Vasant Bhag 3 Chapter 11 जब सिनेमा ने बोलना सीखा
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    NCERT Solution For Class 8 Hindi Vasant Bhag 3

    जब सिनेमा ने बोलना सीखा Here is the CBSE Hindi Chapter 11 for Class 8 students. Summary and detailed explanation of the lesson, including the definitions of difficult words. All of the exercises and questions and answers from the lesson's back end have been completed. NCERT Solutions for Class 8 Hindi जब सिनेमा ने बोलना सीखा Chapter 11 NCERT Solutions for Class 8 Hindi जब सिनेमा ने बोलना सीखा Chapter 11 The following is a summary in Hindi and English for the academic year 2021-2022. You can save these solutions to your computer or use the Class 8 Hindi.

    Question 1
    CBSEENHN8000792

    जब पहली बोलती फिल्म प्रदर्शित हुई तो उसके पोस्टरों पर कौन-से वाक्य छापे गए? उस फिल्म में कितने चेहरे थे? स्पष्ट कीजिए।

    Solution

    जब पहली बोलती फिल्म प्रदर्शित हुई तो उसके पोस्टरों पर लिखा था-’वे सभी सजीव हैं. सांस ले रहे हैं, शत-प्रतिशत बोल रहे हैं, अठहत्तर मुर्दा इंसान जिंदा हो गए; उनको बोलते; बातें करते देखो।’
    ‘अठहत्तर मुर्दा इंसान जिंदा हो गए’ यह पंक्ति दर्शाती है कि फिल्म में अठहत्तर चेहरे थे अर्थात् फिल्म में अठहत्तर लोग काम कर रहे थे।

    Question 2
    CBSEENHN8000793

    पहला बोलता सिनेमा बनाने के लिए फिल्मकार अर्देशिर एम. ईरानी को प्रेरणा कहाँ से मिली? उन्होंने आलम आरा फिल्म के लिए आधार कहाँ से लिया? विचार व्यक्त कीजिए। 

    Solution
    पहला बोलता सिनेमा बनाने के लिए फिल्मकार अर्दशिर एम. ईरानी को प्रेरणा हॉलीवुड की एक बोलती फिल्म ‘शो बोट’ से मिली। पारसी रंगमंच के नाटक को आधार बनाकर ‘आलम आरा’ फिल्म की पटकथा लिखी गई।
    Question 3
    CBSEENHN8000794

    विट्ठल का चयन आलम आरा फिल्म के नायक के रूप में हुआ लेकिन उन्हें हटाया क्यों गया? विट्ठल ने पुन: नायक होने के लिए क्या किया? विचार प्रकट कीजिए। 

    Solution
    जिस समय आलम आरा फिल्म बनी उस समय के चर्चित नायक थे ‘विट्ठल’। उन्हें ही इस फिल्म में नायक की भूमिका के लिए चयनित किया गया। विट्ठल को उर्दू बोलने में मुश्किल होती थी इसलिए उन्हें हटा दिया गया। ऐसा करने से विट्ठल नाराज हो गए। उन्होंने मशहूर वकील मोहम्मद अली जिन्ना का सहारा लिया। जिन्ना ने उनकी ओर से मुकदमा लड़ा और जीत गए। इस प्रकार विट्ठल ही पहली बोलती फिल्म के नायक बने।
    Question 4
    CBSEENHN8000795

    पहली सवाक् फिल्म के निर्माता-निदेशक अर्देशिर को जब सम्मानित किया गया तब सम्मानकर्ताओं ने उनके लिए क्या कहा था? अर्देशिर ने क्या कहा? और इस प्रसंग में लेखक ने क्या टिप्पणी की है? लिखिए।

    Solution
    पहली सवाक् फिल्म के निर्माता-निदेशक अर्देशिर को 1956 में सम्मानित किया गया। सम्मान करने वालों ने उन्हें ‘भारतीय सवाक् फिल्मों का पिता’ कहा। अर्देशिर ने इस मौके पर कहा-”मुझे इतना बड़ा खिताब देने की जरूरत नहीं है। मैंने तो देश के लिए अपने हिस्से का जरूरी योगदान दिया है।”
    Question 5
    CBSEENHN8000796

    मूक सिनेमा में संवाद नहीं होते, उसमें दैहिक अभिनय की प्रधानता होती है। पर, जब सिनेमा बोलने लगा उसमें अनेक परिवर्तन हुए। उन परिवर्तनों को अभिनेता, दर्शक और कुछ तकनीकी दृष्टि से पाठ का आधार लेकर खोजें. साथ ही अपनी कल्पना का भी सहयोग लें।

