर रखना चाहता है। इसीलिए वह कहता है- ‘अभी समय भी नहीं।’
    Question 3
    CBSEENHN10001577

    स्मृति को ‘पाथेय’ बनाने से कवि का क्या आशय है?

    Solution
    ‘पाथेय’ का शाब्दिक अर्थ है- संबल, सहारा। कवि के हृदय में किसी अति रूपवान के लिए गहरा प्रेमभाव था। उसके प्रति मधुर यादें थीं और वे यादें ही उसके जीवन की आधार बनी हुई थीं जिन्हें वह न तो औरों के सामने प्रकट करना चाहता था और न ही ‘स्मृति रूपी सहारे’ को अपने से दूर करना चाहता था। कवि के मन में छिपी मधुर स्मृतियां उसके सुखों का आधार थीं।
    Question 4
    CBSEENHN10001578

    भाव स्पष्ट कीजिये:
    (क) मिला कहाँ वह सुख जिसका मैं स्वप्न देख कर जाग गया।
    आलिंगन में आते-आते मुसक्या कर जो भाग गया।

    (ख) जिसके अरुण-कपोलों की मतवाली सुंदर छाया में।
    अनुरागिनी उषा लेती थी निज सुहाग मधुमाया में।

    Solution

    (क) कवि का मानना है कि उसे अपने जीवन में सुखों की प्राप्ति नहीं हुई। हर व्यक्ति की तरह वह भी अपने जीवन में सुखों की प्राप्ति करना चाहता था। अवचेतन में छिपे सुख के भावों के कारण कवि ने भी सुख भरा सपना देखा था पर वह सुख उसे वास्तव में प्राप्त कभी नहीं हुआ। वह सुख उसके बिल्कुल पास आते-आते मुस्करा कर दूर भाग गया।
    (ख) कवि का प्रियतम अति सुंदर था। उसकी गालों पर मस्ती भरी लाली छाई हुई थी। उसकी सुंदर छाया में प्रेमभरी भोर भी अपने सुहाग की मधुरिमा प्राप्त करती थी।

    Question 5
    CBSEENHN10001579

    ‘उज्जल गाथा कैसे गाऊँ, मधुर चाँदनी रातों की’ - कथन के माध्यम से कवि क्या कहना कहता है?

    Solution
    कवि के जीवन में चाहे अभाव थे, दुःख थे, पीड़ा थी पर फिर भी उसे कोई प्रेम करने वाला था। कवि उस प्रेम-भाव को जग ज़ाहिर नहीं करना चाहता था। वह उसे नितांत अपना मानता था इसलिए वह मधुर चाँदनी की उस उज्जल कहानी को दूसरों के लिए नहीं गाना चाहता था।
    Question 6
    CBSEENHN10001580

    ‘आत्मकथ्य’ कविता की काव्यभाषा की विशेषताएँ उदाहरण सहित लिखिए।

    Solution

    श्री जयशंकर प्रसाद की कविता ‘आत्मकथ्य’ पर छायावादी काव्य-शिल्प की सीधी छाप दिखाई देती है जिसे निम्नलिखित आधारों पर स्पष्ट किया जा सकता है-
    1. भाषा की कोमलता-प्रसाद जी ने अपनी कविता में भाषा की कोमलता पर विशेष ध्यान दिया है। खड़ी बोली में रचित ‘आत्मकथ्य’ में कोमल शब्दों के प्रयोग की अधिकता है। ये मधुर और कर्णप्रिय हैं-
    जिसके अरुण-कपोलों की मतवाली सुंदर छाया में।
    अनुरागिनी उषा लेती थी निज सुहाग मधुमाया में।
    कवि ने तत्सम शब्दों का अधिकता से प्रयोग किया है जिससे उनकी शब्दों पर पकड़ का पता चलता है।

    2. भाषा की लाक्षणिकता-लाक्षणिकता प्रसाद जी के काव्य की महत्वपूर्ण विशेषता है। इसके द्वारा कवि ने अपने सूक्ष्म भावों को सहजता से प्रकट किया है-
    सुनकर क्या तुम भला करोगे मेरी भोली आत्म-कथा?
    अभी समय भी नहीं, थकी सोई है मेरी मौन व्यथा।

    3. भाषा की प्रतीकात्मकता - कवि ने अपनी कविता में प्रतीकात्मकता का अधिकता से प्रयोग किया है। उन्होंने प्रकृति-जगत् से अपने अधिकांश प्रतीकों का प्रयोग किया है-
    मधुप गुन-गुना कर कह जाता कौन कहानी यह अपनी,
    मुरझाकर गिर रहीं पत्तियाँ देखो कितनी आज घनी।

    ‘मधुप’ मनरूपी भंवरा है जो ‘गुनगुना’ कर भावों को प्रकट करता है। मुरझाकर गिरती ‘पत्तियाँ’ नश्वरता की प्रतीक हैं। कवि ने अपनी इस कविता में ‘अनंत-नीलिमा’, ‘गागर रीति’, ‘उज्ज्वल गाथा’, ‘चांदनी रातों की’, ‘अनुरागिनी उषा’, ‘स्मृति पाथेय’, ‘थके पथिक’, ‘सीवन को उधेड़’, ‘कंथा’ आदि प्रतीकात्मक शब्दो, का सहज-सुंदर प्रयोग किया है।

