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गजानन माधव मुक्तिबोध के व्यक्तित्व तथा कृतित्व का परिचय दीजिए।
जीवन-परिचय नई कविता को व्यवस्थित मूल्य प्रदान करने वाले कवि मुक्तिबोध का जन्म श्योपुर (मध्य प्रदेश) में 1917 में हुआ। मुक्तिबोध के पिता माधव राव ग्वालियर रियासत के पुलिस विभाग’ में थे। पिता के व्यक्तित्व के प्रभाव-स्वरूप मुक्तिबोध में ईमानदारी, न्यायप्रियता और दृढ़ इच्छा-शक्ति का प्रतिफलन हुआ। सन् 1935 में जाति, कुल और सामाजिक आचारों से लोहा लेते हुए प्रेम-विवाह किया। इन्होंने मुख्यत: अध्यापन कार्य किया। एक अरसे तक नागपुर से ‘नया खून’ साप्ताहिक का संपादन करने के बाद इन्होंने अध्यापन कार्य अपनाया और अंत तक ‘दिग्विजय महाविद्यालय’ राजनांदगाँव (मध्य प्रदेश) में हिंदी विभाग के अध्यक्ष रहे।
मुक्तिबोध का पूरा जीवन संघर्षो और विरोधों से भरा रहा। उन्होंने मार्क्सवाद और अस्तित्ववाद आदि अनेक आधुनिक विचारधाराओं का अध्ययन किया था जिसका प्रभाव उनकी कविताओं पर दिखाई देता है। पहली बार उनकी कविताएँ सन् 1943 में अज्ञेय द्वारा संपादित ‘तार सप्तक’ में छपीं। कविता के अतिरिक्त उन्होंने कहानी, उपन्यास, आलोचना आदि विधाओं में भी लिखा। उन्होंने कला, संस्कृति समाज राजनीति आदि से संबंधित अनेक लेख भी लिखे। इनकी मृत्यु 1964 ई. में हुई।
रचनाएँ: इनकी कविताओं के संग्रह ‘चाँद का मुँह टेढ़ा है’ (1964) तथा ‘भूरी-भूरी खाक धूल’ छपे हैं। इसके अलावा उनके दो कहानी संग्रह हैं। ‘विपात्र’ नाम एक उपन्यास और ‘एक साहित्यिक की डायरी’ उनकी अन्य महत्वपूर्ण कृतियाँ हैं। मुक्तिबोध की आलोचनात्मक कृतियाँ भी हैं- ‘कामायनी एक पुनर्विचार,’ ‘नई कविता का आत्मसंघर्ष’ तथा ‘अन्य निबंध’, ‘नए साहित्य का सौंदर्य शास्त्र’।
इनकी सारी रचनाएँ ‘मुक्तिबोध रचनावली’ के नाम से छ: खंडों मे प्रकाशित हुई हैं।
काव्यगत विशेषताएँ: मुक्तिबोध का कवि-व्यक्तित्व जटिल है। ज्ञान और संवेदना के संशिलष्ट स्तर से युगीन प्रभावों को ग्रहण करके प्रौढ़ मानसिक प्रतिक्रियाओं के कारण उनकी कविताएँ विशेष सशक्त हैं। मुक्तिबोध ने अधिकतर लंबी नाटकीय कविताएँ लिखी हैं जिनमें सम-सामयिक समाज उनमें पलने वाले अंतर्द्वद्वों और इन अंतर्द्वद्वों से उत्पन्न भय, संत्रास, आक्रोश, विद्रोह और दुर्दम्य संघर्ष भावना के विविध रूप चित्रित हैं।
मुक्तिबोध की कविताओं में संपूर्ण परिवेश के बीच अपने आपको खोजने और पाने को ही नहीं, संपूर्ण परिवेश के साथ अपने आपको बदलने की प्रक्रिया का चित्रण भी मिलता है। इस स्तर पर मुक्तिबोध की कविता आधुनिक जागरूक व्यक्ति के आत्मसंघर्ष की कविता है।
छायावाद और स्वच्छंदतावादी कविता के बाद जब नई कविता आई तो मुक्तिबोध उसके अगुआ कवियों में से एक थे। मराठी संरचना से प्रभावित लंबे वाक्यों ने उनकी कविता को आम पाठक के लिए कठिन बताया लेकिन उनमें भावनात्मक और विचारात्मक ऊर्जा अटूट थी जैसे कोई नैसर्गिक अंत स्रोत हो जो कभी चुकता ही नहीं बल्कि लगातार अधिकाधिक वेग और तीव्रता के साथ उमड़ता चला आता है। यह ऊर्जा अनेकानेक कल्पना-चित्रों और फैंटेसियों का आकार ग्रहण कर लेती है। मुक्तिबोध की रचनात्मक ऊर्जा का एक बहुत बड़ा अंश आलोचनात्मक लेखन और साहित्य संबंधी चिंतन में सक्रिय रहा। वे एक समर्थ पत्रकार भी थे। इसके अलावा राजनैतिक विषयों अंतर्राष्ट्रीय परिदृश्य तथा देश की आर्थिक समस्याओं पर लगातार लिखा है। कवि शमशेर बहादुर सिंह के शब्दों में उनकी कविता अद्भुत संकेतों भरी, जिज्ञासाओं से अस्थिर, कभी दूर से शोर मचाती कभी कानों में चुपचाप राज की बातें कहती चलती है। हमारी बातें हमको सूनाती है। हम अपने को एकदम चकित होकर देखते हैं और पहले से अधिक पहचानने लगते हैं।
काव्य-शिल्प: मुक्तिबोध नई कविता के प्रमुख कवि हैं। उनकी संवेदना और ज्ञान की पंरपरा अत्यत व्यापक है। गहन विचारशील और विशिष्ट काव्य-शिल्प के कारण उनकी कविता की एक अलग पहचान बनती है। स्वतंत्र भारत के मध्यवर्ग की जिंदगी की विडंबनाओं व विदूपताओं का चित्रण उनकी कविता में है और साथ ही एक बेहतर मानवीय समाज व्यवस्था के निर्माण की आकांक्षाएँ मुक्तिबोध की कविता की एक बड़ी विशेषता हैं। उनकी कविताओं में बिंबों और प्रतीकों का प्रयोग है और फेंटेसी के शिल्प का उपयोग भी। उन्होंने फेंटेसी के माध्यम से ही प्राय: लंबी कविताओं की रचना की है इसलिए वे फेंटेसी के कवि के रूप में प्रसिद्ध हैं।
प्रस्तुत पक्तियों की सप्रंसग व्याख्या करें
जिंदगी में जो कुछ है, जो भी है
सहर्ष स्वीकारा है,
इसलिए कि जो कुछ भी मेरा है
वह तुम्हें प्यारा है।
प्रसग: प्रस्तुत पक्तियाँ मुक्तिबोध की एक सशक्त रचना ‘सहर्ष स्वीकारा है’ में से उउद्धृतहै। इसमें कवि ने कहा है कि जीवन के समस्त खड़े-मीठे अनुभवों, कोमल-तीखी अनुभूतियों और सुख-दुःख को उसने इसलिए सहर्ष स्वीकारा है कि वह अपने किसी भी क्षण को अपने प्रिय से न केवल अत्यत जुड़ा हुआ अनुभव करता है; अपितु हर स्थिति-परिस्थिति को उसी की देन मानता है।
व्याख्या: कवि कहता है-हे प्रिय! मेरे इस जीवन में जो कुछ भी सुख-दुःख, मीठे-कड़वे अनुभव, सफलता-असफलताएँ हैं उन्हें मैंने प्रसन्नतापूर्वक स्वीकार कर लिया है। मैंने इन्हें सहर्ष इसलिए स्वीकार किया है क्योंकि तुमने इन सबको प्रेमपूर्वक अपना माना है अर्थात् मेरी सभी प्रकार की उपलब्धियाँ और कमियाँ तुम्हें सदा से प्रिय रही हैं। मेरा यह जीवन तुम्हारे प्रेम की देन है। मेरा जो कुछ भी है, वह तुम्हें प्रिय है। जो कुछ तुम्हें प्रिय है, वह मुझे भी स्वीकार है।
विशेष: 1. प्रिय की संवेदना का तरल अमूर्त बिंब प्रस्तुत किया गया है।
2. प्रिय का प्यार कवि को सब कुछ सहने की शक्ति प्रदान करता है।
3. ‘सहर्ष स्वीकारा’ में अनुप्रास अलंकार है।
4. काव्य भाषा सरल एवं स्पष्ट है।
कवि ने सहर्ष क्या स्वीकार किया है?