    Solution

    यह सत्य है कि मूक सिनेमा में संवाद नहीं होते दैहिक अभिनय की प्रधानता होती है पर जब वह बोलने लगी तो उसमें अनेक परिवर्तन हुए। ये परिवर्तन अभिनेता. दर्शक और तकनीकी दृष्टि से हुए जो निम्न प्रकार से हैं-
    (1) अभिनेता-पहले मूक फिल्मों में पहलवान शरीर वाले करतब दिखाने वाले और उछल कूद करने वाले अभिनेताओं को प्रमुखता दी जाती थी लेकिन जब फिल्म बोलने लगी तो संवाद बोलना प्रमुख हो गया। एसे में पढ़े-लिखे अभिनेताओं को प्रमुखता दी गई क्योंकि संवाद शुद्ध व सही रूप में बोले जाने जरूरी थे। समयानुसार कई बार संवादों में परिवर्तन भी करना पड़ता था।
    (2) दर्शक-बोलने वाली फिल्मों ने दर्शकों की रुचि में अपार परिवर्तन ला दिया। उन्हें फिल्मे सच के धरातल पर दिखाई देने लगी। अब फिल्मों में सार्वजनिक झलक दिखाई देने लगी।
    (3) तकनीकी दृष्टि-तकनीकी स्वरूप में भी अब काफी परिवर्तन आ गया। पहला परिवर्तन ध्वनि के कारण हुआ और दूसरा महत्त्वपूर्ण परिवर्तन कृत्रिम प्रकाश देने से आया। भाषा में भी बदलाव आ गया। अब परिष्कृत भाषा का प्रयोग होने लगा। वाद्य यंत्रों का भी प्रयोग बढ़ गया क्योंकि अब गीत गाए जाने लगे थे।

    Question 6
    CBSEENHN8000797

    डब फिल्में किसे कहते हैं? कभी-कभी डब फिल्मों में अभिनेता के मुँह खोलने और आवाज में अंतर आ जाता है। इसका कारण क्या हो सकता है?

    Solution
    जिस फिल्म में अभिनय करने वाले और संवाद बोलने वाले दोनों व्यक्ति अलग-अलग होते हैं। उन्हें डब फिल्में कहते हैं। कभी-कभी डब फिल्मों में अभिनेता के मुंह खोलने और आवाज मे अंतर आ जाता है क्योंकि डब करने वाले व अभिनय करने वाले की बोलने की गति समान नहीं होती व कई बार डब की हुई आवाज और अभिनय करने वाले के चलते होंठ आपसी तालमेल बिठाने में असफल रहते हैं।
    Question 7
    CBSEENHN8000798

    किसी मूक सिनेमा में बिना आवाज़ के ठहाकेदार हँसी कैसी दिखेगी? अभिनय करके अनुभव कीजिए।

    Solution
    आप अपनी आवाज को रोक कर रखें और जोर से हँसने का प्रयास करें। इस हेतु मूक फिल्म ‘कोशिश’ देखें जिसमें आपको प्रत्येक हाव-भाव की जानकारी ज्ञात होगी।
    Question 8
    CBSEENHN8000799

    मूक फिल्म देखने का एक उपाय यह है कि आप टेलीविजन की आवाज़ बंद करके फिल्म देखें। उसकी कहानी को समझने का प्रयास करें और अनुमान लगाएँ कि फिल्म में संवाद और दृश्य की हिस्सेदारी कितनी है?

    Solution

    यदि टेलीविजन की आवाज बंद करके फिल्म देखें तो हम पाएँगे कि संवाद और दृश्य ही फिल्म को प्रभावी बनाते हैं, एकाग्रता उत्पन्न करते हैं।
    जबकि मूक फिल्में कई बार नीरस लगने लगती हैं। कई बार उनमें बहुत सी बातें स्पष्ट भी नहीं हो पाती।

    Question 9
    CBSEENHN8000800

    सवाक् शब्द वाक् के पहले ‘स’ लगाने से बना है। स उपसर्ग से कई शब्द बनते हैं। निम्नलिखित शब्दों के साथ ‘स’ का उपसर्ग की भाँति प्रयोग करके शब्द बनाएँ और शब्दार्थ में होनेवाले परिवर्तन को बताएँ। हित. परिवार. विनय, चित्र. बल, सम्मान।