    4. भाषा की चित्रमयता-प्रसाद जी की इस कविता की एक अनुपम विशेषता है-चित्रमयता। कवि ने इसके द्वारा पाठक के सामने एक चित्र-सा उभार कर प्रस्तुत किया है। इससे कविता में बिंब उपस्थित करने में सफलता मिली है।

    5. भाषा की संगीतात्मकता-कवि की कविता में संगीतात्मकता का तत्त्व निश्चित रूप से विद्यमान है। इसका कारण यह है कि कवि को नाद, लय और छंद तीनों का अच्छा ज्ञान था। स्वरमैत्री ने संगीतात्मकता को उत्पन्न करने में सहायता प्रदान की है-
    छोटे-से जीवन की कैसे बड़ी कथाएँ आज कहूँ?
    क्या यह अच्छा नहीं कि औरों की सुनता मैं मौन रहूँ?

    6. भाषा की आलंकारिकता- भाषा को सजाने और प्रभावपूर्ण बनाने के लिए प्रसाद जी ने अपनी कविता में जगह-जगह अलंकारों का सुंदर प्रयोग किया है-
    (i) मधुप गुन-गुना कर कह जाता कौन कहानी यह अपनी-अनुप्रास
    (ii) आलिंगन में आते-आते मुसक्या कर जो भाग गया-पुनरुक्ति प्रकाश
    (iii) सीवन को उधेड़ कर देखोगे क्यों मेरी कंथा की?-प्रशन
    (iv) अनुरागिनी उषा लेती थी निज सुहाग मधुमाया में-मानवीकरण

    7. मधुर शब्द योजना - कवि को शब्दों की अंतरात्मा की सूक्ष्म पहचान है। जो शब्द जहाँ ठीक लगता है उसी का कवि ने प्रयोग किया है-
    उसकी स्मृति पाथेय बनी है थके पथिक की पंथा की।
    सीवन को उधेड़ कर देखोगे क्यों मेरी कथा की?

    इन पंक्तियों में ‘पाथेय’, पथिक, पंथा, सीवन, कंथा आदि अत्यंत सटीक और सार्थक शब्द हैं जो विशेष भावों को व्यक्त करते हैं।

    Question 7
    CBSEENHN10001581

    कवि ने जो सुख का स्वप्न देखा था उसे कविता में किस भावों में अभिव्यक्त किया है?

    Solution
    कवि ने सुख के जिस स्वप्न को देखा था उसे वह प्राप्त नहीं कर पाया था। वह स्वप्न तो ही रह गया था पर उसकी याद कवि के मन में गहराई से जमी हुई थी। कवि के हृदय में अपने प्रिय की सुखद छवि विद्यमान थी। उसका प्रिय भोला-भाला था जिसके लिए कवि ने ‘सरलते’ शब्द का प्रयोग किया है। उसके लिए अतीत के उन रस से भीगे दिनों को भुला पाना कभी भी संभव नहीं हो पाया। वे प्यार-भरी मधुर चाँदनी रातें उसके लिए सदा याद रखने योग्य थीं। वे उसे अलौकिक आनंद प्रदान करती थीं। प्रिय की हंसी का स्रोत उसके जीवन के कण-कण को सराबोर किए रहता था पर वह कल्पना मात्र था। जब तक सपना आँखों के सामने छाया रहा तब तक वह प्रसन्नता से भरा रहा पर स्वप्न के समाप्त होते ही जीवन की वास्तविकता उसके सामने आ गई। उसकी आनंद-कल्पना अधूरी रह गई। उसका प्रिय अपार सौंदर्य का स्वामी था। उसकी गालों की सौंदर्य-लालिमा के सामने तो उषा की लालिमा भी फीकी थी पर अब तो वह दृश्य ही बदल गया है।
    Question 8
    CBSEENHN10001582

    इस कविता के माध्यम से प्रसाद जी के व्यक्तित्व की जे झलक मिलती है, उसे अपने शब्दों में लिखिए।

    Solution

    श्री जयशंकर प्रसाद हिंदी के छायावादी काव्य के प्रवर्त्तक हैं। उन्होंने अपनी इस कविता में अपने व्यक्तित्व की हल्की-सी झलक दी है। वे अभावग्रस्त थे। वे धन संपन्न नहीं थे। वे सामान्य जीवन जीते हुए यथार्थ को स्वीकार करते थे। वे अति विनम्र थे। उन्हें लगता था कि उनके जीवन में ऐसा कुछ भी नहीं था जो दूसरों को सुख दे पाता इसीलिए वे अपनी जीवन-कहानी भी औरों को नहीं सुनाना चाहते थे-
    तब भी कहते हो-कह जा, दुर्बलता अपनी बीती।
    तुम सुन कर सुख पाओगे, देखोगे-यह गागर रीति।

