स्वयं प्रकाश - नेताजी का चश्मा
हालदार साहब शहर से गुजरते समय यह सोच रहे थे कि वे अब शहर के चौराहे पर रुककर न तो पान खाएंगे और न ही नेता जी की मूर्ति को देखेंगे क्योंकि अब नेता जी की मूर्ति का चश्मा नहीं होता। जब से कैप्टन की मृत्यु हुई है उन्हें नेता जी की मूर्ति पर चश्मा नहीं दिखाई दिया।
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“वो लँगड़ा क्या जाएगा फ़ौज में। पागल है पागल!”
कैप्टन के प्रति पानवाले की इस टिप्पणी पर आपकी क्या प्रतिक्रिया लिखिए।
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