स्वयं प्रकाश - नेताजी का चश्मा
हालदार साहब नेता जी की मूर्ति की ओर इसलिए नहीं देखना चाहते क्योंकि पीछे जितनी बार भी वे यहाँ आकर मूर्ति देखते हैं, मूर्ति की आँखों पर चश्मा नहीं होता। जब उन्हें पता चला कि मूर्ति को चश्मा लगाने वाले कैप्टन की मौत हो गई है तो उनका मन दु:ख से भर उठता है। वे कैप्टन को स्मरण कर भावविभोर हो उठते हैं। उन्हें कैप्टन की याद न आए तथा नेता जी की मूर्ति बिना चश्मे के अधूरी लगती है-इन सभी कारणों से वे मूर्ति की ओर नहीं देखते हैं।
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“वो लँगड़ा क्या जाएगा फ़ौज में। पागल है पागल!”
कैप्टन के प्रति पानवाले की इस टिप्पणी पर आपकी क्या प्रतिक्रिया लिखिए।
निम्नलिखित पंक्तियों में स्थानीय बोली का प्रभाव स्पष्ट दिखाई देता है, आप इन पंक्तियों को मानक हिंदी में लिखिए-
कोई गिराक आ गया समझो। उसको चौड़े चौखट चाहिए। तो कैप्टन किदर से लाएगा? तो उसको मूर्तिवाला दिया। उदर दूसरा बिठा दिया।
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