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श्रीकृष्ण सुदामा की प्रत्यक्ष रूप में सहायता नहीं करना चाहते थे क्योंकि देने का भाव आते ही मित्रता बड़े-छोटे की भावना में बदल जाती है जबकि कृष्ण ऐसा नहीं करना चाहते थे। इसलिए उन्होंने सुदामा की सहायता प्रत्यक्ष रूप में न करके अप्रत्यक्ष रूप में की।
द्रुपद और द्रोणाचार्य भी मित्र थे एक साथ आश्रम में पढ़ते थे। द्रुपद बहुत अमीर व द्रोणाचार्य बहुत गरीब थे। द्रुपद ने द्रोणाचार्य से कहा कि जब मैं शासन-सत्ता की संभाल करूँगा तो आधा राज्य तुम्हें सौंप दूँगा ताकि तुम्हारी गरीबी समाप्त हो जाए। इस प्रकार मित्रता का वचन निभाउँगा। समय आता है, द्रुपद राजा बनता है लेकिन अपना वायदा भूल जाता है। द्रोणाचार्य ने अपने जीवन में अत्यधिक कठिनाइयाँ झेली थीं। एक दिन सहायता हेतु द्रुपद के पास जाते हैं तो वह उस गरीब ब्राह्मण मित्र का अपमान कर उन्हें दरबार से बाहर निकलवा देता है।
इन दोनों वक्तव्यों में अंतर यह है कि कृष्ण ने अप्रत्यक्ष रूप में मित्र की सहायता कर मित्रता का मान बढ़ाया और द्रुपद ने मित्र को अपमानित करके मित्रता को कलंकित किया।
कहि रहीम संपति सगे, बनत बहुत बहु रीति।
विपति कसौटी जे कसे तेई साँचे मीत।।
इस दोहे में रहीम ने सच्चे मित्र की पहचान बताई है। इस दोहे से सुदामा चरित की समानता किस प्रकार दिखती है? लिखिए।
इस दोहे में रहीम जी का कहना है कि जब मनुष्य के पास धन-संपत्ति होती है ता बहुत से लोग उसके मित्र बन जाते हैं, लेकिन जो मुश्किल समय में साथ देते हैं वही सच्चे मित्र कहलाते हैं।
सुदामा चरित के अनुरूप यह दोहा पूर्णतया सही है क्योंकि कृष्ण व सुदामा बचपन के मित्र तो। थे लेकिन बड़ होकर कृष्ण द्वारिकाधीश बने और सुदामा गरीब के गरीब ही रहे। एक बार पत्नी के आग्रह करने पर कि आप अपने मित्र कृष्ण के पास जाओ वे अवश्य हमारी सहायता करेंगे। सुदामा जब कृष्ण के पास जाते हैं तो वे उसे सर- आँखों पर बिठाते हैं। उनका आदर सत्कार कर उनकी दीन दशा हेतु व्यथित हो उठते हैं। जब सुदामा वापिस घर जाते हैं तो मार्ग मैं सोचते हैं कि कृष्ण के पास आना व्यर्थ रहा। उन्होंने कुछ भी सहायता नहीं की। लेकिन जब अपने गाँव पहुँचते हैं ताे देखकर हैरान हो जाते हैं कि उनके राजसी ठाठ-बाट बन चुके हैं। मन-ही-मन कृष्ण के प्रति कृतज्ञ हो जाते हैं कि प्रत्यक्ष रूप से कुछ देकर उन्होंने मित्रता को छोटा नहीं किया।
मित्रता संबंधी दोहो/चौपाइयाँ
1. कहि रहीम संपति सगे, बनत बहुत बहु रीति।
विपति कसौटी जे कसे तेई साँचे मीत।।
2. जे न मित्र दुख होहिं दुखारी। तिन्हहि बिलोकत पातक भारी।
निज दुख गिरि समरज जाना। मित्रक दुख रज मेरु समाना।।
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B.
सुदामा अपनी पत्नी के अनुरोध पर कृष्ण से सहायता हेतु गया।C.
सुदामा की हालत जीर्ण-शीर्ण थी, द्वारपाल सोच भी न सके कि वे कृष्ण के मित्र होंगे।D.
उन्हें अपने गले से लगाकर व अपने आँसुओं से उनके पाँव धोकर।B.
अप्रत्यक्ष रूप से सुदामा की अपार आर्थिक सहायता करने पर।A.
न सिर पर पगड़ी, न शरीर पर कुरता, फटी हुई धोती व अंग वस्त्र, न पैरो में जूते।A.
वह कृष्ण के महल व ठाठ-बाट देखकर चकित था।B.
सुदामा ने द्वारपाल को कृष्ण से मिलने को कहा और अपना नाम सुदामा बताया।A.
सुदामा की दीन-हीन दशा देखकर कृष्ण रो पड़े।C.
हे मित्र! तुम पहले यहां क्यों नहीं आए।आगे चना गुरुमातु दए ते, लए तुम चाबि हमें नहिं दीने।
स्याम कह्यो मुसकाय सुदामा सों, “चोरी की बान में ही जू प्रवीने।।
पोटरि काँख में चाँपि रहे तुम, खोलत नाहिं सुधा रस भीने।
पाछिलि बानि अजाै न तजो तुम, तैसई भाभी के तंदुल कीन्हे।।”
सुदामा कृष्ण को चावल की पोटली देने में संकोच क्यों कर रहे थे?
A.
क्योंकि यह भेंट कृष्ण के ठाठ-बाट के समक्ष तुच्छ थी।Sponsor Area
आगे चना गुरुमातु दए ते, लए तुम चाबि हमें नहिं दीने।
स्याम कह्यो मुसकाय सुदामा सों, “चोरी की बान में ही जू प्रवीने।।
पोटरि काँख में चाँपि रहे तुम, खोलत नाहिं सुधा रस भीने।
पाछिलि बानि अजाै न तजो तुम, तैसई भाभी के तंदुल कीन्हे।।”
गुरुमाता द्वारा चने दिए जाने का प्रसंग क्या है?
A.
जब श्रीकृष्ण और सुदामा गुरुकुल में पढ़ते थे तो उन्हें गुरुमाता ने चने दिए जंगल में लकड़ी तोड़ते समय खाने हेतु।आगे चना गुरुमातु दए ते, लए तुम चाबि हमें नहिं दीने।
स्याम कह्यो मुसकाय सुदामा सों, “चोरी की बान में ही जू प्रवीने।।
पोटरि काँख में चाँपि रहे तुम, खोलत नाहिं सुधा रस भीने।
पाछिलि बानि अजाै न तजो तुम, तैसई भाभी के तंदुल कीन्हे।।”
‘तुम चोरी की आदत में कुशल हो’-ऐसा कृष्ण ने क्यों कहा?
A.
क्योंकि सुदामा ने कृष्ण के हिस्से के भी चने खा डाले थे।C.
घर-घर जाकर दही मांगने वाला कृष्ण विपुल धन संपत्ति होने पर किसी को कुछ दे नहीं सकता।C.
उसका गाँव द्वारिका नगरी की भांति चमक रहा था।C.
अपने घर को न ढूँढ़ पाने के कारण भ्रम में पड गए।A.
क्योंकि वह स्वर्ण-महल के रूप में परिवर्तित हो गया था।A.
क्योंकि वे स्पष्ट रूप में सुदामा को देकर अपनी मित्रता को छोटा नहीं करना चाहत थे।Sponsor Area
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