Aroh Bhag Ii Chapter 5 गजानन माधव मुक्तिबोध
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    NCERT Solution For Class 12 Hindi Aroh Bhag Ii

    गजानन माधव मुक्तिबोध Here is the CBSE Hindi Chapter 5 for Class 12 students. Summary and detailed explanation of the lesson, including the definitions of difficult words. All of the exercises and questions and answers from the lesson's back end have been completed. NCERT Solutions for Class 12 Hindi गजानन माधव मुक्तिबोध Chapter 5 NCERT Solutions for Class 12 Hindi गजानन माधव मुक्तिबोध Chapter 5 The following is a summary in Hindi and English for the academic year 2021-2022. You can save these solutions to your computer or use the Class 12 Hindi.

    Question 1
    CBSEENHN12026160

    गजानन माधव मुक्तिबोध के व्यक्तित्व तथा कृतित्व का परिचय दीजिए।

    Solution

    जीवन-परिचय नई कविता को व्यवस्थित मूल्य प्रदान करने वाले कवि मुक्तिबोध का जन्म श्योपुर (मध्य प्रदेश) में 1917 में हुआ। मुक्तिबोध के पिता माधव राव ग्वालियर रियासत के पुलिस विभाग’ में थे। पिता के व्यक्तित्व के प्रभाव-स्वरूप मुक्तिबोध में ईमानदारी, न्यायप्रियता और दृढ़ इच्छा-शक्ति का प्रतिफलन हुआ। सन् 1935 में जाति, कुल और सामाजिक आचारों से लोहा लेते हुए प्रेम-विवाह किया। इन्होंने मुख्यत: अध्यापन कार्य किया। एक अरसे तक नागपुर से ‘नया खून’ साप्ताहिक का संपादन करने के बाद इन्होंने अध्यापन कार्य अपनाया और अंत तक ‘दिग्विजय महाविद्यालय’ राजनांदगाँव (मध्य प्रदेश) में हिंदी विभाग के अध्यक्ष रहे।

    मुक्तिबोध का पूरा जीवन संघर्षो और विरोधों से भरा रहा। उन्होंने मार्क्सवाद और अस्तित्ववाद आदि अनेक आधुनिक विचारधाराओं का अध्ययन किया था जिसका प्रभाव उनकी कविताओं पर दिखाई देता है। पहली बार उनकी कविताएँ सन् 1943 में अज्ञेय द्वारा संपादित ‘तार सप्तक’ में छपीं। कविता के अतिरिक्त उन्होंने कहानी, उपन्यास, आलोचना आदि विधाओं में भी लिखा। उन्होंने कला, संस्कृति समाज राजनीति आदि से संबंधित अनेक लेख भी लिखे। इनकी मृत्यु 1964 ई. में हुई।

    रचनाएँ: इनकी कविताओं के संग्रह ‘चाँद का मुँह टेढ़ा है’ (1964) तथा ‘भूरी-भूरी खाक धूल’ छपे हैं। इसके अलावा उनके दो कहानी संग्रह हैं। ‘विपात्र’ नाम एक उपन्यास और ‘एक साहित्यिक की डायरी’ उनकी अन्य महत्वपूर्ण कृतियाँ हैं। मुक्तिबोध की आलोचनात्मक कृतियाँ भी हैं- ‘कामायनी एक पुनर्विचार,’ ‘नई कविता का आत्मसंघर्ष’ तथा ‘अन्य निबंध’, ‘नए साहित्य का सौंदर्य शास्त्र’।

    इनकी सारी रचनाएँ ‘मुक्तिबोध रचनावली’ के नाम से छ: खंडों मे प्रकाशित हुई हैं।

    काव्यगत विशेषताएँ: मुक्तिबोध का कवि-व्यक्तित्व जटिल है। ज्ञान और संवेदना के संशिलष्ट स्तर से युगीन प्रभावों को ग्रहण करके प्रौढ़ मानसिक प्रतिक्रियाओं के कारण उनकी कविताएँ विशेष सशक्त हैं। मुक्तिबोध ने अधिकतर लंबी नाटकीय कविताएँ लिखी हैं जिनमें सम-सामयिक समाज उनमें पलने वाले अंतर्द्वद्वों और इन अंतर्द्वद्वों से उत्पन्न भय, संत्रास, आक्रोश, विद्रोह और दुर्दम्य संघर्ष भावना के विविध रूप चित्रित हैं।

    मुक्तिबोध की कविताओं में संपूर्ण परिवेश के बीच अपने आपको खोजने और पाने को ही नहीं, संपूर्ण परिवेश के साथ अपने आपको बदलने की प्रक्रिया का चित्रण भी मिलता है। इस स्तर पर मुक्तिबोध की कविता आधुनिक जागरूक व्यक्ति के आत्मसंघर्ष की कविता है।

    छायावाद और स्वच्छंदतावादी कविता के बाद जब नई कविता आई तो मुक्तिबोध उसके अगुआ कवियों में से एक थे। मराठी संरचना से प्रभावित लंबे वाक्यों ने उनकी कविता को आम पाठक के लिए कठिन बताया लेकिन उनमें भावनात्मक और विचारात्मक ऊर्जा अटूट थी जैसे कोई नैसर्गिक अंत स्रोत हो जो कभी चुकता ही नहीं बल्कि लगातार अधिकाधिक वेग और तीव्रता के साथ उमड़ता चला आता है। यह ऊर्जा अनेकानेक कल्पना-चित्रों और फैंटेसियों का आकार ग्रहण कर लेती है। मुक्तिबोध की रचनात्मक ऊर्जा का एक बहुत बड़ा अंश आलोचनात्मक लेखन और साहित्य संबंधी चिंतन में सक्रिय रहा। वे एक समर्थ पत्रकार भी थे। इसके अलावा राजनैतिक विषयों अंतर्राष्ट्रीय परिदृश्य तथा देश की आर्थिक समस्याओं पर लगातार लिखा है। कवि शमशेर बहादुर सिंह के शब्दों में उनकी कविता अद्भुत संकेतों भरी, जिज्ञासाओं से अस्थिर, कभी दूर से शोर मचाती कभी कानों में चुपचाप राज की बातें कहती चलती है। हमारी बातें हमको सूनाती है। हम अपने को एकदम चकित होकर देखते हैं और पहले से अधिक पहचानने लगते हैं।

    काव्य-शिल्प: मुक्तिबोध नई कविता के प्रमुख कवि हैं। उनकी संवेदना और ज्ञान की पंरपरा अत्यत व्यापक है। गहन विचारशील और विशिष्ट काव्य-शिल्प के कारण उनकी कविता की एक अलग पहचान बनती है। स्वतंत्र भारत के मध्यवर्ग की जिंदगी की विडंबनाओं व विदूपताओं का चित्रण उनकी कविता में है और साथ ही एक बेहतर मानवीय समाज व्यवस्था के निर्माण की आकांक्षाएँ मुक्तिबोध की कविता की एक बड़ी विशेषता हैं। उनकी कविताओं में बिंबों और प्रतीकों का प्रयोग है और फेंटेसी के शिल्प का उपयोग भी। उन्होंने फेंटेसी के माध्यम से ही प्राय: लंबी कविताओं की रचना की है इसलिए वे फेंटेसी के कवि के रूप में प्रसिद्ध हैं।

    Question 2
    CBSEENHN12026161

    प्रस्तुत पक्तियों की सप्रंसग व्याख्या करें

    जिंदगी में जो कुछ है, जो भी है

    सहर्ष स्वीकारा है,

    इसलिए कि जो कुछ भी मेरा है

    वह तुम्हें प्यारा है।

    Solution

    प्रसग: प्रस्तुत पक्तियाँ मुक्तिबोध की एक सशक्त रचना ‘सहर्ष स्वीकारा है’ में से उउद्धृतहै। इसमें कवि ने कहा है कि जीवन के समस्त खड़े-मीठे अनुभवों, कोमल-तीखी अनुभूतियों और सुख-दुःख को उसने इसलिए सहर्ष स्वीकारा है कि वह अपने किसी भी क्षण को अपने प्रिय से न केवल अत्यत जुड़ा हुआ अनुभव करता है; अपितु हर स्थिति-परिस्थिति को उसी की देन मानता है।