कवि ने जिंदगी में जो कुछ भी है, जैसा है उसे उसी रूप में स्वीकार कर लिया है।
कवि ने इसे क्यों स्वीकार कर लिया है?
कवि ने इन सभी स्थितियों को इसलिए स्वीकार कर लिया है क्योंकि यह सभी उसकी प्रेयसी को भी पसंद है। जो उसे प्रिय है, वही कवि को स्वीकार्य है।
यह कविता क्या प्रेरणा देती है?
यह कविता यह प्रेरणा देती है कि जीवन में सब सुख-दुख, संघर्ष-अवसाद, उठा-पटक को अंगीकार कर लेना चाहिए।
प्रस्तुत पक्तियों की सप्रंसग व्याख्या करें
गरबीली गरीबी यह, ये गंभीर अनुभव सब
यह विचार-वैभव सब
दृढ़ता यह, भीतर की सरिता यह अभिनय सब
मौलिक है, मौलिक है,
इसलिए कि पल-पल में
जो कुछ भी जागृत है, अपलक है-
संवेदन तुम्हारा है!!
प्रंसग: प्रस्तुत पक्तियां गजानन माधव ‘मुक्तिबोध’ द्वारा रचित कविता ‘सहर्ष स्वीकारा है’ से अवतरित हैं। कवि अपने जीवन की अनुभूति-सपंत्ति पर प्रकाश डालते हुए कहता है-
व्याख्या: मेरी स्वाभिमानयुक्त गरीबी (निर्धन रहते हुए भी) (आत्म गौरव की भावना), जीवन की गहरी अनुभूतियाँ, मेरे सब वैचारिक चिंतन मेरे व्यक्तित्व की दृढ़ता, मेरे अंत:करण में बहती भावनाओं की नदी और व्यक्त करने के शारीरिक हाव-भाव (मेरी समस्त चेष्टाएँ)-ये सब मौलिक हैं, अनुभव सत्य है, भोगे हुए यथार्थ हैं। इनमें किसी की छाया अथवा अनुकृति नहीं है। ये अनुभव मुझे जीवन को जीते हुए प्राप्त हुए हैं। मेरे जीवन में जो कुछ भी सजग और स्थिर है वह सब तुम्हारी प्रेरणामयी और संवेदनामयी अनुभूतियों का फल है। अर्थात् हे प्रिय! तुम्हारी संवेदना ही मेरी समस्त उपलब्धियों का मुख्य स्रोत है। मेरे जीवन में जो कुछ दिखाई देता है, उस सब में तुम्हारा ही संवेदन विद्यमान है, तुम्हारी अनुभूति विद्यमान है तुम्हारी अनुभूति के कारण ही वे मुझे प्रिय लगती हैं।
विशेष: 1. अभावग्रस्त, किंतु स्वाभिमानपूर्ण जिंदगी का शब्द चित्र प्रस्तुत किया गया है।
2. प्रिय की संवेदना का तरल अमूर्त बिंब प्रस्तुत किया गया है।
3. ‘गरवीली गरीबी’ ‘विचार वैभव’ में अनुप्रास अलंकार है।
4. ‘मौलिक है, मौलिक है’ तथा ‘पल-पल’ में पुनरुक्ति प्रकाश अलंकार है।
5. ‘गरीबी’ के लिए ‘गरवीली’ विशेषण का प्रयोग अत्यंत सटीक बन पड़ा है।
6. ‘भीतर की सरिता’ में लाक्षणिकता है।
7. ‘गरवीली-गरीबी’ तथा ‘विचार-वैभव’ में सामासिकता है।
8. ‘मौलिक’ शब्द की आवृत्ति द्वारा दृढ़ता का भाव उत्पन्न किया गया है।
कवि किस-किसको मौलिक मानता है और क्यों?
कवि अपनी स्वाभिमान युक्त गरीबी, जीवन गंभीर अनुभवों, वैचारिक चिंतन, व्यक्तित्व की दृढ़ता और अंत:करण की भावनाओं को मौलिक मानता है। ये सभी उसके भीगे हुए यथार्थ के प्रतिफल हैं। इन पर किसी की छाया नहीं हैं अत: ये मौलिक हैं।
इन पर किसकी संवेदना का प्रभाव है?
कवि की समस्त उपलब्धियों पर उसकी प्रिया की संवेदना का प्रभाव है। उसकी अनुभूति के कारण ये उसे प्रिय लगती है।
जितना भी उँडेलता हूँ, भर-भर फिर आता है
दिल में क्या झरना है?
मीठे पानी का सोता है
भीतर वह, ऊपर तुम
मुस्काता चाँद ज्यों धरती पर रात-भर
मुझ पर त्यों तुम्हारा ही खिलता वह चेहरा है।
प्रसंग: प्रस्तुत पक्तियां मुक्तिबोध की ‘सहर्ष स्वीकार) है’ शीर्षक कविता में से अवतरित हैं। कवि अपने जीवन के प्रत्येक क्षण को अपने प्रिय से जुड़ा पाता है। वह स्वयं को हर समय प्रिय के निकट पाता है। कवि कहता है-
व्याख्या: हे प्रिय! न जाने मेरा तुम्हारे हदय के साथ कैसा गहरा रिश्ता (संबंध) है कि अपने हृदय के प्रेम को जितनी मात्रा मे उडेलता हूँ, मेरा मन उतना ही प्रेममय होता चला जाता है अर्थात् मैं अपने हृदय के भावों को कविता आदि के माध्यम से जितना बाहर निकालने का प्रयास करता हूँ, उतना ही पुन: अंत:करण में भर-भर आता है। अपने हृदय की इस अद्भुत स्थिति को देखकर मैं यह सोचने पर विवश हो जाता हूँ कि कहीं मेरे हृदय में प्रेम का कोई झरना तो नहीं बह रहा है जिसका जल समाप्त होने को ही नहीं आता। मेरे हृदय में भावों की हलचल मची रहती है। इधर मन में प्रेम है और ऊपर से तुम्हारा चाँद जैसा मुस्कराता हुआ सुंदर चेहरा अपने अद्भुत सौंदर्य के प्रकाश से मुझे नहलाता रहता है। यह स्थिति उसी प्रकार की है जिस प्रकार आकाश में मुस्कराता हुआ चंद्रमा पृथ्वी को अपने प्रकाश से नहलाता रहता है।
भाव यह है कि कवि की समस्त अनुभूतियाँ प्रिय की सुंदर मुस्कानयुक्त स्वरूप से आलोकित हैं।
विशेष: 1. कवि ने अपने प्रेममय हृदय की अद्भुत स्थिति का वर्णन किया है।
2. ‘दिल में क्या झरना है?’ में प्रश्न अलंकार है।
3. ‘भर- भर’ में पुनरुक्ति प्रकाश अलंकार है।
4. ‘जितना भी उँडेलता हूँ, भर-भर फिर आता है’ में विरोधाभास अलंकार है।
5. प्रिय के मुख की चाँद के साथ समता करने में उपमा अलंकार है।
6. ‘मीठे पानी का सोता है’ में रूपक अलंकार है।
7. ‘झरना’ और ‘स्रोत’ प्रेम की अधिकता को व्यंजित करते हैं।
8. भाषा में लाक्षणिकता का समावेश है।
कवि अपने दिल की तुलना किससे करता है और क्यों?
