Sponsor Area

Hindi Writing Skill

Question
CBSEENHN100018892

पर्यावरण के प्रति जागरूकता बढ़ाने के लिए लगभग 50 शब्दों में एक विज्ञापन तैयार कीजिए। [5]
अथवा
विद्यालय के वार्षिकोत्सव के अवसर पर विद्यार्थियों द्वारा निर्मित हस्तकला की वस्तुओं की प्रदर्शनी के प्रचार हेतु लगभग 50 शब्दों में एक ‘ विज्ञापन लिखिए।

Solution

पर्यावरण के प्रति जागरूकता बढ़ाने के लिए लगाये गए विज्ञापन
पर्यावरण जागरूकता दौड़ दिनांक 16 अगस्त 20XX को इण्डिया गेट से शुरू होगी।
पर्यावरण यानी पौधों का वृक्षारोपण को बढ़ावा देने हेतु निम्न वर्गों में दौड़ों का आयोजन किया जा रहा है।
• 10 किमी की दौड़-भारतीय व अन्तर्राष्ट्रीय खिलाड़ियों द्वारा
• 5 किमी की दौड़-महिलाओं के लिए
• 1 किमी की दौड़-वरिष्ठ नागरिकों के लिए
आप अपना पंजीकरण 10 अगस्त, 20XX तक करवा सकते हैं। भाग लेने वाले प्रतिभागियों को एक-एक टी शर्ट दौड़ शुरू होने से पहले मिलेगी।
संयोजक–दिल्ली संघ
फोन नं. 98*******

अथवा

विद्यालय के वार्षिकोत्सव पर हस्तकला प्रदर्शनी
सूचना
विद्यालय वार्षिकोत्सव कमेटी
भारती स्कूल, आगरा
20 अगस्त, 20XX
हमारे विद्यालय में 25 अगस्त, 20XX को वार्षिक उत्सव का आयोजन किया जा रहा है। उसी दिन विद्यालय के क्रीड़ांगन में विद्यार्थियों द्वारा निर्मित हस्तकला की वस्तुओं की प्रदर्शनी का आयोजन भी किया गया है। जो लोग प्रदर्शित वस्तुओं को खरीदने के इच्छुक होंगे वो सीधे उस स्टाल से खरीद सकते हैं।सभी विद्यार्थियों के परिवारीजन वार्षिकोत्सव व प्रदर्शनी में आमन्त्रित हैं।
सेक्रेटरी
विद्यालय वार्षिकोत्सव कमेटी
भारती स्कूल, आगरा

Some More Questions From Hindi Writing Skill Chapter

Q10निम्नलिखित गद्याशं को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिए-   (2 + 2 + 1 =5)

खुद ऊपर चढ़ें और अपने साथ दूसरों को भी ऊपर ले चलें, यही महत्त्व की बात है। यह काम तो हमेशा आदर्शवादी लोगों ने ही किया है। समाज के पास अगर शाश्वत मूल्यों जैसा कुछ है तो आदर्शवादी लोगों का ही दिया हुआ है। व्यवहारवादी लोगों ने तो समाज को गिराया ही है।

(क) महत्त्व की बात क्या है और क्यों?

(ख) शाश्वत मूल्य क्या हैं? इन मूल्यों से समाज को क्या लाभ हैं?

(ग) समाज को पतन की ओर ले जाने वाले लोग कौन हैं?

 

निम्नलिखित गद्यांश को ध्यानपूर्वक पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर लिखिएः

