संविधान का निर्माण

Question

संविधान सभा ने भाषा के विवाद को हल करने के लिए क्या रास्ता निकाला?

Answer

भारत जैसे विशाल देश में सभी स्थानों पर एक भाषा जैसा प्रचलन नहीं था। अत: संविधान सभा में भाषा के मुद्दे पर कई महीनों तक वाद-विवाद हुआ और कई बार तनातनी भी पैदा हो गई।

  1. शुरुआत में कांग्रेस तथा महात्मा गाँधी हिंदुस्तानी भाषा को राष्ट्रभाषा बनाने के पक्ष में थे। यह हिंदी तथा उर्दू के मेल से बनी एक समृद्ध भाषा थी जिसे भारत की जनसंख्या का एक बहुत बड़ा भाग बोलता और समझता था। परन्तु उन्नीसवीं शताब्दी के अंत में ये भाषाएँ धर्मों के साथ जुड़ गई। फिर भी महात्मा गाँधी और कांग्रेस का इस भाषा के प्रति मोह कम नहीं हुआ।
  2. संविधान सभा के अनेक सदस्य हिन्दी को राष्ट्रभाषा का दर्जा दिलवाना चाहते थे। संयुक्त प्रांत के एक कांग्रेसी सदस्य आर०वी० धुलेकर ने संविधान सभा के एक प्रारंभिक सत्र में ही हिन्दी को संविधान निर्माण की भाषा के रूप में प्रयोग किए जाने की माँग की थी। धुलेकर की इस माँग का कुछ अन्य सदस्यों द्वारा विरोध किया गया। उनका तर्क था कि क्योंकि सभा के सभी सदस्य हिन्दी नहीं समझते, इसलिए हिंदी संविधान निर्माण की भाषा नहीं हो सकती थी।
  3. इस प्रकार भाषा का मुद्दा तनाव का कारण बन गया और यह आगामी तीन वर्षों तक सदस्यों को उत्तेजित करता रहा। 12 सितम्बर, 1947 ई० को राष्ट्रभाषा के मुद्दे पर धुलेकर के भाषण से एक बार फिर तूफान उत्पन्न हो गया। इस बीच संविधान सभा की भाषा समिति द्वारा अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत की जा चुकी थी।
  4. समिति ने राष्ट्रभाषा के मुद्दे पर हिन्दी समर्थकों तथा हिंदी विरोधियों के मध्य उत्पन्न हुए गतिरोध को समाप्त करने के लिए एक फार्मूला विकसित कर दिया था। समिति का सुझाव था कि देवनागरी लिपि में लिखी हिन्दी को भारत की राजकीय भाषा का दर्जा दिया जाए, किन्तु समिति द्वारा इस फार्मूले की घोषणा नहीं की गई, क्योंकि उसका विचार था कि हिन्दी को राष्ट्रभाषा बनाने के लिए क्रमशः आगे बढ़ना चाहिए।
  5. फार्मूले के अनुसार (1) यह निश्चित किया गया कि पहले 15 वर्षों तक सरकारी कार्यों में अंग्रेजी भाषा का प्रयोग जारी रखा जाएगा। (2) प्रत्येक प्रांत को अपने सरकारी कार्यों के लिए किसी एक क्षेत्रीय भाषा के चुनाव का अधिकार होगा। इस प्रकार, संविधान सभा की भाषा समिति ने विभिन्न पक्षों की भावनाओं को संतुष्ट करने तथा एक सर्वस्वीकृत समाधान प्रस्तुत करने के उद्देश्य से हिंदी को राष्ट्रभाषा के स्थान पर राजभाषा घोषित किया।

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