    व्याख्या: कवि कहता है-हे प्रिय! मेरे इस जीवन में जो कुछ भी सुख-दुःख, मीठे-कड़वे अनुभव, सफलता-असफलताएँ हैं उन्हें मैंने प्रसन्नतापूर्वक स्वीकार कर लिया है। मैंने इन्हें सहर्ष इसलिए स्वीकार किया है क्योंकि तुमने इन सबको प्रेमपूर्वक अपना माना है अर्थात् मेरी सभी प्रकार की उपलब्धियाँ और कमियाँ तुम्हें सदा से प्रिय रही हैं। मेरा यह जीवन तुम्हारे प्रेम की देन है। मेरा जो कुछ भी है, वह तुम्हें प्रिय है। जो कुछ तुम्हें प्रिय है, वह मुझे भी स्वीकार है।

    विशेष: 1. प्रिय की संवेदना का तरल अमूर्त बिंब प्रस्तुत किया गया है।

    2. प्रिय का प्यार कवि को सब कुछ सहने की शक्ति प्रदान करता है।

    3. ‘सहर्ष स्वीकारा’ में अनुप्रास अलंकार है।

    4. काव्य भाषा सरल एवं स्पष्ट है।

    Question 3
    CBSEENHN12026162

    अर्थग्रहण संबंधी प्रश्न

    Solution

    कवि का नाम: गजानन माधव मुक्तिबोध।

    कविता का नाम. सहर्ष स्वीकारा है।

    Question 4
    CBSEENHN12026163

    कवि ने सहर्ष क्या स्वीकार किया है?

    Solution

    कवि ने जिंदगी में जो कुछ भी है, जैसा है उसे उसी रूप में स्वीकार कर लिया है।

    Question 5
    CBSEENHN12026164

    कवि ने इसे क्यों स्वीकार कर लिया है?

    Solution

    कवि ने इन सभी स्थितियों को इसलिए स्वीकार कर लिया है क्योंकि यह सभी उसकी प्रेयसी को भी पसंद है। जो उसे प्रिय है, वही कवि को स्वीकार्य है।

    Question 6
    CBSEENHN12026165

    यह कविता क्या प्रेरणा देती है?

    Solution

    यह कविता यह प्रेरणा देती है कि जीवन में सब सुख-दुख, संघर्ष-अवसाद, उठा-पटक को अंगीकार कर लेना चाहिए।

    Question 7
    CBSEENHN12026166

    प्रस्तुत पक्तियों की सप्रंसग व्याख्या करें

    गरबीली गरीबी यह, ये गंभीर अनुभव सब

    यह विचार-वैभव सब

    दृढ़ता यह, भीतर की सरिता यह अभिनय सब

    मौलिक है, मौलिक है,

    इसलिए कि पल-पल में

    जो कुछ भी जागृत है, अपलक है-

    संवेदन तुम्हारा है!!

    Solution

    प्रंसग: प्रस्तुत पक्तियां गजानन माधव ‘मुक्तिबोध’ द्वारा रचित कविता ‘सहर्ष स्वीकारा है’ से अवतरित हैं। कवि अपने जीवन की अनुभूति-सपंत्ति पर प्रकाश डालते हुए कहता है-

    व्याख्या: मेरी स्वाभिमानयुक्त गरीबी (निर्धन रहते हुए भी) (आत्म गौरव की भावना), जीवन की गहरी अनुभूतियाँ, मेरे सब वैचारिक चिंतन मेरे व्यक्तित्व की दृढ़ता, मेरे अंत:करण में बहती भावनाओं की नदी और व्यक्त करने के शारीरिक हाव-भाव (मेरी समस्त चेष्टाएँ)-ये सब मौलिक हैं, अनुभव सत्य है, भोगे हुए यथार्थ हैं। इनमें किसी की छाया अथवा अनुकृति नहीं है। ये अनुभव मुझे जीवन को जीते हुए प्राप्त हुए हैं। मेरे जीवन में जो कुछ भी सजग और स्थिर है वह सब तुम्हारी प्रेरणामयी और संवेदनामयी अनुभूतियों का फल है। अर्थात् हे प्रिय! तुम्हारी संवेदना ही मेरी समस्त उपलब्धियों का मुख्य स्रोत है। मेरे जीवन में जो कुछ दिखाई देता है, उस सब में तुम्हारा ही संवेदन विद्यमान है, तुम्हारी अनुभूति विद्यमान है तुम्हारी अनुभूति के कारण ही वे मुझे प्रिय लगती हैं।

    विशेष: 1. अभावग्रस्त, किंतु स्वाभिमानपूर्ण जिंदगी का शब्द चित्र प्रस्तुत किया गया है।

    2. प्रिय की संवेदना का तरल अमूर्त बिंब प्रस्तुत किया गया है।

    3. ‘गरवीली गरीबी’ ‘विचार वैभव’ में अनुप्रास अलंकार है।

    4. ‘मौलिक है, मौलिक है’ तथा ‘पल-पल’ में पुनरुक्ति प्रकाश अलंकार है।

    5. ‘गरीबी’ के लिए ‘गरवीली’ विशेषण का प्रयोग अत्यंत सटीक बन पड़ा है।

    6. ‘भीतर की सरिता’ में लाक्षणिकता है।

    7. ‘गरवीली-गरीबी’ तथा ‘विचार-वैभव’ में सामासिकता है।

    8. ‘मौलिक’ शब्द की आवृत्ति द्वारा दृढ़ता का भाव उत्पन्न किया गया है।

    Question 8
    CBSEENHN12026167

    कवि किस-किसको मौलिक मानता है और क्यों?

    Solution

    कवि अपनी स्वाभिमान युक्त गरीबी, जीवन गंभीर अनुभवों, वैचारिक चिंतन, व्यक्तित्व की दृढ़ता और अंत:करण की भावनाओं को मौलिक मानता है। ये सभी उसके भीगे हुए यथार्थ के प्रतिफल हैं। इन पर किसी की छाया नहीं हैं अत: ये मौलिक हैं।

    Question 9
    CBSEENHN12026168

    इन पर किसकी संवेदना का प्रभाव है?

    Solution

    कवि की समस्त उपलब्धियों पर उसकी प्रिया की संवेदना का प्रभाव है। उसकी अनुभूति के कारण ये उसे प्रिय लगती है।

    Question 10
    CBSEENHN12026169

    इस कविता पर किस बाद का प्रभाव झलकता है?

    Solution

    इस कविता पर प्रयोगवाद का प्रभाव झलकता है।

    Question 11
    CBSEENHN12026170

    प्रस्तुत पक्तियों की सप्रंसग व्याख्या करें

    जाने क्या रिश्ता है, जाने क्या नाता है

    जितना भी उँडेलता हूँ, भर-भर फिर आता है

    दिल में क्या झरना है?

    मीठे पानी का सोता है

    भीतर वह, ऊपर तुम

    मुस्काता चाँद ज्यों धरती पर रात-भर

    मुझ पर त्यों तुम्हारा ही खिलता वह चेहरा है।

    Solution

    प्रसंग: प्रस्तुत पक्तियां मुक्तिबोध की ‘सहर्ष स्वीकार) है’ शीर्षक कविता में से अवतरित हैं। कवि अपने जीवन के प्रत्येक क्षण को अपने प्रिय से जुड़ा पाता है। वह स्वयं को हर समय प्रिय के निकट पाता है। कवि कहता है-

    व्याख्या: हे प्रिय! न जाने मेरा तुम्हारे हदय के साथ कैसा गहरा रिश्ता (संबंध) है कि अपने हृदय के प्रेम को जितनी मात्रा मे उडेलता हूँ, मेरा मन उतना ही प्रेममय होता चला जाता है अर्थात् मैं अपने हृदय के भावों को कविता आदि के माध्यम से जितना बाहर निकालने का प्रयास करता हूँ, उतना ही पुन: अंत:करण में भर-भर आता है। अपने हृदय की इस अद्भुत स्थिति को देखकर मैं यह सोचने पर विवश हो जाता हूँ कि कहीं मेरे हृदय में प्रेम का कोई झरना तो नहीं बह रहा है जिसका जल समाप्त होने को ही नहीं आता। मेरे हृदय में भावों की हलचल मची रहती है। इधर मन में प्रेम है और ऊपर से तुम्हारा चाँद जैसा मुस्कराता हुआ सुंदर चेहरा अपने अद्भुत सौंदर्य के प्रकाश से मुझे नहलाता रहता है। यह स्थिति उसी प्रकार की है जिस प्रकार आकाश में मुस्कराता हुआ चंद्रमा पृथ्वी को अपने प्रकाश से नहलाता रहता है।