कवि अपने दिल की तुलना मीठे पानी के झरने (सोता) से करता है। वह इसमें से जितना भी प्रेम उँडेलता है उतना ही यह और भर जाता है। उसके हृदय में अपार प्रेम भावना विद्यमान है।
भूलूँ मैं
प्ले मैं
तुम्हें भूल जाने की
दक्षिण ध्रुवि अंधकार अमावस्या
शरीर पर, चेहरे पर, अंतर में पालूँ मैं
झेलूँ मैं, उसी में नहा लूँ मैं
इसलिए कि तुमसे ही परिवेष्टित आच्छादित
रहने का रमणीय यह उजेला अब
सहा नहीं जाता है।
नहीं सहा जाता है।
प्रसगं: प्रस्तुत पक्तियों हमारी पाठ्यपुस्तक में सकलित कविता ‘सहर्ष स्वीकारा है’ से अवतरित हैं। इसके रचयिता मुक्तिबोध हैं। इसमें कवि अपने जीवन की प्रत्येक अनुभूति एवं उपलब्धि को प्रिय की देन मानता है। कवि ने भ्रमवश प्रिय को भूलने का प्रयत्न किया, जिसके कारण वह अपराध से ग्रसित हो गया है। वह अपराध स्वीकार करता हुआ, कहता है-
व्याख्या: हे प्रिय, तुम मुझे दंड दो कि मैं तुम्हें भूल जाऊँ। यद्यपि यह बहुत बड़ा दंड होगा, लेकिन मैं चाहता हूँ. कि तुम मुझे यह दंड दो। मेरे जीवन में अमावस्या और दक्षिणी ध्रुव के समान गहरा अंधकार छा जाए। मैं उस विस्मरण को अपने शरीर, मुख और अत -करण में पार्ट, सहन करूँ और उसी में स्नान कर लूँ अर्थात् पूरी तरह सराबोर हो जाऊँ। मैं मन और बाहर दोनों रूपों में वियोग की पीड़ा झेलना चाहता हूँ। मैं स्वयं को अंधकार में इसलिए विलीन कर देना चाहता हूँ क्योंकि मेरा व्यक्तित्व चारों ओर से तुम्हारे प्रेम से घिरा हुआ है। अब मेरा मन तुम्हारे अद्भुत सौंदर्ययुक्त निश्चल और उज्जल प्रेम के प्रकाश को सहन नहीं कर पा रहा है। भाव यह है कि कवि के मन को उसके प्रिय ने अपने प्रेम के उज्जल आलोक से घेर रखा है। कवि के अपराधग्रस्त मन से अब यह आलोक (प्रेम का प्रकाश) सहन नहीं हो पाता। रह-रहकर उसका मन आत्मग्लानि से भर उठता है।
विशेष: 1. अपराधबोध से ग्रस्त मानसिकता का सजीव चित्रण किया गया है।
2. अंधकार-अमावस्या निराशा के प्रतीक हैं।
3. रूपक एवं अनुप्रास अलंकार का प्रयोग है।
4. भाषा संस्कृतनिष्ठ तथा समासयुक्त है।
5. ‘सहा नहीं जाता’ की पुनरुक्ति में दर्द की गहराई का आभास होता है।
6. खड़ी बोली का प्रयोग है।
कवि अपने लिए किस प्रकार का दंड चाहता है?
कवि अपने लिए ऐसा दंड चाहता है जिससे वह प्रिय को भूल जाए।
कवि अपने जीवन में क्या चाहता है और क्यों?
कवि चाहता है कि उसके जीवन में अमावस्या और दक्षिणी ध्रुव के समान गहरा अंधकार छा जाए। वह विस्मरण की अवस्था में रहना चाहता है।
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कवि क्या चाहता है?
कवि विस्मरण की स्थिति को पूरी तरह अंगीकार कर लेना चाहता है। वह उसी स्थिति में डूब कर सराबोर हो जाना चाहता है वह स्वयं को अंधकार मे विलीन कर देना चाहता है।
सहा नहीं जाता है, नहीं सहा जाता है।
- कवि से क्या नहीं सहा जाता है?
कवि को प्रिय का अत्यधिक लगाव अब सहन नहीं हो पा रहा है। वह प्रिय से परिवेष्टित उजाले को झेल पाने में स्वयं को असमर्थ पा रहा है। संभवत: वह अपराध बोध से ग्रस्त है।
ममता के बादल की मँडराती कोमलता-
भीतर पिराती है
कमजोर और अक्षम अब हो गई है आत्मा यह
छटपटाती छाती को भवितव्यता डराती है
बहलाती सहलाती आत्मीयता बरदाश्त नहीं होती।
प्रसंग: प्रस्तुत पंक्तियाँ मुक्तिबोध की कविता ‘सहर्ष स्वीकार है’ से अवतरित हैं। इसमें कवि सुख-दुःख की समस्त स्थितियों को इसलिए स्वीकार कर लेता है क्योंकि वह इन सबका सबंध अपने प्रिय के साथ जुड़ा पाता है। हर परिस्थिति को उसी की देन मानता है। कवि भवितव्यता (होनी) से व्यथित होकर कहता है-
व्याख्या: हे प्रिय! तुम जो ममता के बादल मुझ पर बरसाती हो, उसकी कोमलता मेरे मन को अंदर-ही-अंदर पीड़ा पहुँचाती है। मेरी अंतर्रात्मा कमजोर और क्षमताहीन हो गई है। जब मैं भविष्य के बारे में सोचता हूँ तो मुझे डर लगने लगता है मेरी छाती दु:ख से छटपटाने लगती है और भीषण भविष्य की कल्पना से मन काँपने लगता है। तुम्हारा यह अपनत्व भरा बहलाना-सहलाना भी मेरे अपराधग्रस्त मन से सहन नहीं हो पाता। मेरी आत्मा मुझे धिक्कारने लगती है।
भाव यह है कि तुम्हें भूल जाने के अपराध बोध ने मेरी आत्मा को अत्यंत कमजोर बना दिया है। भविष्य के भीषण परिणाम की आशका से मेरी छाती में छटपटाहट होने लगती है। अब मेरा मन तुम्हारे आत्मीय व्यवहार को भी सहन नहीं कर पाता है। प्रिय का आत्मीय व्यवहार कवि को आत्मग्लानि से भर देता है।
कवि को क्या बात पिराती है?
कवि को यह बात भीतर तक पिराती है कि जब उसकी प्रिय उस पर ममता के बादल बरसाती है। उसकी कोमलता कवि को पीड़ा पहुँचाती है।
कवि अपनी आत्मा के बारे में क्या कहता है?