    वे प्रेमी-हृदय थे। उन्हें किसी से प्रेम था पर वे उसके प्रेम को पा नहीं सके थे। वे स्वभाव से ऐसे थे कि न तो अपनी पीड़ा दूसरों के सामने प्रकट करना चाहते थे और न ही किसी की हँसी उड़ाना चाहते थे। वे अपने छोटे-से जीवन की कहानियाँ दूसरों को नहीं सुनाना चाहते थे। वे अपनी पीड़ा को अपने हृदय में समेट कर ही रखना चाहते थे।

    Question 9
    CBSEENHN10001583

    आप किन व्यक्तियों की आत्मकथा पढ़ना चाहेंगे और क्यों?

    Solution
    महान् व्यक्तियों के द्वारा लिखित आत्मकथाएँ प्रेरणा की स्रोत होती हैं। ये पाठकों का मार्गदर्शन करती हैं। इनमें लेखक अपने जीवन की विभिन्न परिस्थितियों और दशाओं का वर्णन करते हैं। वे अपने जीवन पर पड़े विभिन्न प्रभावों का उल्लेख भी करते हैं। मैं महापंडित राहुल सांकृत्यायन के द्वारा रचित आत्मकथा ‘मेरी जीवन यात्रा’ पढ़ना चाहूँगा। इसे पढ़ने से देश-विदेश में घूमने और स्थान-स्थान के ज्ञान को प्राप्त करने की प्रेरणा मिलेगी। विभिन्न क्षेत्रों के जीवन और रीति-रिवाजों को समझने की क्षमता मिलेगी। मैं हरिवंश राय बच्चन की ‘क्या भूंलूं क्या याद करुं’ और ‘नीड़ का निर्माण फिर-फिर’ पढ़ना चाहूँगा। इनसे एक महान् लेखक और कवि के जीवन को निकट से जानने का अवसर मिलेगा।
    Question 10
    CBSEENHN10001584

    कोई भी अपनी आत्मकथा लिख सकता है। उसके लिए विशिष्ट या बड़ा होना जरूरी नहीं। हरियाणा राज्य के गुड़गांव में घरेलू सहायिका के रूप में काम करने वाली बेबी हालदार की आत्मकथा बहुतों के द्वारा सराही गई। आत्मकथात्मक शैली में अपने बारे में कुछ लिखिए।

    Solution
    मैं अपने जीवन में कुछ ऐसा करना चाहती हूँ जिससे समाज में मेरा नाम हो, प्रतिष्ठा हो, और लोग मेरे कारण मेरे परिवार को पहचानें। जीवन तो सभी प्राणी भगवान से प्राप्त करते हैं। पशु भी जीवित रहते हैं पर उनका जीवन भी क्या जीवन है? अनजाने-से इस दुनिया में आते हैं और वैसे ही मर जाते हैं। मैं अपना जीवन ऐसे व्यतीत नहीं करना चाहती। मैं तो चाहती हूँ कि मेरी मृत्यु भी ऐसी हो जिस पर सभी गर्व करें और युगों तक मेरा नाम प्रशंसापूर्वक लेते रहें। मेरे कारण मेरे नगर और मेरे देश का नाम ख्याति प्राप्त करे। कल्पना चावला इस संसार में आई और चली गई। उसका धरती पर आना तो सामान्य था पर उसका यहाँ से जाना सामान्य नहीं था। आज उसे सारा देश ही नहीं सारा संसार जानता है। उसके कारण उसके नगर करनाल का नाम अब सभी की जुबान पर है। मैं भी चाहती हूँ कि मैं अपने जीवन में इतना परिश्रम करूँ कि मुझे विशेष पहचान मिले। मैं अपने माता-पिता के साथ-साथ अपने देश की कीर्ति का कारण बनूँ।
    Question 11
    CBSEENHN10001585

    श्री जयशंकर प्रसाद ने ‘आत्मकथ्य’ नामक कविता की रचना क्यों की थी?

    Solution
    मुंशी प्रेमचंद ‘हंस’ नामक पत्रिका चलाया करते थे। वे उसके संपादक थे। सन् 1932 में उन्होंने पत्रिका का आत्मकथा विशेषांक निकालने का निर्णय किया था। प्रसाद जी के मित्रों ने आग्रह किया कि वे भी आत्मकथा लिखें पर प्रसाद जी को ऐसा करना उचित प्रतीत नहीं हुआ। वे विनम्र थे और उन्हें ऐसा लगता था कि उन्होंने ऐसा कुछ विशेष नहीं किया था जिससे लोगों की वाहवाही उन्हें मिलती। उनकी आत्मकथा न लिखने की इच्छा के-कारण ‘आत्मकथ्य’ की रचना हुई थी जिसे ‘हंस’ पत्रिका के आत्मकथा विशेषांक में छापा गया था।
    Question 12
    CBSEENHN10001586

    कवि अपने जीवन के किस प्रसंग को जग जाहिर नहीं करना चाहता था और क्यों?