    भाव यह है कि कवि की समस्त अनुभूतियाँ प्रिय की सुंदर मुस्कानयुक्त स्वरूप से आलोकित हैं।

    विशेष: 1. कवि ने अपने प्रेममय हृदय की अद्भुत स्थिति का वर्णन किया है।

    2. ‘दिल में क्या झरना है?’ में प्रश्न अलंकार है।

    3. ‘भर- भर’ में पुनरुक्ति प्रकाश अलंकार है।

    4. ‘जितना भी उँडेलता हूँ, भर-भर फिर आता है’ में विरोधाभास अलंकार है।

    5. प्रिय के मुख की चाँद के साथ समता करने में उपमा अलंकार है।

    6. ‘मीठे पानी का सोता है’ में रूपक अलंकार है।

    7. ‘झरना’ और ‘स्रोत’ प्रेम की अधिकता को व्यंजित करते हैं।

    8. भाषा में लाक्षणिकता का समावेश है।

    Question 12
    CBSEENHN12026171

    कवि अपने दिल की तुलना किससे करता है और क्यों?

    Solution

    कवि अपने दिल की तुलना मीठे पानी के झरने (सोता) से करता है। वह इसमें से जितना भी प्रेम उँडेलता है उतना ही यह और भर जाता है। उसके हृदय में अपार प्रेम भावना विद्यमान है।

    Question 13
    CBSEENHN12026172

    ऊपर कौन है?

    Solution

    कवि के भीतर तो प्रेम का झरना है और ऊपर वह (प्रिय) है।

    Question 14
    CBSEENHN12026173

    कवि किससे प्रभावित है?

    Solution

    कवि अपनी प्रिय की मोहक मुस्कान से प्रभावित है।

    Question 15
    CBSEENHN12026174

    प्रस्तुत पक्तियों की सप्रंसग व्याख्या करें

    सचमुच मुझे दंड दो कि

    भूलूँ मैं

    प्ले मैं

    तुम्हें भूल जाने की

    दक्षिण ध्रुवि अंधकार अमावस्या

    शरीर पर, चेहरे पर, अंतर में पालूँ मैं

    झेलूँ मैं, उसी में नहा लूँ मैं

    इसलिए कि तुमसे ही परिवेष्टित आच्छादित

    रहने का रमणीय यह उजेला अब

    सहा नहीं जाता है।

    नहीं सहा जाता है।

    Solution

    प्रसगं: प्रस्तुत पक्तियों हमारी पाठ्यपुस्तक में सकलित कविता ‘सहर्ष स्वीकारा है’ से अवतरित हैं। इसके रचयिता मुक्तिबोध हैं। इसमें कवि अपने जीवन की प्रत्येक अनुभूति एवं उपलब्धि को प्रिय की देन मानता है। कवि ने भ्रमवश प्रिय को भूलने का प्रयत्न किया, जिसके कारण वह अपराध से ग्रसित हो गया है। वह अपराध स्वीकार करता हुआ, कहता है-

    व्याख्या: हे प्रिय, तुम मुझे दंड दो कि मैं तुम्हें भूल जाऊँ। यद्यपि यह बहुत बड़ा दंड होगा, लेकिन मैं चाहता हूँ. कि तुम मुझे यह दंड दो। मेरे जीवन में अमावस्या और दक्षिणी ध्रुव के समान गहरा अंधकार छा जाए। मैं उस विस्मरण को अपने शरीर, मुख और अत -करण में पार्ट, सहन करूँ और उसी में स्नान कर लूँ अर्थात् पूरी तरह सराबोर हो जाऊँ। मैं मन और बाहर दोनों रूपों में वियोग की पीड़ा झेलना चाहता हूँ। मैं स्वयं को अंधकार में इसलिए विलीन कर देना चाहता हूँ क्योंकि मेरा व्यक्तित्व चारों ओर से तुम्हारे प्रेम से घिरा हुआ है। अब मेरा मन तुम्हारे अद्भुत सौंदर्ययुक्त निश्चल और उज्जल प्रेम के प्रकाश को सहन नहीं कर पा रहा है। भाव यह है कि कवि के मन को उसके प्रिय ने अपने प्रेम के उज्जल आलोक से घेर रखा है। कवि के अपराधग्रस्त मन से अब यह आलोक (प्रेम का प्रकाश) सहन नहीं हो पाता। रह-रहकर उसका मन आत्मग्लानि से भर उठता है।

    विशेष: 1. अपराधबोध से ग्रस्त मानसिकता का सजीव चित्रण किया गया है।

    2. अंधकार-अमावस्या निराशा के प्रतीक हैं।

    3. रूपक एवं अनुप्रास अलंकार का प्रयोग है।

    4. भाषा संस्कृतनिष्ठ तथा समासयुक्त है।

    5. ‘सहा नहीं जाता’ की पुनरुक्ति में दर्द की गहराई का आभास होता है।

    6. खड़ी बोली का प्रयोग है।

    Question 16
    CBSEENHN12026175

    कवि अपने लिए किस प्रकार का दंड चाहता है?

    Solution

    कवि अपने लिए ऐसा दंड चाहता है जिससे वह प्रिय को भूल जाए।

    Question 17
    CBSEENHN12026176

    कवि अपने जीवन में क्या चाहता है और क्यों?

    Solution

    कवि चाहता है कि उसके जीवन में अमावस्या और दक्षिणी ध्रुव के समान गहरा अंधकार छा जाए। वह विस्मरण की अवस्था में रहना चाहता है।

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    Question 18
    CBSEENHN12026177

    कवि क्या चाहता है?

    Solution

    कवि विस्मरण की स्थिति को पूरी तरह अंगीकार कर लेना चाहता है। वह उसी स्थिति में डूब कर सराबोर हो जाना चाहता है वह स्वयं को अंधकार मे विलीन कर देना चाहता है।

    Question 19
    CBSEENHN12026178

    सहा नहीं जाता है, नहीं सहा जाता है।

    - कवि से क्या नहीं सहा जाता है?

    Solution

    कवि को प्रिय का अत्यधिक लगाव अब सहन नहीं हो पा रहा है। वह प्रिय से परिवेष्टित उजाले को झेल पाने में स्वयं को असमर्थ पा रहा है। संभवत: वह अपराध बोध से ग्रस्त है।

    Question 20
    CBSEENHN12026179

    प्रस्तुत काव्यांशों की सप्रसंग व्याख्या करें

    ममता के बादल की मँडराती कोमलता-

    भीतर पिराती है

    कमजोर और अक्षम अब हो गई है आत्मा यह

    छटपटाती छाती को भवितव्यता डराती है

    बहलाती सहलाती आत्मीयता बरदाश्त नहीं होती।

    Solution

    प्रसंग: प्रस्तुत पंक्तियाँ मुक्तिबोध की कविता ‘सहर्ष स्वीकार है’ से अवतरित हैं। इसमें कवि सुख-दुःख की समस्त स्थितियों को इसलिए स्वीकार कर लेता है क्योंकि वह इन सबका सबंध अपने प्रिय के साथ जुड़ा पाता है। हर परिस्थिति को उसी की देन मानता है। कवि भवितव्यता (होनी) से व्यथित होकर कहता है-

    व्याख्या: हे प्रिय! तुम जो ममता के बादल मुझ पर बरसाती हो, उसकी कोमलता मेरे मन को अंदर-ही-अंदर पीड़ा पहुँचाती है। मेरी अंतर्रात्मा कमजोर और क्षमताहीन हो गई है। जब मैं भविष्य के बारे में सोचता हूँ तो मुझे डर लगने लगता है मेरी छाती दु:ख से छटपटाने लगती है और भीषण भविष्य की कल्पना से मन काँपने लगता है। तुम्हारा यह अपनत्व भरा बहलाना-सहलाना भी मेरे अपराधग्रस्त मन से सहन नहीं हो पाता। मेरी आत्मा मुझे धिक्कारने लगती है।

    भाव यह है कि तुम्हें भूल जाने के अपराध बोध ने मेरी आत्मा को अत्यंत कमजोर बना दिया है। भविष्य के भीषण परिणाम की आशका से मेरी छाती में छटपटाहट होने लगती है। अब मेरा मन तुम्हारे आत्मीय व्यवहार को भी सहन नहीं कर पाता है। प्रिय का आत्मीय व्यवहार कवि को आत्मग्लानि से भर देता है।

    Question 21
    CBSEENHN12026180

    कवि को क्या बात पिराती है?

