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NCERT Solutions for Class 12 Help.html Aroh Bhag Ii Chapter 4 रघुवीर सहाय

रघुवीर सहाय Here is the CBSE Help.html Chapter 4 for Class 12 students. Summary and detailed explanation of the lesson, including the definitions of difficult words. All of the exercises and questions and answers from the lesson's back end have been completed. NCERT Solutions for Class 12 Help.html रघुवीर सहाय Chapter 4 NCERT Solutions for Class 12 Help.html रघुवीर सहाय Chapter 4 The following is a summary in Hindi and English for the academic year 2025-26. You can save these solutions to your computer or use the Class 12 Help.html.

Question 1
CBSEENHN12026130

रघुवीर सहाय के जीवन एवं साहित्य का परिचय दीजिए।

Solution

जीवन-परिचय: रघुवीर सहाय का जन्म 9 दिसंबर, 1929 को लखनऊ ( उत्तर प्रदेश) में हुआ था। उनकी संपूर्ण शिक्षा लखनऊ में ही हुई। वहीं से उन्होंने 1951 में अंग्रेजी साहित्य में एम. ए. किया। रघुवीर सहाय पेशे से पत्रकार थे। आरंभ में उन्होंने प्रतीक में सहायक संपादक के रूप मैं काम किया। फिर वे आकाशवाणी के समाचार विभाग में रहे। कुछ समय तक वे कल्पना के संपादन से भी जुड़े रहे और कई वर्षा तक उन्होंने दिनमान का संपादन किया। उनका निधन 1990 ई. में हुआ।

रघुवीर सहाय नई कविता के कवि हैं। उनकी कुछ कविताएँ अज्ञेय द्वारा संपादित दूसरा सप्तक में संकलित हैं। कविता के अलावा उन्होंने रचनात्मक और विवेचनात्मक गद्य भी लिखा है। उनके काव्य-संसार में आत्मपरक अनुभवों की जगह जनजीवन के अनुभवों की रचनात्मक अभिव्यक्ति अधिक है। वे व्यापक सामाजिक संदर्भो के निरीक्षण, अनुभव और बोध को कविता में व्यक्त करते हैं।

साहित्यिक विशेषताएँ: रघुवीर सहाय ने काव्य-रचना में पत्रकार की दृष्टि का सर्जनात्मक उपयोग किया है। वे मानते हैं कि अखबार की खबर के भीतर दबी और छिपाई हुई ऐसी अनेक खबरें होती हैं जिनमें मानवीय पीड़ा छिपी रह जाती है। उस छिपी हुई मानवीय पीड़ा की अभिव्यक्ति करना कविता का दायित्व है।

रघुवीर सहाय को ‘नई कविता’ के समर्थ कवियों में गिना जाता है। वे रोजमर्रा के प्रसंगों को अपनी विशिष्ट काव्य शैली में प्रस्तुत करने में सिद्धहस्त हैं। उनकी पत्रकारिता उनकी कविता को जानदार एवं प्रासंगिक बनाती है। इससे उनकी कविताओं में एक खास किस्म की तथ्यात्मकता आ गई है और यह मात्र ‘तथ्य’ न रहकर ‘सत्य’ बन जाता है। वे अज्ञेय द्वारा सम्पादित ‘दूसरा सप्तक’ (1952) के प्रमुख प्रयोगवादी कवि हैं। उन्होंने अपनी कविताओं में रोजमर्रा के प्रसंगों को उठाकर विशिष्ट काव्य-शैली का परिचय दिया है। वे निश्चय ही आधुनिक काव्य भाषा के मुहावरे को पकड़ने वाले सशक्त कवि हैं।

रघुवीर सहाय समकालीन हिंदी कविता के संवेदनशील ‘नागर’ चेहरा हैं। सड़क चौराहा दफ्तर, अखबार ससद बस रेल और बाजार की बेलौस भाषा में उन्होंने कविता लिखी। घर-मुहल्ले के चरित्र रामदास गीता, सीता हरिया हरचरना पर कविता लिखी और इन्हें हमारी चेतना का स्थायी नागरिक बनाया। हत्या-लूटपाट और आगजनी राजनीतिक, भ्रष्टाचार और छल-छद्य इनकी कविता मे उतरकर खोजी पत्रकारिता की सनसनीखेज रपटें नहीं रह जाते आत्मान्वेषण का माध्य बन जाते हैं। यह ठीक है कि पेशे से ववेपत्रकार थे लेकिन वे सिर्फ पत्रकार नहीं थे सिद्ध कथाकार और कवि भी थे कविता को उन्होंने एक कहानीपन और एक नाटकीय वैभव दिया।

जातीय या वैयक्तिक स्मृतियाँ उनके यहाँ नहीं के बराबर हैं। इसलिए उनके दोनों पाँव वर्तमान में ही गड़े हैं। बावजूद इसके, मार्मिक उजास और व्यंग्य-बुझी खुरदुरी मुस्कानों से उनकी कविता पटी पड़ी है। छंदानुशासन के लिहाज से भी वे अनुपम हैं पर ज्यादातर बातचीत की सहज शैली में ही उन्होंने लिखा और बखूबी लिखा।

बतौर पत्रकार और कवि घटनाओं में निहित विडंबना और त्रासदी को- भी देखा। रघुवीर सहाय की कविताओं की दूसरी विशेषता है छोटे या लघु की महत्ता का स्वीकार। वे महज बड़े कहे जाने वाले विषय या समस्याओं पर ही दृष्टि नहीं डालते बल्कि जिनको समाज में हाशिए पर रखा जाता है उनके अनुभवों को भी अपनी रचनाओं का विषय बनाते हैं। रघुवीर जी ने भारतीय समाज में ताकतवरों की बढ़ती हैसियत और सत्ता के खिलाफ भी साहित्य और पत्रकारिता के पाठकों का ध्यान खींचा। ‘रामदास’ नाम की उनकी कविता आधुनिक हिंदी कविता की एक महत्वपूर्ण रचना मानी जाती है।

रचनाएँ: रघुवीर सहाय की प्रथम समर्थ रचना ‘सीढ़ियों पर धूप’ (1960) है। इसके पश्चात् की रचनाएँ- ‘आत्महत्या के विरुद्ध’ (1967), ‘हँसो-हँसे जल्दी हँसे’ (1974), ‘लोग भूल गए है’ आदि। ‘लोग भूल गए हैं’ रचना पर उन्हें 1984 का साहित्य अकादमी पुरस्कार प्राप्त हुआ है।

भाषा-शैली: रघुवीर सहाय की अपनी काव्य-शैली है। उनकी भाषा सरल साफ-सुथरी एव सधी हुई है। उनकी भाषा शहरी होते हुए भी सहज व्यवहार वाली है, सजावट की वस्तु नहीं।

रघुवीर सहाय आधुनिक काव्य-भाषा के मुहावरे को पकड़ने में अत्यंत कुशल हैं।

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