    Solution
    कवि अपने जीवन में किसी के प्रति किए गए प्रेमभाव को जग जाहिर नहीं करना चाहता था। वह नहीं चाहता था कि जिस प्रेम के सुख को उसने पाया ही नहीं और जिसका केवल सपना-भर देखा उसे दूसरों के सामने प्रकट करे। वह प्रेम तो उसकी स्मृतियों का सहारा था जो उसे जीने की प्रेरणा देता था।
    Question 13
    CBSEENHN10001587

    कवि ने अपनी कथा को भोली क्यों कहा है?

    Solution
    कवि का जीवन सीधा-सादा और विनम्रता से भरा हुआ था। उसे नहीं लगता था कि उसकी कथा में किसी को कुछ विशेष देने की क्षमता थी। उससे किसी प्रकार की वाहवाही भी प्राप्त नहीं की जा सकती थी। इसलिए कवि ने अपनी कथा को भोली कहा है।
    Question 14
    CBSEENHN10001588

    आप अपना आत्मकथ्य पद्‌य या गद्‌य में लिखिए।

    Solution
    मेरा आत्मकथ्य अभी किसी के लिए भी महत्वपूर्ण नहीं हो सकता। न तो अभी मैंने यथार्थ जीवन की राह में कदम बढ़ाए हैं और न ही मैं अपनी शिक्षा पूरी कर पाया हूँ। केवल पंद्रह वर्ष की आयु है अभी मेरी। मेरा जन्म जिस परिवार में हुआ है वह मध्यवर्गीय है। पिता जी की सरकारी नौकरी से प्राप्त होने वाली आय कठिनाई से जीवन गुजारने योग्य सुविधाएँ परिवार को प्रदान करती है। मेरे माता-पिता अपना पेट काटकर हम तीन भाई-बहनों का पेट भरते हैं, हमें पढ़ाते-लिखाते हैं। स्वयं पुराना और घिसा-पिटा पहन कर भी हमें नया लेकर देने का प्रयत्न करते हैं। उन्होंने हमें अच्छे संस्कार दिए हैं और कभी किसी के सामने हाथ न फैलाने की शिक्षा दी है। अपनी पढ़ाई-लिखाई के साथ मुझे व्यायाम करने और कुश्ती लड़ने का शौक है। मैं अपने स्कूल की ओर से कई बार कुश्ती प्रतियोगिताओं में हिस्सा ले चुका हूँ और मैंने स्कूल के लिए कई पुरस्कार जीते हैं। पढ़ाई में मैं अच्छा हूँ। अपनी कक्षा में पहला या दूसरा स्थान प्राप्त कर लेता हूँ जिस कारण अपने माता-पिता के साथ-साथ अपने अध्यापकों की आँखों का भी तारा हूँ। मेरे सहपाठियों और मेरे मुहल्ले के लड़की को मेरे साथ खेलना और बातें करना अच्छा लगता है। ईश्वर के प्रति मेरी अटूट आस्था है।
    Question 15
    CBSEENHN10001589

     निम्नलिखित पद्यांश को पढ़कर उसकी सप्रसंग व्याख्या कीजिये:
    मधुप गुन-गुना कर कह जाता कौन कहानी यह अपनी,
    मुरझाकर गिर रहीं पत्तियाँ देखो कितनी आज धनी।
    इस गंभीर अनंत-नीलिमा में असंख्य जीवन-इतिहास
    यह लो, करते ही रहते हैं अपना व्यंग्य-मलिन उपहास
    तब भी कहते हो-कह डालूँ दुर्बलता अपनी बीती।
    तुम सुनकर सुख पाओगे, देखोगे-यह गागर रीती।

     