    Solution

    कवि को यह बात भीतर तक पिराती है कि जब उसकी प्रिय उस पर ममता के बादल बरसाती है। उसकी कोमलता कवि को पीड़ा पहुँचाती है।

    Question 22
    CBSEENHN12026181

    कवि अपनी आत्मा के बारे में क्या कहता है?

    Solution

    कवि अपनी आत्मा के बारे में यह कहता है कि वह कमजोर और अशक्त हो गई है।

    Question 23
    CBSEENHN12026182

    कवि को क्या बात डराती है?

    Solution

    कवि जब भविष्य की कल्पना करता है तब उसका मन काँपने लगता है। प्रिय का अत्यधिक लगाव उसे अपराध भावना से ग्रस्त कर देता है।

    Question 24
    CBSEENHN12026183

    दिये गये काव्यांशों की सप्रसंग व्याख्या करें

    सचमुच मुझे दंड दो कि हो जाऊँ

    पाताली अँधेरे की गुहाओं में, विवरों में

    धुएँ के बादलों में

    बिल्कुल मैं लापता!!

    लापता कि वहाँ भी तो तुम्हारा ही सहारा है!

    Solution

    प्रसंग: प्रस्तुत पक्तियाँ मुक्तिबोध द्वारा रचित कविता ‘सहर्ष स्वीकारा है’ से अवतरित हैं। कवि अपने जीवन की प्रत्येक उपलब्धि पर प्रिय की छाप देखता है। एक बार उसने भ्रमवश भय को भुलाना चाहा था, बाद में उसे अपनी सोच पर आत्मग्लानि का अहसास हुआ।

    व्याख्या: है प्रिय! मैं दंड पाने के योग्य हूँ क्योंकि मैं तुम्हारा दोषी हूँ। तुम मुझे ऐसा दंड दो कि मैं पाताल की अँधेरी, गहरी गुफाओं भयानक सुनसान सुरगा में, विवरों (गड्ढों में दमघोंटू (प्राणघाती) बादलों में सर्वथा लापता हो जाऊँ। मैं गुमनामी में खोना चाहता हूँ। उस अकेलेपन में भी मुझे तुम्हारा ही सहारा होगा अर्थात् तुम्हारी प्रेमभरी यादें मेरे अकेलेपन के एहसास को नष्ट कर मुझे प्रसन्न रखेंगी। तुम्हारे निश्छल प्रेम की अनुभूतियाँ मुझे वहाँ भी आश्रय प्रदान करेंगी।

    विशेष: 1. कवि ने अपने व्यक्तित्व के निर्माण में प्रिय के योगदान को स्वीकार किया है।

    2. अपराधबोध से ग्रस्त मानसिकता का अत्यंत मार्मिक चित्रण किया गया है।

    3. विस्मृति के लिए ‘पाताली अँधेरे’ और ‘धुएँ के बादल’ आदि उपमान बड़े ही सजीव और भाव व्यंजक हैं।

    4. अंतिम पंक्ति में विरोधाभास है।

    5. ‘दंड दो’ में अनुप्रास अलंकार है।

    6. सरल भाषा में भावों को अभिव्यक्त करने की अद्भुत क्षमता है।

    Question 25
    CBSEENHN12026184

    कवि अपने लिए क्या दंड चाहता है?

    Solution

    कवि अपने लिए प्रिय से यह दंड चाहता है कि वह इस संसार से अदृश्य स्थान पर जाकर गायब हो जाए।

    Question 26
    CBSEENHN12026185

    कवि कहाँ जाना चाहता है और क्यों?

    Solution

    कवि गहन अंधकार वाली गुफाओं, बिलों में अथवा धुएँ के बादलों में छिप जाना चाहता है ताकि वह प्रिय की नजरों से दूर चला जाए। ऐसा वह दंडस्वरूप चाहता है।

    Question 27
    CBSEENHN12026186

    वहाँ भी कवि को किसका सहारा है?

    Solution

    वहाँ पर भी कवि की प्रिय का ही सहारा होगा। प्रिय के प्रेम के निश्चल अनुभूतियाँ उसे वहाँ भी आश्रय प्रदान करेंगी।

    Question 28
    CBSEENHN12026187

    दिये गये काव्यांशों की सप्रसंग व्याखा करें



    इसलिए कि जो कुछ भी मेरा है

    या मेरा जो होता-सा लगता है, होता-सा संभव है

    सभी वह तुम्हारे ही कारण के कार्यों का घेरा है,

    कार्यों का वैभव है

    अब तक तो जिंदगी में जो कुछ था, जो कुछ है

    सहर्ष स्वीकारा है

    इसलिए कि जो कुछ भी मेरा है,

    वह तुम्हें प्यारा है।

    Solution

    प्रसंग: प्रस्तुत पक्तियां मुक्तिबोध की रचना ‘सहर्ष स्वीकारा है’ में से अवतरित हैं। इसमें कवि ने अपनी प्रत्येक अनुभूति, परिस्थिति और स्थिति पर अपने प्रिय की छाप का अनुभव किया है। यही कारण है कि वह प्रत्येक क्षण एवं स्थिति को सहर्ष स्वीकार कर लेता है। कवि अँधेरी गुफा के अदंर भी प्रिय के संवेदना का अनुभव करता है। कवि बताता है-

    व्याख्या: हे प्रिय! मेरे जीवन में जो कुछ भी है या जो कुछ मेरा होता-सा लगता है (वह शायद मेरा हो जाए) वह सब तुम्हारे कारण ही है। मेरी जो सत्ता है, मेरी जो स्थितियाँ हैं, मेरी जो स्थितियाँ हो सकती हैं, मेरी उन्नति या अवनति की जो संभावनाएँ हैं, वे सभी तुम्हारे कारण हैं। मेरा हर्ष-विषाद, उन्नति- अवनति सदा तुम्हारे कारण हैं। मेरा हर्ष-विषाद, उन्नति- अवनति सदा तुम्हीं से जुड़ी रही हैं। हे प्रिय! मेरे जीवन में जो भी सुख-दु:ख, सफलताएँ- असफलताएँ हैं, मैंने उन्हें प्रसन्नतापूर्वक इसलिए स्वीकार किया है क्योंकि तुमने उन सबको अपना माना है, वे सब तुम्हें प्रिय हैं। जो तुम्हें प्रिय हैं, उन्हें अस्वीकार कर पाना मेरे लिए असंभव है।

    भाव यह है कि कवि के जीवन की प्रत्येक उपलब्धि, संपन्नता, हर्ष-विषाद आदि सभी कुछ प्रिय की ही देन है। यही कारण है कि कवि का जो कुछ था, जो कुछ है और जो कुछ होता-सा लगता है, को प्रसन्नतापूर्वक स्वीकार कर लिया है।

    विशेष: 1. इस सशक्त कविता में कवि ने अपने जीवन के समस्त खट्टे-मीठे अनुभवों, कोमल-तीखी अनुभूतियों और सुख-दुःख को इसलिए सहर्ष स्वीकार कर लिया है क्योंकि इन सब पर प्रिय का प्रभाव है। वह प्रत्येक परिस्थिति को उसी की देन मानता है।

    2. भाषा प्रवाहमयी और सरल है।

    Question 29
    CBSEENHN12026188

    टिप्पणी कीजिए; गरबीली गरीबी, भीतर की सरिता, बहलाती सहलाती आत्मीयता, ममता के बादल।

    Solution

    गरबीली गरीबी: गरीबी में प्राय: मनुष्य हताश निराश और दुखी होकर अपना धैर्य खो बैठता है। तब उसका जीवन के प्रति नकारात्मक दृष्टिकोण हो जाता है। यहाँ कवि ने गरीबी को गरबीली बताकर उसे आत्म सम्मान का रूप दे दिया है।