    Solution

    शब्द उपसर्ग नया शब्द अर्थ
    हित स सहित हित का अर्थ भलाई व सहित-हित के साथ।
    परिवार स सपरिवार परिवार का अर्थ है माता-पिता, पति-पत्नी व बच्चों का साथ-साथ रहना सपरिवार-परिवार सहित।
    विनय स सविनय विनय का अर्थ है प्रार्थना और सविनय-प्रार्थना सहित।
    चित्र स सचित्र चित्र का अर्थ है कोई भी तस्वीर और सचित्र-चित्रों सहित।
    बल स सबल बल अर्थात् शक्ति सबल-शक्ति के साथ।
    सम्मान स ससम्मान सम्मान का अर्थ है आदर व ससम्मान-आदर सहित।
    इन सभी शब्दों में ‘स’ उपसर्ग का प्रयोग हुआ है जो ‘सहित’ व ‘के साथ’ का भाव प्रकट करता है।
     

    Question 10
    CBSEENHN8000801

    उपसर्ग और प्रत्यय दोनों ही शब्दांश होते हैं। वाक्य में इनका अकेला प्रयोग नहीं होता। इन दोनों में अंतर केवल इतना होता है कि उपसर्ग किसी भी शब्द में पहले लगता है और प्रत्यय बाद में। हिंदी के सामान्य उपसर्ग इस प्रकार हैं-अ/अन, नि, दु, क/कु, स/सु, अध, बिन, औ आदि।
    पाठ में आए उपसर्ग और प्रत्यय युक्त शब्दों के कुछ उदाहरण नीचे दिए जा रहे हैं-
    मूल शब्द      उपसर्ग       प्रत्यय        शब्द
    वाक्            स            -             सवाक्
    लोचन          सु            आ            सुलोचना
    फिल्म          -             कार          फिल्मकार
    कामयाब        -             ई             कामयाबी
    इस प्रकार के 15-15 उदाहरण खोजकर लिखिए और अपने सहपाठियों को दिखाइए।

    Solution

    (i) मूल शब्द      उपसर्ग     नया शब्द
    1. दान            आ          आदान
    2. राग            अनु         अनुराग
    3. कार            उप          उपकार
    4. भाग्य          दुर्           दुर्भाग्य
    5. काल           पुरा          पुराकाल
    6. कर्म           सत्          सत्कर्म
    7. गुण           औ           औगुण
    8. पुत्र            कु            कुपुत्र
    9. बंध           नि            निबंध
    10. ज्ञान        अ            अज्ञान
    11. पका       अध           अधपका
    12. खाए       बिन          बिनखाए
    13. यश       सु              सुयश
    14. कोण     सम            समकोण
    15. जान     सु              सुजान
    (ii) मूल शम्शब्दरत्यय नया शब्द
    1. पढ़   ना     पढ़ना
    2. ओढ़  नी    ओढ़नी
    3. लड़   आई  लड़ाई
    4. चिकना  आहट  चिकनाहट
    5. सज  आवट  सजावट
    6. विशेष  तय।  विशेषतया
    7. कट  वाई  कटवाई
    8. कवि  त्व  कवित्व
    9. चाचा ऐस चचेरा
    10. चमक चमकीला
    11. एक ता एकता
    12. लेख क लेखक
    13. ध्यान पूर्वक ध्यानपूर्वक
    14. काला पन कालापन
    15. मन औती मनौती

    Question 11
    CBSEENHN8000802

    सवाक् फिल्म से आप क्या समझते हैं?

    Solution
    जो फिल्म बोलने वाली होती है उसे सवाक् कहते हैं। यह शब्द वाक् शब्द से बना है जिसका अर्थ है बोलना। ‘स’ उपसर्ग लगने से हुआ सवाक् अर्थात् बोलने सहित।
    Question 12
    CBSEENHN8000803

    ‘आलम आरा’ फिल्म में किन वाद्य यंत्रों का प्रयोग किया गया?

    Solution
    फिल्म में तबला हारमोनियम और वायलिन तीन वाद्य यंत्रों का प्रयोग किया गया।
    Question 13
    CBSEENHN8000804

    फिल्म निर्माता अर्देशिर की कंपनी ने लगभग कितनी फिल्मों का निर्माण किया?

    Solution
    अर्देशिर की कंपनी ने लगभग 150 मूक व 100 सवाक् फिल्में बनाई।
    Question 14
    CBSEENHN8000805

    स्टंटमैन’ व ‘फैंटेसी’ शब्दों से आप क्या समझते हैं?