कवि अपनी आत्मा के बारे में यह कहता है कि वह कमजोर और अशक्त हो गई है।
कवि को क्या बात डराती है?
कवि जब भविष्य की कल्पना करता है तब उसका मन काँपने लगता है। प्रिय का अत्यधिक लगाव उसे अपराध भावना से ग्रस्त कर देता है।
पाताली अँधेरे की गुहाओं में, विवरों में
धुएँ के बादलों में
बिल्कुल मैं लापता!!
लापता कि वहाँ भी तो तुम्हारा ही सहारा है!
प्रसंग: प्रस्तुत पक्तियाँ मुक्तिबोध द्वारा रचित कविता ‘सहर्ष स्वीकारा है’ से अवतरित हैं। कवि अपने जीवन की प्रत्येक उपलब्धि पर प्रिय की छाप देखता है। एक बार उसने भ्रमवश भय को भुलाना चाहा था, बाद में उसे अपनी सोच पर आत्मग्लानि का अहसास हुआ।
व्याख्या: है प्रिय! मैं दंड पाने के योग्य हूँ क्योंकि मैं तुम्हारा दोषी हूँ। तुम मुझे ऐसा दंड दो कि मैं पाताल की अँधेरी, गहरी गुफाओं भयानक सुनसान सुरगा में, विवरों (गड्ढों में दमघोंटू (प्राणघाती) बादलों में सर्वथा लापता हो जाऊँ। मैं गुमनामी में खोना चाहता हूँ। उस अकेलेपन में भी मुझे तुम्हारा ही सहारा होगा अर्थात् तुम्हारी प्रेमभरी यादें मेरे अकेलेपन के एहसास को नष्ट कर मुझे प्रसन्न रखेंगी। तुम्हारे निश्छल प्रेम की अनुभूतियाँ मुझे वहाँ भी आश्रय प्रदान करेंगी।
विशेष: 1. कवि ने अपने व्यक्तित्व के निर्माण में प्रिय के योगदान को स्वीकार किया है।
2. अपराधबोध से ग्रस्त मानसिकता का अत्यंत मार्मिक चित्रण किया गया है।
3. विस्मृति के लिए ‘पाताली अँधेरे’ और ‘धुएँ के बादल’ आदि उपमान बड़े ही सजीव और भाव व्यंजक हैं।
4. अंतिम पंक्ति में विरोधाभास है।
5. ‘दंड दो’ में अनुप्रास अलंकार है।
6. सरल भाषा में भावों को अभिव्यक्त करने की अद्भुत क्षमता है।
कवि अपने लिए क्या दंड चाहता है?
कवि अपने लिए प्रिय से यह दंड चाहता है कि वह इस संसार से अदृश्य स्थान पर जाकर गायब हो जाए।
कवि कहाँ जाना चाहता है और क्यों?
कवि गहन अंधकार वाली गुफाओं, बिलों में अथवा धुएँ के बादलों में छिप जाना चाहता है ताकि वह प्रिय की नजरों से दूर चला जाए। ऐसा वह दंडस्वरूप चाहता है।
वहाँ भी कवि को किसका सहारा है?
वहाँ पर भी कवि की प्रिय का ही सहारा होगा। प्रिय के प्रेम के निश्चल अनुभूतियाँ उसे वहाँ भी आश्रय प्रदान करेंगी।
इसलिए कि जो कुछ भी मेरा है
या मेरा जो होता-सा लगता है, होता-सा संभव है
सभी वह तुम्हारे ही कारण के कार्यों का घेरा है,
कार्यों का वैभव है
अब तक तो जिंदगी में जो कुछ था, जो कुछ है
सहर्ष स्वीकारा है
इसलिए कि जो कुछ भी मेरा है,
वह तुम्हें प्यारा है।
प्रसंग: प्रस्तुत पक्तियां मुक्तिबोध की रचना ‘सहर्ष स्वीकारा है’ में से अवतरित हैं। इसमें कवि ने अपनी प्रत्येक अनुभूति, परिस्थिति और स्थिति पर अपने प्रिय की छाप का अनुभव किया है। यही कारण है कि वह प्रत्येक क्षण एवं स्थिति को सहर्ष स्वीकार कर लेता है। कवि अँधेरी गुफा के अदंर भी प्रिय के संवेदना का अनुभव करता है। कवि बताता है-
व्याख्या: हे प्रिय! मेरे जीवन में जो कुछ भी है या जो कुछ मेरा होता-सा लगता है (वह शायद मेरा हो जाए) वह सब तुम्हारे कारण ही है। मेरी जो सत्ता है, मेरी जो स्थितियाँ हैं, मेरी जो स्थितियाँ हो सकती हैं, मेरी उन्नति या अवनति की जो संभावनाएँ हैं, वे सभी तुम्हारे कारण हैं। मेरा हर्ष-विषाद, उन्नति- अवनति सदा तुम्हारे कारण हैं। मेरा हर्ष-विषाद, उन्नति- अवनति सदा तुम्हीं से जुड़ी रही हैं। हे प्रिय! मेरे जीवन में जो भी सुख-दु:ख, सफलताएँ- असफलताएँ हैं, मैंने उन्हें प्रसन्नतापूर्वक इसलिए स्वीकार किया है क्योंकि तुमने उन सबको अपना माना है, वे सब तुम्हें प्रिय हैं। जो तुम्हें प्रिय हैं, उन्हें अस्वीकार कर पाना मेरे लिए असंभव है।
भाव यह है कि कवि के जीवन की प्रत्येक उपलब्धि, संपन्नता, हर्ष-विषाद आदि सभी कुछ प्रिय की ही देन है। यही कारण है कि कवि का जो कुछ था, जो कुछ है और जो कुछ होता-सा लगता है, को प्रसन्नतापूर्वक स्वीकार कर लिया है।
विशेष: 1. इस सशक्त कविता में कवि ने अपने जीवन के समस्त खट्टे-मीठे अनुभवों, कोमल-तीखी अनुभूतियों और सुख-दुःख को इसलिए सहर्ष स्वीकार कर लिया है क्योंकि इन सब पर प्रिय का प्रभाव है। वह प्रत्येक परिस्थिति को उसी की देन मानता है।
2. भाषा प्रवाहमयी और सरल है।
टिप्पणी कीजिए; गरबीली गरीबी, भीतर की सरिता, बहलाती सहलाती आत्मीयता, ममता के बादल।
गरबीली गरीबी: गरीबी में प्राय: मनुष्य हताश निराश और दुखी होकर अपना धैर्य खो बैठता है। तब उसका जीवन के प्रति नकारात्मक दृष्टिकोण हो जाता है। यहाँ कवि ने गरीबी को गरबीली बताकर उसे आत्म सम्मान का रूप दे दिया है।
- भीतर की सरिता: इस कथन का तात्पर्य यह है कि हृदय के भीतर प्रेम भाव की नदी (झरना) बहती है। यहाँ भावनाओं के प्रवाह को ही सरिता कहा है। कवि के हृदय में भावनाओं का अंत-प्रवाह बह रहा है। इसमें पवित्र जल है।
- बहलाती सहलाती आत्मीयता: इसका आशय यह है कि प्रेयसी का प्रेमपूर्ण व्यवहार उसे हर समय बहलाता-सहलाता रहता है। उसका व्यवहार अत्यंत आत्मीयतापूर्ण है। उसका निश्छल प्रेम कवि के दु:ख को कम करने का काम तो करता है पर वह उसे सहन नहीं कर पाता। अति बुरी होती है।
- ममता के बादल: प्रिया कवि के ऊपर ममता भरे बादल बरसाती है। यह उसे अंदर तक पिरा जाती है क्योंकि कवि की आत्मा कमजोर हो गई है। ममता उससे सहन नहीं होती।
इस कविता में और भी टिप्पणी-योग्य पद-प्रयोग हैं। ऐसे किसी एक प्रयोग का अपनी ओर से उल्लेख कर उस पर टिप्पणी करें।
ऐसा ही एक अन्य पद है-मीठे पानी का सोता जिस प्रकार झरने का जल शीतल और मीठा होता है उसी तरह कवि के हृदय में मृदु-कोमल-प्रेम भावनाओं का झरना बहता रहता है। कवि का हृदय मधुर संबंधों का उद्गम स्थल है। यहाँ हृदय के लिए सोता (स्रोत) शब्द का प्रयोग किया गया है।
व्याख्या कीजिए-
जाने क्या रिश्ता है, जाने क्या नाता है।
जितना भी उँडेलता हूँ, भर-भर फिर आता है।
दिल मैं क्या झरना है?
