गोस्वामी तुलसीदास

Question

काव्यांशों की सप्रसंग व्याख्या


सो अनुराग कहाँ अब भाई। उठहु न सुनि मम बच बिकलाई।।

जौं बन बंधु बिछोहू। पिता बचन मनतेउँ नहिं ओहू।।

सुत बित नारि भवन परिवारा। होहिं जाहिं जग बारहिं बारा।।

अस बिचारि जियँ जागहु ताता। मिलइ न जगत सहोदर आता।।

Answer

प्रसंग: प्रस्तुत काव्याशं तुलसीदास द्वारा रचित महाकाव्य ‘रामचरितमानस’ के ‘लंकाकांड’ से अवतरित है। लक्ष्मण के मूर्च्छित होने पर राम विलाप करने लगते हैं। हनुमान औषधि लेने गए हहैं।उनके आने में विलंब जाता है तो राम व्याकुल हो जाते हैं।

व्याख्या: श्रीराम व्याकुल होकर बोले-हे भाई! अब वह प्रेम कहाँ है? तुम मेरे व्याकुलतापूर्ण वचन सुनकर भी उठते क्यों नहीं हो? यदि मैं जानता कि वन में भाई का विछोह होगा, तो मैं पिता का वचन ही नहीं मानता। (जिसका मानना मेरे लिए परम कर्त्तव्य था, उसे भी न मानता।)

पुत्र, धन स्त्री घर और परिवार-ये जगत में बार-बार होते और जाते रहते हैं परंतु संसार में सगा भाई बार बार नहीं मिलता। हृदय में ऐसा विचार करके हे तात! जागो। तुम्हारा जैसा भाई इस जगत में नहीं मिल सकता।

विशेष: 1. स्मृति-बिंब की योजना हुई है।

2. ‘जो जनतेऊ’, ‘बंधु बिछोहू’, ‘बारहिं बारा’, ‘जिय जागहु’ आदि स्थलों पर अनुप्रास अलंकार की छटा है।

3. भाषा: अवधी।

4. छंद: चौपाई।

5. रस: करुण।

Sponsor Area

Some More Questions From गोस्वामी तुलसीदास Chapter

इन लोगों की क्या दशा है? वे क्या कहते हैं?

पेट की प्याला को शांत करने के लिए लोग कैसे-कैसे काम करने को विवश हो आते हैं?

दिये गये काव्यांशों की सप्रसंग व्याख्या करें

खेती न किसान को, भिखारी न भीख, बलि,

बनिक को बनिज, न चाकर को चाकरी।

जीविका बिहीन लोग सीद्यमान सोच बस,

कहैं एक एकन सौं कहाँ जाइ, का करी?

बेदहूँ पुरान कही, लोकहूँ बिलोकिअत,

साँकरे सबै पै, राम! रावरे कृपा करी।

दारिद-दसानन बयाई दुनी दीनबंधु!

दुरित-बहन देखि तुलसी हहा करी।।

प्रस्तुत कवित्त के आधार पर तत्कालीन आर्थिक परिस्थितियों पर प्रकाश डालिए।

जीविका विहीन लोग किस सोच में पड़े रहते हैं?

तुलसीदास ने दरिद्रता की तुलना किससे की है और क्यों?

इस समस्या पर कैसे काबू पाया जा सकता है।

दिये गये काव्यांशों की सप्रसंग व्याख्या करें

धूत कहौ, अवधूत कहा,

(CBSE 2008 Outside)

रजपूतू कहौ, जोलहा कही कोऊ।

काहूकी बेटीसों बेटा न व्याहब,

काहूकी जाति बिगार न सोऊ।।

तुलसी सरनाम गुलामु है रामको,

जाको रुचै सो कहै कछु ओऊ।।

माँगि कै खैबो, मसीतको सोइबो,

लैबो को एकु न दैबे को दोऊ।।

इस कवित्त में कवि तुलसी लोगों से क्या कहते हैं?

तुलसीदास तत्कालीन समाज की परवाह क्यों नहीं करते थे?