Vitan Bhag I Chapter 1 भारतीय गायिकाओं में बेजोड़: लता मंगेशकर
  • Sponsor Area

    NCERT Solution For Class 11 Hindi Vitan Bhag I

    भारतीय गायिकाओं में बेजोड़: लता मंगेशकर Here is the CBSE Hindi Chapter 1 for Class 11 students. Summary and detailed explanation of the lesson, including the definitions of difficult words. All of the exercises and questions and answers from the lesson's back end have been completed. NCERT Solutions for Class 11 Hindi भारतीय गायिकाओं में बेजोड़: लता मंगेशकर Chapter 1 NCERT Solutions for Class 11 Hindi भारतीय गायिकाओं में बेजोड़: लता मंगेशकर Chapter 1 The following is a summary in Hindi and English for the academic year 2021-2022. You can save these solutions to your computer or use the Class 11 Hindi.

    Question 1
    CBSEENEN11009824

    “संगीत का क्षेत्र ही विस्तीर्ण है। वहाँ अब तक अलक्षित, असंशोधित और अदृष्टिपूर्व ऐसा खूब बड़ा प्रांत है तथापि बड़े जोश से इसकी खोज और उपयोग चित्रपट के लोग करते चले आ रहे हैं।,” इस कथन को वर्तमान फिल्मी संगीत के संदर्भ में स्पष्ट कीजिए।

    Solution

    यह पूर्णत: सत्य है कि संगीत का क्षेत्र बड़ा विस्तीर्ण है। इसमें शास्त्रीय संगीत को विशेष महत्त्व दिया जाता रहा है। पर शास्त्रीय संगीत का भी रंजक होना आवश्यक है अन्यथा वह नीरस हो जाता है। शास्त्रीय संगीत की एक सुदीर्घ परंपरा चली आ रही है। चित्रपट के लोग इस संगीत का प्रयोग अपनी फिल्मों में निरंतर करते चले आ रहे हैं। गंभीरता शास्त्रीय संगीत का स्थायी भाव है, जबकि लय और चपलता चित्रपट संगीत का मुख्य गुण धर्म है। चित्रपट संगीत का ताल प्राथमिक अवस्था का ताल होता है जबकि शास्त्रीय संगीत में ताल अपने परिष्कृत रूप में पाया जाता है। चित्रपट संगीत में आधे तालों का उपयोग किया जाता है और इसकी लयकारी बिल्कुल अलग होती है, आसान होती है। चित्रपट संगीत में गीत और आघात को अधिक महत्त्व दिया जाता है।

    Question 2
    CBSEENEN11009825

    चित्रपट संगीत ने लोगों के कान बिगाड़ दिए- अकसर यह आरोप लगाया जाता रहा है। इस संदर्भ में कुमार गंधर्व की राय और अपनी राय लिखें।

    Solution

    शास्त्रीय संगीतकार प्राय: यह आरोप लगाते हैं कि चित्रपट संगीत ने लोगों के कान बिगाड़ दिए हैं अर्थात् लोगों के कानों को चित्रपट संगीत अधिक लुभाता है। इसने उनकी रुचि को बिगाड़ दिया है। लेखक कुमार गंधर्व का विचार है कि यह कथन सही नहीं है। चित्रपट संगीत ने लोगों के कान बिगाड़े नहीं हैं उलटे सुधार दिए हैं।

    हमारा विचार भी कुमार गंधर्व से मिलता है। हमारा मत भी यह है कि चित्रपट संगीत ने लोगों में संगीत के प्रति रुचि जाग्रत की है जबकि शास्त्रीय संगीत केवल एक वर्ग तक सिमट कर रह गया था। चित्रपट संगीत ने कर्णप्रिय संगीत रचने में महत्वपूर्ण भूमिका का निर्वाह किया है।

    Question 3
    CBSEENEN11009826

    शास्त्रीय एवं चित्रपट दोनों तरह के संगीतों के महत्त्व का आधार क्या होना चाहिए? कुमार गंधर्व की इस संबंध में क्या राय है? स्वयं आप क्या सोचते हैं?

