नागार्जुन - यह दंतुरित मुसकान
कल मैं अपनी सहेली के घर गई थी। वह मेरी ही कक्षा में पढ़ती है। जब मैं उसके साथ उनके घर के आँगन में बैठी थी तो मैंने देखा कि लगभग डेढ़-दो वर्ष की एक छोटी-सी लड़की दरवाजे की ओट में खड़ी होकर एकटक हम दोनों को देख रही थी। उस ने अपने एक हाथ की एक उंगली मुँह में डाल रखी थी और दूसरी से दरवाजा थाम रखा था। मैंने उसे इशारे से बुलाया पर वह वहीं खड़ी रही। मेरी सहेली ने मुझे बताया कि वह उसकी भतीजी थी जो दो दिन पहले ही दिल्ली से वहाँ कुछ दिन के लिए आए थे। उसका नाम सलोनी था। मैंने उसे नाम से पुकारा। वह मुसकराई तो अवश्य पर वहाँ से आगे नहीं बड़ी। मैं अपनी जगह से उठी और जैसे ही उस की तरफ बढ़ी वह झट से भीतर भाग गई। मैं भी वापिस अपनी जगह पर आकर बैठ गई। मैंने कुछ देर बाद फिर उधर देखा तो वह वहीं खड़ी थी। मेरी सहेली ने उसे बुलाया तो वह हमारे पास आ गई। मैंने उसे पुचकारा, उसका नाम पूछा। वह चुप रही। बस धीरे-धीरे मुसकाती रही। मैंने उससे पूछा कि क्या उसे गाना आता था तो उसने हाँ में सिर हिलाया और फिर धीरे-से पूछा कि क्या वह गाना सुनाए। मेरे हाँ कहने के बाद उसने गाना शुरू किया और एक के बाद एक न जाने कितनी देर तक वह आधे-अधूरे गाने गाती रही, ठुमकती रही। उसकी झिझक दूर हो गई थी। जब मैं चलने लगी तो वह मेरी उंगली थाम कर मेरे साथ चलने को तैयार थी। कुछ देर पहले मुझ से शर्माने और झिझकने वाली सलोनी अब मेरे साथ थी। अब उसके चेहरे पर झिझक के भाव नहीं थे। उसके व्यवहार में भय नहीं था। वह बहुत मीठा और अच्छा बोलती थी।
एन० सी० ई० आर० टी० द्वारा नागार्जुन पर बनाई गई फिल्में देखिए।
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