    Solution
    स्टंटमैन का अर्थ है करतब दिखाने वाला व फैंटेसी का अर्थ है मौज-मस्ती।
    Question 15
    CBSEENHN8000806

    दर्शकों हेतु यह फिल्म अनोखा अनुभव कैसे थी?

    Solution
    अभी तक तो दर्शक मूक फिल्में ही देखते थे जो ज्यादा आकर्षित नहीं करती थी। कई बार कई दृश्य पूर्णतया समझ में भी न आते थे। यह फिल्म एक अनोखा अनुभव रही क्योंकि इसमें सभी संवाद बोलकर प्रस्तुत किए गए थे. लोगों को तो केवल आनंद उठाना था. अनुमान नहीं लगाना था।
    Question 16
    CBSEENHN8000807

    सवाक् फिल्मों हेतु क्या आधार चुने गए?

    Solution
    सवाक् फिल्मों हेतु पौराणिक कथाओं; पारसी रंगमंच के नाटकों. अरबी प्रेम-कथाओं को व सामाजिक विषयों को आधार के रूप में चुना गया।
    Question 17
    CBSEENHN8000808

    ‘आलम आरा’ ने किस-किस देश में सफलता पाई?

    Solution
    ’आलम आरा’ ने भारत में अपार सफलता पाने के बाद श्रीलंका, बर्मा और पश्चिम एशिया में भी अपनी महत्ता का डंका बजाया।

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    Question 18
    CBSEENHN8000809

    भारतीय सिनेमा के जनक कौन माने जाते हैं?

    Solution
    भारतीय सिनेमा के जनक ‘फाल्के’ माने जाते हैं।
    Question 19
    CBSEENHN8000810

    फाल्के ने अर्देशिर की किस उपलब्धि को अपनाया?

    Solution
    फाल्के ने अर्देशिर की नई उपलब्धि बोलते चलचित्र को अपनाया क्योंकि अब भारत का फिल्म जगत में नया दौर शुरू हो चुका था।
    Question 20
    CBSEENHN8000811

    क्या आज भी समाज पर फिल्म जगत की छाप दिखाई देती है? 

    Solution
    आज वर्तमान के दौर में फिल्म जगत पूर्णतया प्रगति पर है। समाज में फिल्म जगत की छाप पूर्णतया दिखाई देती है। लोगों का रहन-सहन, पहनावा व खान-पान सभी फिल्मों पर आश्रित दिखाई देता है।
    Question 27
    CBSEENHN8000818

    निम्न गद्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिए -
    ‘वे सभी सजीव हैं. सांस ले रहे हैं, शत-प्रतिशत बोल रहे हैं, अठहत्तर मुर्दा इनसान जिंदा हो गए, उनको बोलते, बातें करते देखो।’ देश की पहली सवाक् (बोलती) फिल्म ‘आलम आरा’ के पोस्टरों पर विज्ञापन की ये पंक्तियाँ लिखी हुई थीं। 14 मार्च 1931 की वह ऐतिहासिक तारीख भारतीय सिनेमा में बड़े बदलाव का दिन था। इसी दिन पहली बार भारत के सिनेमा ने बोलना सीखा था। हालाँकि वह दौर ऐसा था जब मूक सिनेमा लोकप्रियता के शिखर पर था।

    ‘सवाक्’ शब्द से क्या तात्पर्य है?
    • पूरी तरह समझ आने वाली
    • बोलने वाली
    • विचारों का आदान-प्रदान करने वाली
    • अधिक अभिनेता-अभिनेत्रियों वाली

    Solution

    B.

    बोलने वाली
    Question 28
    CBSEENHN8000819

    निम्न गद्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिए -
    ‘वे सभी सजीव हैं. सांस ले रहे हैं, शत-प्रतिशत बोल रहे हैं, अठहत्तर मुर्दा इनसान जिंदा हो गए, उनको बोलते, बातें करते देखो।’ देश की पहली सवाक् (बोलती) फिल्म ‘आलम आरा’ के पोस्टरों पर विज्ञापन की ये पंक्तियाँ लिखी हुई थीं। 14 मार्च 1931 की वह ऐतिहासिक तारीख भारतीय सिनेमा में बड़े बदलाव का दिन था। इसी दिन पहली बार भारत के सिनेमा ने बोलना सीखा था। हालाँकि वह दौर ऐसा था जब मूक सिनेमा लोकप्रियता के शिखर पर था।

    ‘आलम आरा’ फिल्म के पोस्टरों पर क्या लिखा था?
    • अठहत्तर मुर्दा जिंदा होना।
    • फिल्म में सबका बोलना।
    • फिल्म में सबका चलना-फिरना।
    • वे सभी सजीव हैं, सांस ले रहे हैं, शत-प्रतिशत बोल रहे हैं. अठहत्तर मुर्दा इंसान जिंदा हो गए, उनको बोलते, बातें करते देखें।

    Solution

    D.