    Solution

    कुमार गंधर्व के अनुसार शास्त्रीय और चित्रपट दोनों तरह के संगीतों के महत्त्व का आधार रसिक को आनंद प्रदान करने की क्षमता होना चाहिए। शास्त्रीय संगीत भी यदि रंजक न होगा तो वह नीरस ही कहा जाएगा। वह अनाकर्षक प्रतीत होगा और कुछ कमी-सी लगेगी। गाने में गानपन का होना आवश्यक है। रंजकता का मर्म रसिक पाठ के साथ कैसे प्रस्तुत किया गया है, यही दोनों तरह के संगीतों के महत्त्व को प्रकट करता है।

    Question 4
    CBSEENEN11009827

    पाठ में किए गए अंतरों के अलावा संगीत शिक्षक से चित्रपट संगीत एवं शास्त्रीय संगीत का अंतर पता करें। इन अंतरों को सूचीबद्ध करें।

    Solution

    चित्रपट संगीत

    शास्त्रीय संगीत

    1. गानपन की प्रधानता।

    रागों की प्रधानता।

    2. जलदलय, चपलता मुख्य गुणधर्म है।

    गंभीरता स्थायी भाव है।

    3. आधे तालों का उपयोग जाता है।

    ताल परिष्कृत रूप में पाया किया जाता है।

    4. गीत और आघात को अधिक महत्त्व दिया जाता है।

    शास्त्रीय संगीत में पक्कापन, ताल-सुर का निर्दोष ज्ञान होता है।

    Question 5
    CBSEENEN11009828

    कुमार गंधर्व ने लिखा है-चित्रपट संगीत गाने वाले को शास्त्रीय संगीत की उत्तम जानकारी होना आवश्यक है? क्या शास्त्रीय गायकों को भी चित्रपट संगीत से कुछ सीखना चाहिए? कक्षा में विचार-विमर्श करें।

    Solution

    दोनों प्रकार के संगीतकारों को एक-दूसरे से कुछ नया सीखने का भाव होना चाहिए। शास्त्रीय संगीतकार स्वयं को चित्रपट संगीत से अछूता नहीं रख सकते।

    संगीत के बारे में यह भी जानें

    टिप्पणी:

    1. त्रिताल या तीन सताल-यहसोलह मात्राओं का ताल है। इसमें चार-चार मात्राओं के चार विभाग होते हैं।

    2. राग मालकौंस-भैरवी थाट का राग है। इसमें रे और प वर्जित है। इसमें सब स्वर कोमल लगते हैं। यह गंभीर प्रकृति का लोकप्रिय राग है।

    3. मध्य या दुतलय-लय तीन प्रकार की होती है:

    (i) विलंबितलय (धीमी)

    (ii) मध्यलय (बीच की)

    (iii) द्रुतलय(तेज)

    4. मध्यलय से दुगुनी और विलंबितलय से चौगुनी तेज लय दद्रुतलय कहलाती है।

    5. गानपन - जो गायकी एक आम इंसान को भी भावविभोर कर दे।

    6. स्वर मालिकाएँ-स्वरों की मालाएँ। स्वर मालिका में बोल नहीं होते।

    7. ऊँची पट्टी-ऊँचे (तारसप्तक के) स्वरों का प्रयोग।

    8. आघात (Beats)-गायन या वादन के समय मात्राओं के अनुसार ताल का प्रयोग।

    9. जलदलय -द्रुत लय (तेज)।

    10. लोच - स्वरों का बारीक प्रयोग।

    11. रंजक - दिल को लुभाने वाला।

    12. ऋतुचक्र - कुछ राग ऋतुओं के अनुसार गाये जाते हैं, जैसे वसंत में राग बसंत तथा वर्षा ऋतु में राग मल्हार।

    13. ध्वनि मुष्टिका - आवाज।

    14. पक्कापन - परिपक्वता (Maturity)

     

    Question 6
    CBSEENEN11009829

    लेखक के मत में लता के गायन से चित्रपट संगीत पर क्या प्रभाव पड़ा है, साथ ही लोगों के दृष्टिकोण में भी क्या अंतर आया है?

