कबीर
पीपर पाथर पूजन लागे, तीरथ गर्व भुलाना।
टोपी पहिरे माला पहिरे, छाप तिलक अनुमाना।।
इन काव्य पंक्तियों में कबीर ने ढोंग-आडंबरों पर करारी चोट की है। वे तीर्थ-व्रत, मूर्ति पूजा, टोपी-माला को धर्म के चिह्न मानने, तिलक-छापा लगाने का सशक्त विरोध करते हैं। उनके मत में इन बाहु-चिहनों का धर्म से कोई संबंध नहीं है।
-‘पीपर पाथर पूजन’ में ‘प’ वर्ण की आवृति के कारण अनुप्रास अलंकार का प्रयोग है।
-सधुक्कड़ी भाषा का प्रयोग है।
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कबीर के जीवन और साहित्य के विषय में आप क्या जानते हैं?
हम तौ एक एक करि जाना।
दोइ कहै तिनहीं कीं दोजग जिन नाहिंन पहिचाना।।
एकै पवन एक ही पानीं एकै जोति समांना।
एकै खाक गढ़े सब भाई एकै कोंहरा सांना।।
जैसे बाड़ी काष्ट ही काटै अगिनि न काटै कोई।
सब घटि अंतरि तूँही व्यापक धरै सरूपै सोई।।
माया देखि के जगत लुभानां काहे रे नर गरबांना।
निरभै भया कछू नहिं व्यापै कहै कबीर दिवाँनाँ।।
संतो देखत जग बौराना।
साँच कहीं तो मारन धावै, झूठे जग पतियाना।।
नेमी देखा धरमी देखा, प्रात करै असनाना।
आतम मारि पखानहि पूजै, उनमें कछु नहिं ज्ञाना।।
बहुतक देखा पीर औलिया, पढ़ै कितेब कुराना।
कै मुरीद तदबीर बतावैं, उनमें उहै जो ज्ञाना।।
आसन, मारि डिंभ धरि बैठे, मन में बहुत गुमाना।
पीपर पाथर पूजन लागे, तीरथ गर्व भुलाना।।
टोपी पहिरे माला पहिरे, छाप तिलक अनुमाना।
साखी सब्दहि गावत भूले, आतम खबरि न जाना।।
हिन्दू कहै मोहि राम पियारा, तुर्क कहै रहिमाना।
आपस में दोउ लरि लरि मूए, मर्म न काहू जाना।।
घर-घर मंतर देत फिरत हैं, महिमा के अभिमाना।
गुरु के सहित सिख सब बूड़े, अंत काल पछिताना।।
कहै कबीर सुनो हो संतो, ई सब भर्म भुलाना।
केतिक कहीं कहा नहिं मानै, सहजै सहज समाना।।
कबीर की दृष्टि में ईश्वर एक है? इसके समर्थन में उन्होंने क्या तर्क दिए है?
मानव शरीर का निर्माण किन पाँच तत्त्वों से हुआ है?
“जैसे बाड़ी काष्ठ ही का, अगिनि न काटे, कोई।
सब घटि अंतरि तूँही व्यापक धरै सरूपै सोई।।”
-इसके आधार पर बताइए कि कबीर की दृष्टि में ईश्वर का क्या स्वरूप है?
कबीर ने अपने को दीवाना क्यों कहा है?
कबीर ने ऐसा क्यों कहा है कि संसार बौरा गया है?
कबीर ने नियम और धर्म का पालन करने वाले लोगों की किन कमियों की ओर संकेत किया है?
अज्ञानी गुरूओं की शरण में जाने पर शिष्यों की क्या गति होती है?
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