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NCERT Solutions for Class 10 सामाजिक विज्ञान Hindi Writing Skill Chapter 1 Hindi Writing Skill

Hindi Writing Skill Here is the CBSE सामाजिक विज्ञान Chapter 1 for Class 10 students. Summary and detailed explanation of the lesson, including the definitions of difficult words. All of the exercises and questions and answers from the lesson's back end have been completed. NCERT Solutions for Class 10 सामाजिक विज्ञान Hindi Writing Skill Chapter 1 NCERT Solutions for Class 10 सामाजिक विज्ञान Hindi Writing Skill Chapter 1 The following is a summary in Hindi and English for the academic year 2025-26. You can save these solutions to your computer or use the Class 10 सामाजिक विज्ञान.

Question 1
CBSEENHN100018879

निम्नलिखित गद्यांश को ध्यानपूर्वक पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर प्रत्येक लगभग 20 शब्दों में लिखिए :
महात्मा गांधी ने कोई 12 साल पहले कहा थामैं बुराई करने वालों को सजा देने का उपाय ढूँढ़ने लगूं तो मेरा काम होगा उनसे प्यार करना और धैर्य तथा नम्रता के साथ उन्हें समझाकर सही रास्ते पर ले आना। इसलिए असहयोग या सत्याग्रह घृणा का गीत नहीं है। असहयोग का मतलब बुराई करने वाले से नहीं, बल्कि बुराई से असहयोग करना है।

आपके असहयोग का उद्देश्य बुराई को बढ़ावा देना नहीं है। अगर दुनिया बुराई को बढ़ावा देना बंद कर दे तो बुराई अपने लिए आवश्यक पोषण के अभाव में अपने-आप मर जाए । अगर हम यह देखने की कोशिश करें कि आज समाज में जो बुराई है, उसके लिए खुद हम कितने जिम्मेदार हैं तो हम देखेंगे कि समाज से बुराई कितनी जल्दी दूर हो जाती हैं। लेकिन हम प्रेम की एक झूठी भावना में पड़कर इसे सहन करते हैं। मैं उस प्रेम की बात नहीं करता, जिसे पिता अपने गलत रास्ते पर चल रहे पुत्र पर मोहांध होकर बरसाता चला जाता है, उसकी पीठ थपथपाता है; और न मैं उस पुत्र की बात कर रहा हूँ जो झूठी पितृभक्ति के कारण अपने पिता के दोषों को सहन करता है। मैं उस प्रेम की चर्चा नहीं कर रहा हूँ। मैं तो उस प्रेम की बात कर रहा हूँ, जो विवेकयुक्त है और जो बुद्धियुक्त है और जो एक भी गलती की ओर से आँख बंद नहीं करता। यह सुधारने वाला प्रेम है। (क) गांधीजी बुराई करने वालों को किस प्रकार सुधारना चाहते| [2]
(ख) बुराई को कैसे समाप्त किया जा सकता है? [2]
(ग) ‘प्रेम’ के बारे में गांधीजी के विचार स्पष्ट कीजिए। [2]
(घ) असहयोग से क्या तात्पर्य है? [1]
(ङ) उपर्युक्त गद्यांश के लिए उपर्युक्त शीर्षक दीजिए। [1]

Solution

(क) गांधीजी बुराई करने वाले को उनसे प्यार करके, धैर्य, नम्रता के साथ उन्हें समझाकर सही रास्ते पर लाना चाहते
(ख) बुराई को असहयोग से समाप्त किया जा सकता है। असहयोग का मतलब बुराई करने वाले से नहीं, बल्कि बुराई का साथ न देना है।
(ग) प्रेम के बारे में गांधीजी के विचार यह हैं कि जो विवेकयुक्त, बुद्धियुक्त और जो एक भी गलती की ओर से अपनी आँखें बंद नहीं करें पुत्र के प्रति पिता का अंधा मोह और पिता के प्रति पुत्र की झूठी पितृभक्ति प्रेम नहीं है।
(घ) “असहयोग” का अर्थ है साथ न देना। यहाँ पर गांधीजी का असहयोग से अर्थ है ‘बुराई में साथ न देना।
(ङ) उपयुक्त शीर्षक समाज से बुराइयों का अंत