    Solution

    लेखक का स्पष्ट मत है कि भारतीय गायिकाओं में लता के जोड़ की गायिका हुई ही नहीं। लता के कारण चित्रपट संगीत को विलक्षण लोकप्रियता प्राप्त हुई है, यही नहीं लोगों का शास्त्रीय संगीत की ओर देखने का दृष्टिकोण भी एकदम बदला है। छोटी बात कहूँगा। पहले भी घर-घर छोटे बच्चे गाया करते थे। पर उस गाने में और आजकल घरों में सुनाई देने वाले बच्चों के गाने में बड़ा अंतर हो गया है। आजकल के नन्हे-मुन्ने भी स्वर में गुनगुनाते हैं। यह सब लता के जादू का कारण ही है। कोकिला का निरंतर स्वर कानों में पड़ने लगे तो कोई भी सुनने वाला उसका अनुकरण करने का प्रयत्न करेगा। ये स्वाभाविक ही है। चित्रपट संगीत के कारण सुंदर स्वर मलिकाएँ लोगों के कानों पर पड़ रही हैं। संगीत के विविध प्रकारों से उनका परिचय हो रहा है। उनका स्वर-ज्ञान बढ़ रहा है। सुरीलापन क्या है, इसकी समझ भी उन्हें होती जा रही है। तरह-तरह की लय के भी प्रकार उन्हें सुनाई पड़ने लगे हैं और अकारयुक्त लय के साथ उनकी जान-पहचान होती जा रही है। साधारण प्रकार के लोगों को भी उसकी सूक्ष्मता समझ में आने लगी है। इन सबका श्रेय लता को ही है। इस प्रकार उसने नई पीढ़ी के संगीत को संस्कारित किया है और सामान्य मनुष्य में संगीत विषयक अभिरुचि पैदा करने में बड़ा हाथ बँटाया है। संगीत की लोकप्रियता, उसका प्रसार और अभिरुचि के विकास का श्रेय लता को ही देना पड़ेगा।

    Question 7
    CBSEENEN11009830

    लता की लोकप्रियता का मुख्य मर्म क्या है?

    Solution

    लता की लोकप्रियता का मुख्य मर्म उसका “गानपन” ही है। लता के गाने की एक और विशेषता है, उसके स्वरों की निर्मलता। उसके पहले की पार्श्व गायिका नूरजहाँ भी एक अच्छी गायिका थी, इसमें संदेह नहीं तथापि उसके गाने में एक मादक उत्तान दीखता था। लता के स्वरों में कोमलता और मुग्धता है। ऐसा दीखता है कि लता का जीवन की ओर देखने का जो दृष्टिकोण है वही उसके गायन की निर्मलता में झलक रहा है। हाँ, संगीत दिग्दर्शकों ने उसके स्वर की इस निर्मलता का जितना उपयोग कर लेना चाहिए था, उतना नहीं किया।

    लता के गाने की एक और विशेषता है, उसका नादमय उच्चार। उसके गीत के किन्हीं दो शब्दों का अंतर स्वरों की आस द्वारा बड़ी सुंदर रीति से भरा रहता है और ऐसा प्रतीत होता है कि वे दोनों शब्द विलीन होते-होते एक दूसरे में मिल जाते हैं। यह बात पैदा करना बड़ा कठिन है, परन्तु लता के साथ यह बात अत्यंत सहज और स्वाभाविक हो बैठी है।

    Question 8
    CBSEENEN11009831

    शास्त्रीय संगीत में लता का कौन-सा स्थान है?

    Solution

    एक प्रश्न उपस्थित किया जाता है कि शास्त्रीय संगीत में लता का स्थान कौन-सा है। लेखक के मत से यह प्रश्न खुद ही प्रयोजनहीन है। उसका कारण यह है कि शास्त्रीय संगीत और चित्रपट संगीत में तुलना हो ही नहीं सकती। जहाँ गंभीरता शास्त्रीय संगीत का स्थायीभाव है, जलद लय, चपलता चित्रपट संगीत का मुख्य गुणधर्म है। चित्रपट संगीत का ताल प्राथमिक अवस्था का ताल होता है, जबकि शास्त्रीय संगीत में ताल अपने परिष्कृत रूप में पाया जाता है। चित्रपट संगीत में आधे तालों का उपयोग किया जाता है। उसकी लयकारी बिलकुल अलग होती है, आसान होती है। यहाँ गीत और आघात को ज्यादा महत्त्व दिया जाता है। सुलभता और लोच को अग्र स्थान दिया जाता है तथापि चित्रपट संगीत गाने वाले को शास्त्रीय संगीत की उत्तम जानकारी होना आवश्यक है और वह लता के पास निसंशय है।