    Solution

    प्रसंग- प्रस्तुत अवतरण हमारी पाठ्‌य-पुस्तक क्षितिज (भाग- 2) में संकलित कविता ‘आत्मकथ्य’ से लिया गया है जिसके रचयिता छायावादी काव्य के प्रवर्त्तक श्री जयशंकर प्रसाद हैं। कवि ने मुंशी प्रेमचंद के आग्रह पर भी उनकी पत्रिका ‘हंस’ के ‘आत्मकथा अंक’ के लिए अपनी आत्मकथा नहीं लिखी थी। उन्होंने माना था कि उनके जीवन में ऐसा कुछ भी विशेष नहीं था जो औरों को कुछ सरस दे पाता।
    व्याख्या- कवि कहता है कि जीवन रूपी उपवन में उसका मन रूपी भंवरा गुंजार करता हुआ पता नहीं अपनी कौन-सी कहानी कह जाता है। उस कहानी से किसी को सुख मिलता है या दुःख, वह नहीं जानता। पर इतना अवश्य है कि आज उपवन में कितनी अधिक पत्तियाँ मुरझा कर झड़ रही हैं। कवि का स्वर निराशा के भावों से भरा हुआ है। उसे केवल दुःख और पीड़ा रूपी मुरझाई पत्तियाँ ही दिखाई देती हैं। उसकी न जाने कितनी इच्छाएँ बिना पूरी हुए ही मन में घुटकर रह गई। उचित परिस्थितियों और वातावरण को न पाकर वे समय से पहले ही पीले-सूखे पत्तों की तरह मुरझाकर मिट गईं। जीवन के अंतहीन गंभीर विस्तार में जीवन के असंख्य इतिहास रचे जाते हैं। वे बीती हुई निराशा भरी बातें कवि की स्थिति और पीड़ा पर व्यंग्य करती हैं, उसका उपहास उड़ाती हैं और कवि चाह कर भी कुछ नहीं कर पाता। वह अपने जीवन की विवशताओं के सामने विवश है, हताश है। वह दुःख भरे स्वर में उसकी पीड़ा भरी जिंदगी के बारे में जानने की इच्छा रखने वालों से पूछता है कि उसकी पीड़ा और विवशता को देखकर भी क्या वे कहते हैं कि कवि अपनी पीड़ा, दुर्बलता और अपने पर बीती दुःखभरी कहानी को फिर से सुनाए, फिर से दोहराए। क्या उसकी पीड़ा देखकर ही नहीं समझी जा सकती? जब तुम उसकी जीवन रूपी खाली गागर को देखोगे तो क्या तुम्हें उसे देख सुनकर सुख प्राप्त होगा? उसके हताश और निराशा से भरे अभावपूर्ण मन में कोई ऐसा भाव नहीं है जिसे दूसरों को सुनाया जा सके।

     

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    Question 19
    CBSEENHN10001593

    निम्नलिखित पद्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिये:
    मधुप गुन-गुना कर कह जाता कौन कहानी यह अपनी,
    मुरझाकर गिर रहीं पत्तियाँ देखो कितनी आज धनी।
    इस गंभीर अनंत-नीलिमा में असंख्य जीवन-इतिहास
    यह लो, करते ही रहते हैं अपना व्यंग्य-मलिन उपहास
    तब भी कहते हो-कह डालूँ दुर्बलता अपनी बीती।
    तुम सुनकर सुख पाओगे, देखोगे-यह गागर रीती।

    ‘अनंत-नीलिमा’ और ‘असंख्य जीवन इतिहास’ क्या है?






     

    Solution
    ‘अनंत-नीलिमा’ जीवन का अंतहीन विस्तार है। मनुष्य अपने मन में न जाने कौन-कौन से विचार हर समय उत्पन्न होते हुए अनुभव करता है। वे यदि सुखद होते हैं तो दुःखद भी होते हैं। ‘अनंत-नीलिमा’ लाक्षणिक शब्द है, जो अपने भीतर व्यापकता के भावों को छिपाए हुए है। ‘असंख्य जीवन इतिहास’ मानव-मन में उत्पन्न विभिन्न विचार हैं जो तरह-तरह की घटनाओं के घटित होने के आधार बने।
    Question 23
    CBSEENHN10001597

    निम्नलिखित पद्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिये:
    मधुप गुन-गुना कर कह जाता कौन कहानी यह अपनी,
    मुरझाकर गिर रहीं पत्तियाँ देखो कितनी आज धनी।
    इस गंभीर अनंत-नीलिमा में असंख्य जीवन-इतिहास
    यह लो, करते ही रहते हैं अपना व्यंग्य-मलिन उपहास
    तब भी कहते हो-कह डालूँ दुर्बलता अपनी बीती।
    तुम सुनकर सुख पाओगे, देखोगे-यह गागर रीती।

    ‘तुम सुनकर सुख पाओगे’ में छिपे अर्थ को स्पष्ट कीजिए।






     

    Solution
    कवि व्यंग्यार्थ का प्रयोग करते हुए जानना चाहता है कि क्या उसके जीवन को जानने की इच्छा रखने वाले लोग उसकी पीड़ा और व्यथा को सुनकर प्रसन्नता प्राप्त कर सकेंगे। निश्चित रूप से उन्हें उसकी पीड़ा भरी कहानी को सुनकर किसी आनंद की प्राप्ति तो कदापि नहीं होगी।
    Question 35
    CBSEENHN10001609

    निम्नलिखित पद्यांश को पढ़कर उसकी सप्रसंग व्याख्या कीजिये:
    किंतु कहीं ऐसा न हो कि तुम ही खाली करने वाले-
    अपने को समझो, मेरा रस ले अपनी भरने वाले।
    यह विडंबना! अरी सरलते तेरी हँसी उड़ाऊँ मैं।
    भूलें अपनी या प्रवंचना औरों की दिखलाऊँ मैं।
    उज्वल गाथा कैसे गाऊँ, मधुर चाँदनी रातों की।
    अरे खिल-खिला कर हँसते होने वाली उन बातों की।

     