मीठे पानी का सोता है
भीतर वह, ऊपर तुम
मुसकाता चाँद ज्यों धरती पर रात भर
मुझ पर त्यों तुम्हारा ही खिलता वह चेहरा है।
उपर्युक्त पंक्तियों की व्याख्या करते हुए यह बताइए कि यहाँ चाँद की तरह आत्मा पर झुका चेहरा भूलकर अंधकार-अमावस्या में नहाने की बात क्यों की गई?
व्याख्या: हे प्रिय! न जाने मेरा तुम्हारे हृदय के साथ कैसा गहरा रिश्ता (संबंध) है कि अपने हृदय के प्रेम को जितनी मात्रा में उडेलता हूँ, मेरा मन उतना ही प्रेममय होता चला जाता है अर्थात् मैं अपने हृदय के भावों को कविता आदि के माध्यम से जितना बाहर निकालने का प्रयास करता हूँ, उतना ही पुन: अंत:करण में भर-भर आता है। अपने हृदय की इस अद्भुत स्थिति को देखकर मैं यह सोचने पर विवश हो जाता हूँ कि कहीं मेरे हृदय में प्रेम का कोई झरना तो नहीं बह रहा है जिसका जल समाप्त होने को ही नहीं आता। मेरे हृदय में भावों की हलचल मची रहती है। इधर मन में प्रेम है और ऊपर से तुम्हारा चाँद जैसा मुस्कराता हुआ सुंदर चेहरा अपने अद्भुत सौंदर्य के प्रकाश से मुझे नहलाता रहता है। यह स्थिति उसी प्रकार की है जिस प्रकार आकाश में मुस्कराता हुआ चंद्रमा पृथ्वी को अपने प्रकाश से नहलाता रहता है।
यहाँ चाँद की तरह आत्मा पर झुका चेहरा भूलकर अँधकार-अमावस्या में नहाने की बात इसलिए कही गई है क्योंकि कवि कल्पना लोक से निकल यथार्थ के धरातल में जीना चाहता हैं जीवन में सभी कुछ अच्छा ही अच्छा नहीं है, यहाँ दु:खों का अंधकार भी है।
भाव यह है कि कवि की समस्त अनुभूतियाँ प्रिय की सुंदर मुस्कानयुक्त स्वरूप से आलोकित हैं।
यद्यपि दोनों में विरोधाभास वाली स्थिति है, पर वास्तव में इनमें अंतर्विरोध है नहीं। कवि प्रिय की बहलाती सहलाती आत्मीयता को बरदाश्त भी नहीं कर पाता फिर भी उसे सहर्ष स्वीकार कर लेता है। कवि भाव प्रवणता की मन:स्थिति में है। वह अति से उकताता है पर सहज रूप को सहर्ष स्वीकार कर लेता है। अत: हम इनमें अंतर्विरोध की स्थिति त नहीं पाते।
अतिशय मोह भी क्या त्रास का कारक है? माँ का दूध छूटने का कष्ट जैसे एक जरूरी कष्ट है, वैसे ही कुछ और जरूरी कष्टों की सूची बनाएँ।
हाँ, अतिशय मोह भी त्रास का कारक है। जब अतिशय मोह वाली चीज से संबंध टूटता है तब बड़ा त्रास (दु:ख) होता है। सासारिक वस्तुओं के प्रति अतिशय मोह नहीं रखना चाहिए।
बच्चे का माँ के दूध के साथ अतिशय मोह होता है। जब यह दूध छूटता है तब उसे बड़ा कष्ट होता है।
ऐसे ही कुछ अन्य कष्टों की सूची-
- प्रिय व्यक्ति का साथ छूटना
- मित्र/सखी का शहर से दूर चले जाना
- मनपसंद खाद्य वस्तु का उपलब्ध न होना।
‘प्रेरणा’ शब्द पर सोचिए। उसके महत्त्व पर प्रकाश डालते हुए जीवन के वे प्रसंग याद कीजिए जब माता-पिता, दीदी-भैया, शिक्षक या कोई महापुरुष आपके अँधेरे क्षणों में प्रकाश भर गए।
‘प्रेरणा’ शब्द बहुत महत्वपूर्ण है। हम अपने श्रद्धेय, पूजनीय, आदरणीय व्यक्तियों के जीवन एवं कार्यो से प्रेरणा लेकर आगे बढ़ते हैं। इससे हमारे अँधेरे क्षणों में प्रकाश भर जाता है।
एक बार मैं अपने विद्यालयी जीवन में फैशन की ओर उन्मुख हो गया था। परीक्षा में भी मेरे कम अंक आए। तभी मुझे मेरे बड़े भैया ने सद्मार्ग पर चलने की प्रेरणा दी। उन्होंने मुझे समय का महत्त्व समझाया। कई उदाहरण भी दिए। फैशन की निरर्थकता बताते हुए पढ़ाई पर ध्यान देने की प्रेरणा दी। इससे मेरी आँखें खुल गई। मैं फैशन का चक्कर छोड्कर पढ़ाई में जुट गया। वार्षिक परीक्षा में जब मुझे 85% अंक मिले तो मुझे भाई की प्रेरणा का महत्व समझ में आया।
भय’ शब्द पर सोचिए। सोचिए कि मन में किन-किन चीजों का भय बैठा है? उससे निबटने के लिए आप क्या करते हैं और कवि की मनःस्थिति से अपनी मनःस्थिति की तुलना कीजिए।
भय, डर को कहते हैं। कई बार किसी चीज के बारे में हमारे मन में भय बैठ जाता है और हम उससे बचने की कोशिश करते हैं।
मेरे मन में ‘गणित’ विषय के प्रति भय बैठा हुआ है। मुझे लगता है कि मैं गणित के प्रश्नों को कभी हल नहीं कर पाऊँगा। इस स्थिति से निबटने के लिए मैं अपने मित्र की मदद लेता हूँ। कवि की मन:स्थिति प्रिय के प्रति अतिशय प्रेमभावना को लेकर द्विविधाग्रस्त है। मेरी मन:स्थिति में किसी प्रकार की द्विविधा नहीं है, बल्कि वह एक विषय को न समझ पाने से उत्पन्न भय की स्थिति है।
वह क्या-क्या है, जिसे कवि ने सहर्ष स्वीकारा है?
