Aroh Chapter 20 निर्मला पुतुल
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    NCERT Solution For Class 11 Hindi Aroh

    निर्मला पुतुल Here is the CBSE Hindi Chapter 20 for Class 11 students. Summary and detailed explanation of the lesson, including the definitions of difficult words. All of the exercises and questions and answers from the lesson's back end have been completed. NCERT Solutions for Class 11 Hindi निर्मला पुतुल Chapter 20 NCERT Solutions for Class 11 Hindi निर्मला पुतुल Chapter 20 The following is a summary in Hindi and English for the academic year 2021-2022. You can save these solutions to your computer or use the Class 11 Hindi.

    Question 1
    CBSEENHN11012345

    निर्मला पुतुल के जन्म का संक्षिप्त परिचय देते हुए उनकी साहित्यिक विशेषताओं एवं रचनाओं का उल्लेख कीजिए।

    Solution

    निर्मला पुतुल का जन्म एक आदिवासी परिवार में 1972 ई. में दुमका (झारखंड) में हुआ था। इनका आरंभिक जीवन बहुत संघर्षमय रहा। घर में शिक्षा का माहौल होने (पिता और चाचा शिक्षक थे) के बावजूद रोटी की समस्या से जूझने के कारण नियमित अध्ययन बाधित होता रहा।

    नर्स बनने पर आर्थिक कष्टों से मुक्ति मिल जाएगी, यह विचार कर इन्होंने नर्सिंग में डिप्लोमा किया और काफी समय बाद इग्नू से स्नातक की डिग्री प्राप्त की। संथाली समाज और उसके राग-बोध से गहरा जुड़ाव पहले से था, नर्सिग की शिक्षा के समय बाहर की दुनिया से भी परिचय हुआ। दोनों समाजों की क्रिया-प्रतिक्रिया से वह बोध विकसित हुआ जिससे वह अपने परिवेश की वास्तविक स्थिति को समझने में सफल हो सकीं।

    इन्होंने आदिवासी समाज की विसंगतियों को तल्लीनता से उकेरा है-कड़ी मेहनत के बावजूद खराब दशा, कुरीतियों के कारण बिगड़ती पीढ़ी, थोड़े लाभ के लिए बड़े समझौते, पुरुष वर्चस्व, स्वार्थ के लिए पर्यावरण की हानि, शिक्षित समाज का दिक्कुओं और व्यवसायियों के हाथों की कठपुतली बनना आदि वे स्थितियाँ हैं जो पुतुल की कविताओं के केंद्र में हैं।

    वे आदिवासी जीवन के कुछ अनछुए पहलुओं से कलात्मकता के साथ हमारा परिचय कराती हैं और संथाली समाज के सकारात्मक और नकारात्मक दोनों पहलुओं को बेबाकी से सामने रखती हैं। संथाली समाज में जहाँ एक ओर सादगी, भोलापन, प्रकृति से जुड़ाव और कठोर परिश्रम करने की क्षमता जैसे सकारात्मक तत्त्व हैं, वहीं दूसरी ओर उस समाज में अशिक्षा, कुरीतियाँ और शराब की ओर बढ़ता झुकाव भी है। निर्मला पुतुल की प्रमुख रचनाएँ : नगाड़े की तरह बजते शब्द, अपने घर की तलाश में।

    Question 2
    CBSEENHN11012347

    दिये गये काव्यांशों की सप्रसंग व्याख्या करें:

    अपनी बस्तियों को
    नंगी होने से
    शहर की आबो-हवा से बचाएँ उसे बचाएँ डूबने से
    पूरी की पूरी बस्ती को
    हड़िया में
    अपने चेहरे पर
    संथाल परगना की माटी का रग
    भाषा में झारखंडीपन

    Solution

    प्रसंग-प्रस्तुत पंक्तियाँ संथाली कवयित्री निर्मला पुतुल द्वारा रचित कविता ‘आओ, मिलकर बचाएं, से अवतरित हैं। यह कविता मूल रूप से संथाली भाषा में रचित है। इसका हिंदी रूपातंरण अशोक सिंह ने किया है। कवयित्री अपने समाज के मूल चरित्र को एवं परिवेश को बचाने के लिए सचेष्ट है।