Question 2
CBSEENHN100018880

निम्नलिखित पद्यांश को पढ़कर दिए गए प्रश्नों के उत्तर प्रत्येक लगभग 20 शब्दों में लिखिए :
तुम्हारी निश्चल आँखें
तारों-सी चमकती हैं मेरे अकेलेपन की रात के आकाश में प्रेम
पिता का दिखाई नहीं देता है।
जरूर दिखाई देती होंगी नसीहतें
नुकीले पत्थरों-सी
दुनिया भर के पिताओं की लंबी कतार में
पता नहीं कौन-सा कितना करोड़वाँ नंबर है मेरा
पर बच्चों के फूलोंवाले बगीचे की दुनिया में
तुम अव्वल हो पहली कतार में मेरे लिए
मुझे माफ करना मैं अपनी मूर्खता और प्रेम में समझता था
मेरी छाया के तले ही सुरक्षित रंग-बिरंगी दुनिया होगी तुम्हारी
अब जब तुम सचमुच की दुनिया में निकल गई हो।
मैं खुश हूँ सोचकर
कि मेरी भाषा के अहाते से परे है तुम्हारी परछाई।
(क) बच्चे माता-पिता की उदासी में उजाला भर देते हैं-यह भाव किन पंक्तियों में आया हैं? [1]
(ख) प्रायः बच्चों को पिता की सीख कैसी लगती है? [1]
(ग) माता-पिता के लिए अपना बच्चा सर्वश्रेष्ठ क्यों होता है? [1]
(घ) कवि ने किस बात को अपनी मूर्खता माना है और क्यों? [2]
(ङ) भाव स्पष्ट कीजिए : ‘प्रेम पिता का दिखाई नहीं देता। [2]

Easy
Question 6
CBSEHIHN10002826

Q1निम्नलिखित गद्यांश को ध्यानपूर्वक पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिए- (2 × 6 = 12)

 

पता नहीं क्यों, उनकी कोई नौकरी लंबी नहीं चलती थी। मगर इससे वह न तो परेशान होते, न आतंकित, और न ही कभी निराशा उनके दिमाग में आती। यह बात उनके दिमाग में आई कि उन्हें अब नौकरी के चक्कर में रहने की बजाय अपना काम शुरू करना चाहिए। नई ऊँचाई तक पहुँचने का उन्हें यही रास्ता दिखाई दिया। सत्य है, जो बड़ा सोचता है, वही एक दिन बड़ा करके भी दिखाता है और आज इसी सोच के कारण उनकी गिनती बड़े व्यक्तियों में होती है। हम अक्सर इंसान के छोटे—बड़े होने की बातें करते हैं, पर दरअसल इंसान की सोच ही उसे छोटा या बड़ा बनाती है। स्वेट मार्डेन अपनी पुस्तक 'बड़ी सोच का बड़ज कमाल' में लिखिते हैं कि यदि आप दरिद्रता की सोच को ही अपने मन में स्थान दिए रहेंगे, तो आप कभी धनी नहीं बन सकते, लेकिन यदि आप अपने मन में अच्छे विचारों को ही स्थान देंगे और दरिद्रता, नीचता आदि कुविचारों की ओर से मुँह मोड़े रहेंगे और उनको अपने मन में कोई स्थान नहीं देंगे, तो आपकी उन्नति होती जाएगी और समृद्धि के भवन में आप आसानी से प्रवेश कर सकेंगे। 'भारतीय चिंतन में ऋषियों ने ईश्वर के संकल्प मात्र से सृष्टि रचना को स्वीकार किया है और यह संकेत दिया है कि व्यक्ति जैसा बनना चाहता है, वैसा बार—बार सोचे। व्यक्ति जैसा सोचता है, वह वैसा ही बन जाता है।' सफलता की ऊँचाइयों को छूने वाले व्यक्तियों का मानना है कि सफलता उनके मस्तिष्क से नहीं, अपितु उनकी सोच से निकलती है। व्यक्ति में सोच की एक ऐसी जादुई शक्ति है कि यदि व उसका उचित प्रयोग करे, तो कहाँ से कहाँ पहुँच सकता है। इसलिए सदैव बड़ा सोचें, बड़ा सोचने से बड़ी उपलब्धियाँ हासिल होंगी, फायदे बड़े होंगे और देखते—देखते आप अपनी बड़ी सोच द्वारा बड़े आदमी बन जाएँगे। इसके लिए हैजलिट कहते हैं— महान सोच जब कार्यरूप में परिणत हो जाती है, तब वह महान कृति बन जाती है।