कवि ने अपने जीवन की कटु-मधुर अनुभूतियों, सुख-दुःखपूर्ण परिस्थितियों, व्यक्तित्व की दृढ़ता तथा मीठे-तीखे अनुभव आदि सबको सहर्ष स्वीकार किया है। इसका कारण यह है कि वह इन सबके साथ अपने प्रिय को जुड़ा पाता है। जो-जो बातें उसके प्रिय को पसंद हैं, उन्हें कवि सहर्ष स्वीकार कर लेता है। कवि के पास अपनी गर्वीली गरीबी है, जीवन के गहरे अनुभव हैं, प्रौढ़ विचार हैं, भावनाओं का बहता प्रवाह है, प्रेयसी का प्यार है। वह इन सबको सहर्ष स्वीकार कर लेता है।
कवि के पास जो कुछ अच्छा-बुरा है वह विशिष्ट और मौलिक कैसे और क्यों है?
कवि के पास स्वाभिमान युक्त गरीबी है जिस पर उसे गर्व है। जीवन को भोगने में प्राप्त गहन अनुभव, वैचारिक प्रक्रिया अर्थात् चिंतन सैद्धांतिक दृढ़ता, हृदय में बहने वाली भावों रूपी नदी काव्य में उसके द्वारा अपनाई गई नवीनता आदि सब अच्छे हैं अथवा बुरे हैं पर हैं विशिष्ट और मौलिक। इस मौलिकता के कारण ही कवि ने प्रत्येक पल को जिया है। किसी भी विषय पर विचार करने की उसकी अपनी शैली है, हृदय में उठने वाली अनुभूतियों के प्रति भी उसका अपना दृष्टिकोण है। अत: उसके पास जो कुछ भी अच्छा-बुरा है, वह उसका विशिष्ट और मौलिक है। उसमें नकल या बनावटीपन नहीं है।
कवि को अपनी प्रिय से संवेदनाओं के धरातल पर क्या कुछ मिला?
कवि को अपने प्रिय से संवेदनाओं के धरातल पर प्रेयसी का प्रेम गहन अनुभव, वैचारिक संपन्नता, दृढ़ता, हृदय की भाव-सरिता आदि चीजें मिलीं। कवि अपने जीवन की हर परिस्थिति को प्रिय की संवेदना का ही प्रतिफल मानता है। कवि का कहना है कि उसमें ‘जो कुछ भी जागत है’ वह सब प्रिय की संवेदना के कारण है।
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एक घोर अंधकारमयी विस्मृति में खो जाने का दंड कवि क्यों पाना चाहता है?
क्योंकि कवि अपनी अतिशय भावुकता और संवेदनशीलता से तंग आ चुका है-वह हर जगह पिघल जाता है-अपनी इस अति कोमलता से छुटकारा पाने के लिए एक ओर अंधकारमयी विस्मृति में खो जाने का दंड पाना चाहता है। कवि का हृदय अपराध-बोध से ग्रसित हो जाता है। वह अपनी प्रिय को विस्मृत करने की भूल का दंड भी प्रिय से ही चाहता है क्योंकि यह उसका अपनी प्रेयसी के निश्छल प्रेम के प्रति विश्वासघात था। वह अपने अपराध का दंड भुगतने के लिए घोर अंधकारमयी विस्मृति में खो जाना चाहता है। उसकी आत्मा और संकल्प शक्ति भी बहुत कमजोर हो चुकी है।
कवि के लिए सखन-मधुर स्थिति भी असह्य क्यों बन गई है?
कवि के लिए सुखद-मधुर स्थिति इसलिए असह्य बन गई है क्योंकि ‘भवितव्यता’ उसे डराती है। उसके अपने प्रेम में आत्मग्लानि की भावना छिपी हुई है। (संभवत: कवि यह सोचता होगा कि वह प्रेयसी को पत्नी रूप नहीं दे पाएगा।) कवि भविष्य की कल्पना करके भयभीत हो जाता है। वह स्वयं को अपराध ग्रस्त भी पाता है तथा चिंतित रहता है। ऐसी स्थिति में सुखद-मधुर स्थिति भा उसे असह्य हो जाती है।
पाताली अँधेरे में तथा गुहाओं और धुएँ के बाबलों में कवि बिल्कुल लापता हो जाने में भी संतोष का अनुभव क्यों करता है?
क्योंकि कवि अपने ज्ञान के प्रकाश से अति सतर्कता से कोमलता से तंग आ गय। है और अब वह अज्ञानी मुढ़ संवेदन-शून्य होकर जीना चाहता है। वह सोचता है कि वहाँ उसे प्रिय की अनुभूतियों के घेराव से छुटकारा मिल जाएगा। वहाँ वह एक गुमनाम जिंदगी जी सकेगा। वहाँ वह अपराध-बोध से भी मुक्ति पा लेगा।
उसके संतोष का दूसरा कारण यह भी है कि अँधेरी गुफाओं में भी प्रिया की संवेदनाएँ उसे सहारा प्रदान करेंगी।
कवि के हृदय में क्या वस्तु है जो उसे पिराती है?
कवि के हृदय में ममता के बादल की मँडराती कोमलता उसे पिराती है।
जीवन में जो कुछ अच्छा-बुरा, कड़वा-मीठा कवि को मिला, उसे सहर्ष स्वीकारने का उसने क्या विशेष कारण बताया है?
अपनी गरवीली गरीबी, गंभीर अनुभव, विचार-वैभव, दृढ़ता और भीतरी भाव तरंगों को कवि ने नितांत मौलिक बताया है, इसके लिए उसने क्या तर्क दिया है?
इसके लिए कवि ने तर्क दिया है कि कवि की जागरूकता तथा एकाग्रता, दृढ़ता एवं भावनाएँ मौलिक हैं। कवि इसके लिए तर्क देता है कि वह हर समय जागरूक रहता है। भीतर की इच्छाशक्ति उसे दृढ़ता प्रदान करती है। हृदय में भावनाओं का अंत:प्रवाह बहता रहता है। हाँ, संवेदन अवश्य उसकी प्रिया का दिया हुआ है।
मुक्तिबोध की कविता के आधार पर स्पष्ट कीजिए कि कवि ने किसे सहर्ष स्वीकारा था। आगे चलकर वह उसी को क्यों भुला देना चाहता है?
कवि ने अपने सुख-दु:ख की अनुभूतियों को सहर्ष स्वीकार। है। कवि के पास अपनी गर्वीली गरीबी है, जीवन के गहरे अनुभव हैं, व्यक्तित्व की दृढ़ता है, नूतन भावनाओं का प्रवाह है, अपने प्रिय का प्रेम है। उसने इन सभी को सहर्ष स्वीकारा है। आगे चलकर कवि अपने प्रिय को इसलिए भुला देना चाहता है क्योंकि उसका अतिशय प्रेम, बहलाती-सहलाती आत्मीयता अब उससे बर्दाश्त नहीं हो पाती। वह उसके प्रभाव से मुक्त होना चाहता है।
‘सहर्ष स्वीकारा है’ के कवि ने जिस चाँदनी को स्वयं सहर्ष स्वीकारा था, उससे मुक्ति पाने के लिए वह अंग-अंग में अमावस की चाह क्यों कर रहा है?