    व्याख्या-कवयित्री लोगों को आह्वान करती है कि आओ, हम सब मिलकर अपनी बस्तियों को नंगी होने से बचाएँ अर्थात् इसके पर्यावरण की रक्षा करें। वृक्षों की अंधाधुंध कटाई से हमारी बस्तियाँ नंगी हो जाएँगी। इन बस्तियों के मूल चरित्र को बचाने के लिए इन्हें शहरी प्रभाव से बचाना होगा। यदि हमने ऐसे प्रयास नहीं किए तो यह पूरी बस्ती डूबकर नाश होने के कगार पर पहुँच जाएगी। हमें अपनी बस्ती को बचाए रखना होगा।

    हम लोगों को अपने चरित्र की विशिष्टता को भी बचाकर रखना है। हमारे चेहरे पर संथाल परगना की मिट्टी का रंग झलकना चाहिए। हमारी भाषा में भी शहरी बनावटीपन नहीं आना चाहिए। इस पर झारखंडीपन की झलक होनी चाहिए।

    कवयित्री आदिवासी समाज को शहरी प्रभाव से बचाए रखने में विश्वास रखती है। यह शहरी प्रभाव बस्ती के मूल चरित्र को बिगाड़कर रख देगा।

    Question 3
    CBSEENHN11012349

    दिये गये काव्यांशों की सप्रसंग व्याख्या करें:

    ठंडी होती दिनचर्या में
    जीवन की गर्माहट
    मन का हरापन
    भोलापन दिल का
    अक्खड़पन, जुझारूपन भी भीतर की आग
    धनुष की डोरी
    तीर का नुकीलापन
    कुल्हाड़ी की धार
    जंगल की ताजा हवा
    नदियों की निर्मलता
    पहाड़ों का मौन
    गीतों की धुन
    मिट्टी का सोंधापन
    फसलों की लहलहाहट

    Solution

    प्रसंग-प्रस्तुत पक्तियाँ संथाली कवयित्री निर्मला पुतुल द्वारा रचित कविता ‘आओ मिलकर बचाएं’ से अवतरित हैं। कवयित्री आदिवासी समाज के मूल चरित्र को बचाए रखने के लिए कृतसंकल्प है।

    व्याख्या-कवयित्री आदिवासी समाज में आ रही आलस्य की प्रवृत्ति पर व्यंग्य करती है। उनकी दिनचर्या में ठंडापन आता चला जा रहा है, जीवन में उत्साह का अभाव होता जा रहा है। उनके मन में हरापन अर्थात् खुशी का आना आवश्यक है। इसके साथ-साथ उनके मन में भोलापन होना चाहिए। उनके स्वभाव में अक्खड़पन के साथ-साथ जुझारूपन की भी आवश्यकता है। तभी वे अपने मूल चरित्र को बनाए रख पाएंगे। संथाली आदिवासी की पहचान उनके दिल में छिपी आग (उत्साह) धनुष की डोरी पर चढ़ा तीर और कंधे पर कुन्हाड़ी है। उन्हें इस पहचान को बनाए रखना है।

    झारखंड के परिवेश में जंगल की ताजा हवा, नदियों की पवित्रता, पहाड़ों की चुप्पी, गीतों की धुन, मिट्टी का सोंधापन तथा फसलों की लहलहाहट समाई रहती है। इन सबसे मिलकर यहाँ का विशिष्ट स्वरूप निर्मित होता है।

    Question 4
    CBSEENHN11012351

    दिये गये काव्यांशों की सप्रसंग व्याख्या करें:

    नाचने के लिए खुला आँगन
    गाने के लिए गीत
    हँसने के लिए थोड़ी-सी खिलखिलाहट
    रोने के लिए मुट्ठी-भर एकान्त
    बच्चों के लिए मैदान
    पशुओं के लिए हरी-भरी घास
    बूढ़ों के लिए पहाड़ों की शान्ति