    वे सभी सजीव हैं, सांस ले रहे हैं, शत-प्रतिशत बोल रहे हैं. अठहत्तर मुर्दा इंसान जिंदा हो गए, उनको बोलते, बातें करते देखें।
    Question 29
    CBSEENHN8000820

    निम्न गद्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिए -
    ‘वे सभी सजीव हैं. सांस ले रहे हैं, शत-प्रतिशत बोल रहे हैं, अठहत्तर मुर्दा इनसान जिंदा हो गए, उनको बोलते, बातें करते देखो।’ देश की पहली सवाक् (बोलती) फिल्म ‘आलम आरा’ के पोस्टरों पर विज्ञापन की ये पंक्तियाँ लिखी हुई थीं। 14 मार्च 1931 की वह ऐतिहासिक तारीख भारतीय सिनेमा में बड़े बदलाव का दिन था। इसी दिन पहली बार भारत के सिनेमा ने बोलना सीखा था। हालाँकि वह दौर ऐसा था जब मूक सिनेमा लोकप्रियता के शिखर पर था।

    ‘अठहत्तर मुर्दा जिंदा होना’ शब्दों का प्रयोग किसके लिए हुआ?


    • अठहत्तर जीवित लोग, जो चल-फिर व बोल सकते थे।
    • अठहत्तर लोगों की फिल्म
    • अठहत्तर किरदार जिन्होंने फिल्म में काम किया।
    • दिए गए सभी।

    Solution

    D.

    दिए गए सभी।
    Question 30
    CBSEENHN8000821

    निम्न गद्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिए -
    ‘वे सभी सजीव हैं. सांस ले रहे हैं, शत-प्रतिशत बोल रहे हैं, अठहत्तर मुर्दा इनसान जिंदा हो गए, उनको बोलते, बातें करते देखो।’ देश की पहली सवाक् (बोलती) फिल्म ‘आलम आरा’ के पोस्टरों पर विज्ञापन की ये पंक्तियाँ लिखी हुई थीं। 14 मार्च 1931 की वह ऐतिहासिक तारीख भारतीय सिनेमा में बड़े बदलाव का दिन था। इसी दिन पहली बार भारत के सिनेमा ने बोलना सीखा था। हालाँकि वह दौर ऐसा था जब मूक सिनेमा लोकप्रियता के शिखर पर था।

    14 मार्च 1931 को ऐतिहासिक तारीख क्यों माना जाता है।

    • क्योंकि इस दिन ‘आलम आरा’ फिल्म पुरस्कृत हुई।
    • क्योंकि इस दिन लोगों ने पहली बार हिंदी सिनेमा को सराहा।
    • क्योंकि इस दिन भारतीयों ने पहली फिल्म पर्दे पर दिखाई।
    • क्योंकि इस दिन भारतीयों द्वारा पहली बोलने वाली फिल्म पर्दे पर दिखाई गई।

    Solution

    D.

    क्योंकि इस दिन भारतीयों द्वारा पहली बोलने वाली फिल्म पर्दे पर दिखाई गई।
    Question 37
    CBSEENHN8000828

    निम्न गद्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिए -
    यह फिल्म 14 मार्च 1931 को मुंबई के ‘मैजेस्टिक’ सिनेमा में प्रदर्शित हुई। फिल्म 8 सप्ताह तक ‘हाउसफुल’ चली और भीड़ इतनी उमड़ती थी कि पुलिस के लिए नियंत्रण करना मुश्किल हो जाया करता था। समीक्षकों ने इसे ‘भड़कीली फैंटेसी’ फिल्म करार दिया था मगर दर्शकों के लिए यह फिल्म एक अनोखा अनुभव थी। यह फिल्म 10 हजार फुट लंबी थी और इसे चार महीनों की कड़ी मेहनत से तैयार किया गया था।

    सर्वप्रथम यह कहां प्रदर्शित हुई?
    • मुंबई के मैजेस्टिक सिनेमा में
    • कोलकाता के मैजेस्टिक सिनेमा में
    • दिल्ली के मैजेस्टिक सिनेमा में 
    • इनमें से कोई नहीं

    Solution

    A.