    Solution

    प्रसंग- प्रस्तुत अवतरण हमारी पाठ्‌य-पुस्तक क्षितिज (भाग- 2) में संकलित कविता ‘आत्मकथ्य’ से अवतरित किया गया है जिसके रचयिता छायावादी काव्यधारा के प्रवर्त्तक श्री जयशंकर प्रसाद हैं। उन्हें ‘हंस’ नामक पत्रिका में छपवाने के लिए आत्मकथा लिखने के लिए कहा गया था लेकिन कवि को ऐसा प्रतीत होता था कि वे अति साधारण थे और उनके जीवन में कुछ भी ऐसा नहीं था जिसे पढ़-सुन कर लोग वाह-वाह कर उठें। कवि ने यथार्थ के साथ- साथ अपने विनम्र भावों को प्रकट किया है।

    व्याख्या- जो लोग कवि की दुःखपूर्ण कथा को सुनना चाहते थे कवि उनसे कहता है कि उसकी कथा को सुनकर कहीं वे ही यह न समझने लगें कि वही उसकी जीवन रूपी गागर को खाली करने वाले थे। वे सब अपने आप को समझें; अपने को पहचानें। वे उसके भावों रूपी रस को प्राप्त कर अपने आप को भरने वाले थे। अरे सरल मन वालो, यह उपहास और निराशा का ही विषय था कि मैं उन पर व्यंग्य कर रहा था, उनकी हंसी उड़ा रहा था। वह अपने द्‌वारा की गई गलतियों या दूसरों के द्वारा दिए गए धोखों को क्यों प्रकट करें? उसे आत्मकथा के नाम से अपनी या औरों की बातें जग जाहिर नहीं करनीं। उसके जीवन में पूर्ण रूप से पीड़ा और निराशा की कालिमा ही नहीं है। उसमें मधुर चाँदनी रातों की मीठी स्मृतियाँ भी हैं पर वह उन उज्ज्वल गाथाओं को कैसे गाए और वह उन्हें क्यों प्रकट करे? वह अपने जीवन के कोमल पक्षों में सभी को भागीदार नहीं बनाना चाहता क्योंकि वे उसकी पूर्ण रूप से निजी यादें हैं। वह अपनी मधुर स्मृतियों में सबकी साझेदारी नहीं चाहता। जब वह कभी अपनों के साथ खिलखिला कर हँसा था, मीठी बातों में डूबा था और उसका हृदय प्रसन्नता से भर उठा था-उन क्षणों को वह औरों को क्यों बताए?

     
    Question 36
    CBSEENHN10001610

    निम्नलिखित पद्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिये:
    किंतु कहीं ऐसा न हो कि तुम ही खाली करने वाले-
    अपने को समझो, मेरा रस ले अपनी भरने वाले।
    यह विडंबना! अरी सरलते तेरी हँसी उड़ाऊँ मैं।
    भूलें अपनी या प्रवंचना औरों की दिखलाऊँ मैं।
    उज्वल गाथा कैसे गाऊँ, मधुर चाँदनी रातों की।
    अरे खिल-खिला कर हँसते होने वाली उन बातों की।

    अवतरण में निहित भाव स्पष्ट कीजिए।

     

    Solution
    कवि अपने सुख-दुःख की गाथा को जग जाहिर नहीं करना चाहता था। वह मानता था कि उसके पास ऐसा कुछ नहीं था जो औरों को प्रसन्नता दे सकता। वह न तो अपनी सुख भरी बातें प्रकट करना चाहता था और न ही दूसरों की भूलें व्यक्त करना चाहता था।

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    Question 56
    CBSEENHN10001630

    निम्नलिखित पद्यांश को पढ़कर सप्रसंग व्याख्या कीजिये:
    मिला कहाँ वह सुख जिसका मैं स्वप्न देखकर जाग गया।
    अलिंगन में आते-आते मुसक्या कर जो भाग गया।
    जिसके अरुण-कपोलों की मतवाली सुंदर छाया में।
    अनुरागिनी उषा लेती थी निज सुहाग मधुमाया में।
    उसकी स्मृति पाथेय बनी है थके पथिक की पंथा की
    सीवन को उधेड़ कर देखोगे क्यों मेरी कंथा की?

    Solution

    प्रसंग- प्रस्तुत पंक्तियाँ छायावादी कवि श्री जयशंकर प्रसाद के द्वारा रचित कविता ‘आत्मकथ्य’ से ली गई हैं। कवि ने अपने जीवन की कहानी किसी को न सुनाने के बारे में सोचा था क्योंकि उसे ऐसा लगता था कि उसके जीवन में कुछ भी ऐसा सुखद नहीं था जो किसी को सुख दे सकता था। उसके पास केवल सुखद यादें अवश्य थीं।