    Solution

    रस्तुत पंक्तियाँ संथाली कवयित्री निर्मला पुतुल द्वारा रचित कविता ‘आओ, मिलकर बचाएँ’ से अवतरित हैं। कवयित्री आदिवासी समाज के परिवेश और संस्कृति के मूल स्वरूप को बचाए रखना चाहती है।

    व्याख्या-कवयित्री का कहना है कि यहाँ के समाज के लिए जिन स्थितियों की आवश्यकता है, उनमें मौज-मस्ती करने के लिए खुले गिन (स्थान) की जरूरत है। उन्हें मस्ती में आने के लिए गीत भी चाहिए। उनके जीवन में हँसी की खिलखिलाहट भी होनी जरूरी है। जब कभी रोने की जरूरत हो तो उन्हें एकांत की आवश्यकता है। बच्चों को खेलने के लिए मैदान चाहिए और पशुओं को चरने के लिए हरी- भरी घास भी चाहिए। बूढ़े व्यक्तियों के लिए पहाड़ों जैसी शांति की भी आवश्यकता है। ये सभी बातें मिलकर आदिवासी समाज के मूल स्वरूप को बनाए रखने में सहायक होंगी। कवयित्री आदिवासियों की जरूरतों पर प्रकाश डालती है।

    Question 5
    CBSEENHN11012354

    दिये गये काव्यांशों की सप्रसंग व्याख्या करें:
    और इस अविश्वास भरे दौर में
    थोड़ा-सा विश्वास
    थोड़ी-सी उम्मीद
    थोड़े-से सपने
    आओ, मिलकर बचाएँ
    कि इस दौर में भी बचाने को
    बहुत कुछ बचा है, अब भी हमारे पास!

    Solution

    प्रसंग- प्रस्तुत पक्तियाँ संथाली कवयित्री निर्मला छल द्वारा रचित कविता ‘आओ, मिलकर बचाएँ’ से अवतरित हैं। इसमें कवयित्री वर्तमान परिस्थितियों में विश्वास के सकंट से उबरने की प्रेरणा देती है।

    व्याख्या-कवयित्री कहती है कि आज के वातावरण में अविश्वास की भावना समाई हुई है। इसे विश्वास में परिवर्तित करने की आवश्यकता है। यहाँ के समाज को विश्वास और उम्मीद की जरूरत है। इनकी बहाली होनी चाहिए। उन लोगों के मन में थोड़े से सपने भी जगाने होंगे। इससे उनका जीवन सुखी बन सकेगा।

    कवयित्री लोगों को आह्वान करती है कि आओ, हम सब मिलकर उस सब को बचाने का प्रयास करें जो शेष रह गया है। कवयित्री के अनुसार अभी भी स्थिति अधिक नहीं बिगड़ी है। अभी बहुत कुछ बचा हुआ है, इसे सहेजना भी काफी रहेगा। जो शेष है, उसे बचाकर भी हम अपनी संस्कृति की रक्षा करने में समर्थ हो सकेंगे।

    Question 6
    CBSEENHN11012356

    ‘माटी का रंग’ प्रयोग करते हुए किस बात की ओर संकेत किया गया है?

    Solution

    -’माटी का रंग’ प्रयोग करते हुए कवयित्री ने संथाल क्षेत्र के लोगों की मूल पहचान की ओर संकेत किया है। वह माटी से जुड़ी संस्कृति को बचाए रखने की पक्षपाती है।

    Question 7
    CBSEENHN11012357

    भाषा में झारखंडीपन से क्या अभिप्राय है?

    Solution

    भाषा में झारखंडीपन से अभिप्राय भाषा के स्थानीय स्वरूप की रक्षा करना है। यह स्वरूप यहाँ की बोली में झलकता है। यह यहाँ की मौलिकता की पहचान है। यहाँ खड़ी बोली का प्रयोग तो बनावटीपन की झलक दे जाता है।

    Question 8
    CBSEENHN11012359

    दिल के भोलेपन के साथ-साथ अक्खड़पन और जुझारूपन को भी बचाने की आवश्यकता पर क्यों बल दिया गया है?