पता नहीं क्यों, उनकी कोई नौकरी लंबी नहीं चलती थी। मगर इससे वह न तो परेशान होते, न आतंकित, और न ही कभी निराशा उनके दिमाग में आती। यह बात उनके दिमाग में आई कि उन्हें अब नौकरी के चक्कर में रहने की बजाय अपना काम शुरू करना चाहिए। नई ऊँचाई तक पहुँचने का उन्हें यही रास्ता दिखाई दिया। सत्य है, जो बड़ा सोचता है, वही एक दिन बड़ा करके भी दिखाता है और आज इसी सोच के कारण उनकी गिनती बड़े व्यक्तियों में होती है। हम अक्सर इंसान के छोटे—बड़े होने की बातें करते हैं, पर दरअसल इंसान की सोच ही उसे छोटा या बड़ा बनाती है। स्वेट मार्डेन अपनी पुस्तक 'बड़ी सोच का बड़ज कमाल' में लिखिते हैं कि यदि आप दरिद्रता की सोच को ही अपने मन में स्थान दिए रहेंगे, तो आप कभी धनी नहीं बन सकते, लेकिन यदि आप अपने मन में अच्छे विचारों को ही स्थान देंगे और दरिद्रता, नीचता आदि कुविचारों की ओर से मुँह मोड़े रहेंगे और उनको अपने मन में कोई स्थान नहीं देंगे, तो आपकी उन्नति होती जाएगी और समृद्धि के भवन में आप आसानी से प्रवेश कर सकेंगे। 'भारतीय चिंतन में ऋषियों ने ईश्वर के संकल्प मात्र से सृष्टि रचना को स्वीकार किया है और यह संकेत दिया है कि व्यक्ति जैसा बनना चाहता है, वैसा बार—बार सोचे। व्यक्ति जैसा सोचता है, वह वैसा ही बन जाता है।' सफलता की ऊँचाइयों को छूने वाले व्यक्तियों का मानना है कि सफलता उनके मस्तिष्क से नहीं, अपितु उनकी सोच से निकलती है। व्यक्ति में सोच की एक ऐसी जादुई शक्ति है कि यदि व उसका उचित प्रयोग करे, तो कहाँ से कहाँ पहुँच सकता है। इसलिए सदैव बड़ा सोचें, बड़ा सोचने से बड़ी उपलब्धियाँ हासिल होंगी, फायदे बड़े होंगे और देखते—देखते आप अपनी बड़ी सोच द्वारा बड़े आदमी बन जाएँगे। इसके लिए हैजलिट कहते हैं— महान सोच जब कार्यरूप में परिणत हो जाती है, तब वह महान कृति बन जाती है।

(क)गद्यांश में किस प्रकार के व्यक्ति के बारे में चर्चा की गई है। ऐसे व्यक्ति ऊँचाई तक पहुँचने का क्या उपाय अपनाते हैं? 
(ख)गद्यांश में समृद्धि और उन्नति के लिए क्या सुझाव दिए गए हैं?
(ग)भारतीय विचारधारा में संकल्प और चिंतन का क्या महत्व है
() गद्यांश में किस जादुई शक्ति की बात की गई है? उसके क्या परिणाम हो सकते हैं?
(ङ) 'सफलता' और 'आतंकित' शब्द में प्रयुक्त उपसर्ग और प्रत्यय का उल्लेख कीजिए।
() गद्यांश से दो मुहावरे चुनकर उनका वाक्य प्रयोग कीजिए

 

Easy
Question 7
CBSEHIHN10002827

2. निम्नलिखित काव्यांश को ध्यानपूर्वक पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिए— (2 × 4 = 8)
इस पृथ्वी पर
एक मनुष्य की तरह
मैं जीना चाहता हूँ
वे खत्म करना चाहते हैं
बैक्टेरिया की तरह
उनके तमाम हथकंडों के बावजूद
मैं नहीं मरता
उपेक्षा, भूख और तिरस्कार से लड़ते—झगड़ते
बढ़ गई है मेरी प्रतिरोधक सामर्थ्य
मैं मृत्यु से नहीं डरता
और अमरत्व में मेरा विश्वास नहीं
लेकिन मैं नहीं चाहता प्रतिदिन मरना
थोड़ा—थोड़ा
किंचित विनम्रता
किंचित अकड़
और मित्र हँसी के साथ
बेहतर सृष्टि के लिए
मैं एक पके फल की तरह टपकना चाहता हूँ
जिसे लपकने ​के लिए
झुक जाएँ एक साथ
असंख्य नन्हें—नन्हें हाथ
अधूरी लड़ाई बढ़ाने के लिए
फल के रस की तरह
मैं उनके रक्त में घुल जाना चाहता हूँ
मैं एक मनुष्य की तरह मरना चाहता हूँ।
(क) कवि की प्रतिरोध क्षमता कैसे बढ़ गई है? समझाइए।

(ख) कवि के 'हथकंडों' शब्द के प्रयोग का तात्पर्य क्या है?