    व्याख्या- कवि कहता है कि उसे अपने जीवन में किसी सुख की प्राप्ति कभी नहीं हुई। सपने में जिस सुख को अनुभव कर वह अपनी नींद से जाग गया था, वह भी उसे प्राप्त नहीं हुआ। वह सुख देने वाला उसके आलिंगन में आते-आते धीरे से मुस्करा कर उससे दूर हो गया, उसे प्राप्त नहीं हुआ। जो सपने में सुख और प्रेम का आधार बना था वह अपार सुंदर था, मोहक था। उसकी लाल-गुलाबी गालों की मस्ती भरी छाया में प्रेम भरी भोर अपने सुहाग की मिठास भरी मनोहरता को लेकर प्रकट हो गई थी। भाव है कि उसकी गालों में प्रातःकालीन लाली और शोभा विद्‌यमान थी। जीवन की लंबी राह पर चलते हुए, थक कर चूर हुए कवि रूपी यात्री की स्मृतियों में केवल वही एक सहारा थी। उसकी यादें ही उसकी थकान को कुछ कम करती थीं। कवि नहीं चाहता कि उसकी मधुर यादों के आधार को कोई जाने। वह पूछता है कि क्या उसके अंतर्मन रूपी गुदड़ी की सिलाई को उधेड़कर उस छिपे रहस्य को आप देखना चाहोगे? भाव है कि कवि उस रहस्य को अपने भीतर संभालकर रखना चाहता है। वह उसे व्यक्त नहीं करना चाहता।

    Question 57
    CBSEENHN10001631

    निम्नलिखित पद्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिये
    मिला कहाँ वह सुख जिसका मैं स्वप्न देखकर जाग गया।
    अलिंगन में आते-आते मुसक्या कर जो भाग गया।
    जिसके अरुण-कपोलों की मतवाली सुंदर छाया में।
    अनुरागिनी उषा लेती थी निज सुहाग मधुमाया में।
    उसकी स्मृति पाथेय बनी है थके पथिक की पंथा की
    सीवन को उधेड़ कर देखोगे क्यों मेरी कंथा की?

    अवतरण में निहित भावार्थ स्पष्ट कीजिए।

    Solution
    कवि को जीवन में किसी से प्रेम हुआ था पर उसे अपने प्रेम की प्राप्ति नहीं हुई थी। कवि को ऐसा लगता था कि उसके प्रिय की अपार सुंदरता ही उसके जीवन की प्रेरणा थी और उसके स्मृति रूपी सहारे से वह अपने जीवन की थकान को कुछ कम कर सकने में सफल हुआ था। कवि के जीवन से परिचित होने की इच्छा रखने वालों को उसके प्रेम के विषय में जानने की चेष्टा नहीं करनी चाहिए क्योंकि वह विषय उसका पूर्णरूप से वैयक्तिक था।
    Question 66
    CBSEENHN10001640

    कवि ने अवतरण में किस का आभास दिया है?

    Solution
    कवि ने अपने जीवन में किसी के प्रेम को प्राप्त करने का आभास दिया है जिसका परिचय वह किसी को नहीं देना चाहता।
    Question 77
    CBSEENHN10001651

    निम्नलिखित पद्यांश को पढ़कर उसकी सप्रसंग व्याख्या कीजिये:
    छोटे से जीवन की कैसे बड़ी कथाएँ आज कहूँ?
    क्या यह अच्छा नहीं कि औरों की सुनता मैं मौन रहूँ?
    सुनकर क्या तुम भला करोगे मेरी भोली आत्म-कथा?
    अभी समय भी नहीं, थकी सोई है मेरी मौन व्यथा।

    Solution

    प्रसंग- प्रस्तुत पंक्तियाँ छायावादी काव्यधारा के प्रवर्त्तक श्री जयशंकर प्रसाद के द्वारा रचित कविता ‘आत्मकथ्य’ से ली गई हैं। कवि से कहा गया था कि वह अपनी जीवन कहानी लिखे ताकि सभी उससे परिचित हो सकें पर कवि को लगता था कि उसकी जीवनी में कुछ भी ऐसा विशेष नहीं है जिससे अन्यों को सुख प्राप्त हो सके।

    व्याख्या- कवि कहता है कि उसका जीवन छोटा-सा है, सुखों से रहित है इसलिए वह उससे संबंधित बड़ी-बड़ी कहानियाँ आज किस प्रकार सुनाए। वह अपनी कहानी सुनाने की अपेक्षा चुप रहकर औरों की कहानियों को सुनना अच्छा मानता है। वह उनकी कहानियों से कुछ पाना चाहता है। वह पूछता है कि लोग उसकी अपनी कहानी को सुनकर क्या करेंगे? उसकी जीवन कहानी तो सीधी-सादी और भोली-भाली थी जिसमें कोई भी विशेष आकर्षण नहीं था। उसे लगता है कि अभी उसे अपनी कहानी सुनाने का अवसर भी अनुकूल नहीं था। उसकी मौन पीड़ा तो अभी थकी-हारी सो रही थी, उसके मन में छिपी हुई थी।

    Question 78
    CBSEENHN10001652

    निम्नलिखित पद्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिये
    छोटे से जीवन की कैसे बड़ी कथाएँ आज कहूँ?
    क्या यह अच्छा नहीं कि औरों की सुनता मैं मौन रहूँ?
    सुनकर क्या तुम भला करोगे मेरी भोली आत्म-कथा?
    अभी समय भी नहीं, थकी सोई है मेरी मौन व्यथा।

