ऋतुराज - कन्यादान
बेटी ही तो माँ को अपनी अंतिम पूंजी लग रही थी क्योंकि वह अपने जीवन के सारे सुख-दुःख उसी के साथ ही तो बांटती थी। वही उसके सबसे निकट थी, वही उसकी साथी थी।
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