    Solution

    ’दिल के भोलेपन’ में सहजता का भाव है। ‘अक्खड़पन’ से तात्पर्य अपनी बात पर दृढ़ रहने का भाव है और ‘जुझारूपन’ में संघर्षशीलता की झलक मिलती है। ये तीनों विशेषताएँ आदिवासी समाज की विशिष्ट पहचान हैं। इनको बचाए रखना आवश्यक है। इसीलिए कवयित्री ने इन पर बल दिया है।

    Question 9
    CBSEENHN11012361

    प्रस्तुत कविता आदिवासी समाज की किन बुराइयों की ओर संकेत करती है?

    Solution

    प्रस्तुत कविता आदिवासी समाज की निम्नलिखित बुराइयों की ओर संकेत करती है-

    1 यहाँ के लोग शहरी प्रभाव में आते चले जा रहे हैं।

    2. उनके जीवन में उत्साह का अभाव झलकता है।

    3. वे अपने अस्त्र-शस्त्रों को त्यागते चले जा रहे हैं।

    4. उनके जीवन में अविश्वास की भावना भरती जा रही है।

    Question 10
    CBSEENHN11012363

    इस दौर में भी बचाने को बहुत कुछ बचा है-से क्या आशय है?

    Solution

    इस अविश्वास भरे दौर में बचाने को बहुत कुछ बचा है-इससे कवयित्री का आशय यह है कि यदि संथाली समाज अपनी बुराइयों को दूर कर ले तो उसका मूल स्वरूप बहाल हो सकता है। अभी उनका परिवेश, उनकी भाषा, संस्कृति में अधिक बिगाड़ नहीं आया है। शहरी सम्यता का प्रभाव भी अभी सीमित मात्रा में है। अत: यहाँ के मूल चरित्र को बचाए रखना पूरी तरह से संभव है। इसे बचाना ही होगा।

    Question 11
    CBSEENHN11012365

    निम्नलिखित पंक्तियों के काव्य-सौंदर्य को उद्घाटित कीजिए-

    Solution
    (क) ठंडी होती दिनचर्या में

    जीवन की गर्माहट

    Tips: -

    कवयित्री ने दिनचर्या में आई ठंडक अर्थात् नीरसता को दूर कर गर्माहट लाने की आवश्यकता पर बल दिया है। इससे यहाँ का जन-जीवन फिर रफ्तार पकड़ लेगा। ‘ठंडी’ और ‘गर्माहट’ शब्दों में लाक्षणिकता का समावेश है। ‘गर्माहट’ उत्साह की ओर संकेत करती है।

    Question 12
    CBSEENHN11012367

    थोड़ा-सा विश्वास

    थोड़ी-सी उम्मीद

    थोड़े-से सपने,

    आओ-मिलकर बचाएँ।

    Solution

    कवयित्री की मान्यता है कि यदि हम लोगों के जीवन में थोडा-सा विश्वास, थोड़ी-सी आशा और थोड़ी- सी कल्पनाशीलता ला दें तो उनका जीवन खुशहाल हो जाए। इन सब बातों को बचाकर रखना आवश्यक भी है। शब्दों में मितव्ययता बरती गई है। भाषा सहज एवं सुबोध है। कवयित्री वातावरण को बचाकर रखने के प्रति सचेष्ट प्रतीत होती है।

    Question 13
    CBSEENHN11012368

    बस्तियों को शहर की किस आबो-हवा से बचाने की आवश्यकता है?

    Solution

    आदिवासी बस्तियों को शहर की चकाचौंध एवं कृत्रिम दिनचर्या से बचाकर रखने की आवश्यकता है। शहरी वातावरण में पर्यावरण प्रदूषण की भी समस्या है। शहर के प्रभाव को ग्रहण करने से संथाली समाज वाली बस्तियों का पर्यावरण भी प्रभावित होगा। यहाँ की बस्तियाँ सांस्कृतिक प्रदूषण की भी शिकार हो जाएँगी। इन प्रभावों से यहाँ की बस्तियों को बचाकर रखना होगा।

    Question 14
    CBSEENHN11012371

    आप अपने शहर या बस्ती की किन चीजों को बचाना चाहेंगे?