महात्माओं और विद्वानों का सबसे बड़ा लक्षण है- आवाज़ को ध्यान से सुनना। यह आवाज़ कुछ भी हो सकती है। कौओं की कर्कश आवाज़ से लेकर नदियों की छलछल तक। मार्टिन लूथर किंग के भाषण से लेकर किसी पागल के बड़बड़ाने तक। अमूमन ऐसा होता नहीं। सच यह है कि हम सुनना चाहते ही नहीं। बस बोलना चाहते हैं। हमें लगता है कि इससे लोग हमें बेहतर तरीके से समझेंगे। हालांकि ऐसा होता नहीं। हमें पता ही नहीं चलता और अधिक बोलने की कला हमें अनसुना करने की कला में पारंगत कर देती है। एक मनोवैज्ञानिक ने अपने अध्ययन में पाया कि जिन घरों के अभिभावक ज्यादा बोलते हैं, वहाँ बच्चों में सही-गलत से जुड़ा स्वाभाविक ज्ञान कम विकसित हो पाता है, क्योंकि ज्यादा बोलना बातों को विरोधाभासी तरीके से सामने रखता है और सामने वाला बस शब्दों के जाल में फँसकर रह जाता है। बात औपचारिक हो या अनौपचारिक, दोनों स्थितियों में हम दूसरे की न सुन, बस हावी होने की कोशिश करते हैं। खुद ज्यादा बोलने और दूसरों को अनुसना करने से जाहिर होता है कि हम अपने बारे में ज्यादा सोचते हैं और दूसरों के बारे में कम। ज्यादा बोलने वालों के दुश्मनों की भी संख्या ज्यादा होती है। अगर आप नए दुश्मन बनाना चाहते हैं, तो अपने दोस्तों से ज्यादा बोलें और अगर आप नए दोस्त बनाना चाहते हैं, तो दुश्मनों से कम बोलें। अमेरिका के सर्वाधिक चर्चित राष्ट्रपति रूजवेल्ट अपने माली तक के साथ कुछ समय बिताते और इस दौरान उनकी बातें ज्यादा सुनने की कोशिश करते। वह कहते थे कि लोगों को अनसुना करना अपनी लोकप्रियता के साथ खिलवाड़ करने जैसा है। इसका लाभ यह मिला कि ज्यादात अमेरिकी नागरिक उनके सुख में सुखी होते, और दुख में दुखी।

(क) अनसुना करने की कला क्यों विकसित होती है?
(ख) अधिक बोलने वाले अभिभावकों का बच्चों पर क्या प्रभाव पड़ता है और क्यों?
(ग) अधिक बोलना किन बातों का सूचक है?
(घ) रूजवेल्ट की लोकप्रियता का क्या कारण बताया गया है?
(ङ) तर्कसम्मत टिप्पणी कीजिए- ''हम सुनना चाहते ही नहीं।''
(च) अनुच्छेद का मूल भाव तीन-चार वाक्यों में लिखिए। 

निम्नलिखित काव्यांश को ध्यानपूर्वक पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर लिखिएः
यादें होती हैं गहरी नदी में उठी भँवर की तरह
नसों में उतरती कड़वी दवा की तरह
या खुद के भीतर छिपे बैठे साँप की तरह
जो औचक्के में देख लिया करता है
यादें होती हैं जानलेवा खुशबू की तरह
प्राणों के स्थान पर बैठे जानी दुश्मन की तरह
शरीर में धँसे उस काँच की तरह
जो कभी नहीं दिखता
पर जब-तब अपनी सत्ता का
भरपूर एहसास दिलाता रहता है
यादों पर कुछ भी कहना
खुद को कठघरे में खड़ा करना है
पर कहना ज़रूरत नहीं, मेरी मजबूरी है।
(क) यादों को गहरी नदी में उठी भँवर की तरह क्यों कहा गया है?
(ख) यादों को जानी दुश्मन की तरह मानने का क्या आशय है?
(ग) शरीर में धँसे काँच से यादों का साम्य कैसे बिठाया जा सकता है?
(घ) आशय स्पष्ट कीजिए-
'यादों पर कुछ भी कहना
खुद को कठघरे में खड़ा करना है।' 

निम्नलिखित गद्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर लिखिएः

संसार की रचना भले ही कैसे हुए हो लेकिन धरती किसी एक की नहीं है। पंछी, मानव, पशु, नदी, पर्वत, समंदर, आदि की इसमें बराबर की हिस्सेदारी है। यह और बात है कि इस हिस्सेदारी में मानव जाति ने अपनी बुद्धि से बड़ी-बड़ी दीवारें खड़ी कर दी हैं। पहले पूरा संसार एक परिवार के समान था अब टुकड़ों में बँटकर एक दूसरे से दूर हो चुका है।

(क) 'मानव जाति ने अपनी बुद्धि से बड़ी-बड़ी दीवारें खड़ी कर दीं'- कथन का क्या आशय है?
(ख) परिवार के टुकड़ों में बँटकर एक दूसरे से दूर होने के क्या कारण हैं?
(ग) आशय समझाइए धरती किसी एक की नहीं है।