    अवतरण में निहित भाव स्पष्ट कीजिए 

    Solution
    कवि अपनी कथा को दूसरों के सामने प्रकट नहीं करना चाहता था। उसे लगता था कि उसकी पीड़ा भरी कहानी किसी को सुख नहीं दे पाएगी इसलिए उसके लिए यही अच्छा था कि वह दूसरों की कहानी को केवल सुने और अपनी कथा को अपने मन में छिपा कर रखे।

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    Question 85
    CBSEENHN10001659

    निम्नलिखित पद्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिये
    छोटे से जीवन की कैसे बड़ी कथाएँ आज कहूँ?
    क्या यह अच्छा नहीं कि औरों की सुनता मैं मौन रहूँ?
    सुनकर क्या तुम भला करोगे मेरी भोली आत्म-कथा?
    अभी समय भी नहीं, थकी सोई है मेरी मौन व्यथा।

    कवि ने प्रश्न चिह्‌नों के प्रयोग से शिल्प में किस विशिष्टता को प्रकट किया है?

    Solution
    कवि ने प्रश्नचिह्नों के प्रयोग से अपनी विनम्रता को प्रकट करने में सफलता प्राप्त की है। साथ ही कवि ने इनसे अपने पाठक या श्रोता की जिज्ञासा में वृद्धधि की है। कवि ने अपनी नकारात्मकता को प्रकट न कर प्रश्न चिह्नों से कथन को नाटकीयता का गुण प्रदान करा दिया है।
    Question 86
    CBSEENHN10001660

    निम्नलिखित पद्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिये:
    छोटे से जीवन की कैसे बड़ी कथाएँ आज कहूँ?
    क्या यह अच्छा नहीं कि औरों की सुनता मैं मौन रहूँ?
    सुनकर क्या तुम भला करोगे मेरी भोली आत्म-कथा?
    अभी समय भी नहीं, थकी सोई है मेरी मौन व्यथा।

    ‘मौन व्यथा’ में निहित गूढ़ार्थ को स्पष्ट कीजिए।

    Solution
    ‘मौन-व्यथा’ में गूढ़ार्थ विद्यमान है। कोई भी व्यक्ति जब अपने दुःख-दर्द को सबके सामने बार-बार कहता है तो कोई भी उसे बांटना तो नहीं चाहता बल्कि बाद में उस पर कटाक्ष करता है, व्यंग्य करता है। दुःख-सुख सभी के जीवन के आवश्यक हिस्से हैं। ये तो जीवन का यथार्थ है। कवि इसीलिए उन्हें दूसरों के सामने व्यक्त नहीं करना चाहता। वह उसे अपने भीतर ही छिपा कर रखना चाहता है। कई बार पूछे जाने पर व्यथित व्यक्ति अपने दुःख को प्रकट कर देता है पर कवि ऐसा न कर अपनी पीड़ा को ‘मौन-व्यथा’ कह कर चुप हो जाता है।
    Question 98
    CBSEENHN100018888

    निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर प्रत्येक लगभग 20 शब्दों में लिखिए : [2 × 4 = 8]
    (क) जयशंकर प्रसाद के जीवन के कौन-से अनुभव उन्हें आत्मकथा लिखने से रोकते हैं ?
    (ख) बादलों की गर्जना का आह्वान कवि क्यों करना चाहता है? ‘उत्साह कविता के आधार पर स्पष्ट कीजिए।
    (ग) ‘कन्यादान’ कविता में व्यक्त किन्हीं दो सामाजिक कुरीतियों को उल्लेख कीजिए।
    (घ) संगतकार की हिचकती आवाज उसकी विफलता क्यों नहीं

    Solution

    (ख) बादलों की गर्जना” से तात्पर्य क्रांतिकारी स्वर भरना है। कविता के माध्यम से कवि क्रांति की आवश्यकता को चिन्हित करता है। बादल क्रांति के प्रतीक हैं। यह क्रांति रूपी बादल पीड़ित प्यासे जन की आकांक्षाओं को पूरी करेगा और दूसरी तरफ वही बादल नई कल्पना और नए अंकुर उगाएगा।

    (ग) कन्यादान कविता में उल्लेखित कुरीतियाँ

    • बाल विवाह-लड़कियों की शादी उनके सयानी होने से पहले (18 वर्ष की आयु से पहले) कर दी जाती थी।
    • समाज में लड़कियाँ केवल घर की चारदीवारी तक सीमित रहती थीं। उन्हें अपने वेश-भूषा, रूप-सौन्दर्य पर ध्यान न देकर केवल घर के चूल्हे-चौके पर ध्यान देना होता था।

    (घ) यद्यपि संगतकार की आवाज कमजोर और काँपती हुई थी, परन्तु वह आवाज की कमी उसकी विफलता नहीं थी। वह प्रयास करता था कि गायक के रूप में उसकी आवाज मुख्य गायक से अधिक महत्त्वपूर्ण न हो जाए। इसलिए यह उसकी विफलता नहीं, मनुष्यता का सूचक है। वह दूसरों को आगे बढ़ाता और स्वयं को पीछे रखता है।

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