सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’
कवि ने सांसारिक सुखों पर दुःख की छाया तैरती बताया गया है। यह दुःख की छाया शोषण की काली छाया है। पूँजीपतियों द्वारा किसान-मजदूरों का शोषण किया जाता है। उनके जीवन में सुख तो क्षणिक हैं, पर उन पर हमेशा दुःख की छाया मँडराती रहती है। कवि सुखों की अस्थिरता और दुःख के यथार्थ को प्रकट करना चाहता है।
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वर्षण है मूसलाधार
हृदय थाम लेता संसार
सुन-सुन घोर वज्र-हुंकार।
अशनि-पात से शायित उन्नत शत-शत-वीर,
क्षत-विक्षत-हत अचल-शरीर,
गगन-स्पर्शी स्पर्धा-धीर।
कवि ने बादलों का आहान क्यों किया है?
बादलों की गर्जना का संसार पर क्या प्रभाव पड़ता है?
कवि ने बादलों की क्या-क्या विशेषताएँ बताई हैं?
‘गगन स्पर्शी, स्पर्धावीर’ का आशय स्पष्ट करो।
शस्य अपार,
हिल-हिल,
खिल-खिल
हाथ हिलाते,
तुझे बुलाते,
तुझे बुलाते,
विप्लव-रव से छोटे ही हैं शोभा पाते।.
क्रांति की गर्जना पर कौन हंसते हैं?
छोटे पौधे किनके प्रतीक हैं?
वे किस, किस प्रकार बुलाते हैं?
‘विप्लव रव’ किससे शोभा पाते है और क्यों?
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