दिए गए संकेत बिंदुओं के आधार पर निम्नलिखित में से किसी एक विषय पर लगभग 100 शब्दों में अनुच्छेद लिखिएः
(क) मित्रता
•    मित्रता का महत्त्व
•    अच्छे मित्र के लक्षण
•    लाभ-हानि

(ख) दहेज प्रथा- एक अभिशाप
•    सामाजिक समस्या
•    रोकथाम के उपाय
•    युवकों का कर्त्तव्य

(ग) कम्प्यूटर
•    उपयोगी वैज्ञानिक आविष्कार
•    विविध क्षेत्रों का कंप्यूटर
•    लाभ-हानि

 

आपके नाम से प्रेषित एक हजार रु. के मनीआर्डर की प्राप्ति न होने का शिकायत पत्र अधीक्षक, पोस्ट आफिस को लिखिए। 

विद्यालय में आयोजित होने वाली वाद-विवाद प्रतियोगिता के लिए एक सूचना लगभाग 30 शब्दों में साहित्यिक क्लब के सचिव की ओर से विद्यालय सूचना पट के लिए लिखिए। 

खाद्य-पदार्थों में होने वाली मिलावट के बारे में मित्र के साथ हुए संवाद को लगभग 50 शब्दों में लिखिए। 

अपने पुराने मकान के बेचने संबंधी विज्ञापन का आलेख लगभग 25 शब्दों में तैयार कीजिए। 

निम्नलिखित गद्यांश को ध्यानपूर्वक पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर लिखिए – 

चरित्र का मूल भी भावों के विशेष प्रकार के संगठन में ही समझना चाहिए। लोकरक्षा और लोक–रंजन की सारी व्यवस्था का ढाँचा इन्हीं पर ठहराया गया है। धर्म–शासन, राज–शासन, मत–शासन – सबमें इनसे पूरा काम लिया गया है। इनका सदुपयोग भी हुआ है और दुरुपयोग भी। जिस प्रकार लोक–कल्याण के व्यापक उद्देश्य की सिद्धि के लिए मनुष्य के मनोविकार काम में लाए गए हैं उसी प्रकार संप्रदाय या संस्था के संकुचित और परिमित विधान की सफलता के लिए भी। सब प्रकार के शासन में – चाहे धर्म–शासन हो, चाहे राज–शासन, मनुष्य–जाति से भय और लोभ से पूरा काम लिया गया है। दंड का भय और अनुग्रह का लोभ दिखाते हुए राज–शासन तथा नरक का भय और स्वर्ग का लोभ दिखाते हुए धर्म–शासन और मत–शासन चलते आ रहे हैं। इसके द्वारा भय और लोभ का प्रवर्तन सीमा के बाहर भी प्राय: हुआ है और होता रहता है। जिस प्रकार शासक–वर्ग अपनी रक्षा और स्वार्थसिद्धि के लिए भी इनसे काम लेते आए हैं उसी प्रकार धर्म–प्रवर्तक और आचार्य अपने स्वरूप वैचित्र्य की रक्षा और अपने प्रभाव की प्रतिष्ठा के लिए भी। शासक वर्ग अपने अन्याय और अत्याचार के विरोध की शान्ति के लिए भी डराते और ललचाते आए हैं। मत–प्रवर्तक अपने द्वेष और संकुचित विचारों के प्रचार के लिए भी कँपाते और डराते आए हैं। एक जाति को मूर्ति–पूजा करते देख दूसरी जाति के मत–प्रवर्तकों ने उसे पापों में गिना है। एक संप्रदाय को भस्म और रुद्राक्ष धारण करते देख दूसरे संप्रदाय के प्रचारकों ने उनके दर्शन तक को पाप माना है।

(क) लोकरंजन की व्यवस्था का ढाँचा किस पर आधारित है ? तथा इसका उपयोग कहाँ किया गया है ?
(ख) दंड का भय और अनुग्रह का लोभ किसने और क्यों दिखाया है ?
(ग) धर्म–प्रवर्तकों ने स्वर्ग–नरक का भय और लोभ क्यों दिखाया है ?
(घ) शासन व्यवस्था किन कारणों से भय और लालच का सहारा लेती है ?
(ङ) संप्रदायों–जातियों की भिन्नता किन रूपों में दिखाई देती है ?
(च) प्रतिष्ठा और लोभ शब्दों के समानार्थक शब्द लिखिए।