गजानन माधव मुक्तिबोध
‘प्रेरणा’ शब्द पर सोचिए। उसके महत्त्व पर प्रकाश डालते हुए जीवन के वे प्रसंग याद कीजिए जब माता-पिता, दीदी-भैया, शिक्षक या कोई महापुरुष आपके अँधेरे क्षणों में प्रकाश भर गए।
‘प्रेरणा’ शब्द बहुत महत्वपूर्ण है। हम अपने श्रद्धेय, पूजनीय, आदरणीय व्यक्तियों के जीवन एवं कार्यो से प्रेरणा लेकर आगे बढ़ते हैं। इससे हमारे अँधेरे क्षणों में प्रकाश भर जाता है।
एक बार मैं अपने विद्यालयी जीवन में फैशन की ओर उन्मुख हो गया था। परीक्षा में भी मेरे कम अंक आए। तभी मुझे मेरे बड़े भैया ने सद्मार्ग पर चलने की प्रेरणा दी। उन्होंने मुझे समय का महत्त्व समझाया। कई उदाहरण भी दिए। फैशन की निरर्थकता बताते हुए पढ़ाई पर ध्यान देने की प्रेरणा दी। इससे मेरी आँखें खुल गई। मैं फैशन का चक्कर छोड्कर पढ़ाई में जुट गया। वार्षिक परीक्षा में जब मुझे 85% अंक मिले तो मुझे भाई की प्रेरणा का महत्व समझ में आया।
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कवि ने इसे क्यों स्वीकार कर लिया है?
यह कविता क्या प्रेरणा देती है?
प्रस्तुत पक्तियों की सप्रंसग व्याख्या करें
गरबीली गरीबी यह, ये गंभीर अनुभव सब
यह विचार-वैभव सब
दृढ़ता यह, भीतर की सरिता यह अभिनय सब
मौलिक है, मौलिक है,
इसलिए कि पल-पल में
जो कुछ भी जागृत है, अपलक है-
संवेदन तुम्हारा है!!
कवि किस-किसको मौलिक मानता है और क्यों?
इन पर किसकी संवेदना का प्रभाव है?
इस कविता पर किस बाद का प्रभाव झलकता है?
जितना भी उँडेलता हूँ, भर-भर फिर आता है
दिल में क्या झरना है?
मीठे पानी का सोता है
भीतर वह, ऊपर तुम
मुस्काता चाँद ज्यों धरती पर रात-भर
मुझ पर त्यों तुम्हारा ही खिलता वह चेहरा है।
कवि अपने दिल की तुलना किससे करता है और क्यों?
ऊपर कौन है?
कवि किससे प्रभावित है?
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