(ग)'मैं नहीं चाहता प्रतिदिन मरना'— का आशय समझाइए।

(घ) पके फल की तरह टपकने की चाह क्यों व्यक्त की गई है? 

Easy
Question 9
CBSEHIHN10002840

निम्नलिखित गद्यांश को ध्यानपूर्वक पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर लिखिएः

महात्माओं और विद्वानों का सबसे बड़ा लक्षण है- आवाज़ को ध्यान से सुनना। यह आवाज़ कुछ भी हो सकती है। कौओं की कर्कश आवाज़ से लेकर नदियों की छलछल तक। मार्टिन लूथर किंग के भाषण से लेकर किसी पागल के बड़बड़ाने तक। अमूमन ऐसा होता नहीं। सच यह है कि हम सुनना चाहते ही नहीं। बस बोलना चाहते हैं। हमें लगता है कि इससे लोग हमें बेहतर तरीके से समझेंगे। हालांकि ऐसा होता नहीं। हमें पता ही नहीं चलता और अधिक बोलने की कला हमें अनसुना करने की कला में पारंगत कर देती है। एक मनोवैज्ञानिक ने अपने अध्ययन में पाया कि जिन घरों के अभिभावक ज्यादा बोलते हैं, वहाँ बच्चों में सही-गलत से जुड़ा स्वाभाविक ज्ञान कम विकसित हो पाता है, क्योंकि ज्यादा बोलना बातों को विरोधाभासी तरीके से सामने रखता है और सामने वाला बस शब्दों के जाल में फँसकर रह जाता है। बात औपचारिक हो या अनौपचारिक, दोनों स्थितियों में हम दूसरे की न सुन, बस हावी होने की कोशिश करते हैं। खुद ज्यादा बोलने और दूसरों को अनुसना करने से जाहिर होता है कि हम अपने बारे में ज्यादा सोचते हैं और दूसरों के बारे में कम। ज्यादा बोलने वालों के दुश्मनों की भी संख्या ज्यादा होती है। अगर आप नए दुश्मन बनाना चाहते हैं, तो अपने दोस्तों से ज्यादा बोलें और अगर आप नए दोस्त बनाना चाहते हैं, तो दुश्मनों से कम बोलें। अमेरिका के सर्वाधिक चर्चित राष्ट्रपति रूजवेल्ट अपने माली तक के साथ कुछ समय बिताते और इस दौरान उनकी बातें ज्यादा सुनने की कोशिश करते। वह कहते थे कि लोगों को अनसुना करना अपनी लोकप्रियता के साथ खिलवाड़ करने जैसा है। इसका लाभ यह मिला कि ज्यादात अमेरिकी नागरिक उनके सुख में सुखी होते, और दुख में दुखी।

(क) अनसुना करने की कला क्यों विकसित होती है?
(ख) अधिक बोलने वाले अभिभावकों का बच्चों पर क्या प्रभाव पड़ता है और क्यों?
(ग) अधिक बोलना किन बातों का सूचक है?
(घ) रूजवेल्ट की लोकप्रियता का क्या कारण बताया गया है?
(ङ) तर्कसम्मत टिप्पणी कीजिए- ''हम सुनना चाहते ही नहीं।''
(च) अनुच्छेद का मूल भाव तीन-चार वाक्यों में लिखिए। 

Easy
Question 10
CBSEHIHN10002841

निम्नलिखित काव्यांश को ध्यानपूर्वक पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर लिखिएः
यादें होती हैं गहरी नदी में उठी भँवर की तरह
नसों में उतरती कड़वी दवा की तरह
या खुद के भीतर छिपे बैठे साँप की तरह
जो औचक्के में देख लिया करता है
यादें होती हैं जानलेवा खुशबू की तरह
प्राणों के स्थान पर बैठे जानी दुश्मन की तरह
शरीर में धँसे उस काँच की तरह
जो कभी नहीं दिखता
पर जब-तब अपनी सत्ता का
भरपूर एहसास दिलाता रहता है
यादों पर कुछ भी कहना
खुद को कठघरे में खड़ा करना है
पर कहना ज़रूरत नहीं, मेरी मजबूरी है।
(क) यादों को गहरी नदी में उठी भँवर की तरह क्यों कहा गया है?
(ख) यादों को जानी दुश्मन की तरह मानने का क्या आशय है?
(ग) शरीर में धँसे काँच से यादों का साम्य कैसे बिठाया जा सकता है?
(घ) आशय स्पष्ट कीजिए-
'यादों पर कुछ भी कहना
खुद को कठघरे में खड़ा करना है।' 

Easy

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