    - भीतर की सरिता: इस कथन का तात्पर्य यह है कि हृदय के भीतर प्रेम भाव की नदी (झरना) बहती है। यहाँ भावनाओं के प्रवाह को ही सरिता कहा है। कवि के हृदय में भावनाओं का अंत-प्रवाह बह रहा है। इसमें पवित्र जल है।

    - बहलाती सहलाती आत्मीयता: इसका आशय यह है कि प्रेयसी का प्रेमपूर्ण व्यवहार उसे हर समय बहलाता-सहलाता रहता है। उसका व्यवहार अत्यंत आत्मीयतापूर्ण है। उसका निश्छल प्रेम कवि के दु:ख को कम करने का काम तो करता है पर वह उसे सहन नहीं कर पाता। अति बुरी होती है।

    - ममता के बादल: प्रिया कवि के ऊपर ममता भरे बादल बरसाती है। यह उसे अंदर तक पिरा जाती है क्योंकि कवि की आत्मा कमजोर हो गई है। ममता उससे सहन नहीं होती।

    Question 30
    CBSEENHN12026189

    इस कविता में और भी टिप्पणी-योग्य पद-प्रयोग हैं। ऐसे किसी एक प्रयोग का अपनी ओर से उल्लेख कर उस पर टिप्पणी करें।

    Solution

    ऐसा ही एक अन्य पद है-मीठे पानी का सोता जिस प्रकार झरने का जल शीतल और मीठा होता है उसी तरह कवि के हृदय में मृदु-कोमल-प्रेम भावनाओं का झरना बहता रहता है। कवि का हृदय मधुर संबंधों का उद्गम स्थल है। यहाँ हृदय के लिए सोता (स्रोत) शब्द का प्रयोग किया गया है।

    Question 31
    CBSEENHN12026190

    व्याख्या कीजिए-

    जाने क्या रिश्ता है, जाने क्या नाता है।

    जितना भी उँडेलता हूँ, भर-भर फिर आता है।

    दिल मैं क्या झरना है?

    मीठे पानी का सोता है

    भीतर वह, ऊपर तुम

    मुसकाता चाँद ज्यों धरती पर रात भर

    मुझ पर त्यों तुम्हारा ही खिलता वह चेहरा है।

    उपर्युक्त पंक्तियों की व्याख्या करते हुए यह बताइए कि यहाँ चाँद की तरह आत्मा पर झुका चेहरा भूलकर अंधकार-अमावस्या में नहाने की बात क्यों की गई?

    Solution

    व्याख्या: हे प्रिय! न जाने मेरा तुम्हारे हृदय के साथ कैसा गहरा रिश्ता (संबंध) है कि अपने हृदय के प्रेम को जितनी मात्रा में उडेलता हूँ, मेरा मन उतना ही प्रेममय होता चला जाता है अर्थात् मैं अपने हृदय के भावों को कविता आदि के माध्यम से जितना बाहर निकालने का प्रयास करता हूँ, उतना ही पुन: अंत:करण में भर-भर आता है। अपने हृदय की इस अद्भुत स्थिति को देखकर मैं यह सोचने पर विवश हो जाता हूँ कि कहीं मेरे हृदय में प्रेम का कोई झरना तो नहीं बह रहा है जिसका जल समाप्त होने को ही नहीं आता। मेरे हृदय में भावों की हलचल मची रहती है। इधर मन में प्रेम है और ऊपर से तुम्हारा चाँद जैसा मुस्कराता हुआ सुंदर चेहरा अपने अद्भुत सौंदर्य के प्रकाश से मुझे नहलाता रहता है। यह स्थिति उसी प्रकार की है जिस प्रकार आकाश में मुस्कराता हुआ चंद्रमा पृथ्वी को अपने प्रकाश से नहलाता रहता है।

    यहाँ चाँद की तरह आत्मा पर झुका चेहरा भूलकर अँधकार-अमावस्या में नहाने की बात इसलिए कही गई है क्योंकि कवि कल्पना लोक से निकल यथार्थ के धरातल में जीना चाहता हैं जीवन में सभी कुछ अच्छा ही अच्छा नहीं है, यहाँ दु:खों का अंधकार भी है।

    भाव यह है कि कवि की समस्त अनुभूतियाँ प्रिय की सुंदर मुस्कानयुक्त स्वरूप से आलोकित हैं।

    Question 33
    CBSEENHN12026192

    बहलाती सहलाती आत्मीयता बरदाश्त नहीं होती है-और कविता के शीर्षक सहर्ष स्वीकारा है में आप कैसे अंतर्विरोध पाते हैं? चर्चा कीजिए।

    Solution

    यद्यपि दोनों में विरोधाभास वाली स्थिति है, पर वास्तव में इनमें अंतर्विरोध है नहीं। कवि प्रिय की बहलाती सहलाती आत्मीयता को बरदाश्त भी नहीं कर पाता फिर भी उसे सहर्ष स्वीकार कर लेता है। कवि भाव प्रवणता की मन:स्थिति में है। वह अति से उकताता है पर सहज रूप को सहर्ष स्वीकार कर लेता है। अत: हम इनमें अंतर्विरोध की स्थिति त नहीं पाते।

    Question 34
    CBSEENHN12026193

    अतिशय मोह भी क्या त्रास का कारक है? माँ का दूध छूटने का कष्ट जैसे एक जरूरी कष्ट है, वैसे ही कुछ और जरूरी कष्टों की सूची बनाएँ।

    Solution

    हाँ, अतिशय मोह भी त्रास का कारक है। जब अतिशय मोह वाली चीज से संबंध टूटता है तब बड़ा त्रास (दु:ख) होता है। सासारिक वस्तुओं के प्रति अतिशय मोह नहीं रखना चाहिए।

    बच्चे का माँ के दूध के साथ अतिशय मोह होता है। जब यह दूध छूटता है तब उसे बड़ा कष्ट होता है।

    ऐसे ही कुछ अन्य कष्टों की सूची-

    - प्रिय व्यक्ति का साथ छूटना

    - मित्र/सखी का शहर से दूर चले जाना

    - मनपसंद खाद्य वस्तु का उपलब्ध न होना।

    Question 35
    CBSEENHN12026194

    ‘प्रेरणा’ शब्द पर सोचिए। उसके महत्त्व पर प्रकाश डालते हुए जीवन के वे प्रसंग याद कीजिए जब माता-पिता, दीदी-भैया, शिक्षक या कोई महापुरुष आपके अँधेरे क्षणों में प्रकाश भर गए।

    Solution

    ‘प्रेरणा’ शब्द बहुत महत्वपूर्ण है। हम अपने श्रद्धेय, पूजनीय, आदरणीय व्यक्तियों के जीवन एवं कार्यो से प्रेरणा लेकर आगे बढ़ते हैं। इससे हमारे अँधेरे क्षणों में प्रकाश भर जाता है।

    एक बार मैं अपने विद्यालयी जीवन में फैशन की ओर उन्मुख हो गया था। परीक्षा में भी मेरे कम अंक आए। तभी मुझे मेरे बड़े भैया ने सद्मार्ग पर चलने की प्रेरणा दी। उन्होंने मुझे समय का महत्त्व समझाया। कई उदाहरण भी दिए। फैशन की निरर्थकता बताते हुए पढ़ाई पर ध्यान देने की प्रेरणा दी। इससे मेरी आँखें खुल गई। मैं फैशन का चक्कर छोड्कर पढ़ाई में जुट गया। वार्षिक परीक्षा में जब मुझे 85% अंक मिले तो मुझे भाई की प्रेरणा का महत्व समझ में आया।

    Question 36
    CBSEENHN12026195

    भय’ शब्द पर सोचिए। सोचिए कि मन में किन-किन चीजों का भय बैठा है? उससे निबटने के लिए आप क्या करते हैं और कवि की मनःस्थिति से अपनी मनःस्थिति की तुलना कीजिए।

    Solution

    भय, डर को कहते हैं। कई बार किसी चीज के बारे में हमारे मन में भय बैठ जाता है और हम उससे बचने की कोशिश करते हैं।

    मेरे मन में ‘गणित’ विषय के प्रति भय बैठा हुआ है। मुझे लगता है कि मैं गणित के प्रश्नों को कभी हल नहीं कर पाऊँगा। इस स्थिति से निबटने के लिए मैं अपने मित्र की मदद लेता हूँ। कवि की मन:स्थिति प्रिय के प्रति अतिशय प्रेमभावना को लेकर द्विविधाग्रस्त है। मेरी मन:स्थिति में किसी प्रकार की द्विविधा नहीं है, बल्कि वह एक विषय को न समझ पाने से उत्पन्न भय की स्थिति है।

    Question 37
    CBSEENHN12026196

    वह क्या-क्या है, जिसे कवि ने सहर्ष स्वीकारा है?