    मुंबई के मैजेस्टिक सिनेमा में
    Question 38
    CBSEENHN8000829

    निम्न गद्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिए -
    यह फिल्म 14 मार्च 1931 को मुंबई के ‘मैजेस्टिक’ सिनेमा में प्रदर्शित हुई। फिल्म 8 सप्ताह तक ‘हाउसफुल’ चली और भीड़ इतनी उमड़ती थी कि पुलिस के लिए नियंत्रण करना मुश्किल हो जाया करता था। समीक्षकों ने इसे ‘भड़कीली फैंटेसी’ फिल्म करार दिया था मगर दर्शकों के लिए यह फिल्म एक अनोखा अनुभव थी। यह फिल्म 10 हजार फुट लंबी थी और इसे चार महीनों की कड़ी मेहनत से तैयार किया गया था।

    इस फिल्म के प्रति लोगों की प्रतिक्रिया क्या रही?
    • लोगों ने इसे बहुत पसंद किया। आठ सप्ताह तक हाउसफुल चला।
    • लोग इससे ऊब गए।
    • लोगों को बोलती फिल्म समझ नहीं आई।
    • इसमें से कोई नहीं।

    Solution

    A.

    लोगों ने इसे बहुत पसंद किया। आठ सप्ताह तक हाउसफुल चला।
    Question 39
    CBSEENHN8000830

    निम्न गद्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिए -
    यह फिल्म 14 मार्च 1931 को मुंबई के ‘मैजेस्टिक’ सिनेमा में प्रदर्शित हुई। फिल्म 8 सप्ताह तक ‘हाउसफुल’ चली और भीड़ इतनी उमड़ती थी कि पुलिस के लिए नियंत्रण करना मुश्किल हो जाया करता था। समीक्षकों ने इसे ‘भड़कीली फैंटेसी’ फिल्म करार दिया था मगर दर्शकों के लिए यह फिल्म एक अनोखा अनुभव थी। यह फिल्म 10 हजार फुट लंबी थी और इसे चार महीनों की कड़ी मेहनत से तैयार किया गया था।

    इस फिल्म को ‘भड़कीली फैंटेसी’ क्यों कहा गया?
    • क्योंकि कलाकार जोर-जोर से बोल रहे थे।
    • ध्वनि व कृत्रिम प्रकाश के साथ-साथ बोलने वाली फिल्म लोगों की भावनाओं को उद्वेलित करने वाली थी।
    • लोग इस फिल्म को देखकर भड़क गए।
    • यह मौज-मस्ती के अलावा कुछ भी नहीं थी।

    Solution

    B.

    ध्वनि व कृत्रिम प्रकाश के साथ-साथ बोलने वाली फिल्म लोगों की भावनाओं को उद्वेलित करने वाली थी।

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    Question 40
    CBSEENHN8000831

    निम्न गद्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिए -
    यह फिल्म 14 मार्च 1931 को मुंबई के ‘मैजेस्टिक’ सिनेमा में प्रदर्शित हुई। फिल्म 8 सप्ताह तक ‘हाउसफुल’ चली और भीड़ इतनी उमड़ती थी कि पुलिस के लिए नियंत्रण करना मुश्किल हो जाया करता था। समीक्षकों ने इसे ‘भड़कीली फैंटेसी’ फिल्म करार दिया था मगर दर्शकों के लिए यह फिल्म एक अनोखा अनुभव थी। यह फिल्म 10 हजार फुट लंबी थी और इसे चार महीनों की कड़ी मेहनत से तैयार किया गया था।

    इस फिल्म की रील कितनी लंम्बी थी? इसे बनने में कितना समय लगा?


    • यह पंद्रह हजार फुट लंबी थी छ: महीने में बनाया गया।
    • यह दस हजार फुट लंबी थी इसे चार महीनों में बनाया गया।
    • यह पद्रंह हजार फुट लम्बी थी इसे चार महीनों में बनाया गया।
    • यह दस हजार फुट लंबी थी इसे पांच महीनें में बनाया गया।

    Solution

    B.