    Question 9
    CBSEENEN11009832

    दोनों प्रकार के संगीत के बारे में लेखक के विचारों को अभिव्यक्त कीजिए।

    Solution

    लेखक का मत है कि तीन-साढ़े मिनट के गाए हुए चित्रपट के किसी गाने का और एकाध खानदानी शास्त्रीय गायक की तीन-सादे तीन घंटे की महफिल इन दोनों का कलात्मक और आनंदात्मक मूल्य एक ही है। किसी उत्तम लेखक का कोई विस्तृत लेख जीवन के रहस्य का विशद् रूप में वर्णन करता है तो वही रहस्य छोटे से सुभाषित का या नन्हीं-सी कहावत में सुंदरता और परिपूर्णता से प्रकट हुआ भी दृष्टिगोचर होता है। उसी प्रकार तीन घंटों की रंगदार महफिल का सारा रस लता की तीन मिनट की ध्वनिमुद्रिका में आस्वादित किया जा सकता है। उसका एक-एक गाना एक संपूर्ण कलाकृति होती है। स्वर, लय, शब्दार्थ का वहाँ त्रिवेणी संगम होता है और महफिल की बेहोशी उसमें समाई रहती है। वैसे देखा जाए तो शास्त्रीय संगीत क्या और चित्रपट संगीत क्या, अंत में रसिक को आनंद देने का सामर्थ्य किस गाने में कितना है, इस पर उसका महत्त्व ठहराना उचित है। लेखक कहता है कि शास्त्रीय संगीत भी रंजक न हो, तो बिल्कुल ही नीरस ठहरेगा। अनाकर्षक प्रतीत होगा और उसमें कुछ कमी-सी प्रतीत होगी। गाने में जो गानपन प्राप्त होता है, वह केवल शास्त्रीय बैठक के पक्केपन की वजह से ताल सुर के निर्दोष ज्ञान के कारण नहीं। गाने की सारी मिठास, सारी ताकत उसकी रंजकता पर मुख्यत: अवलंबित रहती है और रंजकता का मर्म रसिक वर्ग के समक्ष कैसे प्रस्तुत किया जाए, किस रीति से उसकी बैठक बिठाई जाए और श्रोताओं से कैसे सुसंवाद साधा जाए, इसमें समाविष्ट है। किसी मनुष्य का अस्थिपंजर और एक प्रतिभाशाली कलाकार द्वारा उसी मनुष्य का तैलचित्र, इन दोनों में जो अंतर होगा वही गायन के शास्त्रीय ज्ञान और उसकी स्वरों द्वारा की गई सुसंगत अभिव्यक्ति में होगा।

    Question 10
    CBSEENEN11009833

    लेखक के विचार में शास्त्रीय गायक किस प्रवृत्ति के हैं?

    Solution

    लेखक के विचार में हमारे शास्त्रीय गायक बड़ी आत्मसंतुष्ट वृत्ति के हैं। संगीत के क्षेत्र में उन्होंने अपनी हुकूमशाही स्थापित कर रखी है। शास्त्र-शुद्धता के कर्मकांड को उन्होंने आवश्यकता से अधिक महत्व दे रखा है। मगर चित्रपट संगीत द्वारा लोगों की आभिजात्य संगीत से जान-पहचान होने लगी है। उनकी चिकित्सक और चौकस वृत्ति अब बढ़ती जा रही है। केवल शास्त्र-शुद्ध और नीरस गाना उन्हें नहीं चाहिए, उन्हें तो सुरीला और भावपूर्ण गाना चाहिए। और यह क्रांति चित्रपट संगीत ला रहा है।

    Question 11
    CBSEENEN11009834

    चित्रपट संगीत दिनोंदिन क्यों विकसित होता चला जा रहा है?