    Solution

    कवि ने अपने जीवन की कटु-मधुर अनुभूतियों, सुख-दुःखपूर्ण परिस्थितियों, व्यक्तित्व की दृढ़ता तथा मीठे-तीखे अनुभव आदि सबको सहर्ष स्वीकार किया है। इसका कारण यह है कि वह इन सबके साथ अपने प्रिय को जुड़ा पाता है। जो-जो बातें उसके प्रिय को पसंद हैं, उन्हें कवि सहर्ष स्वीकार कर लेता है। कवि के पास अपनी गर्वीली गरीबी है, जीवन के गहरे अनुभव हैं, प्रौढ़ विचार हैं, भावनाओं का बहता प्रवाह है, प्रेयसी का प्यार है। वह इन सबको सहर्ष स्वीकार कर लेता है।

    Question 38
    CBSEENHN12026197

    कवि के पास जो कुछ अच्छा-बुरा है वह विशिष्ट और मौलिक कैसे और क्यों है?

    Solution

    कवि के पास स्वाभिमान युक्त गरीबी है जिस पर उसे गर्व है। जीवन को भोगने में प्राप्त गहन अनुभव, वैचारिक प्रक्रिया अर्थात् चिंतन सैद्धांतिक दृढ़ता, हृदय में बहने वाली भावों रूपी नदी काव्य में उसके द्वारा अपनाई गई नवीनता आदि सब अच्छे हैं अथवा बुरे हैं पर हैं विशिष्ट और मौलिक। इस मौलिकता के कारण ही कवि ने प्रत्येक पल को जिया है। किसी भी विषय पर विचार करने की उसकी अपनी शैली है, हृदय में उठने वाली अनुभूतियों के प्रति भी उसका अपना दृष्टिकोण है। अत: उसके पास जो कुछ भी अच्छा-बुरा है, वह उसका विशिष्ट और मौलिक है। उसमें नकल या बनावटीपन नहीं है।

    Question 39
    CBSEENHN12026198

    कवि को अपनी प्रिय से संवेदनाओं के धरातल पर क्या कुछ मिला?

    Solution

    कवि को अपने प्रिय से संवेदनाओं के धरातल पर प्रेयसी का प्रेम गहन अनुभव, वैचारिक संपन्नता, दृढ़ता, हृदय की भाव-सरिता आदि चीजें मिलीं। कवि अपने जीवन की हर परिस्थिति को प्रिय की संवेदना का ही प्रतिफल मानता है। कवि का कहना है कि उसमें ‘जो कुछ भी जागत है’ वह सब प्रिय की संवेदना के कारण है।

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    Question 40
    CBSEENHN12026199

    एक घोर अंधकारमयी विस्मृति में खो जाने का दंड कवि क्यों पाना चाहता है?

    Solution

    क्योंकि कवि अपनी अतिशय भावुकता और संवेदनशीलता से तंग आ चुका है-वह हर जगह पिघल जाता है-अपनी इस अति कोमलता से छुटकारा पाने के लिए एक ओर अंधकारमयी विस्मृति में खो जाने का दंड पाना चाहता है। कवि का हृदय अपराध-बोध से ग्रसित हो जाता है। वह अपनी प्रिय को विस्मृत करने की भूल का दंड भी प्रिय से ही चाहता है क्योंकि यह उसका अपनी प्रेयसी के निश्छल प्रेम के प्रति विश्वासघात था। वह अपने अपराध का दंड भुगतने के लिए घोर अंधकारमयी विस्मृति में खो जाना चाहता है। उसकी आत्मा और संकल्प शक्ति भी बहुत कमजोर हो चुकी है।

    Question 41
    CBSEENHN12026200

    कवि के लिए सखन-मधुर स्थिति भी असह्य क्यों बन गई है?

    Solution

    कवि के लिए सुखद-मधुर स्थिति इसलिए असह्य बन गई है क्योंकि ‘भवितव्यता’ उसे डराती है। उसके अपने प्रेम में आत्मग्लानि की भावना छिपी हुई है। (संभवत: कवि यह सोचता होगा कि वह प्रेयसी को पत्नी रूप नहीं दे पाएगा।) कवि भविष्य की कल्पना करके भयभीत हो जाता है। वह स्वयं को अपराध ग्रस्त भी पाता है तथा चिंतित रहता है। ऐसी स्थिति में सुखद-मधुर स्थिति भा उसे असह्य हो जाती है।

    Question 42
    CBSEENHN12026201

    पाताली अँधेरे में तथा गुहाओं और धुएँ के बाबलों में कवि बिल्कुल लापता हो जाने में भी संतोष का अनुभव क्यों करता है?

    Solution

    क्योंकि कवि अपने ज्ञान के प्रकाश से अति सतर्कता से कोमलता से तंग आ गय। है और अब वह अज्ञानी मुढ़ संवेदन-शून्य होकर जीना चाहता है। वह सोचता है कि वहाँ उसे प्रिय की अनुभूतियों के घेराव से छुटकारा मिल जाएगा। वहाँ वह एक गुमनाम जिंदगी जी सकेगा। वहाँ वह अपराध-बोध से भी मुक्ति पा लेगा।

    उसके संतोष का दूसरा कारण यह भी है कि अँधेरी गुफाओं में भी प्रिया की संवेदनाएँ उसे सहारा प्रदान करेंगी।

    Question 43
    CBSEENHN12026202

    कवि के हृदय में क्या वस्तु है जो उसे पिराती है?

    Solution

    कवि के हृदय में ममता के बादल की मँडराती कोमलता उसे पिराती है।

    Question 44
    CBSEENHN12026203

    क्या चीज कवि को डराती है?

    Solution

    भवितव्यता कवि को डराती है।

    Question 45
    CBSEENHN12026204

    कवि क्या बर्दाश्त नहीं कर पाता?

    Solution

    बहलाती-सहलाती आत्मीयता कवि बरदाश्त नहीं कर पाता।

    Question 46
    CBSEENHN12026205

    जीवन में जो कुछ अच्छा-बुरा, कड़वा-मीठा कवि को मिला, उसे सहर्ष स्वीकारने का उसने क्या विशेष कारण बताया है?

    Solution
    जीवन में जो कुछ अच्छा-बुरा, कडुवा-मीठा कवि मुक्तिबोध को मिला, उसे सहर्ष स्वीकारने का उसने यह विशेष कारण बताया है कि कवि के पास जो कुछ भी है-जो भी उसकी उपलब्धि है, वह उसकी प्रिया को प्यारी है।
    Question 47
    CBSEENHN12026206

    अपनी गरवीली गरीबी, गंभीर अनुभव, विचार-वैभव, दृढ़ता और भीतरी भाव तरंगों को कवि ने नितांत मौलिक बताया है, इसके लिए उसने क्या तर्क दिया है?

    Solution

    इसके लिए कवि ने तर्क दिया है कि कवि की जागरूकता तथा एकाग्रता, दृढ़ता एवं भावनाएँ मौलिक हैं। कवि इसके लिए तर्क देता है कि वह हर समय जागरूक रहता है। भीतर की इच्छाशक्ति उसे दृढ़ता प्रदान करती है। हृदय में भावनाओं का अंत:प्रवाह बहता रहता है। हाँ, संवेदन अवश्य उसकी प्रिया का दिया हुआ है।

    Question 48
    CBSEENHN12026207

    मुक्तिबोध की कविता के आधार पर स्पष्ट कीजिए कि कवि ने किसे सहर्ष स्वीकारा था। आगे चलकर वह उसी को क्यों भुला देना चाहता है?

