कुँवर नारायण
बात और भाषा परस्पर जुड़े होते हैं, किंतु कभी-कभी भाषा के चक्कर में ‘सीधी बात भी टेढ़ी हो जाती है’ कैसे?
बात और भाषा का आपस में गहरा संबंध होता है। बात का अभिप्राय स्पष्ट करने के लिए सही भाषा का प्रयोग करना चाहिए किन्तु कई बार ऐसा होता है कि हम भाषा को सहज नहीं रहने देते। हम क्लिष्ट भाषा का प्रयोग कर सीधी सरल बात को भी शब्द-जाल में उलझाकर टेढ़ी बना देते हैं। प्रत्येक शब्द का अपना विशिष्ट अर्थ होता है, भले ही ऊपर से वे समानार्थी या पर्यायवाची प्रतीत होते हों। गलत शब्द का प्रयोग बात को उलझा देता है। शब्दों के चक्कर में उलझकर भाव अपना अर्थ खो बैठते हैं।
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प्रस्तुत पक्तियों का सप्रसंग व्याख्या करें?
कविता एक खिलना है फूलों के बहानेकविता का खिलना भला फूल क्या जाने!
बाहर भीतर
इस घर, उस घर
बिना मुरझाए महकने के माने
फूल क्या जाने?
कविता एक खेल है बच्चों के बहाने
बाहर भीतर
यह घर, वह घर
सब घर एक कर देने के माने
बच्चा ही जाने!
कविता का फूलों के बहाने खिलना कैसे है?
कविता और फूलों में क्या अंतर है?
कविता बच्चों के खेल के समान कैसे है?
इस काव्यांश में कविता की क्या-क्या विशेषताएँ उभर कर सामने आती हैं?
प्रस्तुत पक्तियों का सप्रसंग व्याख्या करें?
बात सीधी थी पर एक बार
भाषा के चक्कर में
जरा टेढ़ी फँस गई।
उसे पाने की कोशिश में
भाषा को उलटा पलटा
तोड़ा मरोड़ा
घुमाया फिराया
कि बात या तो बने
या फिर भाषा से बाहर आए-
लेकिन इससे भाषा के साथ साथ
बात और भी पेचीदा होती चली गई।
कवि ने अपनी बात के बारे में क्या कहा है?
कवि ने अपनी बात के लक्ष्य को पाने के लिए क्या-क्या किया?
कवि अपने लक्ष्य को क्यों नही पा सका?
बात पेचीदा क्यों होती चली गई?
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