कवि ने जिस चाँदनी (प्रिय को) स्वयं स्वीकार किया था, अब उससे मुक्ति पाना चाहता है। इसका कारण यह है कि कवि अपनी अतिशय भावुकता और संवेदनशीलता से तंग आ चुका है - वह हर जगह पिघल जाता है - अपनी इस अति कोमलता से छुटकारा पाने के लिए एक ओर अंधकारमयी विस्मृति में खो जाने का दंड पाना चाहता है। कवि का हृदय अपराध-बोध से ग्रसित हो जाता है। वह अपनी प्रिय को विस्मृत करने की भूल का दंड भी प्रिय से ही चाहता है क्योंकि यह उसका अपनी प्रेयसी के निश्छल प्रेम के प्रति विश्वासघात था। वह अपने अपराध का दडदंडुगतने के लिए घोर अंधकारमयी विस्मृति में खो जाना चाहता है। उसकी आत्मा और संकल्प शक्ति भी बहुत कमजोर हो चुकी है।
पाताली अँधेरे में तथा गुहाओं और’ धुएँ के बादलों में कवि बिल्कुल लापता हो जाने में भी संतोष का अनुभव क्यों करता है?
क्योंकि कवि अपने ज्ञान के प्रकाश से अति सतर्कता से, कोमलता से तंग आ गया है और अब वह अज्ञानी, छूमुढ़ंवेदन-शून्य होकर जीना चाहता है। वह सोचता है कि वहाँ उसे प्रिय की अनुभूतियों के घेराव से छुटकारा मिल जाएगा। वहाँ वह एक गुमनाम जिंदगी जी सकेगा। वहाँ वह अपराध-बोध से भी मुक्ति पा लेगा।
उसके संतोष का दूसरा कारण यह भी है कि अँधेरी गुफाओं में भी प्रिया की संवेदनाएँ उसे सहारा प्रदान करेंगी।
कवि ने व्यक्तिगत संदर्भ में किस स्थिति को अमावस्या कहा है?
मुक्तिबोध की यह कविता अपनी सुख-दु:ख की अनुभूतियों, गरबीली गरीबी प्रौढ़ विचार, व्यक्तिगत दृढ़ता, जीवन के खट्टे-मीठे अनुभव, प्रेमिका का प्रेम व नूतन भावनाओं के वैभव को सहर्ष स्वीकार करने की प्रेरणा देती है। इससे व्यक्ति का जीवन सहज होता है। वह स्वयं को प्रिय से जुड़ा हुआ पाता है।
‘सहर्ष स्वीकारा है’ कविता का प्रतिपाद्य अथवा मूल भाव अपने शब्दों में लिखिए।
‘सहर्ष स्वीकारा है’ शीर्षक कविता मुक्तिबोध की एक सशक्त रचना है। इसमें कवि ने अपने जीवन के समस्त खट्टे-मीठे अनुभवों, कोमल-तीखी अनुभूतियों तथा सुख-दु:ख की स्थितियों को इसलिए सहर्ष स्वीकार कर लिया है क्योंकि वह इन सबके साथ अपने प्रिय को जुड़ा पाता है। यहाँ तक कि वह अपने जीवन के प्रत्येक पक्ष पर प्रिय का प्रभाव और उसकी देन मानता है। कवि का समस्त जीवन प्रेयसी की संवेदनाओं से जुड़ा हुआ है। कवि के हृदय में बहने वाला भावनाओं का प्रवाह भी प्रेयसी की ही देन है। कवि को अपनी गरीबी पर गर्व है क्योंकि वह अपने आत्मसम्मान को बनाए रखने में सफल रहा है। उसकी वैचारिक शक्ति व्यक्तित्व की दृढ़ता आदि में मौलिकता है। कवि को अपना भविष्य अंधकारमय प्रतीत होता है, भविष्य उसे डराता है। कवि प्रेयसी के प्रेम को भविष्य में निभा पाने में स्वयं को असमर्थ पाता है। उसे आत्मग्लानि का अनुभव होता है अत: वह पाताली अँधेरी गुफाओं में जाने का दंड भुगतना चाहता है। उसे विश्वास है कि वहाँ भी उसे प्रेयसी की यादों का सहारा मिलेगा।
गरबीली गरीबी यह, ये गंभीर अनुभव सब
यह विचार-वैभव सब
दृढ़ता यह, भीतर की सरिता यह अभिनव सब
मौलिक है, मौलिक है
इसलिए कि पल-पल में
जो कुछ भी जाग्रत है अपलक है-
संवेदन तुम्हारा है!!
जाने क्या रिश्ता है, जाने क्या नाता है
जितना भी उँड़ेलता हूँ, भर-भर फिर आता है
दिल में क्या झरना है?
मीठे पानी का सोता है
भीतर वह, ऊपर तुम
मुसकाता चाँद ज्यों धरती पर रात-भर
मुझ पर त्यों तुम्हारा ही खिलता वह चेहरा है।
A. कवि के दिल में झरना या मीठे पानी का स्त्रोत वस्तुत: क्या है? उस झरने की क्या विशेषता है? | (i) कवि के हृदय में झरना या मीठे पानी का स्रोत वस्तुत: प्रेम-भावनाएँ हैं। उस झरने की विशेषता यह है कि यह कभी खाली नहीं होता। कवि जितना इसे बाहर निकालने का प्रयास करता है, उतना यह पुन: भर जाता है। |
B. ‘गरबीली गरीबी’ और ‘भीतर की सरिता’ से कवि का क्या अभिप्राय है? कवि ने इनको ‘मैलिक’ क्यों कहा है? | (ii) कवि आत्मसम्मानी है। उसे अपनी गरीबी पर गर्व है। कवि ने इसे मौलिक इसलिए कहा है कि उसके जीवन की अनुभूतियों में कोई बनावट-मिलावट नहीं है। वे सभी मौलिक हैं। |
C. कवि का रिश्ता किसके साथ है? उस रिश्ते को कवि ने किस रूप में कल्पित किया हैं? | (iii) कवि का रिश्ता अपनी प्रियतमा के साथ है। इस रिश्ते को कवि हृदय की गहराइयों से मानता है। कवि अपने हृदय से प्रेम को जितना उडेलता है, उसका मन उतना ही प्रेममय होता चला जाता है। |
D. ‘भीतर वह, ऊपर तुम’ से कवि का ससंकेत-किसकी ओर है? किसी का खिलता हुआ चेहरा उसको किस तरह आनंदित कर रहा है? | (iv) कवि के भीतर हृदय में प्रेम का झरना है और ऊपर वह प्रिय है। प्रिय का मुसकराता चेहरा कवि को आनंदित कर जाता है। |
A. कवि के दिल में झरना या मीठे पानी का स्त्रोत वस्तुत: क्या है? उस झरने की क्या विशेषता है? | (i) कवि के हृदय में झरना या मीठे पानी का स्रोत वस्तुत: प्रेम-भावनाएँ हैं। उस झरने की विशेषता यह है कि यह कभी खाली नहीं होता। कवि जितना इसे बाहर निकालने का प्रयास करता है, उतना यह पुन: भर जाता है। |
B. ‘गरबीली गरीबी’ और ‘भीतर की सरिता’ से कवि का क्या अभिप्राय है? कवि ने इनको ‘मैलिक’ क्यों कहा है? | (ii) कवि आत्मसम्मानी है। उसे अपनी गरीबी पर गर्व है। कवि ने इसे मौलिक इसलिए कहा है कि उसके जीवन की अनुभूतियों में कोई बनावट-मिलावट नहीं है। वे सभी मौलिक हैं। |
C. कवि का रिश्ता किसके साथ है? उस रिश्ते को कवि ने किस रूप में कल्पित किया हैं? | (iii) कवि का रिश्ता अपनी प्रियतमा के साथ है। इस रिश्ते को कवि हृदय की गहराइयों से मानता है। कवि अपने हृदय से प्रेम को जितना उडेलता है, उसका मन उतना ही प्रेममय होता चला जाता है। |
D. ‘भीतर वह, ऊपर तुम’ से कवि का ससंकेत-किसकी ओर है? किसी का खिलता हुआ चेहरा उसको किस तरह आनंदित कर रहा है? | (iv) कवि के भीतर हृदय में प्रेम का झरना है और ऊपर वह प्रिय है। प्रिय का मुसकराता चेहरा कवि को आनंदित कर जाता है। |
सचमुच मुझे दंड दो कि भूलूँ मैं भूलूँ मैं
तुम्हें भूल जाने को
दक्षिण ध्रुवी अंधकार अमावस्या
शरीर पर, चेहरे पर, अंतर में पा लूँ मैं
झेलूँ मैं, उसी में नहा लूँ मैं
इसलिए कि तुमसे ही परिवेष्टित आच्छादित
रहने का रमणीय यह उजेला अब
सहा नहीं जाता है।
जिसे कवि ने ‘सहर्ष स्वीकार’ था, उसे ही क्यों भूल जाना चाहता है?