    Solution

    कवि ने अपने सुख-दु:ख की अनुभूतियों को सहर्ष स्वीकार। है। कवि के पास अपनी गर्वीली गरीबी है, जीवन के गहरे अनुभव हैं, व्यक्तित्व की दृढ़ता है, नूतन भावनाओं का प्रवाह है, अपने प्रिय का प्रेम है। उसने इन सभी को सहर्ष स्वीकारा है। आगे चलकर कवि अपने प्रिय को इसलिए भुला देना चाहता है क्योंकि उसका अतिशय प्रेम, बहलाती-सहलाती आत्मीयता अब उससे बर्दाश्त नहीं हो पाती। वह उसके प्रभाव से मुक्त होना चाहता है।

    Question 49
    CBSEENHN12026208

    ‘सहर्ष स्वीकारा है’ के कवि ने जिस चाँदनी को स्वयं सहर्ष स्वीकारा था, उससे मुक्ति पाने के लिए वह अंग-अंग में अमावस की चाह क्यों कर रहा है?

    Solution

    कवि ने जिस चाँदनी (प्रिय को) स्वयं स्वीकार किया था, अब उससे मुक्ति पाना चाहता है। इसका कारण यह है कि कवि अपनी अतिशय भावुकता और संवेदनशीलता से तंग आ चुका है - वह हर जगह पिघल जाता है - अपनी इस अति कोमलता से छुटकारा पाने के लिए एक ओर अंधकारमयी विस्मृति में खो जाने का दंड पाना चाहता है। कवि का हृदय अपराध-बोध से ग्रसित हो जाता है। वह अपनी प्रिय को विस्मृत करने की भूल का दंड भी प्रिय से ही चाहता है क्योंकि यह उसका अपनी प्रेयसी के निश्छल प्रेम के प्रति विश्वासघात था। वह अपने अपराध का दडदंडुगतने के लिए घोर अंधकारमयी विस्मृति में खो जाना चाहता है। उसकी आत्मा और संकल्प शक्ति भी बहुत कमजोर हो चुकी है।

    Question 50
    CBSEENHN12026209

    पाताली अँधेरे में तथा गुहाओं और’ धुएँ के बादलों में कवि बिल्कुल लापता हो जाने में भी संतोष का अनुभव क्यों करता है?

    Solution

    क्योंकि कवि अपने ज्ञान के प्रकाश से अति सतर्कता से, कोमलता से तंग आ गया है और अब वह अज्ञानी, छूमुढ़ंवेदन-शून्य होकर जीना चाहता है। वह सोचता है कि वहाँ उसे प्रिय की अनुभूतियों के घेराव से छुटकारा मिल जाएगा। वहाँ वह एक गुमनाम जिंदगी जी सकेगा। वहाँ वह अपराध-बोध से भी मुक्ति पा लेगा।

    उसके संतोष का दूसरा कारण यह भी है कि अँधेरी गुफाओं में भी प्रिया की संवेदनाएँ उसे सहारा प्रदान करेंगी।

    Question 51
    CBSEENHN12026210

    कवि ने व्यक्तिगत संदर्भ में किस स्थिति को अमावस्या कहा है?

    Solution
    कवि ने उस स्थिति को अमावस्या कहा है जब वह सर्वहारा वर्ग को भूल जाएगा। वह कहता है कि इस वर्ग के कष्टों को भूलकर ही वह सुखी रह सकता है। दक्षिण ध्रुव पर चंद्रमा छह मास तक दिखाई नहीं देता। स्वार्थी बनकर ही कवि सर्वहारा वर्ग से दूर हो सकता है।
    Question 52
    CBSEENHN12026211

    ‘सहर्ष स्वीकारा है’ कविता किसको व क्यों स्वीकारने की प्रेरणा देती है?

    Solution

    मुक्तिबोध की यह कविता अपनी सुख-दु:ख की अनुभूतियों, गरबीली गरीबी प्रौढ़ विचार, व्यक्तिगत दृढ़ता, जीवन के खट्टे-मीठे अनुभव, प्रेमिका का प्रेम व नूतन भावनाओं के वैभव को सहर्ष स्वीकार करने की प्रेरणा देती है। इससे व्यक्ति का जीवन सहज होता है। वह स्वयं को प्रिय से जुड़ा हुआ पाता है।

    Question 53
    CBSEENHN12026212

    ‘सहर्ष स्वीकारा है’ कविता का प्रतिपाद्य अथवा मूल भाव अपने शब्दों में लिखिए।

    Solution

    ‘सहर्ष स्वीकारा है’ शीर्षक कविता मुक्तिबोध की एक सशक्त रचना है। इसमें कवि ने अपने जीवन के समस्त खट्टे-मीठे अनुभवों, कोमल-तीखी अनुभूतियों तथा सुख-दु:ख की स्थितियों को इसलिए सहर्ष स्वीकार कर लिया है क्योंकि वह इन सबके साथ अपने प्रिय को जुड़ा पाता है। यहाँ तक कि वह अपने जीवन के प्रत्येक पक्ष पर प्रिय का प्रभाव और उसकी देन मानता है। कवि का समस्त जीवन प्रेयसी की संवेदनाओं से जुड़ा हुआ है। कवि के हृदय में बहने वाला भावनाओं का प्रवाह भी प्रेयसी की ही देन है। कवि को अपनी गरीबी पर गर्व है क्योंकि वह अपने आत्मसम्मान को बनाए रखने में सफल रहा है। उसकी वैचारिक शक्ति व्यक्तित्व की दृढ़ता आदि में मौलिकता है। कवि को अपना भविष्य अंधकारमय प्रतीत होता है, भविष्य उसे डराता है। कवि प्रेयसी के प्रेम को भविष्य में निभा पाने में स्वयं को असमर्थ पाता है। उसे आत्मग्लानि का अनुभव होता है अत: वह पाताली अँधेरी गुफाओं में जाने का दंड भुगतना चाहता है। उसे विश्वास है कि वहाँ भी उसे प्रेयसी की यादों का सहारा मिलेगा।

    Question 54
    CBSEENHN12026213

    गरबीली गरीबी यह, ये गंभीर अनुभव सब

    यह विचार-वैभव सब

    दृढ़ता यह, भीतर की सरिता यह अभिनव सब

    मौलिक है, मौलिक है

    इसलिए कि पल-पल में

    जो कुछ भी जाग्रत है अपलक है-

    संवेदन तुम्हारा है!!

    जाने क्या रिश्ता है, जाने क्या नाता है

    जितना भी उँड़ेलता हूँ, भर-भर फिर आता है

    दिल में क्या झरना है?

    मीठे पानी का सोता है

    भीतर वह, ऊपर तुम

    मुसकाता चाँद ज्यों धरती पर रात-भर

    मुझ पर त्यों तुम्हारा ही खिलता वह चेहरा है।

    A. कवि के दिल में झरना या मीठे पानी का स्त्रोत वस्तुत: क्या है? उस झरने की क्या विशेषता है? (i) कवि के हृदय में झरना या मीठे पानी का स्रोत वस्तुत: प्रेम-भावनाएँ हैं। उस झरने की विशेषता यह है कि यह कभी खाली नहीं होता। कवि जितना इसे बाहर निकालने का प्रयास करता है, उतना यह पुन: भर जाता है।
    B. ‘गरबीली गरीबी’ और ‘भीतर की सरिता’ से कवि का क्या अभिप्राय है? कवि ने इनको ‘मैलिक’ क्यों कहा है? (ii) कवि आत्मसम्मानी है। उसे अपनी गरीबी पर गर्व है। कवि ने इसे मौलिक इसलिए कहा है कि उसके जीवन की अनुभूतियों में कोई बनावट-मिलावट नहीं है। वे सभी मौलिक हैं।
    C. कवि का रिश्ता किसके साथ है? उस रिश्ते को कवि ने किस रूप में कल्पित किया हैं? (iii) कवि का रिश्ता अपनी प्रियतमा के साथ है। इस रिश्ते को कवि हृदय की गहराइयों से मानता है। कवि अपने हृदय से प्रेम को जितना उडेलता है, उसका मन उतना ही प्रेममय होता चला जाता है।
    D. ‘भीतर वह, ऊपर तुम’ से कवि का ससंकेत-किसकी ओर है? किसी का खिलता हुआ चेहरा उसको किस तरह आनंदित कर रहा है? (iv) कवि के भीतर हृदय में प्रेम का झरना है और ऊपर वह प्रिय है। प्रिय का मुसकराता चेहरा कवि को आनंदित कर जाता है।

    Solution

    A.

