सर्वेश्वर दयाल सक्सेना - मानवीय करुणा की दिव्या चमक
फ़ादर बुल्के अपनी वेशभूषा और संकल्प से संन्यासी थे परंतु वे मन से संन्यासी नहीं थे। वे विशेष संबंध बनाकर नहीं रखते परंतु फादर बुल्के जिससे रिश्ता बना लेते थे उसे कभी नहीं तोडते थे। वर्षो बाद मिलने पर भी उनसे अपनत्व की महक अनुभव की जा सकती थी। जब वे दिल्ली जाते थे तो अपने जानने वाले को अवश्य मिलकर आते थे। ऐसा कोई संन्यासी नहीं करता। इसलिए वे परंपरागत संन्यासी की छवि से अलग प्रतीत होते थे।
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आपके विचार से बुल्के ने भारत आने का मन क्यों बनाया होगा?
‘मेरा देश भारत’ विषय पर 200 शब्दों का निबंध लिखिए?
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