गोस्वामी तुलसीदास
निम्नलिखित काव्यांशों को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिए:
बहुबिधि सोचत सोच बिमोचन।
सवत सलिल राजिव दल लोचन।।
1. इन पंक्तियों में राम की व्याकुलता का चित्रण किस प्रकार किया गया है?
2. इस काव्याशं के अलंकार-सौदंर्य को स्पष्ट कीजिए।
3. भाषा-शैली पर प्रकाश डालिए।
1. इन काव्य-पक्तियों में लक्ष्मण-मूर्च्छा से व्याकुल प्रभु राम की चिंताग्रस्त स्थिति का बखान है। यद्यपि प्रभु राम लोगों को सोच (चिंता) से छुटकारा दिलाने वाले हैं, पर इस समय वे स्वयं अनेक प्रकार से सोच-विचार करते प्रतीत होते हैं। इसी सोच के कारण संभावित स्थिति की कल्पना कर उनके कमल के समान नयनों से आँसू बह रहे हैं। यह दशा कुछ वैसी ही है जैसे कमल-दल से पानी की बूँदें गिरती हैं। श्रीराम की भावाकुल दशा का मार्मिक अंकन हुआ है।
2. अनेक स्थलों पर अनुप्रास अलंकार की छटा है-बहु बिधि सोचत सोच, स्रवित सलिल में।
दूसरी पंक्ति में रूपक अलंकार का सुंदर प्रयोग हुआ है।
3. भाषा: अवधी।
छंद: चौपाई।
रस: करुण।
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तुलसीदास के जीवन का संक्षिप्त परिचय देते हुए उनकी साहित्यिक विशेषताओं पर प्रकाश डालिए।
चाकर, चपल नट, चोर, चार, चेटकी।
पेटको पढ़त, गुन गढ़त, चढ़त गिरि,
अटत गहन-गन अहन अखेटकी।।
ऊँचे-नीचे करम, धरम-अधरम करि,
पेट ही को पचत, बेचत बेटा-बेटकी।
‘जतुलसी’ बुझाई एक राम घनस्याम ही तें,
आगि बड़वागितें बड़ी है अगि पेटकी।।
कवि तुलसी ने इस पद में किस समस्या को उठाया है?
इस पब में किन-किन लोगों का उल्लेख है? उन्हें क्या प्राप्त नहीं होता?
इन लोगों की क्या दशा है? वे क्या कहते हैं?
पेट की प्याला को शांत करने के लिए लोग कैसे-कैसे काम करने को विवश हो आते हैं?
बनिक को बनिज, न चाकर को चाकरी।
जीविका बिहीन लोग सीद्यमान सोच बस,
कहैं एक एकन सौं कहाँ जाइ, का करी?
बेदहूँ पुरान कही, लोकहूँ बिलोकिअत,
साँकरे सबै पै, राम! रावरे कृपा करी।
दारिद-दसानन बयाई दुनी दीनबंधु!
दुरित-बहन देखि तुलसी हहा करी।।
प्रस्तुत कवित्त के आधार पर तत्कालीन आर्थिक परिस्थितियों पर प्रकाश डालिए।
जीविका विहीन लोग किस सोच में पड़े रहते हैं?
तुलसीदास ने दरिद्रता की तुलना किससे की है और क्यों?
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