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सो अनुराग कहाँ अब भाई। उठहु न सुनि मम बच बिकलाई।।
जौं बन बंधु बिछोहू। पिता बचन मनतेउँ नहिं ओहू।।
सुत बित नारि भवन परिवारा। होहिं जाहिं जग बारहिं बारा।।
अस बिचारि जियँ जागहु ताता। मिलइ न जगत सहोदर आता।।