कवि ने व्यक्तिगत सदंर्भ में किस स्थिति को ‘अमावस्या’ कहा है?
‘मैं तुम्हें भूल जाना चाहता हूँ’ - यह कहने के लिए कवि ने क्या युक्ति अपनाई है?
आशय स्पष्ट कीजिए:
यह उजेला अब सहा नहीं जाता है।
A.
जिसे कवि ने ‘सहर्ष स्वीकार’ था, उसे ही क्यों भूल जाना चाहता है?
निम्नलिखित काव्यांशों को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिए:
तुम्हें भूल जाने की
दक्षिण ध्रुवी अंधकार-अमावस्या
शरीर पर, चेहरे पर, अंतर में पा लूँ मैं
झेलूँ मैं, उसी में नहा लूँ मैं
इसलिए कि तुमसे ही परिवेष्टित आच्छादित
रहने का रमणीय यह उजेला अब
सहा नहीं जाता है।
1. अमावस्या के लिए प्रयुक्त विशेषणों से काव्यार्थ में क्या विशेषता आई है?
2. ‘मैं तुम्हें भूल जाना चाहता हूँ’-इस सामान्य कथन को व्यक्त करने के लिए कवि ने क्या युक्ति अपनाई है?
3. काव्यांश के शिल्प-सौंदर्य को स्पष्ट कीजिए।
1. अमावस्या के लिए ‘दक्षिण ध्रुवी अंधकार’ विशेषणों का प्रयोग किया गया है। दक्षिणी ध्रुव में गहरा अंध कार समाया रहता है। अमावस्या के लिए इन विशेषणों का प्रयोग काव्यार्थ में अंधकार विस्मृति को गहरा देता है। इन विशेषणों के प्रयोग से अंधकार में घनत्व आ गया है। घना अंधेरा और अधिक घुप्प हो गया है।
2. ‘मैं तुम्हें भूल जाना चाहता हूं’-इस सामान्य कथन को व्यक्त करने के लिए कवि प्रिया की परछाई से भी दूर चला जाना चाहता है र क्योंकि अब उसके रूप सौंदर्य का उजाला उससे सहन नहीं हो पा रहा है।
3. शिल्प-सौंदर्य:
● संबोधन शैली और आत्मानुभूति के कारण काव्यांश प्रभावी बन पड़ा है।
● ‘दक्षिणी ध्रुवी अंधकार-अमावस्या’ में रूपक है।
● ‘परिवेष्टित आच्छादित’ में ‘इत’ की स्वर मैत्री है। अंत्यानुप्रास भी है।
● तत्सम शब्दावली का प्रयोग हुआ है।
निम्नलिखित काव्यांशों को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिए:
सचमुच मुझे दंड दो कि मैं हो जाऊँ
पाताली अँधेरे की गुहाओं में विवरों में
धुएँ के बादलों में
बिल्कुल मैं लापता
लापता कि वहाँ भी तुम्हारा ही सहारा है
1. इन पंक्तियों में कवि क्या चाह रहा है?
2. ‘पाताली विवर’ से किस भावना की अभिव्यक्ति होती है?
3. भाषागत सौदंर्य स्पष्ट करो।
1. इन पंक्तियों में कवि अपनी प्रेमिका से दंड चाह रहा है।
2. ‘पाताली अँधेरी गुफाओं’ ‘विवर’ आदि शब्दों में अपराध बोध की भावना अभिव्यक्त होती है।
3. भाषागत सौंदर्य:
1. तत्सम शब्दावली का प्रयोग है।
2. व्यंजना शब्द शक्ति का प्रयोग है।
3. ‘लापता... है’ में विरोधाभास अलंकार है।
4. प्रयोगवादी काव्य-शैली का श्रेष्ठ नमूना है।
पठित कविताओं से उदाहरण देते हुए मुक्तिबोध की काव्यगत विशेषताओं पर प्रकाश डालिए।
मुक्तिबोध की काव्यगत विशेषताएँ-
1. सशक्त लेखन: मुक्तिबोध का कवि व्यक्तित्व जटिल है। उनकी कविताओं में संवेदना के संश्लिष्ट रूप दृष्टिगोचर होते हैं। मुक्तिबोध की कविताओं में संपूर्ण परिवेश के बीच स्वयं को खोजना और पाना ही नहीं, अपितु संपूर्ण परिवेश के साथ अपने को बदलने की प्रक्रिया का भी चित्रण है। मुक्तिबोध अपने काव्य-कर्म के प्रति ईमानदार रहे हैं।
2. विशिष्ट काव्य-शिल्प: मुक्तिबोध ने अपनी संवेदना और ज्ञान के अनुसार एक विशिष्ट काव्य-शिल्प का निर्माण किया है। फैंटेसी का सार्थक उपयोग मुक्तिबोध की कविताओं में ही देखने को मिलता है।
3. छोटे-छोटे वाक्यांश: मुक्तिबोध ने अपने काव्य में छोटे-छोटे वाक्यांशों का प्रयोग कर अपने कथ्य को प्रभावशाली बना दिया है। जैसे-
सहर्ष स्वीकारा है
संवेदन तुम्हारा है
4. छंद रहित कविता: मुक्तिबोध ने अपनी कविता को छंदों के बंधन में नहीं बाँधा है। उनके काव्य में भावों का सहज प्रयोग है। अत: वे उसे छंदमुक्त रूप में ही प्रस्तुत करते हैं। जैसे- ममता के बादल की मँडराती कोमलता-भीतर पिराती है।
5. विचारों का आवेग: मुक्तिबोध जी अपने विचारों को तीव्रता के साथ प्रकट करते हैं, इसमें व्यंग्य की झलक भी दृष्टिगोचर होती है।
6. सहज सरल भाषा-शैली: मुक्तिबोध की कविता में विचार तत्त्व की प्रधानता है और उसी के अनुरूप शब्द चयन भी अनोखा है।
7. अलंकार विधान: मुक्तिबोध की कविता अलंकार युक्त है। उन्होंने सर्वथा नवीन उपमानों का प्रयोग किया है।
उदाहरणार्थ-
उत्प्रेक्षा: मुसकाता चाँद क्यों धरती पर
अनुप्रास: गरवीली गरीबी।
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