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अब ये पानी की बूँदें निरंतर सुर्य द्वारा भाप बनकर अपना अस्तित्व खो देती हैं और फिर वर्षा के रूप में बरसकर पानी का रूप धारण करती है।
जलचक्र का चित्र-
जलचक्र के चित्र से यह स्पष्ट होता है कि जल भाप बनकर बादल का रूप धारण करता है और बादल बरसकर फिर पानी के रूप में बदल जाते हैं।
इस पाठ में लेखक रामचंद्र तिवारी जी ने पानी का सूर्य के ताप में भाप बनकर बादल रूप में बदलने का वर्णन आंशिक अर्थात् बहुत कम किया है जबकि पानी के बनने, धरती के ऊपर व नीचे, सागर, सरिता व पड़ो तथा चट्टानों में बूँदों के रूप में पानी का विस्तार से वर्णन किया है।
आप मिट्टी के कण की कहानी बना सकते हैं-जिसमें संकेत बिंदु इस प्रकार हैं-
1. मैं एक मिट्टी का कण।
2. हवा का चलना।
3. मेरे ऊपर मिट्टी के अनेक कणों का उड़ना।
4. आँधी पाकर आकाश की ऊँचाइयों तक जाना।
5. आकाश में विचरण करना।
6. धीरे-धीरे वापिस धरती पर आन का प्रयास।
7. हल्के हवा के झोंके के साथ उड़ते रहना।
8. एक पेड़ के साथ चिपक जाना।
9. तेज़ हवा का चलना।
10. हवा में उड़ते-उड़ते एक नदी को पार करना।
11. हवा का बंद होना।
12. मेरा धरातल पर आ जाना।
13. चैन की साँस लेना।
14. अपने मित्रों के साथ मिट्टी में मिलना।
पेड़ के भीतर फव्वारा नहीं होता, तब भी पेड़ की जड़ से पत्ते तक पानी पहुँचता है क्योंकि पेड़ की जड़ों व तनों में जाइलम और फ्लोएम नामक वाहिकाएँ होती हैं जो पानी को जड़ों से पत्तियों तक पहुँचाती हैं। इस क्रिया को ‘संवहन’ (ट्रांसपाइरेशन) कहते हैं।
‘संवहन’ की क्रिया को जानने का प्रयोग निम्नलिखित है-
एक काँच का बीकर लें। उसमें लाल रंग का पानी डालें। एक छोटा-सा पौधा उसमें रख दें। थोड़ी देर के बाद हम देखेंगे कि पौधे की जड़ो के माध्यम से लाल रंग ऊपर की आेर पौधे मैं जाता दिखाई देगा अर्थात् जाइलम व फ्लोएम वाहिकाएँ उसे जड़ से तन तक ले जाने का प्रयास करेंगी। यही विधि ‘संवहन’ है।
इसमें हमे प्लास्टिक की कहानी लिख सकते हैं इस हेतु संकेत बिंदु निम्न रूप से हैं-
● रासायनिक पदार्थोे से प्लास्टिक का बनना।
● कई प्रकार की वस्तुओं का निर्माण।
● वस्तुओं का घिस जाना।
● दुबारा पिंघलकर प्लास्टिक बनना।
● फिर से नई वस्तुओं का निर्माण।
● इस प्रकार की प्रक्रिया का निरंतर चलते रहना।
जल की तीन अवस्थाएँ होती हैं
ठोस → द्रव → गैस
ठोस अवस्था हल्की होती है क्योंकि इसका घनत्व कम होता है। इसी कारण बर्फ पानी में तैरती है। सभी तरल पदाथों में ऐसी प्रक्रिया केवल जल में ही होती है।
पर्यावरण संकट
पर्यावरण अर्थात् एक ऐसा आवरण जो हम चारों ओर से ढके हुए हें। पूरी प्रकृति विशाल पारिस्थिति की तंत्र है। मनुष्य के जीवन में धरती, आकाश, नदियाँ. पेड़-पौधे, हवा, जल, खनिज पदार्थ सभी अपना विशेष महत्व रखते हैं। लेकिन मनुष्य केवल अपने स्वार्थ से प्रेरित रहता हें। वह इन सब साधनों का प्रयोग ताे करता है लेकिन इनकी सुरक्षा व सुंदरता की और कोई कर्तव्य नहीं निभाता।
आज विश्व की सभी प्रसिद्ध नदियाँ गंगा, यमुना, नर्मदा, राइन, सीन, मास, टेम्स आदि पूर्णतया प्रदूषित हो चुकी हैं। पृथ्वी के ऊपर जोन गैस की मोटी परत जो हमारा रक्षा कवच है वह भी खतरे में पड़ी है। इसीलिए सूर्य का ताप धरती की आेर बढ़ता जा रहा है। ग्लोबल वार्मिग (पृथ्वी का तापमान) बढ़ने से छोटे-बड़े द्वीप व महाद्वीप के तटीय क्षेत्रों के डूब जाने का खतरा बढ़ता जा रहा है। प्राकृतिक आपदाएँ जैसे भूचाल, तूफान आदि बढ़ते जा रहे हैं। बेवक्त बरसातें व गर्मियो में अधिक गर्मी, सर्दियों में अधिक सर्दी भी पर्यावरण प्रदूषण के कारण हैं।
यह पूरे विश्व हेतु चिंता का विषय है। इसलिए पूरे विश्व में वायु, ध्वनि, जल व संपूर्ण पृथ्वी को प्रदूषित होने से बचाने हेतु प्रयास जारी हें। इसी हेतु! ‘पर्यावरण दिवस’ व ‘पृथ्वी सम्मेलन’ जैसे कार्यक्रमों का आयोजन किया जाता है जिसका मुख्य उद्देश्य है ‘पृथ्वी को बचाओ’।
आज सभी का यह कर्तव्य बनता है कि राष्ट्र सीमाओं के बंधनों में न रहकर पूरे विश्व के पर्यावरण को स्वच्छ बनाने का प्रयास किया जाए। हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि जीवन यापन की सभी आवश्यकताएँ यह धरती हमें प्रदान करती है। हमें आत्मरक्षा हेतु पृथ्वी की रक्षा करनी होगी। ‘भूमि माता है और हम पृथ्वी की संतान’ इस कथन को चरितार्थ करना होगा।
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A.
बेर की झाड़ी से।C.
सूर्य के निकलने तकहाइड्रोजन व नाइट्रोजन।
B.
हद्रजन व ओषजन।A.
ज्वालामुखी फटने वाला था।C.
पेड़ जितना बाहर होता है उसका अस्तित्व जमीन में भी उतना ही होता है।A.
पेड़ के रोएँ बूँदों को बलपूर्वक पृथ्वी में से खींच लेते हैं।Sponsor Area
B.
मछली की चमक से प्रभावित होकर कई छोटी-छोटी मछलियाँ उसके पास आ जातीं जिन्हें वह अपना भोजन बनाती।Sponsor Area
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