    यह दस हजार फुट लंबी थी इसे चार महीनों में बनाया गया।
    Question 41
    CBSEENHN8000832

    निम्न गद्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिए -
    जब पहली बार सिनेमा ने बोलना सीख लिया. सिनेमा में काम करने के लिए पढ़े-लिखे अभिनेता- अभिनेत्रियों की जरूरत भी शुरू हुई क्योंकि अब संवाद भी बोलने थे, सिर्फ अभिनय से काम नहीं चलनेवाला था। मूक फिल्मों के दौर में तो पहलवान जैसे शरीरवाले, स्टंट करनेवाले और उछल-कूद करनेवाले अभिनेताओं से काम चल जाया करता था। अब उन्हें संवाद बोलना था और गायन की प्रतिभा की कद्र भी होने लगी थी। इसलिए ‘आलम आरा’ के बाद आरंभिक ‘सवाक्’ दौर की फिल्मों में कई ‘गायक-अभिनेता’ बड़े पर्दे पर नज़र आने लगे। हिंदी-उर्दू भाषाओं का महत्त्व बढ़ा। सिनेमा में देह और तकनीक की भाषा की जगह जन प्रचलित बोलचाल की भाषाओं का दाखिला हुआ। सिनेमा ज्य़ादा देसी हुआ। एक तरह की नयी आजादी थी जिससे आगे चलकर हमारे दैनिक और सार्वजनिक जीवन का प्रतिबिंब फिल्मों में बेहतर होकर उभरने लगा।

    सिनेमा को पड़े-लिखे अभिनेता-अभिनेत्रियों की आवश्यकता क्यों पड़ी?


    • क्योंकि फिल्मों की भाषा कलिष्ट थी।
    • क्योंकि संवाद बोलने व गायन हेतु भाषा स्पष्टता की जरूरत थी।
    • क्योंकि फिल्मों में पढ़ना भी पड़ता था।
    • इनमें से कोई नहीं।

    Solution

    B.

    क्योंकि संवाद बोलने व गायन हेतु भाषा स्पष्टता की जरूरत थी।
    Question 42
    CBSEENHN8000833

    निम्न गद्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिए -
    जब पहली बार सिनेमा ने बोलना सीख लिया. सिनेमा में काम करने के लिए पढ़े-लिखे अभिनेता- अभिनेत्रियों की जरूरत भी शुरू हुई क्योंकि अब संवाद भी बोलने थे, सिर्फ अभिनय से काम नहीं चलनेवाला था। मूक फिल्मों के दौर में तो पहलवान जैसे शरीरवाले, स्टंट करनेवाले और उछल-कूद करनेवाले अभिनेताओं से काम चल जाया करता था। अब उन्हें संवाद बोलना था और गायन की प्रतिभा की कद्र भी होने लगी थी। इसलिए ‘आलम आरा’ के बाद आरंभिक ‘सवाक्’ दौर की फिल्मों में कई ‘गायक-अभिनेता’ बड़े पर्दे पर नज़र आने लगे। हिंदी-उर्दू भाषाओं का महत्त्व बढ़ा। सिनेमा में देह और तकनीक की भाषा की जगह जन प्रचलित बोलचाल की भाषाओं का दाखिला हुआ। सिनेमा ज्य़ादा देसी हुआ। एक तरह की नयी आजादी थी जिससे आगे चलकर हमारे दैनिक और सार्वजनिक जीवन का प्रतिबिंब फिल्मों में बेहतर होकर उभरने लगा।

    मूक फिल्मों में कैसे अभिनेता का चयन होता था?




    • एक दम मंजीदा
    • बहुत अधिक पढ़े-लिखे
    • पहलवान जैसे शरीर वाले, करतब दिखाने वाले और उछल-कूद करने वाले।
    • बोल-चाल की भाषा बोलने वाले।

    Solution

    C.

    पहलवान जैसे शरीर वाले, करतब दिखाने वाले और उछल-कूद करने वाले।
    Question 43
    CBSEENHN8000834

    निम्न गद्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिए -जब पहली बार सिनेमा ने बोलना सीख लिया. सिनेमा में काम करने के लिए पढ़े-लिखे अभिनेता- अभिनेत्रियों की जरूरत भी शुरू हुई क्योंकि अब संवाद भी बोलने थे, सिर्फ अभिनय से काम नहीं चलनेवाला था। मूक फिल्मों के दौर में तो पहलवान जैसे शरीरवाले, स्टंट करनेवाले और उछल-कूद करनेवाले अभिनेताओं से काम चल जाया करता था। अब उन्हें संवाद बोलना था और गायन की प्रतिभा की कद्र भी होने लगी थी। इसलिए ‘आलम आरा’ के बाद आरंभिक ‘सवाक्’ दौर की फिल्मों में कई ‘गायक-अभिनेता’ बड़े पर्दे पर नज़र आने लगे। हिंदी-उर्दू भाषाओं का महत्त्व बढ़ा। सिनेमा में देह और तकनीक की भाषा की जगह जन प्रचलित बोलचाल की भाषाओं का दाखिला हुआ। सिनेमा ज्य़ादा देसी हुआ। एक तरह की नयी आजादी थी जिससे आगे चलकर हमारे दैनिक और सार्वजनिक जीवन का प्रतिबिंब फिल्मों में बेहतर होकर उभरने लगा।

    सिनेमा में भाषा का बदलाव कैसे आया?