    Solution

    लेखक का कहना है कि गीतों का अतिशय मार्मिक व रसानुकूल उपयोग चित्रपट क्षेत्र के प्रभावी संगीत दिग्दर्शकों ने किया है और आगे भी करते रहेंगे। संगीत का क्षेत्र ही विस्तीर्ण है। वहाँ अब तक अलक्षित, असंशोधित और अदृष्टिपूर्व ऐसा खूब बड़ा प्रांत है तथापि बड़े जोश से इसकी खोज और उपयोग चित्रपट के लोग करते चले आ रहे हैं। फलस्वरूप चित्रपट संगीत दिनोदिन अधिकाधिक विकसित होता जा रहा है।

    Question 12
    CBSEENEN11009835

    चित्रपट संगीत के क्षेत्र में लता का क्या स्थान है?

    Solution

    लता चित्रपट संगीत क्षेत्र की अनिभिषिक्त साम्राज्ञी है और भी कई पार्श्व गायक-गायिकाएँ हैं, पर लता की लोकप्रियता इन सबों से कहीं अधिक है। उसकी लोकप्रियता के शिखर का स्थान अचल है। बीते अनेक वर्षों से वह गाती आ रही है और फिर भी उसकी लोकप्रियता अबाधित है। लगभग आधी शताब्दी तक जनमन पर सतत प्रभुत्व रखना आसान नहीं है। ज्यादा क्या कहै एक राग भी हमेशा टिका नहीं रहता। भारत के कोने-कोने में लता का गाना जा पहुँचे, यही नहीं परदेस में भी उसका गाना सुनकर लोग पागल हो उठें, यह क्या चमत्कार नहीं है? और यह चमत्कार हम प्रत्यक्ष देख रहे हैं।

    Question 13
    CBSEENEN11009836

    चित्रपट संगीत ने समाज पर क्या प्रभाव डाला है?

    Solution

    चित्रपट संगीत समाज की संगीत विषयक अभिरुचि में प्रभावशाली मोड़ लाया है। चित्रपट संगीत की लचकदारी उसका एक और सामर्थ्य है। उस संगीत की मान्यताएँ, मर्यादा, झंझटें सब कुछ निराली हैं। चित्रपट संगीत का तंत्र ही अलग है। यहाँ नवनिर्मित की बहुत गुंजाइश है। जैसा शास्त्रीय रागदारी का चित्रपट संगीत दिग्दर्शकों ने उपयोग किया, उसी प्रकार राजस्थानी, पंजाबी, बंगाली, प्रदेश के लोकगीतों के भंडार को भी उन्होंने खूब लूटा है, यह हमारे ध्यान में रहना चाहिए।

    Question 14
    CBSEENEN11009837

    लता की गायकी से संगीत के प्रति आम लोगों की सोच में क्या अंतर आया है?

    Solution

    लता के कारण चित्रपट संगीत को अपार लोकप्रियता प्राप्त हुई है और लोगों का संगीत के प्रति दृष्टिकोण भी बदला है। साधारण लोगों को भी संगीत की सूक्ष्मता समझ में आने लगी है। लता ने नई पीढ़ी के संगीत को संस्कारित किया है। आम लोगों का संगीत के विविध प्रकारों से परिचय हो रहा है।

    Question 15
    CBSEENHN11012376

    लेखक ने पाठ में गानपन का उल्लेख किया है। पाठ के संदर्भ में स्पष्ट करते हुए बताएँ कि आपके विचार में इसे प्राप्त करने के लिए किस प्रकार के अभ्यास की आवश्यकता है?

