फिराक गोरखपुरी
किस्मत हमको रो लेवे है हम किस्मत को रो लें हैं।
जो मुझको बदनाम करें है काश वे इतना सोच सकें
मेरा परवा खोलें हैं या अपना परवा खोलें हैं।
प्रसंग: प्रस्तुत पक्तियां मशहूर शायर फिराक गोरखपुरी द्वारा रचित गजल से अवतरित हैं।
व्याख्या: शायर स्वयं को अपनी व किस्मत (भाग्य) दोनों को एक समान बताता है। दोनों को एक ही काम मिला हुआ है और वह काम है-रोने का। किस्मत शायर पर रो लेती है और शायर किस्मत पर रो लेती है। दोनों की हालत खराब है।
शायर कहता है कि जो मुझको बदनाम करते हैं उन्हें इतना तो सोच लेना चाहिए था कि वे यह काम करते समय किसको बेपर्दा कर रहे हैं। वे मेरा पर्दा खोल रहे हैं या अपना पर्दा खोल रहे हैं।
आशय यह है कि दूसरों को बदनाम करने वाले अपने चरित्र का ही उद्घाटन करते हैं। वे दूसरों के ऊपर पड़े पर्दे को नहीं हटाते वरन् अपना असली रूप दिखा देते हैं।
विशेष: 1. ‘किस्मत पर रोना, किस्मत का उस पर रोना’-शायर के दर्द को अभिव्यक्त कर जाता है।
2. दूसरों को बदनाम करने वालों पर व्यंग्य किया गया है।
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