    कवि के दिल में झरना या मीठे पानी का स्त्रोत वस्तुत: क्या है? उस झरने की क्या विशेषता है?

    (i)

    कवि के हृदय में झरना या मीठे पानी का स्रोत वस्तुत: प्रेम-भावनाएँ हैं। उस झरने की विशेषता यह है कि यह कभी खाली नहीं होता। कवि जितना इसे बाहर निकालने का प्रयास करता है, उतना यह पुन: भर जाता है।

    B.

    ‘गरबीली गरीबी’ और ‘भीतर की सरिता’ से कवि का क्या अभिप्राय है? कवि ने इनको ‘मैलिक’ क्यों कहा है?

    (ii)

    कवि आत्मसम्मानी है। उसे अपनी गरीबी पर गर्व है। कवि ने इसे मौलिक इसलिए कहा है कि उसके जीवन की अनुभूतियों में कोई बनावट-मिलावट नहीं है। वे सभी मौलिक हैं।

    C.

    कवि का रिश्ता किसके साथ है? उस रिश्ते को कवि ने किस रूप में कल्पित किया हैं?

    (iii)

    कवि का रिश्ता अपनी प्रियतमा के साथ है। इस रिश्ते को कवि हृदय की गहराइयों से मानता है। कवि अपने हृदय से प्रेम को जितना उडेलता है, उसका मन उतना ही प्रेममय होता चला जाता है।

    D.

    ‘भीतर वह, ऊपर तुम’ से कवि का ससंकेत-किसकी ओर है? किसी का खिलता हुआ चेहरा उसको किस तरह आनंदित कर रहा है?

    (iv)

    कवि के भीतर हृदय में प्रेम का झरना है और ऊपर वह प्रिय है। प्रिय का मुसकराता चेहरा कवि को आनंदित कर जाता है।

    Question 55
    CBSEENHN12026214
    Question 57
    CBSEENHN12026216

    निम्नलिखित काव्यांशों को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिए:
    तुम्हें भूल जाने की
    दक्षिण ध्रुवी अंधकार-अमावस्या
    शरीर पर, चेहरे पर, अंतर में पा लूँ मैं
    झेलूँ मैं, उसी में नहा लूँ मैं
    इसलिए कि तुमसे ही परिवेष्टित आच्छादित
    रहने का रमणीय यह उजेला अब
    सहा नहीं जाता है।

    1. अमावस्या के लिए प्रयुक्त विशेषणों से काव्यार्थ में क्या विशेषता आई है?
    2. ‘मैं तुम्हें भूल जाना चाहता हूँ’-इस सामान्य कथन को व्यक्त करने के लिए कवि ने क्या युक्ति अपनाई है?
    3.  काव्यांश के शिल्प-सौंदर्य को स्पष्ट कीजिए।


    Solution

    1. अमावस्या के लिए ‘दक्षिण ध्रुवी अंधकार’ विशेषणों का प्रयोग किया गया है। दक्षिणी ध्रुव में गहरा अंध कार समाया रहता है। अमावस्या के लिए इन विशेषणों का प्रयोग काव्यार्थ में अंधकार विस्मृति को गहरा देता है। इन विशेषणों के प्रयोग से अंधकार में घनत्व आ गया है। घना अंधेरा और अधिक घुप्प हो गया है।
    2. ‘मैं तुम्हें भूल जाना चाहता हूं’-इस सामान्य कथन को व्यक्त करने के लिए कवि प्रिया की परछाई से भी दूर चला जाना चाहता है र क्योंकि अब उसके रूप सौंदर्य का उजाला उससे सहन नहीं हो पा रहा है।
    3. शिल्प-सौंदर्य:
    ● संबोधन शैली और आत्मानुभूति के कारण काव्यांश प्रभावी बन पड़ा है।
    ● ‘दक्षिणी ध्रुवी अंधकार-अमावस्या’ में रूपक है।
    ● ‘परिवेष्टित आच्छादित’ में ‘इत’ की स्वर मैत्री है। अंत्यानुप्रास भी है।
    ● तत्सम शब्दावली का प्रयोग हुआ है।



    Question 58
    CBSEENHN12026217

    निम्नलिखित काव्यांशों को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिए:
    सचमुच मुझे दंड दो कि मैं हो जाऊँ
    पाताली अँधेरे की गुहाओं में विवरों में
    धुएँ के बादलों में
    बिल्कुल मैं लापता
    लापता कि वहाँ भी तुम्हारा ही सहारा है

    1.  इन पंक्तियों में कवि क्या चाह रहा है?
    2.  ‘पाताली विवर’ से किस भावना की अभिव्यक्ति होती है?
    3.  भाषागत सौदंर्य स्पष्ट करो।




    Solution

    1. इन पंक्तियों में कवि अपनी प्रेमिका से दंड चाह रहा है।
    2. ‘पाताली अँधेरी गुफाओं’ ‘विवर’ आदि शब्दों में अपराध बोध की भावना अभिव्यक्त होती है।
    3. भाषागत सौंदर्य:
       1. तत्सम शब्दावली का प्रयोग है।
       2. व्यंजना शब्द शक्ति का प्रयोग है।
       3. ‘लापता... है’ में विरोधाभास अलंकार है।
       4. प्रयोगवादी काव्य-शैली का श्रेष्ठ नमूना है।

    Question 59
    CBSEENHN12026218

    पठित कविताओं से उदाहरण देते हुए मुक्तिबोध की काव्यगत विशेषताओं पर प्रकाश डालिए।

    Solution

    मुक्तिबोध की काव्यगत विशेषताएँ-

    1. सशक्त लेखन: मुक्तिबोध का कवि व्यक्तित्व जटिल है। उनकी कविताओं में संवेदना के संश्लिष्ट रूप दृष्टिगोचर होते हैं। मुक्तिबोध की कविताओं में संपूर्ण परिवेश के बीच स्वयं को खोजना और पाना ही नहीं, अपितु संपूर्ण परिवेश के साथ अपने को बदलने की प्रक्रिया का भी चित्रण है। मुक्तिबोध अपने काव्य-कर्म के प्रति ईमानदार रहे हैं।

    2. विशिष्ट काव्य-शिल्प: मुक्तिबोध ने अपनी संवेदना और ज्ञान के अनुसार एक विशिष्ट काव्य-शिल्प का निर्माण किया है। फैंटेसी का सार्थक उपयोग मुक्तिबोध की कविताओं में ही देखने को मिलता है।

    3. छोटे-छोटे वाक्यांश: मुक्तिबोध ने अपने काव्य में छोटे-छोटे वाक्यांशों का प्रयोग कर अपने कथ्य को प्रभावशाली बना दिया है। जैसे-

    सहर्ष स्वीकारा है

    संवेदन तुम्हारा है

    4. छंद रहित कविता: मुक्तिबोध ने अपनी कविता को छंदों के बंधन में नहीं बाँधा है। उनके काव्य में भावों का सहज प्रयोग है। अत: वे उसे छंदमुक्त रूप में ही प्रस्तुत करते हैं। जैसे- ममता के बादल की मँडराती कोमलता-भीतर पिराती है।

    5. विचारों का आवेग: मुक्तिबोध जी अपने विचारों को तीव्रता के साथ प्रकट करते हैं, इसमें व्यंग्य की झलक भी दृष्टिगोचर होती है।

    6. सहज सरल भाषा-शैली: मुक्तिबोध की कविता में विचार तत्त्व की प्रधानता है और उसी के अनुरूप शब्द चयन भी अनोखा है।

    7. अलंकार विधान: मुक्तिबोध की कविता अलंकार युक्त है। उन्होंने सर्वथा नवीन उपमानों का प्रयोग किया है।

    उदाहरणार्थ-

    उत्प्रेक्षा: मुसकाता चाँद क्यों धरती पर

    अनुप्रास: गरवीली गरीबी।

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