    • हिंदी-उर्दू भाषा का विकास हुआ।
    • बोलने वाली फिल्में होने के कारण भाषा के हाव-भाव परखे जाने लगे।
    • भाषा की संजीदगी की और ध्यान दिया जाने लगा।
    • दिए गए सभी।

    Solution

    D.

    दिए गए सभी।
    Question 44
    CBSEENHN8000835

    निम्न गद्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिए -जब पहली बार सिनेमा ने बोलना सीख लिया. सिनेमा में काम करने के लिए पढ़े-लिखे अभिनेता- अभिनेत्रियों की जरूरत भी शुरू हुई क्योंकि अब संवाद भी बोलने थे, सिर्फ अभिनय से काम नहीं चलनेवाला था। मूक फिल्मों के दौर में तो पहलवान जैसे शरीरवाले, स्टंट करनेवाले और उछल-कूद करनेवाले अभिनेताओं से काम चल जाया करता था। अब उन्हें संवाद बोलना था और गायन की प्रतिभा की कद्र भी होने लगी थी। इसलिए ‘आलम आरा’ के बाद आरंभिक ‘सवाक्’ दौर की फिल्मों में कई ‘गायक-अभिनेता’ बड़े पर्दे पर नज़र आने लगे। हिंदी-उर्दू भाषाओं का महत्त्व बढ़ा। सिनेमा में देह और तकनीक की भाषा की जगह जन प्रचलित बोलचाल की भाषाओं का दाखिला हुआ। सिनेमा ज्य़ादा देसी हुआ। एक तरह की नयी आजादी थी जिससे आगे चलकर हमारे दैनिक और सार्वजनिक जीवन का प्रतिबिंब फिल्मों में बेहतर होकर उभरने लगा।

    सिनेमा में किस भाषा को बढ़ावा दिया गया।
    • हिंदी-उर्दू भाषा को
    • हिंदी-अंग्रेजी भाषा को
    • हिंदी पंजाबी भाषा को
    • हिंदी-कन्नड़ भाषा को

    Solution

    A.

    हिंदी-उर्दू भाषा को
    Question 45
    CBSEENHN8000836

    निम्न गद्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिए -जब पहली बार सिनेमा ने बोलना सीख लिया. सिनेमा में काम करने के लिए पढ़े-लिखे अभिनेता- अभिनेत्रियों की जरूरत भी शुरू हुई क्योंकि अब संवाद भी बोलने थे, सिर्फ अभिनय से काम नहीं चलनेवाला था। मूक फिल्मों के दौर में तो पहलवान जैसे शरीरवाले, स्टंट करनेवाले और उछल-कूद करनेवाले अभिनेताओं से काम चल जाया करता था। अब उन्हें संवाद बोलना था और गायन की प्रतिभा की कद्र भी होने लगी थी। इसलिए ‘आलम आरा’ के बाद आरंभिक ‘सवाक्’ दौर की फिल्मों में कई ‘गायक-अभिनेता’ बड़े पर्दे पर नज़र आने लगे। हिंदी-उर्दू भाषाओं का महत्त्व बढ़ा। सिनेमा में देह और तकनीक की भाषा की जगह जन प्रचलित बोलचाल की भाषाओं का दाखिला हुआ। सिनेमा ज्य़ादा देसी हुआ। एक तरह की नयी आजादी थी जिससे आगे चलकर हमारे दैनिक और सार्वजनिक जीवन का प्रतिबिंब फिल्मों में बेहतर होकर उभरने लगा।

    फिल्मों का स्वरूप कैसे बदला?
    • अब फिल्मों में लोगों की आम भावनाओं को दर्शाया जाने लगा।
    • अब फिल्में दैनिक व सार्वजनिक जीवन का प्रतिबिम्ब प्रस्तुत करने लगी।
    • अब फिल्मों का प्रभाव लोगों के जीवन पर पड़ने लगा।
    • दिए गए सभी।

    Solution

    D.

    दिए गए सभी।

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