    Solution

    हम अपने शहर/बस्ती को निम्नलिखित चीजों से बचाना चाहेंगे-

    1. सबसे पहले हम पर्यावरण प्रदूषण से बचाना चाहेंगे।

    2. इसके बाद में आबादी की अंधाधुंध बढ़ोतरी पर रोक लगाना चाहेंगे।

    3. शहर/बस्ती को कंकरीट का जंगल बनाने से बचाना चाहेंगे।

    4. वृक्षों की अंधाधुंध कटाई से बचाना चाहेंगे।

    5. बस्ती-शहर को कारखानों के विषैले धुएँ और शोर से बचाना चाहेंगे।

    Question 15
    CBSEENHN11012373

    आदिवासी समाज की वर्तमान स्थिति पर टिप्पणी करें।

    Solution

    आदिवासी समाज की वर्तमान स्थिति में निरंतर परिवर्तन आ रहा है। अब वहाँ शिक्षा केंद्र खोले जा रहे हैं, ताकि अधिक-से-अधिक लोग शिक्षित होकर अपनी स्थिति को सुधार सकें।

    आदिवासी समाज पर विज्ञान के चमत्कारों का भी प्रभाव पड़ रहा है। वहाँ यातायात के साधन पहुँच रहे हैं, डाक व्यवस्था में सुधार आया है।

    आदिवासी समाज में फैली बेरोजगारी की समस्या पर नियंत्रण पाने के प्रयास किए जा रहे हैं। इससे वहाँ के युवकों की आर्थिक स्थिति में सुधार आ रहा है।

    अभी भी आदिवासी समाज अपनी पृथक् सांस्कृतिक पहचान बनाए हुए है। यह रूप उनके लोकनृत्यों और लोक-संगीत में झलकता है। आदिवासी समाज निरंतर प्रगति के पथ पर है। अब तो पृथक् झारखंड राज्य का निर्माण भी हो चुका है।

    Question 16
    CBSEENHN11012374

    ‘आओ, मिलकर बचाएँ’ कविता का प्रतिपाद्य लिखिए।

    Solution

    निर्मला पुतुल द्वारा रचित कविता ‘आओ, मिलकर बचाएँ’ में आदिवासी समाज के स्वरूप एवं समस्याओं को उकेरा गया है। कवयित्री संथाली समाज के साथ गहरे रूप से जुड़ी हुई है। उसने इस कविता में समाज में उन चीजों को बचाने की बात कही है जिनका होना स्वस्थ सामाजिक-प्राकृतिक परिवेश के लिए बहुत आवश्यक है। कविता का मूल स्वर है-प्रकृति के विनाश और विस्थापन के कारण आदिवासी समाज पर आया संकट। कवयित्री आदिवासी समाज के परिवेश को बचाए रखना और शहरी प्रभाव से मुक्त रखना चाहती है। वह झारखंडी स्वरूप की रक्षा चाहती है। संथाली समाज के ठंडेपन को दूर करना और उनमें उत्साह का संचार करना कवयित्री का लक्ष्य है। वहाँ के प्राकृतिक वातावरण के प्रति भी अपनी चिंता जाहिर करती है। वहाँ का राग-रंग उसकी नस-नस में समाया है, अत: इसके लिए उपयुक्त वातावरण की आवश्यकता महसूस करती है। कवयित्री आशावादी है, अत: बचे हुए स्वरूप में भी वह बहुत देख लेती है।

    Question 17
    CBSEENHN11012375

    कवयित्री ने अपनी कविता में किन पक्षों को छुआ है?

    Solution

    कवयित्री पुतुल ने अपनी कविता में आदिवासी जीवन के कई अनछुए पहलुओं को कलात्मकता के साथ उकेरा है। वह संथाली समाज के सकारात्मक और नकारात्मक दोनों पक्षों को उजागर करती है। वह वहाँ के पर्यावरण के बिगड़ते स्वरूप के प्रति अपनी चिंता प्रकट करती है। वह वहाँ की सांस्कृतिक पहचान को बनाए रखने की पक्षपाती है। ये सब बातें उसकी कविताओं में झलकती हैं।

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