    Solution

    लेखक ने पाठ में गानपन का उल्लेख किया है। ‘गानपन’ वह मिठास होती है जो श्रोता को मस्त कर देती है। इसका वह अनुभव कर सकता है। जिस प्रकार मनुष्यता होने पर ही मनुष्य होता है, उसी प्रकार ‘गानपन’ के होने पर ही संगीत होता है। लता के हर गाने में शत-प्रतिशत ‘गानपन’ मौजूद रहता है। लता की लोकप्रियता का मर्म भी यही ‘गानपन’ है।

    हमारे विचार में इस ‘गानपन’ की विशेषता को प्राप्त करने के लिए नादमय उच्चार करके गाने के अभ्यास की आवश्यकता है। इसमें दो शब्दों का अंतर एक दूसरे में विलीन हो जाता है। गाने को मिठास और स्वाभाविकता के साथ गाया जाना भी आवश्यक है। बहुत ऊँची पट्टी में नहीं गाना चाहिए।

    Question 16
    CBSEENHN11012377

    लेखक ने लता की गायकी की किन विशेषताओं को उजागर किया है? आपको लता की गायकी में कौन-सी विशेषताएँ नजर आती हैं? उदाहरण सहित बताइए।

    Solution

    लेखक ने लता की गायकी की निम्नलिखित विशेषताओं को उजागर किया है-

    1. निर्मलता-लता की गायकी की एक प्रमुख विशेषता है-उसके स्वरों की निर्मलता। लता का जीवन की ओर देखने का जो दृष्टिकोण है, वही उसके गाने की निर्मलता में झलकता है।

    2. स्वरों की कोमलता और मुग्धता-लता की गायकी के स्वरों में कोमलता और मुग्धता है। इसके विपरीत नूरजहाँ के गायन में एक मादक उत्तान दिखाई पड़ता था।

    3. नादमय उच्चार-यह लता के गायन की एक अन्य प्रमुख विशेषता है। उसके गीत के किन्हीं दो शब्दों का अंतर स्वरों की आस द्वारा बड़ी सुंदर रीति से भरा रहता है और ऐसा प्रतीत होता कि वे दोनों शब्द विलीन होते-होते एक दूसरे में मिल जाते हैं।

    4. श्रृंगार की अभिव्यक्ति–लेखक के मत में लता ने करुण रस के साथ तो अधिक न्याय नहीं किया, पर मुग्ध श्रृंगार की अभिव्यक्ति करने वाले गाने उत्कटता से गाए हैं।

    हमें भी लता की गायकी में उपर्युक्त सभी विशेषताएँ नजर आती हैं। लता की गायकी में वह जादू है जो सभी को मंत्रमुग्ध कर देता है। लता के गायन की मिठास लोगों को मस्त कर देती है।

    Question 17
    CBSEENHN11012378

    लता ने करुण रस के गानों के साथ न्याय नहीं किया है जबकि श्रृंगारपरक गाने वे बड़ी उत्कटता से गाती हैं-इस कथन से आप कहाँ तक सहमत हैं?

    Solution

    सामान्यत: ऐसा माना जाता है कि लता के गाने में करुण रस विशेष प्रभावशाली रीति से व्यक्त होता है, पर लेखक को यह बात जँचती नहीं। लेखक का मानना है कि लता ने करुण रस के साथ उतना न्याय नहीं किया है जितना मुग्ध शृंगार के साथ किया है। श्रृंगारपरक गाने वे बहुत उत्कटता से गाती हैं।

    हम लेखक के इस कथन से केवल आशिक रूप से ही सहमत हैं। लता ने श्रृंगारपरक गाने उत्कटता के साथ अवश्य गाए हैं, पर करुण रस के साथ भी न्याय किया है। हाँ, उनकी संख्या अवश्य कम हो सकती है। उदाहरण के रूप में हम लता के द्वारा चीनी आक्रमण की पृष्ठभूमि में गाया गीत ‘ऐ मेरे वतन के लोगों, जरा आँख में भर लो पानी’ को ले सकते हैं। इस गीत में उन्होंने इतनी करुणा उँडेली कि तत्कालीन प्रधानमंत्री पं. जवाहरलाल नेहरू की आँखें भी सजल हो उठी थीं। लता ने सभी प्रकार के गाने पूरी तन्मयता के साथ गाए हैं।

    Sponsor Area

    Mock Test Series

    Sponsor Area

    Sponsor Area

    NCERT Book Store

    NCERT Sample Papers

    Entrance Exams Preparation